देश की बहादुर बेटी नीरजा भनोट की असली कहानी
“57वीं जयंती आज”
भारत वीर और वीरांगनाओं की भूमि रही है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, भीकाजी कामा, सरोजिनी नायडू, चित्तूर की रानी चेन्नमा का तो आपने नाम सुना होगा। परंतु आज हम ऐसी वीरांगना की कहानी बताने जा रहे हैं। जिसने अपनी जान की बाजी लगाकर लगभग 400 लोगों की जानें बचाई। ऐसे शहीद वीरांगना का नाम है “नीरजा भनोट”! आज की इस कड़ी में आप जानेंगे “देश की बहादुर बेटी नीरजा भनोट की असली कहानी” जिसकी शहादत पर रोया था पूरा विश्व।
पारिवारिक जीवन
नीरजा भनोट का जन्म 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ में हुआ था। उनके पिता हरीश भनोट पेशे से पत्रकार थे। मां रमा भनोट और पिता हरीश भनोट उन्हें प्यार से “लाडो” के नाम से बुलाते थे। 21 वर्ष की आयु में उनका विवाह एक बिजनेसमैन के साथ हुई। शादी के बाद वे “खाड़ी के देश” पति के साथ चली गई। परंतु दहेज के मांग से तंग आकर शादी के 2 माह के अंदर ही पति का घर छोड़ पिता के पास चली आई। तत्पश्चात उन्होंने “पैम एॅम एरोप्लेन” में “एयर होस्टेस” के लिए अप्लाई किया और चुन ली गई। पैम एॅम एरोप्लेन से जुड़ने से पहले नीरजा ने मॉडलिंग में भी किस्मत अजमायी थी। उन्होंने विको, बिनाका टूथपेस्ट, गोदरेज डिटर्जेंट और वैपरेक्स जैसे उत्पादों के लिए विज्ञापन भी किए।
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नीरजा की वीरता की कहानी
यह कहानी 5 सितंबर 1986 की है जब वह मात्र 22 वर्ष की थी। और 2 दिन बाद ही 7 सितंबर को वह अपना 23 वां जन्मदिन मनाने वाले थी।
5 सितंबर 1986 को “पैम एम एरोप्लेन-73” विमान मुंबई से न्यूयॉर्क के लिए उड़ान भरी। इस विमान में 361 यात्री और 19 क्रू मेंबर शामिल थे। पाकिस्तान स्थित कराची एयरपोर्ट पर “अबू निदान ग्रुप” के चार आतंकवादियों ने इस प्लेन का अपहरण (Hijack) कर लिया। प्लेन में नीरजा सीनियर फ्लाइट अटेंडेंट के रूप में कार्य कर रहे थी। नीरजा ने अपनी समझदारी से तीनों पायलट को विमान के कॉकपिट से सुरक्षित बाहर भेज दिया। आतंकवादियों ने नीरजा को सभी यात्रियों के पासपोर्ट इकट्ठा करने को कहा। आतंकवादियों ने उन्हें निर्देश दिया कि इनमें कौन-कौन अमेरिकी नागरिक है उसका पता बताएं। नीरजा ने बड़ी चतुराई से अमेरिकी नागरिक की पासपोर्ट छिपा दिए।
प्लेन हाईजैक के 17 घंटे बाद आतंकवादियों ने यात्रियों को मारना शुरू कर दिया। साथ ही प्लेन में बम भी लगा दिए। नीरजा ने बड़े धैर्य हिम्मत से प्लेन का इमरजेंसी दरवाजा खोलकर यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकालने का उपाय किया। इसी क्रम में 3 बच्चों को निकालने के दौरान आतंकवादियों ने बच्चों पर टारगेट कर गोली चलानी चाही। लेकिन नीरजा ने ऐसा नहीं करने दिया। वे आतंकवादियों से भिड़ गयी। बच्चे सुरक्षित निकल गए। लेकिन आतंकवादियों के साथ हाथापाई के दौरान एक आतंकवादी ने नीरजा पर गोलियों की बौछार कर दी। इससे नीरजा की मौत हो गई। यदि वे चाहती तो आपतकालीन दरवाजा से खुद को सुरक्षित बाहर निकाल सकती थी। परंतु ऐसा उन्होंने नहीं किया। उसने जान की बाजी लगाकर यात्रियों और क्रू मेंबर को सुरक्षित बाहर निकालने में सफल रही। उनकी शहादत हमेशा ही याद रहेगी।
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सम्मान एवं पुरस्कार
नीरजा की बहादुरी ने देश और दुनिया को गौरवान्वित कर दिया। उन्हें मरणोपरांत विश्व भर से कई सम्मान और पुरस्कार मिले।
• भारत सरकार ने भी बहादुरी का सबसे बड़ा पुरस्कार “अशोक चक्र” से सम्मानित किया।
• नीरजा पहली भारतीय महिला थी जिसे अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।
• पाकिस्तान सरकार ने भी उन्हें “तमगा-ए- इंसानियत” देकर सम्मानित किया।
• अमेरिकी सरकार ने नीरजा भनोट को “जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड” से पुरस्कृत किया।
• वर्ष 2004 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।
• दुनिया में नीरजा को “हीरोइन ऑफ हाइजैक” के नाम से जानती है।
• उनके याद में मुंबई के “घाटकोपर” इलाके में एक चौराहे का नाम रखा गया है।
• भारत में “नीरजा भनोट पैन एम न्यास” नामक एक संस्था भी कार्यरत है। यह संस्था हर वर्ष महिलाओं को बहादुरी के लिए दो पुरस्कार प्रदान करती है। एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और दूसरा राष्ट्रीय स्तर पर!
• नीरजा भनोट की जीवनी पर “नीरजा” नामक फिल्म बन चुकी है। जो 2016 में प्रदर्शित की गई। इसमें मुख्य भूमिका सोनम कपूर ने निभाई है। ऐसी वीरांगना को शत्-शत् नमन्
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