खोरठा स्वर और व्यंजन | khortha vowel and consonants in hindi

खोरठा स्वर और व्यंजन | khortha vowel and consonants in hindi

खोरठा स्वर और व्यंजन समृद्ध है। किसी भी भाषा के लिए वर्ण महत्वपूर्ण होते हैं। वर्ण के बिना भाषा को बोलना और लिखना संभव नहीं है। हालांकि खोरठा भाषा में मानकीकरण का अभाव दिखता है। फिर भी खोरठा के अधिकांश विद्वान खोरठा भाषा में वर्णों की कुल संख्या 41 मानते हैं। खोरठा भाषा को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। खोरठा भाषा में संयुक्त अक्षरों का प्रयोग नहीं होता है। साथ ही खोरठा भाषा के उच्चारण में ह्रस्व की प्रधानता होती है।

विषय वस्तु

     • खोरठा भाषा कैसे लिखें और बोलें
     • खोरठा स्वर और व्यंजन ध्वनि
     • अल्पप्राण और महाप्राण
     • घोष और अघोष
     • खोरठा भाषा में वर्ण (ध्वनि) के प्रयोग के विशिष्ट नियम

        • खोरठा भाषा कैसे लिखें और बोलें

भाषा का आधार होता है ध्वनि! जिसे वर्ण के रूप में जानते हैं। और ध्वनि (वर्ण) के मेल से शब्द की रचना होती है। इन प्रत्येक शब्दों का कुछ ना कुछ अर्थ होता है। और इन शब्दों के मेल से रचना होती है वाक्य की! इस प्रकार ध्वनि के मेल से शब्द और शब्दों के मेल से वाक्यों की रचना होती है। जो किसी भी भाषा को आकार देती है। भाषा मौखिक या लिखित रूप में लोगों के बीच संपर्क का काम करती है  एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक, एक युग से दूसरे युग तक उसी रूप में भाषा को पहुंचाने के लिए लिखित रूप होना आवश्यक है, और यह कार्य लिपि के माध्यम से संभव होता है।

इस तरह हम देखते हैं कि भाषा के विकास के लिए लिपि की आवश्यकता पड़ती है। जहां तक खोरठा भाषा की बात है तो खोरठा भाषा को “देवनागरी लिपि” में लिखा जाता है। हालांकि खोरठा भाषा के लिए खरोष्ठी लिपि का आविष्कार डॉ नागेश्वर महतो ने किया था। परंतु कुछ त्रुटियों के कारण अभी यह देवनागरी लिपि में ही लिखा जाता है। अतः खोरठा भाषा लिखने, पढ़ने और समझने के लिए खोरठा के ध्वनि, ध्वनि (वर्ण) प्रयोग, खोरठा के ठेठ शब्द और खोरठा व्याकरण को जानना होगा। इस कड़ी में आप यहां खोरठा स्वर और व्यंजन ध्वनि तथा खोरठा ध्वनि प्रयोग के कुछ सामान्य नियम देखेंगें।

• खोरठा स्वर और व्यंजन ध्वनि

खोरठा भाषा को लिखने और बोलने के लिए सबसे पहले इसके ध्वनियों को जानना पड़ेगा। खोरठा को शिष्ट भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए एक मानक की आवश्यकता है। जिससे इसके ध्वनि (वर्ण) को मानक स्थान मिल सके। खोरठा भाषा में मानकीकरण के लिए प्रयास 1984-85 ई. और 2010 ई. में किया गया था। पर सम्पूर्ण सफलता नहीं मिली।

खोरठा के कुछ ध्वनियों में खोरठा विद्वानों में मतभेद है। “अपनी डफली, अपनी राग” को मानते हुए, खोरठा के रचनाकार अपनी क्षेत्रियता को आधार मानकर लिखते रहे। फिर भी ‘अधिकांश विद्वान खोरठा में 41 वर्ण (ध्वनि) मानते हैं। जिसमें आठ स्वर वर्ण और 33 ध्वनि व्यंजन वर्ण।’  यहां हम खोरठा के स्वर ध्वनि (वर्ण) और व्यंजन ध्वनि (वर्ण) देखने जा रहे है।

खोरठा स्वर ध्वनि (Khortha Vowels)

स्वर वर्ण उन वर्णों या ध्वनियों को कहा जाता है जिनका उच्चारण स्वतः होता है। हिंदी में जहां 13 स्वर वर्ण का प्रयोग किया जाता है, वहीं खोरठा में मात्र 8 स्वर वर्ण है। खोरठा में स्वर वर्ण दो प्रकार के होते हैं।

(i) ह्रस्व स्वर:- अ, इ, उ
(ii) दीर्घ स्वर :- आ, ई, ऊ, ए, ओ

• यहां का प्रयोग ह्रस्व के रूप में के नीचे हलंत लगाकर किया जाता है।

ध्यान देंऐ, औ,श्रृ, लृ, ॠ वर्ण का प्रयोग सामान्यतः नहीं होता है। हालांकि ध्वनियों के प्रयोग के कुछ उदाहरण मिलते हैं, परन्तु उन्हें अपवाद मानना चाहिए।

खोरठा व्यंजन ध्वनि (Khortha Consonants)

स्वर वर्णों की सहायता से जिस वर्ण का उच्चारण होता है उसे व्यंजन वर्ण कहते हैं। खोरठा में व्यंजन वर्णों की कुल संख्या 33 है। खोरठा में उच्चारण के आधार पर व्यंजन मुख्यतः तीन प्रकार के हैं।

(i) स्पर्श व्यंजन:- वैसे वर्ण जिनका उच्चारण कंठ, तालु, मूर्धा, दांत और ओंठ के स्पर्श से होता है, उन्हें “स्पर्श व्यंजन” कहते हैं। इसके अंतर्गत 23 वर्ण आते हैं तथा दो उप स्पर्श व्यंजन है।

• कंठ्य व्यंजन:- इसके अंतर्गत क, ख, ग, घ (क-वर्ग) वर्ण शामिल है। इन वर्णों का उच्चारण कंठ के स्पर्श से होता है।
• तालव्य व्यंजन:- इसके अंतर्गत च, छ, ज, झ, ञ (च-वर्ग) वर्ण शामिल है। इन वर्णों का उच्चारण तालु के स्पर्श से होता है।
मूर्धन्य व्यंजन:- इसके अंतर्गत ट, ठ, ड, ढ (ट-वर्ग) वर्ण शामिल है। इन वर्णों का उच्चारण मूर्धा के स्पर्श से होता है।
दन्तव्य व्यंजन:- इसके अंतर्गत त, थ, द, ध, न (त-वर्ग) वर्ण शामिल है। इन वर्णों का उच्चारण दांत के स्पर्श से होता है।
औष्ठय व्यंजन:- इसके अंतर्गत प, फ, ब, भ, म (प-वर्ग) वर्ण शामिल है। इन वर्णों का उच्चारण ओंठ के स्पर्श से होता है।

उप व्यंजन ड़ और ढ़ का प्रयोग होता है।

ध्यान दें:- खोरठा में ङ, ण स्पर्श व्यंजन का प्रयोग नहीं होता है।

(ii) अंतःस्थ व्यंजन:- ये स्वर और व्यंजन के बीच स्थित वर्ण है। इनका उच्चारण जीभ, दांत और ओठों से होता है। खोरठा में इस प्रकार के छः वर्ण है। य, र, ल, व, रह् और ल्ह

ध्यान दें:- खोरठा में रह् और ल्ह विशिष्ट ध्वनि पाया जाता है।
जैसे- र् ह (र्ह) = खोर् हा (खोर्हा), बेर् हा  (बेर्हा)
ल्ह = करल्हे, खइल्हे

(iii) ऊष्म व्यंजन:- ऐसे वर्णों का उच्चारण रगड़ या घर्षण से उत्पन्न गरम वायु से होता है। इस लिए इसे ‘उष्म व्यंजन’ कहते हैं। इनकी संख्या चार है। स, ह, न्हं और म्हं

ध्यान दें:-
•खोरठा में न्हं और म्हं विशिष्ट ध्वनि पाया जाता है।
जैसे:- न्हं = नान्हं,  आपन्हीं
म्हं = हाम्हीं

• हिंदी में प्रयुक्त य, व, ड़, ढ़, अं, अः वर्ण खोरठा में प्राय: प्रयोग नहीं होते हैं। हालांकि कुछ लेखक इनमें से कुछ वर्णों का उपयोग करते हुए देखे गये हैं।

• हिंदी के संयुक्त व्यंजन क्ष, त्र, ज्ञ, श्र का प्रयोग खोरठा में नहीं किया जाता है। हालांकि इंभाटेड काॅमा (‘ “) का प्रयोग कर कुछ संयुक्त व्यंजनों का प्रयोग खोरठा में देखा जाता है।

• अल्पप्राण और महाप्राण:-

श्वास वायु की मात्रा के आधार पर व्यंजन वर्णों को पुनः दो भागों में बांटा जा सकता है। अल्पप्राण व्यंजन और महाप्राण व्यंजन।

अल्पप्राण व्यंजन ध्वनि:- जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास वायु (प्राण वायु) कम (अल्प) मात्रा में बाहर निकलती है, उन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं। प्रत्येक वर्ग के पहले, तीसरे और पांचवें वर्ण “अल्पप्राण व्यंजन वर्ण” कहे जाते है। जैसे:-
क वर्ग= क, ग
च वर्ग = च, ज, ञ
ट वर्ग = ट, ड
त वर्ग = त, द, न
प वर्ग = प, ब, म
य वर्ग = य, र, ल, व

इस प्रकार खोरठा में अल्प्राण व्यंजनों की कुल संख्या 17 है।

महाप्राण व्यंजन ध्वनि:- जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास वायु अधिक (महा) मात्रा में बाहर निकलती है, उन्हें “महाप्राण व्यंजन” कहते हैं। ये प्रत्येक वर्ग के दूसरे और चौथे वर्ण होते हैं जैसे:-
क वर्ग = ख, घ
च वर्ग = छ, झ
ट वर्ग = ठ, ढ
त वर्ग = थ, ध
प वर्ग = फ, भ
और स, ह, न्हं, म्हं, रह्, ल्ह

इस प्रकार खोरठा में महाप्राण व्यंजनों की कुल संख्या 16 है।

    • घोष और अघोष :-

स्वरतंत्री में श्वास कंपन के आधार पर व्यंजन को दो भागों में विभक्त किया जाता है। घोष व्यंजन वर्ण और अघोष व्यंजन वर्ण।

घोष व्यंजन वर्ण:- वैसे व्यंजन वर्ण (ध्वनि) जिनके उच्चारण में श्वास के कारण कंपन होता है। उन्हें ‘घोष या सघोष व्यंजन वर्ण’ कहते हैं। ये सभी वर्गों के तीसरे, चौथे और पांचवें व्यंजन वर्ण होते हैं। जैसे:-
क वर्ग = ग, घ
च वर्ग = ज, झ, ञ
ट वर्ग = ड, ढ
त वर्ग = द,ध, न
प वर्ग = ब, भ, म
इसके अतिरिक्त य, र, ल, व, ह, रह्, ल्ह, न्हं, म्हं

इस प्रकार खोरठा में घोष व्यंजन वर्णों की कुल संख्या 22 है।

अघोष व्यंजन वर्ण:- वैसे व्यंजन ध्वनियां जिनके उच्चारण में सिर्फ श्वास का प्रयोग होता है और स्वरतंत्री में कंपन नहीं होता है। उन्हें अघोष व्यंजन ध्वनि कहते हैं। ये प्रत्येक वर्ग के पहले और दूसरे वर्ण होते हैं। जैसे:-
क वर्ग = क, ख
च वर्ग = च, छ
ट वर्ग = ट, ठ
त वर्ग = त, थ
प वर्ग = प, फ
इसके अतिरिक्त स

इस प्रकार खोरठा में अघोष व्यंजन वर्णों की कुल संख्या 11 है।

     • खोरठा भाषा में ध्वनि/वर्ण के प्रयोग के विशिष्ट नियम

1984 ई• में रांची के संत जेवियर में और 2010 ई. में कुशवाहा धर्मशाला रामगढ में खोरठा भाषा के मानकीकरण पर हुए सम्मेलन में झारखंड के कई विद्वान शामिल हुए। जिसमें ध्वनि, शब्द, अर्थ, पद और वाक्य पर विसद चर्चा हुई। लेकिन मानक हेतु अंतिम निर्णय तक नहीं पहुंच गया। उन विषयों से संबंधित नियम और प्रयोग यहां देखे जा सकते हैं। हालांकि ये बात अलग है कि खोरठा के अलग-अलग विद्वान इन नियम और प्रयोग से परे होकर रचनाएं करते भी रहे हैं।

▪︎ ङ का प्रयोग नहीं:- खोरठा में ङ का प्रयोग नहीं होता है।

▪︎ ञ का विशेष प्रयोग:- खोरठा में ञ का उच्चारण ‘यं’ के जैसे होता है। जैसे – कोराञ (गोद में) यहां ञ का उच्चारण ‘यं‘ के रूप में और अर्थ ‘में‘  के रूप में लिया जाता है। खोरठाञ का अर्थ “खोरठा में“। उसी तरह ‘नांञ’ का अर्थ यहां ‘नहीं’ से है।

▪︎ ण (मुर्धण्य) का प्रयोग:-खोरठा में ‘‘ का प्रयोग नहीं होता है बल्कि इसके स्थान पर ‘‘ का प्रयोग होता है। जैसे- वाण – बान, वीणा – बिना, कर्ण – करन, मरण – मरन, कारण – कारन

▪︎ य का प्रयोग:- खोरठा में ‘“‘ का प्रयोग नहीं होता है। खोरठा के किसी शब्द के प्रारंभ में यह ‘‘ एवं ‘‘ के जैसा – प्रयुक्त होता है। जैसे:- यदि – जदि, यमुना – जमुना, यम – जम,  यज्ञ – जइग, यही – एही।
इसी तरह ‘‘ शब्द के मध्य एवं अंत में यह ‘‘ की तरह प्रयुक्त होता है। जैसे – सियार – सिआर, दीया – दीआ, पिया (पति) – पिआ, गोतिया – गोतिआ।
कभी-कभी ‘‘ का प्रयोग शब्द के आरंभ में ‘इअ‘ की भांति होता है। जैसे- यार – इआर,याद – इआद, फरियाद – फरिआद।

नोट‌- इसके अलावा व का प्रयोग सीधे रूप में भी होता है।

▪︎ व का प्रयोग:- तत्सम शब्दों के आरंभ में आने वाले ‘‘ का उच्चारण एवं प्रयोग ‘‘ की तरह होता है। जैसे – वन – बोन, वसंत – बसनत, पकवान – पकबान
परन्तु विदेशज शब्दों में ‘‘ का प्रयोग ‘‘ के जैसा होता है। जैसे – वकील – ओकिल, वही – ओही, वजन – ओजन, वजह – ओजह।
वहीं कभी – कभी शब्द के मध्य में आनेवाले ‘‘ का उच्चारण एवं प्रयोग ‘‘ की तरह या ज्यों का त्यों होता है। जैसे – देवता – देबता या देवता, पर्वत – पटवत,  स्वाद – सवाद,
शब्द के अंत में आने वाले ‘‘ का उच्चारण एवं प्रयोग कभी-कभी ‘‘ की तरह या मूल रूप में ज्यों का त्यों होता है। जैसे – शिव – सिब, नाव – नाव, हवा – हबा।
जबकि शब्द के बीच और आखरी में ‘‘ का प्रयोग कभी – कभी ‘‘ के जैसा होता है। जैसे – जुवान – जुआन, खोवा – खोआ

नोट‌- इसके अलावा व का प्रयोग सीधे रूप में भी होता है।

▪︎ श का प्रयोग:- खोरठा में ‘‘ का प्रयोग का विधान नहीं है। खोरठा में ‘श’ प्रयोग ‘‘ के रूप में किया जाता है। जैसे – शपथ – सपथ, आकाश – आकास, निराश – निरास, कोश – कोस, केश – केस, आशा – आस।

▪︎ ष का प्रयोग:- खोरठा में ष का प्रयोग एवं उच्चारण तत्सम शब्दों में ख की तरह होता है। जैसे – वर्षा – बरखा, हर्ष – हरखा, पुरूष – पुरूख,  धनुष – धनुख, मनुष – मनुख, षड्यंत्र – खडजंतर, दोष – दोख।
कभी-कभी ‘‘  का उच्चारण ‘‘ की तरह भी होता है। जैसे – वर्ष – बरस, हर्ष – हरसा, उषा – उसा

▪︎ क्ष का प्रयोग:- खोरठा में संयुक्त ध्वनि ‘क्ष‘ का प्रयोग नहीं होता है। इसमें ‘क्ष’ के जगह ‘छ’ का उच्चारण या प्रयोग होता है। जैसे – परिक्षा – परिछा, दक्ष – दछ, दक्षिणा – इदछना।

▪︎ ऋ का प्रयोग:- खोरठा में ऋ का प्रयोग नहीं होता है। यहां ‘‘ के बदले ‘रि‘ का प्रयोग का विधान है। जैसे – ऋण – रिन, ऋतु – रितु, ऋषि – रिखि।

▪︎ ऐ का प्रयोग:- खोरठा में ‘‘ का प्रयोग नहीं होता है। परन्तु ‘‘ का प्रयोग और उच्चारण खोरठा में “अ+इ” होता है। जैसे – कैलाश – कइलास, कैल – कइल, ऐनक – अइनक, ऐसा – अइसा

▪︎ औ का प्रयोग:- खोरठा में ‘‘ ध्वनि का प्रयोग और उच्चारण नहीं होता है। परन्तु ‘‘ का प्रयोग और उच्चारण “अ+उ” के रूप में होता है। जैसे – औरत – अउरत, और – अउर (आर)

▪︎न्हं, म्हं, रह्, ल्ह का प्रयोग:- खोरठा में इस तरह के महाप्राणीकृत ध्वनियां किसी बात पर जोर देने, आदर एवं बहुवचन बोध के लिए प्रयुक्त किया जाता है। जैसे –
न्हं से कोन्हों (कोई लोग), दिन्हीं (दिन में ही)
म्हं से हम्हीं (मैं ही), दाम्हीं (दाम से ही)
रह् से खेर् हा (खेर्हा) खरगोश, बेर् हा (बेर्हा) बार
ल्ह से लेल्हे (आपने लिया – आदर सूचक शब्द के रूप में), खइल्हे (आपने खाया- आदर सूचक शब्द के रूप में)

▪︎विसर्ग चिन्ह (:) का प्रयोग नहीं:- खोरठा में विसर्ग (:) चिन्ह का प्रयोग नहीं होता है। जैसे – दुख: –  दुख, नि: संदेश – नि सनदेह।

▪︎अनुनासिक शब्द  का प्रयोग नहीं होता:- खोरठा में अनुनासिक  शब्द का प्रयोग नहीं होता है। जैसे – ऑंगन – आगन, अंधेरा – अनधार, धुंआ – धुआ।

▪︎संयुक्त अक्षर का प्रयोग नहीं:- खोरठा में संयुक्त अक्षर का प्रयोग नहीं होता है। जैसे:- परीक्षा – परीछा, रात्री – राइत, ज्ञान – गिआन।
संयुक्त अछर का प्रयोग कुछ महत्वपूर्ण शब्दों, स्थान के नाम आदि में मूल रूप से प्रयोग होता है। जैसे – महाराष्ट्र

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स्रोत:-
• आधुनिक खोरठा बेयाकरन- दिनेश कुमार दिनमणि
• खोरठा भाषा एवं साहित्य  (उद्भव एवं विकास) – डाॅ. बी एन ओहदार
• खोरठा भाषा व्याकरण- डाॅ. गजाधर महतो प्रभाकर
• आधुनिक हिंदी व्याकरण स्वरूप एवं प्रयोग- डॉ भारती खुबालकर

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