भारत में रविवार की छुट्टी की कहानी का रोचक विवरण

भारत में रविवार की छुट्टी की कहानी का रोचक विवरण

सोमवार की सुबह की किरण के साथ ही हमारे भौंहें चढ़ जाती है। एक ठंडी आह् भरते हुए हम कहते हैं, चलो अब काम पर चलते हैं। पर जैसे-जैसे सोमवार से मंगलवार और मंगलवार से बुधवार और फिर शनिवार आता है। वैसे-वैसे हमारे चेहरे पर मुस्कान लौटने लगती है। आंखों में चमक छा जाती है और फिर हम कहते हैं। टेंशन को छोड़ो कल रविवार है।

जी हां, रविवार का दिन बच्चों और बड़ों सबके लिए एक सुखद अहसास को लेकर आता है। पूरे सप्ताह की थकान मिटाने और अपने दिमाग को तरोताजा करने के लिए रविवार कारगर सिद्ध होता है। यह एक ऐसा दिन है। जब हम अपने बॉस से दूर रहकर शांति महसूस करते हैं। न 9 बजने की जल्दी रहती है और न हीं 5 बजने का इंतजार।

रविवार तो खुशियों भरा वह दिन होता है। जो परिवार और दोस्तों के लिए होता है। क्या कभी आपने सोचा है यदि रविवार नहीं होता और यदि होता भी तो रविवार को अवकाश नहीं होता! तो कैसा होता! यह सवाल ही अपने आप में एक टेंशन बढ़ाने वाला होता है। क्योंकि यह रविवार हमें ऊर्जा देने वाला, शक्ति बढ़ाने वाला और तरोताजा करने वाला होता है। पर क्या आप जानते हैं कि हमें रविवार की छुट्टी एक जद्दोजेहद और कड़े परिश्रम के बाद मिला। तो चलिए समय निकालते हैं और जानते हैं भारत में रविवार की छुट्टी की कहानी का इतिहास।

☆ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रविवार की छुट्टी

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रविवार की छुट्टी की शुरुआत अंग्रेजों द्वारा हुई। जब 1843 ई• में ब्रिटिश सरकार ने स्कूलों में बच्चों के लिए छुट्टी की घोषणा की थी। इसके पीछे तर्क दिया गया था कि बच्चे घर पर रहकर कुछ रचनात्मक कार्य कर सकेंगे।

☆ भारत में रविवार की छुट्टी की शुरुआत की कहानी

19वीं शताब्दी में जब भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का आधिपत्य था। तब उन्हीं दिनों भारत में मजदूरों का एक बड़ा वर्ग काम के बोझ के तले दबा हुआ था। इन मजदूरों को खाना-खाने के लिए दोपहर का विश्राम भी नहीं दिया जाता था। इस कारण मजदूरों के स्वास्थ दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रही थी। इसी को देखते हुए मजदूरों के नेता नारायण मेघाजी लोखंडे ने 1870 और 80 के दशक में मजदूरों के लिए सप्ताह में एक दिन छुट्टी की आवाज उठाई। हालांकि उनकी अपील शुरुआत में ब्रिटिश अधिकारियों ने नहीं मानी। मेघाजी लोखंडे ने सप्ताह में एक दिन रविवार को छुट्टी के लिए अपना तर्क दिया था कि हर कामगार भारतीय नागरिक सप्ताह के 6 दिन अपने मालिक के लिए कार्य करता है। उसे सप्ताह में एक दिन अपने देश और समाज की सेवा के लिए भी देना चाहिए। ताकि उनके मन में देश सेवा की भावना विकसित हो सके। साथ ही उन्होंने बताया कि रविवार का दिन हिंदू देवता खंडोबा जी (कुल देवता) का दिन भी होता है।

अन्ततः मेघाजी लोखंडे के अथक प्रयास और संघर्ष के पश्चात 10 जून 1890 ई• को ब्रिटिश हुकूमत ने रविवार के दिन को मजदूरों के लिए छुट्टी की घोषणा की। बाद के वर्षों में रविवार के अवकास के अतिरिक्त अन्य दिनों में भी दोपहर की छुट्टी की शुरुआत हुई।

☆ नारायण मेघाजी लोखंडे का जीवन परिचय

नारायण मेघाजी लोखंडे के आम जन के लिए किए गये प्रयासों के कारण भारत सरकार ने 2005 में उनके नाम से डाक टिकट जारी किया। लोखंडे का जन्म महाराष्ट्र के ठाणे में 1848 ई• में हुआ था। जबकि उनका निधन 1897 ई• में मुंबई में हुआ।

☆ रविवार की छुट्टी का धार्मिक कारण

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रविवार की छुट्टी के लिए कई धार्मिक मान्यताएं भी हैं।
• ईसाई धर्म के अनुसार ईश्वर को पृथ्वी को बनाने में 6 दिन लगे थे। और 6 दिन के बाद सातवें दिन यानी रविवार को प्रभु ने आराम किया था। इस कारण अंग्रेजों ने रविवार को आराम का दिन अर्थात् छुट्टी का दिन मान लिया।
• एक दूसरी मान्यता के अनुसार प्रभु ईसा मसीह सूली पर चढ़ाए जाने के तीसरे दिन अर्थात् रविवार को पुनः जीवित हो उठे थे। इसी मान्यता के अनुसार अंग्रेज रविवार को प्रभु यीशु को याद करने गिरजाघर जाया करते थे। और रविवार को अपने लिए अवकाश रखने थे। इन्हीं कुछ कारणों से अंग्रेजों ने रविवार को अवकाश के लिए चुना।
• भारतीय मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म में सप्ताह की शुरुआत सूर्य का दिन अर्थात रविवार से होता है। और रविवार को सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। इस कारण भारतीय रविवार को छुट्टी की आवश्यकता समझते थे।

• अन्ततः कहा जा सकता है कि अंग्रेजों का साम्राज्य विश्व के अधिकांश देशों पर था। ऐसा माना जाता था कि ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्यास्त नहीं होता। इस कारण संसार में अधिकांश देशों ने रविवार को छुट्टी के रूप में अपनाया।

☆ संसार के कुछ ऐसे देश जहां रविवार को छुट्टी नहीं होती

विश्व में कई ऐसे देश हैं जहां रविवार को छुट्टी नहीं होती है। ऐसे देशों मैं मुस्लिम देश प्रमुख है जहां रविवार के स्थान पर शुक्रवार को छुट्टी दी जाती है।

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शोध एवं संकलन
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महेंद्र प्रसाद दांगी
शिक्षक

प्रस्तुतकर्ता
www.gyantarang.com

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