झारखंड स्थापना दिवस | Jharkhand Sthapana Diwas

झारखंड राज्य स्थापना दिवस | jharkhand ki sthapna

झारखंड का इतिहास और संस्कृति प्राचीन काल से ही गौरवपूर्ण रही है। यहां की संस्कृति और सभ्यता में आदिवासी तथा सदानी समुदायों का बड़ा योगदान रहा है। झाड़-पात और पहाड़ियों के बीच बसा झारखंड भौगोलिक और आर्थिक रूप से एक संपन्न राज्य है। देश की लगभग 40% खनिज झारखंड में पाए जाते हैं। वर्ष 2000 से पूर्व  झारखंड बिहार का एक अभिन्न अंग था। बीसवीं शताब्दी में हुए क्रमगत आंदोलनों के बाद झारखंड भारत के 28 वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। इस पोस्ट में जानते हैं झारखंड राज्य गठन की संघर्षपूर्ण कहानी।

झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन

कई बाहरी आक्रमणकारियों ने झारखंड पर आक्रमण किया। 18 वीं शताब्दी तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी झारखंड पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। ब्रिटिश शासन के शोषणकारी नीतियों के खिलाफ  देश के अन्य भागों की तरह झारखंड में भी समय-समय पर विद्रोह होते रहे। तिलका मांझी, सिद्धू-कान्हू, बिरसा मुंडा जैसे अनगिनत क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह किया। इसी पृष्ठभूमि में झारखंडियों द्वारा अलग झारखंड राज्य की मांग की आवाज उठी। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान झारखंड बंगाल प्रांत का अंग था। 1912 में जब बंगाल से अलग होकर बिहार प्रांत का जन्म हुआ तब झारखंड बिहार का एक अभिन्न हिस्सा था। 20वीं शताब्दी में झारखंड राज्य के गठन के लिए कई संगठनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

क्रिश्चियन स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन, 1912 ई•

जे. बार्थोलमन ने 1912 में क्रिश्चन स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना की।  इस संगठन का उद्देश्य झारखंड के आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक विकास के कार्यों से जुड़ा हुआ था। हालांकि बाद के वर्षों में ‘क्रिस्चियन स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन’ का नाम बदलकर “छोटानागपुर उन्नति समाज” समाज कर दिया गया।

छोटानागपुर नदी समाज, 1915 ई•

वर्ष 1915 में ‘क्रिश्चियन स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन’ का नाम बदलकर “छोटानागपुर उन्नति समाज” कर दिया गया। छोटानागपुर उन्नति समाज की स्थापना जुएल लकड़ा, पाल दयाल, बंदी राम उरांव एवं ठेवले उरांव के नेतृत्व में की गई थी। इस संगठन का मूल उद्देश्य छोटा नागपुर की प्रगति एवं आदिवासियों की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति को सुधारना था। 1928 ई• में छोटानागपुर उन्नति समाज द्वारा साइमन कमीशन को एक मांग पत्र सौंपा गया था। इस मांग पत्र में आदिवासियों हेतु विशेष सुविधाएं प्रदान करने तथा इनके लिए पृथक प्रशासन इकाई गठन करने की मांग की गई थी। जो आगे चलकर झारखंड राज्य के मांग के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ।

किसान सभा, 1930 ई•

छोटानागपुर उन्नति समाज से कुछ सदस्य अलग होकर 1930 में किसान सभा का गठन किया। इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य झारखंड के किसानों को शोषण करने वाले जमींदारों के विरुद्ध संगठित करना था।

छोटानागपुर कैथोलिक सभा, 1933 ई•

आचार्य बिशप सेबरिन की प्रेरणा से 1933 ईस्वी में छोटानागपुर कैथोलिक सभा का गठन किया गया। इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य कैथोलिक समाज के लोगों के हितों की रक्षा करना था।

आदिवासी महासभा , 1938 ई•

1936 ईस्वी में बिहार का विभाजन कर उड़ीसा एक अलग राज्य बनाया गया। झारखंड आंदोलन से जुड़े संगठनों के लोगों में पृथक झारखंड बनाने की उम्मीद जगी। लेकिन 1937 ई• में हुए प्रांतीय चुनाव के बाद गठित बिहार के मंत्रिमंडल में दक्षिणी बिहार (अर्थात वर्तमान झारखंड) से किसी भी कांग्रेसी नेता को शामिल न किए जाने से झारखंड के लोगों को अपनी उपेक्षा महसूस हुआ। इन्हीं घटनाओं का परिणाम था कि इग्नेश बेक ने झारखंड के सभी आदिवासी संगठनों को एकजुट कर 31 मई 1938 को रांची में ‘छोटानागपुर उन्नति  समाज’ की वार्षिक सभा में पांच आदिवासी संगठनों ( छोटानागपुर उन्नति समाज, किसान सभा, छोटानागपुर कैथोलिक सभा, मुंडा सभा तथा हो माल्टो सभा) को मिलाकर “छोटानागपुर संथाल परगना आदिवासी महासभा” की स्थापना की गई। 1939 में इसका नाम परिवर्तित करके आदिवासी महासभा कर दिया गया। वर्ष 1939 ई• में ‘जयपाल सिंह मुंडा‘ आदिवासी महासभा के अध्यक्ष बनाए गए। 1939 ई• के अधिवेशन में ही जयपाल सिंह मुंडा ने पहली बार एक प्रस्ताव के द्वारा  “छोटानागपुर संथाल परगना क्षेत्र” के रूप में एक पृथक गवर्नर के प्रांत का निर्माण करने का आग्रह किया था।

1940 में आदिवासी महासभा का तीसरा अधिवेशन रांची में आयोजित किया गया था। जिसमें जयपाल सिंह मुंडा ने ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादारी की घोषणा की तथा पृथक छोटानागपुर संथाल परगना प्रांत के गठन की मांग की। जनवरी 1946 में रांची में ‘झारखंड छोटानागपुर पाकिस्तान कांफ्रेंस‘ का आयोजन किया गया, जिसमें मुस्लिम के कई नेताओं ने संबोधित किया था। तत्पश्चात फरवरी 1946 को रांची में आयोजित आदिवासी महासभा में जयपाल सिंह ने घोषणा की कि मुसलमानों ने उनकी मांग का बिना शर्त समर्थन कर दिया है।

झारखंड पार्टी, 1950 ई•

जनवरी 1950 को जमशेदपुर में आयोजित आदिवासी महासभा के संयुक्त सम्मेलन में जयपाल सिंह मुंडा ने आदिवासी महासभा का नाम परिवर्तित कर झारखंड पार्टी कर दिया गया। इस पार्टी में आदिवासियों के साथ साथ गैर आदिवासियों को भी शामिल किया गया। जुलाई 1951 को झारखंड के दौरे पर आए लोक नायक जयप्रकाश नारायण से मिलकर झारखंड पार्टी के नेताओं ने ‘छोटानागपुर संथाल परगना प्रांत‘ के गठन हेतु सहयोग मांगा, जिसका जयप्रकाश नारायण ने समर्थन किया था। हालांकि 1952 में देश के पहले आम चुनाव हेतु रांची के मोराबादी मैदान में आयोजित एक जनसभा में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अलग झारखंड राज्य गठन का पुरजोर विरोध किया था।

देश में जब 1953 ई• में “राज्य पुनर्गठन आयोग” की स्थापना हुई। तब इसके सामने से झारखंड के स्वतंत्र राज्य के रूप में गठन की मांग उठाई गई। छोटानागपुर संयुक्त संघ का नेतृत्व गैर जनजाति समुह के रामनारायण सिंह कर रहे थे और उनके ही नेतृत्व में यह मांग पत्र राज्य पुनर्गठन आयोग को सौंपा गया। इसी तरह का एक मांग झारखंड पार्टी की तरफ से जयपाल सिंह मुंडा ने भी राज्य पुनर्गठन आयोग को सौंपा। हालांकि राज्य पुनर्गठन आयोग ने पृथक झारखंड राज्य की मांग को अस्वीकार कर दिया। वर्ष 1963 ई• में जयपाल सिंह मुंडा ने झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया।

छोटा नागपुर संयुक्त संघ, 1954 ई•

छोटा नागपुर संयुक्त संघ का गठन 7 फरवरी 1954 को किया गया था। इसके पहले अध्यक्ष सुखदेव सिंह के बाद में राम नारायण सिंह इस संगठन के अध्यक्ष बने। रामनारायण सिंह ने ही 1953 ई• में गठित राज्य पुनर्गठन आयोग के सामने झारखंड पृथक राज्य की मांग रखी थी। छोटानागपुर संयुक्त संघ द्वारा 1954 ई• में ‘छोटानागपुर सेपरेशन: दि वनली साल्यूशन‘ नामक एक पुस्तिका का प्रकाशन किया गया था। जिसमें पृथक झारखंड राज्य के गठन का समर्थन किया गया था।
••••••••••••••

इसे भी जानें

? झारखंड के नेशनल पार्क और अभ्यारण
? डॉ रामदयाल मुंडा का जीवन परिचय

? IPL 2020 का खिताब जीता MI ने जानें Record
? डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा
? अंतर्राष्ट्रीय इंटरनेट दिवस
? विश्व प्रसिद्ध चित्रकार पाब्लो पिकासो का जीवन परिचय
? कित्तूर की रानी चेन्नम्मा
? रविवार की छुट्टी कब से प्रारंभ हुई
? एटीएम का आविष्कार किसने किया
? class 10th geography Question Answer
•••••••••••••••

बिरसा सेवा दल, 1965 ई•

आदिवासियों के आंदोलन को प्रमुखता प्रदान करने के लिए ललित कुजूर द्वारा “बिरसा सेवा दल” का गठन 1965 में किया गया था। झारखंड का पहला छात्र संगठन था। इसका गठन झारखंड पार्टी से विभाजित होकर किया गया था।

अखिल भारतीय झारखंड पार्टी, 1967 ई•

बागुन सुम्ब्रई के नेतृत्व में झारखंड अलग राज्य निर्माण हेतु आंदोलन को मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य 1967 ई• में “अखिल भारतीय झारखंड पार्टी” का गठन किया गया। हालांकि 1969 में अखिल भारतीय झारखंड पार्टी  विभाजित हो गया और एक बार फिर “झारखंड पार्टी” नामक एक अलग पार्टी का गठन किया गया।

हुल झारखंड पार्टी, 1969 ई•

1969 में ‘हुल झारखंड पार्टी’ का गठन “जस्टिन रिचर्ड” के नेतृत्व में हुआ था। यह दल क्रांतिकारी झारखंड पार्टी के रूप में जानी जाती थी। हालांकि 1970 में इस पार्टी का भी विभाजन हो गया।

सोनोत संथाल समाज, 1970 ई•

इस पार्टी की स्थापना 1970 में शिबू सोरेन द्वारा की गई थी। सोनोत का अर्थ होता है पवित्र अर्थात शुद्ध समाज। आगे चलकर शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी का गठन किया।

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), 1973 ई•

4 फरवरी 1973 को बिनोद बिहारी महतो तथा शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा नामक पार्टी का गठन किया गया। प्रारंभ में विनोद बिहारी महतो को इस संगठन का अध्यक्ष शिबू सोरेन को इसका महासचिव बनाया गया। इस पार्टी के गठन में समाजसेवी ए के राय ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस पार्टी का प्रमुख उद्देश्य झारखंड राज्य निर्माण हेतु संघर्ष, महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन तथा विस्थापितों के पुनर्वास जैसे लक्ष्य से संबंधित था। शिबू सोरेन ने ए के राय के साथ मिलकर 1978 में पटना में आदिवासियों का एक सफल सम्मेलन का आयोजन किया। कांग्रेसी नेता ज्ञानरंजन की पहल पर 1980 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया जिसमें झामुमो को 13 सीटों पर जीत मिली। समय-समय पर इस पार्टी ने झारखंड आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। बंद, धरना- प्रदर्शन, नाकाबंदी किया गया। चक्का जाम के जरिये खनिजों की आवाजाही पर रोक लगाना आंदोलन के मुख्य हिस्से थे।

ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन(आजसू), 1986 ई•

झारखंड मुक्ति मोर्चा से संबंधित सूर्य सिंह बेसरा के नेतृत्व में 22 जून 1986 को जमशेदपुर में “ऑल झारखंड स्टूडेंट एसोसिएशन (आजसू)” नामक पार्टी की स्थापना की गई। सूर्य सिंह बेसरा ‘खून के बदले खून की’ रणनीति की घोषणा की। प्रभाकर तिर्की अध्यक्ष और सूर्य सिंह बेसरा महासचिव बनाए गए। हालांकि इस पार्टी की स्थापना झारखंड मुक्ति मोर्चा की छत्रछाया में हुआ था, लेकिन 1987 में यह पार्टी झामुमो से पूरी तरह से अलग हो गयी।

झारखंड समन्वय समिति, 1987 ई•

1980 और 90 का दशक झारखंड राज्य आंदोलन के लिए सबसे निर्णायक था। इस समय तक झारखंड को पृथक करने के लिए विभिन्न प्रकार के अलग-अलग दल बन गए थे। अलग-अलग दलों के होने के कारण आंदोलन को बल नहीं मिल पा रहा था। इसलिए आपसी मतभेद मिटाने के लिए 53 दलों को आपस में संगठित करने के उद्देश्य से सितंबर 1987 को रामगढ़ में एक संयुक्त सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसी सम्मेलन के दौरान “झारखंड समन्वय समिति” (JCC) का गठन किया गया। डॉ विशेश्वर प्रसाद केसरी को इस समिति का संयोजक चुना गया। 10 दिसंबर 1987 को झारखंड समन्वय समिति ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन को बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश के 21 जिलों को मिलाकर झारखंड राज्य के निर्माण सहित 23 सूत्री मांग पत्र सौंपा गया।

वनांचल राज्य की मांग

1980 के दशक में झारखंड अलग राज्य की मांग का आंदोलन अपने चरम पर था। कई प्रमुख राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिलना शुरू हो गया था। इसमें भारतीय जनता पार्टी भी पीछे रहना नहीं चाह रही थी उसने भी 1988 में झारखंड के तर्ज पर “वनांचल राज्य” की मांग की।

झारखंड विषयक समिति, 1989 ई•

अंततः तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने झारखंड राज्य गठन की जांच के लिए बीएस लाली के नेतृत्व में 23 अगस्त 1989 को एक 24 सदस्यीय  “झारखंड विषयक समिति” का गठन किया। इस समिति ने उड़ीसा, मध्य प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल का दौरा किया। इस समिति द्वारा “झारखंड क्षेत्र विकास परिषद” के गठन की सिफारिश किया गया है।

झारखंड क्षेत्र स्वशासी परिषद (JAAC- जैक), 1995

20 दिसंबर 1994 ई• को बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों में ‘झारखंड क्षेत्र स्वशासी परिषद विधेयक’ पारित किया गया। आज 9 अगस्त 1995 ई• को “झारखंड क्षेत्र स्वशासी परिषद” (JAAC-जैक) का गठन किया गया। शिबू सोरेन को जैक का अध्यक्ष तथा सूरज मंडल को उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया। इस परिषद का गठन संथाल परगना तथा छोटा नागपुर के 18 जिलों को मिलाकर किया गया था। जैक का गठन तो किया गया साथ ही इसके चुनाव की घोषणा भी 1997 में की गई, लेकिन चुनाव नहीं हुए। जैक की असफलता ने झारखंड अलग राज्य की संभावनाओं पर प्रश्न लगा दिया।

लालू प्रसाद यादव का विरोध

वर्ष 1990 में बिहार में लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री चुने गए। राज्य सरकार को झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी बाहर से समर्थन दिया था। शुरुआत में लालू प्रसाद यादव ने प्रदेश में अराजकता और क्षेत्र का मुद्दा रख झारखंड विभाजन पर कोई काम नहीं किया। वे पृथक राज्य के विरोध में थे। कई क्षेत्रीय दलों के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी ने भी अलग राज्य की मांग तेज कर दी। जब 1996 में बीजेपी की सरकार केंद्र में आयी। तब  अलग राज्य की उम्मीद जग गई। लालू प्रसाद यादव ने इसका पुरजोर विरोध किया, उन्होंने कहा अलग राज मेरी लाश पर बनेगी। हालांकि केंद्र सरकार समर्थन के कारण अंततः बिहार से अलग होकर झारखंड आज का निर्माण हुआ।

राज्य गठन का अंतिम चरण

देश की राष्ट्रीय पार्टी भारतीय जनता पार्टी को छोटानागपुर संथाल परगना क्षेत्र में झारखंड पृथक्करण की मांग के कारण बड़ा सपोर्ट मिल रहा था। चुनाव में उन्हें सफलता भी मिल रही थी। जब 1996 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तब झारखंड अलग राज्य की उम्मीद जग गई। हालांकि यह गठबंधन की सरकार थी और कुछ ही दिनों के बाद सरकार गिर गई।

• इसी बीच 22 जुलाई 1997 को बिहार विधानसभा द्वारा अलग झारखंड राज्य गठन हेतु संकल्प पारित कर उसे केंद्र सरकार को भेजा गया।

• जब 1998 में केंद्र में पुन: भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तब “वनांचल राज्य” से संबंधित ‘बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक’ तैयार कर उसे स्वीकृति हेतु बिहार सरकार को भेजा गया। जिसे बिहार विधानसभा से नामंजूर कर दिया गया।

• 25 अप्रैल 2000 को बिहार राज्य सरकार द्वारा अलग झारखंड राज्य हेतु “बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक 2000” को स्वीकृति प्रदान की गई।

• 2 अगस्त 2000 को लोकसभा तथा 11 अगस्त 2000 को राज्य सभा द्वारा “बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक” को पारित कर दिया गया।

• 25 अगस्त 2000 को राष्ट्रपति के आर नारायण ने “बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक 2000” पर हस्ताक्षर कर अपनी सहमति प्रदान की।

15 नवंबर 2000 ( भगवान बिरसा) का जन्म दिवस)को देश के 28 में राज्य के रूप में भारत के मानचित्र पर “झारखंड” नामक एक अलग राज्य का चित्र अंकित हो गया। इसमें संथाल परगना, छोटा नागपुर और पलामू क्षेत्र के 18 जिलों को शामिल किया गया।

• 15 नवंबर 1875 को भगवान बिरसा का जन्म हुआ था। उन्होंने झारखंड आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

झारखंड आंदोलन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

• वर्ष 1912 में क्रिश्चियन स्टूडेंटस ऑर्गेनाइजेशन का गठन जे बार्थोलमन ने किया था।
• छोटानागपुर उन्नति समाज का गठन 1915 में जुएल लाकड़ा ने किया।
• 1928 में साइमन कमीशन के समक्ष छोटानागपुर उन्नति समाज द्वारा पृथक राज्य के लिए मांग पत्र सौंपा गया।
• 1930 में किसान सभा का गठन ठेबले उरांव ने किया।
• 1933 में आर्च बिशप सेबरिन और बोनिफेस लकड़ा तथा इग्नेश बेग ने छोटानागपुर कैथोलिक सभा का गठन किया।
• 1939 में आदिवासी महासभा का गठन किया गया।
• 1950 में जयपाल सिंह के नेतृत्व में झारखंड पार्टी का गठन किया गया।
• 1973 में बिनोद बिहारी महतो एवं शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया।
• झारखंड मुक्ति मोर्चा से संबंधित सूर्य सिंह बेसरा के नेतृत्व में ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) का गठन किया गया।
• 1987 में 53 संगठनों का संयुक्त दल के रूप में झारखंड समन्वय समिति का गठन किया गया।
• 1988 में भारतीय जनता पार्टी द्वारा वनांचल प्रदेश (झारखण्ड) की मांग उठाई गई।
• 1989 में झारखंड विषयक समिति का गठन भारत सरकार द्वारा किया गया।
• 1995 में झारखंड स्वशासी परिषद का गठन बिहार सरकार द्वारा किया गया।
• 15 नवंबर 2000 को झारखंड 28 में राज्य के रूप में स्थित है।
• झारखंड संयुक्त बिहार का 46% भूभाग है।
• झारखंड राज्य का गठन हुआ तब भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी थे।
• राज्य गठन के समय बिहार की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी थी।

भगवान बिरसा मुंडा

झारखंड के महान क्रांतिकारी, जन नेता, स्वतंत्रा सेनानी भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 ई• को रांची के उलीहातू गांव में हुआ। उन्होंने आदिवासियों की जमीन छीनने, लोगों को जबरन ईसाई बनाने और युवतियों को बेआबरू करने वाले कुकृतियों को अपनी आंखों से देखा था। जिससे उनके मन में अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ ज्वाला भड़क उठी और वे सरकार विरोधी आंदोलन में जुट गये। उन्होंने धर्म परिवर्तन का विरोध किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नारा दिया- “रानी का शासन खत्म करो और हमारा साम्राज्य स्थापित करो”। उन्होंने आदिवासियों एवं स्थानीय लोगों का नेतृत्व कर अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया।

झारखंड राज्य स्थापना दिवस पर जाने झारखंड राज्य का गठन की संपूर्ण कहानी, झारखंड की स्थापना कब हुई, झारखंड राज्य गठन, झारखंड स्थापना दिवस, झारखंड राज्य गठन आंदोलन, झारखंड स्थापना दिवस कब मनाया, झारखंड स्थापना दिवस निबंध, झारखंड, jharkhand sthapna diwas, jharkhand sthapna divas, jharkhand story, jharkhand state gathan andolan story, भगवान बिरसा मुण्डा,
भगवान बिरसा

अंग्रेजी सरकार ने बिरसा की गिरफ्तारी पर 500 रू• का इनाम रखा। 3 फरवरी 1900 को बिरसा मुंडा को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। तब वे अपने गोरिल्ला सेना के साथ जंगल में विश्राम कर रहे थे। 9 जून 1900 को रांची जेल में उनके रहस्यमय तरीके से मौत हो गई और अंग्रेजी सरकार ने मौत का कारण हैजा बताया जबकि उनमें हैजे के कोई लक्षण नहीं थे। मात्र 25 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने ऐसा काम कर दिखाया कि आज भी बिहार, झारखंड और उड़ीसा के आदिवासी समुदाय उनको याद करती है। उनके नाम पर कई शिक्षण संस्थानों का नाम रखा गया है।

•••••••••••

स्रोत:-
• झारखंड सामान्य ज्ञान (डाॅ मनीष रंजन)
• झारखंड सार संग्रह (Udaan Publication)
• झारखंड सामान्य ज्ञान (क्रॉउन पब्लिकेशन)
• झारखंड की रूपरेखा (डॉ रामकुमार तिवारी)
•••••••••••

अभी आप इस बारे में कुछ सुझाव या कुछ
मार्गदर्शन देना चाहते हैं. तो हमें इस ईमेल
dangimp10@gmail.com
पर भेजें. उसके लिए मैं सदा आभारी रहूंगा.
••••••••••••••••

इसे भी देखें

? उसरी वॉटरफॉल गिरिडीह
? पटरी पर पत्थर क्यों होते हैं
? पपीते के लाभकारी गुण
? विश्व के सात आश्चर्य
?10, 20, 50, 100, 200, 500 और 2000 के एक नोट छापने में कितना खर्च आता है
? सामाजिक विज्ञान का महत्व और अर्थ
? class 10th geography
——————-
Presentation
www.gyantarang.com

Writer
Mahendra Prasad Dangi

Date of Post:- 15 November 2020

1 thought on “झारखंड स्थापना दिवस | Jharkhand Sthapana Diwas”

Leave a Comment