चिपको आंदोलन क्या है, what is chipko movement
चिपको आंदोलन पर्यावरण संरक्षण से संबंधित आंदोलन था. यह आंदोलन 1974 में भारत के उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) में किसानों द्वारा वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया गया था. पेड़ों को कटने से बचाने के लिए लोग पेड़ों से चिपक जाते थे. जिससे ठेकेदार पेड़ों की कटाई नहीं कर पाते थे. इस आंदोलन का नेतृत्व पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा, गोविंद सिंह रावत, चंडी प्रसाद भट्ट तथा गौरा देवी ने किया था. बाद के वर्षों में यह आंदोलन उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक आदि राज्य में फैली है.
प्रारंभिक चिपको आंदोलन
पहली बार चिपको आंदोलन की शुरुआत 18वीं शदी में ‘राजस्थान’ के ‘खेजरली गांव‘ में हुआ था. तब 1731 ई. में महाराजा अजीत सिंह ने “खेजड़ी वृक्ष” काटे जाने का आदेश दिया गया था. उस खेजड़ी वृक्ष को बचाने के लिए ‘अमृता देवी बिश्नोई‘ एवं उनकी तीन पुत्रियों ने पेड़ों को गले लगाकर (चिपककर) खड़े हो गए. परंतु अजीत सिंह के लोगों द्वारा उनके समेत 363 लोगों को वृक्षों के साथ काट दिया गया था.
आधुनिक चिपको आंदोलन की शुरुआत
आधुनिक समय में चिपको आंदोलन की शुरुआत “26 मार्च 1974” में हुई. जब तत्कालीन उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) के ‘रैणी गांव‘ के जंगल में लगभग 2500 पेड़ों की कटाई की नीलामी हुई थी. “गौरा देवी” और अन्य महिलाओं ने नीलामी के खिलाफ आंदोलन कर दिया. इसके बाद भी सरकार और ठेकेदार के रवैए में कोई बदलाव नहीं आया. गौरा देवी के नेतृत्व में 20 महिलाएं पेड़ से लिपट कर खड़ी हो गई. अंततः गौरा देवी का यह आंदोलन सफल रहा. वन अधिकारियों ने रैणी गांव का जंगल नहीं काटने का फैसला किया. यहीं से आधुनिक चिपको आंदोलन प्रारंभ हुआ. जो बात के वर्षों में उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों में फैल गया.
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चिपको आंदोलन का स्लोगन
“क्या है जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार!
मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के हैं आधार!!”
महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण
चिपको आंदोलन में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. चिपको आंदोलन के दौरान महिलाओं ने तर्क दिया कि एक महिला ही इंधन, पानी और भोजन व्यवस्था करती है. महिलाओं का जंगल से अटूट संबंध रहा है. वह यह भी बता ते थे कि किस तरह मानव जीवन पेड़ पौधों पर निर्भर है. पर्यावरण के बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. यही कारण था कि जब 1974 में चिपको आंदोलन की शुरुआत गौरा देवी ने किया, तब लगभग 20 महिलाओं ने उनका साथ दिया और पेड़ों से चिपक गये. इस तरह पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और लगातार कम होते वन संपदा को बचाने के लिए महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
आंदोलन का प्रभाव/परीणाम
• इस आंदोलन के प्रभाव के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हिमालय क्षेत्र के वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी.
• जिस समय आंदोलन चल रहा था उस समय केंद्र की राजनीति में पर्यावरण एक एजेंडा बन गया था.
• यह आंदोलन बाद के वर्षों में उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, दक्षिणी कर्नाटक, राजस्थान मध्य प्रदेश आदि राज्यों में फैल गया.
• इस आंदोलन के बाद लोगों में एक जन चेतना का विकास हुआ, लोग पर्यावरण के महत्व के बारे में समझने लगे.
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प्रस्तुति
www.gyantarang.com
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संकलन
महेंद्र प्रसाद दांगी
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