झारखंडी आदिवासी की पहचान डॉ रामदयाल मुंडा का जीवन परिचय
“23 अगस्त: डॉ रामदयाल मुंडा की आज 81वीं जयंती”
आरडी मुंडा के नाम से देश और दुनिया में मशहूर डॉ रामदयाल मुंडा का जन्म आज ही के दिन 23 अगस्त 1939 को झारखंड के तमाड़ में हुआ था। वे शिक्षा शास्त्र और समाजशास्त्र के साथ-साथ लेखक तथा एक कलाकार भी थे। उन्होंने आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए झारखंड से “संयुक्त राष्ट्र संघ” तक आवाजें बुलंद की।
जीवन परिचय
डॉ मुंडा का जन्म झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 60 किलोमीटर दूर तमाड़ के दिउड़ी की दूरी नामक गांव में 23 अगस्त 1939 को हुआ था। मिनेसोटा विश्वविद्यालय अमेरिका में रहते हुए उनका प्रेम विवाह 1972 में “हेजेल एन्न लुत्ज” जिससे हुआ था। तलाक के बाद 1988 में उन्होंने अमिता मुंडा से दूसरा विवाह किया। जिससे उनका एक बेटा है गुंजन इकिर मुण्डा।
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शिक्षा
उनकी प्रारंभिक शिक्षा अमलेसा लूथरन मिशन स्कूल तमाड़ में हुआ था। खूंटी उच्च विद्यालय से उन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने 1963 में रांची विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में स्नातकोत्तर (PG) की डिग्री हासिल की। इसके पश्चात वे उच्च शिक्षा में अध्ययन एवं शोध के लिए “शिकागो विश्वविद्यालय अमेरिका” चले गए। जहां से उन्होंने 1968 में भाषा विज्ञान में “पीएचडी” की डिग्री प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने 1968 से 1971 तक “दक्षिण एशियाई भाषा एवं संस्कृति विभाग” में शौध और अध्ययन किया।
झारखंड की लोक संस्कृति में योगदान
डॉ रामदयाल मुंडा भारत के दलित और आदिवासी समाज की आवाज थे। 1960 के दशक में डाॅ मुण्डा ने एक छात्रा और नर्तक के रूप में संगीतकारों की एक मंडली बनायी। 1980 के दशक में उन्हे “कमेटी ऑन झारखंड मैटर” का प्रमुख सदस्य बनाया गया। देश-विदेश में हुए कई कार्यक्रमों में उन्होंने झारखंडी संस्कृति को आगे बढ़ाया। उनकी कई संगीत रचनाएं लोकप्रिय हुई। पाइका नृत्य का प्रदर्शन उन्होंने 90 के दशक में सोवियत रूस में कर दुनिया भर में पहचान दिलाई।
आदिवासियों के अधिकारों के लिए उन्होंने हमेशा से ‘शिक्षा’ को सर्वोपरि माना। विश्व आदिवासी दिवस प्रतिवर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है इसमें उनका बड़ा योगदान रहा था। आदिवासियों के हितों के लिए वे हमेशा कार्य करते रहें। यही कारण है कि वह 1980 के दशक में अमेरिका से अध्यापक की नौकरी छोड़ रांची चले आए और यहां के दबे कुचले समाज तथा आदिवासियों की आवाज बन गए।
रचनाएँ
डाॅ मुंडा न केवल शिक्षा विद और समाजशास्त्री ही नहीं बल्कि एक प्रबुद्ध रचनाकार भी थे। मुंडारी, नागपुरी, पंचपरगनिया जैसेआदिवासी और क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेजी में भी गीत-कविताओं के अतिरिक्त गद्य साहित्य में भी रचना की है। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की तथा कई निबंध प्रकाशित हुए। साथ ही डॉ मुंडा ने कई पुस्तकों का अनुवाद भी किया।
डॉ रामदयाल मुंडा की कुछ प्रमुख प्रमुख पुस्तकें
• आदि धर्म (Aadi Dharam)
• सरहुल मंत्र/ ब(हा) बोंगा {Sarhul Mantra/Ba (ha) Bonga}
• विवाह मंत्र/आड़ान्दि बोंगा
• जादुर दुराङको
• हिसिर (Hisir)
• सेलेद (Seled/vividha)
• आदिवासी अस्तित्व और झारखंडी अस्मिता के सवाल (Aadivasi Astitva aur Jharkhandi Asmita ke Sawal)
• The Jharkhand movement: Indigenous Peoples Struggle for Autonomy in India
• The Language of Poetry
• Sosobonga: the ritual of reciting the creation story and the Asur story prevelant among the Mundas
• Goneh paromena bonga: adidharamanusara sraddha-mantra
डॉ मुंडा की पुस्तके अमेजॉन पर
डॉ मुंडा की पुस्तकें ऑनलाइन बिक्री के लिए अमेजॉन डॉट इन पर उपलब्ध है। वहां से पुस्तकें खरीद सकते हैं।

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कार्य एवं उपलब्धि
• डॉ मुंडा ने मुंडारी, नागपुरी, पंचपड़गानिया, हिंदी, अंग्रेजी में गीत कविताएं और गद्य साहित्य की रचना की।
• विश्व आदिवासी दिवस प्रतिवर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है इनका बड़ा श्रेय डॉ मुंडा को ही जाता है।
• उन्होंने 1960 के दशक में उन्होंने एक छात्र और नर्तक के रूप में संगीतकारों के एक मंडली बनायी।
• अमेरिका में शोध और अध्ययन के बाद वे अमेरिका के ही “मिनेसोटा विश्वविद्यालय” के अध्ययन विभाग में 1981 तक एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में अध्यापन का कार्य किया।
• वे 1977-78 में अमेरिकन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज से फैलोशिप प्राप्त किया।
• 1981 में वे रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग रांची से जुड़े।
• 1985 से 86 के बीच वे रांची विश्वविद्यालय के उप कुलपति रहे।
• 1986 से 88 के बीच वे रांची विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर आसिन हुए।
• 1987 में “सोवियत रूस” में हुए “भारत महोत्सव” में डॉ मुंडा ने ‘पाईका नृत्य’ दल का नेतृत्व किया।
• 1989 में वे फिलिपिंस, चीन और जापान जैसे पूर्वी एशियाई देशों का दौरा किया।
• 1991 से 1998 तक वे झारखंड पीपुल्स पार्टी के प्रमुख अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
• 1997 में उन्हें “अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन” के सलाहकार समिति का सदस्य बनाया गया।
• 1997 से 2008 तक में भारतीय आदिवासी संगम के अध्यक्ष और संरक्षक रहे।
• 1998 में उन्हें केंद्रीय वित्त मंत्रालय के फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाया।
• उन्हें 2010 में ‘पद्मश्री सम्मान’ से सम्मानित किया गया।
• 2010 में ही उन्हें ‘राज्यसभा सदस्य’ के रूप में मनोनीत भी किया गया।
निधन
• 30 सितंबर 2011 को वे कैंसर से लड़ते हुए दुनिया से विदा हो गए।
• ऐसे महान विभूति को शत्-शत् नमन।