विश्व की प्रमुख जलधारा, Ocean Currents in the World in hindi
पृथ्वी पर नदियों के समान महासागरों में निश्चित दिशा की ओर लंबी दूरी तक गति करने वाली जल राशि को जलधारा कहते हैं। चूंकि ये जल धाराएं महासागरों में चलती हैं, इसलिए इसे महासागरीय जलधारा के नाम से जाना जाता है। इन जल राशि को उनकी गति, आकार तथा दिशा के आधार पर इन्हें प्रवाह (Drift), धारा (Current) तथा विशाल धारा (Stream) के नामों से भी जाना जाता है। सामान्यतः इनका वेग 2 से 10 km. प्रति घंटा होती है। इस पोस्ट में विश्व की प्रमुख जलधारा देखने जा रहे हैं।
विषय वस्तु
☆ जल धाराओं की उत्पत्ति के कारण
☆ महासागरीय जलधाराओं के प्रकार
● गर्म जलधारा
● ठण्डी जलधारा
☆ महासागरीय धाराओं का मानव जीवन पर प्रभाव
☆ परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण तथ्य
☆ जल धाराओं की उत्पत्ति के कारण
महासागरीय जलधाराओं की उत्पत्ति कई कारको पर निर्भर करता है। इनमें से पृथ्वी की प्रकृति एवं सागर से जुड़े कुछ कारक, हैं तो कुछ बाह्य सागरीय कारक जिम्मेवार हैं। आइए जानते हैं ये कारक कौन-कौन हैं-
▪︎ पृथ्वी की प्रकृति से जुड़े कारक
▪︎ सागर से जुड़े कारक
▪︎ बाह्य सागरीय कारक
▪︎ पृथ्वी की प्रकृति से जुड़े कारक
पृथ्वी की आकृति एवं घूर्णन का प्रभाव जल धाराओं की उत्पत्ति पर पड़ता है। विषुवत रेखा पर गुरुत्वाकर्षण बल कम होता है एवं अपकेंद्रीय बल अधिक होता है, जबकि ध्रुवों पर गुरुत्वाकर्षण बल अधिक एवं अपकेंद्रीय बल कम होता है। इस कारण विषुवत रेखीय क्षेत्र का सागरीय जल ध्रुवों की ओर प्रवाहित होने के लिए विवश होता है।
पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है। महासागरीय जल तरल होने के कारण ठोस पृथ्वी का साथ नहीं दे पाती है। जिस कारण महासागरीय जल पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होने के लिए विवश हो जाती है। जैसा विषुवतीय धारा की उत्पत्ति के साथ होता है। कभी-कभी पृथ्वी की घूर्णन गति की दिशा में महासागरीय जल गति करती है। जिससे प्रति विषुवतरेखीय धारा उत्पन्न होती है।
पृथ्वी के घूर्णन के कारण जलधाराएं उत्तरी गोलार्ध में दाहिनी ओर और दक्षिणी गोलार्ध में बाई ओर मुड़ जाती है। इस बल को कोरिऑलिस बल कहते हैं।
▪︎ सागर से जुड़े कारक
• तापमान की विभिन्नता:- विषुवत रेखा पर तापमान अधिक एवं ध्रुवीय क्षेत्रों में कम होता है। अतः विषुवतीय प्रदेश में जल गर्म होकर फैल जाता है। जबकि कम तापमान के कारण ध्रुवीय क्षेत्रों का जल ठंडा होकर सिकुड़ जाता है। इससे दोनों क्षेत्रों में जल के घनत्व में अंतर हो जाता है। इस कारण सागर तल के ऊपरी भाग में विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर तथा अध: प्रवाह (सागर के नीचे तली) के रूप में ध्रुवों से विषुवत रेखा की ओर जल प्रवाहित होती है। उत्तरी ध्रुव प्रदेश से लैब्राडोर तथा क्यूराइल की ठंडी जलधाराएं दक्षिण की ओर, जबकि गल्फ स्ट्रीम और क्यूरोशिवो गर्म जलधारा उत्तरी ठंडे भागों की ओर चलती है।
• लवणता में भिन्नता:- पृथ्वी पर स्थित महासागर में कहीं अधिक तो कहीं कम लवणता पाई जाती है। लवणता अधिक हो जाने पर जल का घनत्व बढ़ जाता है एवं भारी होने के कारण जल नीचे बैठने लगता है। फलस्वरूप संतुलन को बनाए रखने के लिए कम घनत्व के स्थानों से अधिक घनत्व वाले स्थानों की ओर महासागरीय जल प्रवाहित होने लगता है। जिससे धाराओं की उत्पत्ति होती है। अटलांटिक महासागर (अपेक्षाकृत कम लवणता) से जिब्राल्टर जलडमरूमध्य से होकर रूम सागर की ओर धारा चलने का यही कारण है।
• हिम का पिघलना:- ध्रुवीय क्षेत्र में हिम के पिघलने के कारण जल का सतह ऊपर उठ जाता है। फलस्वरूप जल का प्रवाह नि ध्रुवों से विषुवत रेखा की ओर होने लगता है।
▪︎ बाह्य सागरीय कारक
• प्रचलित पवनें:- प्रचलित पवनें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से धाराओं को जन्म देती है, क्योंकि विश्व के अधिकांश धाराएं प्रचलित पवनों का ही अनुगमन करती है। वायु के घर्षण के प्रभाव से समुद्र का जल जलधाराओं के रूप में प्रवाहित होता है। हिंद महासागर में चलने वाली धाराएं प्रति 6 महीने पश्चात मानसून की दिशा परिवर्तन के साथ ही अपनी दिशा बदल लेती है। उष्ण कटिबंध में व्यापारिक पवनें महासागर में पश्चिम की ओर चलने वाली धाराएं उत्पन्न कर देती है। वहीं शीतोष्ण कटिबंध में पछुआ पवनें पश्चिम से पूर्व की ओर धाराएं प्रवाहित करती है।
• वायुदाब:- कम या अधिक वायुदाब का प्रभाव महासागरीय जल की उत्पत्ति पर पड़ता है। वायुदाब अधिक होने के कारण समुद्र का जल नीचे दब जाता है। अतः अधिक वायुदाब वाले क्षेत्रों में जल की सतह नीचे और कम वायदा वाले क्षेत्रों में जल की सतह उपर होता है। संतुलन बनाए रखने के लिए जल धाराओं का विकास होता है।
• वाष्पीकरण:- अधिक वाष्पीकरण के कारण जल की मात्रा कम हो जाती है। साथ ही जल की लवणता एवं घनत्व में भी वृद्धि हो जाती है। इन सब के सम्मिलित प्रभाव से अधिक वाष्पीकरण वाले क्षेत्रों में जल का तल नीचे हो जाता है। फलस्वरुप कम वाष्पीकरण वाले क्षेत्रों से अधिक वाष्पीकरण वाले क्षेत्रों की ओर जल धाराएं प्रवाहित होती है।
• महाद्वीपों का आकार:– जल धाराओं की प्रवाह दिशा पर महाद्वीपों के आकार एवं बनावट का भी बहुत प्रभाव पड़ता है। दक्षिणी विषुवतरेखीय जलधारा पश्चिम की ओर चलने की अपेक्षा सेण्ट राॅक अन्तरीप (ब्राजील) से टकराकर उत्तर तथा दक्षिण की ओर मुड़ जाती है। इस प्रकार अलास्का तट की स्थिति के कारण ही अलास्का धारा पश्चिम की ओर बहने लगती है।
• तलीय आकृति:- महासागरीय तली की असमानताएं धाराओं के मार्ग को प्रभावित करती है। जब इन धाराओं के मार्ग में अंतः सागरीय कटक (Submarine Ridges) होते हैं, तो धाराएं कुछ दाहिनी ओर मुड़ जाती है। जैसे- गल्फ स्ट्रीम स्कॉटलैंड के पास जब विविलटामसन कटक को पार करती है, तो वह दाहिनी ओर मुड़ जाती है। इसी तरह उत्तरी विषुवतरेखीय धारा मध्य अटलांटिक कटक को पार करते समय दाहिनी ओर मुड़ जाती है।
• मौसमी परिवर्तन:- जब सूर्य उत्तरायण होता है तो समुद्री धाराओं का प्रवाह क्षेत्र थोड़ा सा उत्तर की ओर खिसक जाता है। और जब सूर्य दक्षिणायन होता है तो धारा क्षेत्र थोड़ा दक्षिण की ओर खिसक जाता है। मानसूनी पवनों की दिशा में परिवर्तन के कारण हिंद महासागर की धाराओं की दिशा में भी परिवर्तन होता है। इसे मानसून प्रवाह (Monsoon Drift) के नाम से जाना जाता है। शीत ऋतु में उत्तर-पूर्वी मानसून चलने के कारण जलधारा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है। परंतु ग्रीष्म ऋतु में दक्षिण पश्चिमी मानसून चलने के कारण यह जलधारा पश्चिम से पूर्व की ओर तट के सहारे प्रवाहित होने लगती है।
☆ महासागरीय जलधाराओं के प्रकार
तापमान के आधार पर महासागरीय जलधाराओं को गर्म एवं ठंडी जलधारा के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
● गर्म जलधारा
वैसी महासागरीय धाराएं जो गर्म क्षेत्रों से ठण्डी क्षेत्रों की ओर प्रवाहित होती है। उसे गर्म जलधाराएं (Warm Currents) कहते हैं। ये प्रायः भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर चलती है। इनके जल का तापमान मार्ग में आने वाले जल के तापमान से अधिक होता है। अतः ये धाराएं जिन क्षेत्रों में चलती है, वहां का तापमान बढ़ा देती है। पृथ्वी पर महाद्वीपों के पूर्वी तट के सहारे गर्म जल धारा पाया जाता है। गर्म जलधारा के पास स्थित क्षेत्रों में प्रायः पर्याप्त वर्षा होती है। इस कारण महाद्वीपों के पूर्वी तट से सटे क्षेत्र हरे भरे होते हैं। गल्फ स्ट्रीम, क्यूरोशियो, पूर्वी आस्ट्रेलियाई जल धारा के उदाहरण हैं।
▪︎ प्रशान्त महासागर की गर्म जलधारा
प्रशान्त महासागर की प्रमुख गर्म जलधारा निम्नवत है।
• उत्तरी विषुवतीय जलधारा
• क्यूरोशियो की जलधारा
• उत्तरी प्रशान्त जलधारा
• पूर्वी आस्ट्रेलिया की जलधारा
• दक्षिण विषुवतीय जलधारा
• एल-निनो जलधारा
• अलास्का की जलधारा
• अल्यूशियन जलधारा
• केल्विन जलधारा
• विपरीत विषुवत रेखीय जलधारा
• उत्तरी विषुवतीय जलधारा (North Equatorial Warm Current):- मेक्सिको के तट से पूर्वी द्वीप समूह की ओर बहने वाली यह गर्म जलधारा है। भूमध्य रेखा के निकट जल के उच्च तापमान के कारण गर्म होकर व्यापारिक पवनों द्वारा बहाए जाने से इसकी उत्पत्ति होती है। जैसे-जैसे यह धारा पश्चिम की ओर बढ़ती है इसमें दाहिनी ओर उप शाखाएं मिलती जाती है।ताइवान के पास यह दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है। प्रथम शाखा उत्तर की ओर मुड़कर क्यूरोशियो धारा से मिल जाती है। जबकि दूसरी शाखा दक्षिण पूर्व की ओर मुड़कर विपरीत विषुवत रेखीय जलधारा का निर्माण करती है।
विस्तार:- इसका विस्तार 0° से 10° उत्तरी अक्षांश के बीच मैक्सिको तट से फिलीपींस तट तक है।
उत्पत्ति के कारण:-
(I) उ.पूर्व व्यापारिक पवन
(II) पृथ्वी की घूर्णन गति
(III) वर्षा द्वारा जल की प्राप्ति
• क्यूरोशियो की जलधारा (Curoshio System):- अटलांटिक महासागर के गल्फ स्ट्रीम धारा के समान ही प्रशांत महासागर में क्यूरोशियो धारा का विकास हुआ है। इसका प्रवाह ताइवान से बेरिंग जलडमरूमध्य तक पाया जाता है। यह क्रम कई जल धाराओं से मिलकर बना है। इसमें उत्तरी प्रशान्त गर्म जलधारा, अलास्का गर्म जलधारा तथा प्रति क्यूरोशियो जलधारा शामिल है।
विस्तार:- ताइवान के दक्षिण से 45° उत्तरी अक्षांश तक।
उत्पत्ति के कारण:-
(I) उत्तर विषुवतीय जलधारा द्वारा जल का जमाव
(II) घनत्व भिन्नता
प्रभाव:-
(I) चीन तुल्य जलवायु की उत्पत्ति में सहायक
(II) जापान में तापमान का ऊंचा रहना एवं वर्षा होना
(III) जापान के होकैडो तट पर ओयाशियो जलधारा से मिलकर कोहरे का निर्माण करना
(IV) गर्म एवं ठंडे जल धाराओं के मिलन से इस क्षेत्र में मत्स्य मदद उद्योग का विकास हुआ है।
• उत्तरी प्रशान्त जलधारा:- पछुआ पवन के प्रभाव में पूर्व की ओर निरंतर बढ़ती जाती है तथा उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट तक पहुंचती है। 150° पश्चिमी देशांतर के पहले ही इस जलधारा का मुख्य भाग दक्षिण की ओर मुड़ जाता है तथा अमेरिकी तट और हवाई द्वीप के बीच प्रवेश कर प्रति क्यूरोशियो जलधारा के रूप में जानी जाती है।
विस्तार:- जापान के होकैडो द्वीप के पूर्व से लेकर उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट तक।
उत्पत्ति के कारण:-
(I) कोरियोलिस बल
(II) पछुआ पवन
प्रभाव:-
(I) अलास्का तट पर बंदरगाहों का सालों भर खुला रहना।
(II) ब्रिटिश कोलंबिया (कनाडा) एवं अमेरिका के उत्तरी पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्र में पश्चिमी यूरोपीय तुल्य जलवायु का निर्माण।
(III) कनाडा एवं अमेरिका के पश्चिमी भाग में चक्रवात एवं वर्षा का होना।
(IV) मत्स्य उद्योग के विकास में सहायक।
• प्रति क्यूरोशियो जलधारा:- उत्तरी प्रशांत गर्म जलधारा का वह भाग जो हवाई द्वीप तथा अमेरिकी तट के मध्य चक्राकार स्वरूप धारण कर पश्चिम दिशा में प्रवाहित होने लगती है। उसे प्रति क्यूरोशियो जलधारा के नाम से जाना जाता है।
• अलास्का की जलधारा:- इसे ब्रिटिश कोलंबिया जलधारा भी कहा जाता है। उत्तरी प्रशांत प्रवाह की अल्यूशियन धारा की दूसरी शाखा घड़ी की सुई के विपरीत दिशा में घूम कर अलास्का तथा ब्रिटिश कोलंबिया के तट के साथ प्रवाहित होती है।
• अल्यूशियन जलधारा:- यह उत्तरी प्रशान्त गर्म जलधारा की उत्तरी शाखा है।
• पूर्वी आस्ट्रेलिया की जलधारा (East Australian Warm Current):- दक्षिण विषुवत रेखीय गर्म जलधारा का दक्षिण की ओर प्रवाहित भाग ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के साथ बहती है। इस कारण इसे पूर्वी ऑस्ट्रेलिया या न्यू साउथ वेल्स की गर्म जलधारा के नाम से भी जाना जाता है। 40 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के पास पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण विक्षेप बल एवं पछुआ हवा के प्रभाव से यह धारा पूर्व की ओर मुड़ जाती है।
विस्तार:- आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर 40° दक्षिणी अक्षांश तक
उत्पत्ति के कारण:-
(I) जल का जमाव
(II) घनत्व भिन्नता
(III) पृथ्वी की परिभ्रमण गति
प्रभाव:-
(I)ऑस्ट्रेलिया का सुदूर दक्षिण पूर्वी भाग एवं न्यूजीलैंड के चारों ओर उच्च तापमान का बना रहना।
(II) पूर्वी आस्ट्रेलिया में चीन तुल्य जलवायु की उत्पत्ति में सहायक।
• दक्षिण विषुवतीय जलधारा (South Equatorial Warm Current):- यह जलधारा दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट से पश्चिम की ओर आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर बहती है। न्यू गिनी द्वीप के समीप यह दो भागों में विभक्त हो जाती है। एक शाखा न्यू गिनी के उत्तर तट के सहारे प्रवाहित होती हुई विपरीत विषुवत रेखीय जलधारा को जन्म देती है। दूसरी धारा दक्षिण की ओर प्रवाहित होते हुए ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तटीय गर्म जलधारा में विलीन हो जाती है।
विस्तार:- पापुआ न्यु गिनी से पेरू, इक्वेडोर के तट तक
उत्पत्ति के कारण:-
(I) दक्षिण-पूर्व वाणिज्य पवन
(II) पृथ्वी के घूर्णन गति का प्रभाव
• विपरीत विषुवत रेखीय जलधारा (Couter Equatorial Current):- उत्तरी तथा दक्षिणी प्रशांत विषुवत रेखीय धाराओं के मध्य पश्चिम से पूर्व दिशा में प्रवाहित होने वाली धारा को विपरीत विषुवत रेखीय धारा कहा जाता है। प्रशांत महासागर में विपरीत विषुवत रेखीय धारा सर्वाधिक विकसित है। यह धारा पश्चिम में मिण्डनाओ से पूर्व में पनामा की खाड़ी तक प्रवाहित होती है। जहां पर इसकी उप शाखाएं दक्षिण की ओर मुड़कर पनामा की खाड़ी में समाहित हो जाती है।
विस्तार:- पश्चिम में मिण्डनाओ द्वीप से पूर्व में पनामा की खाड़ी तक।
उत्पत्ति का कारण:-
व्यापारिक पवनों के कारण महासागर के पश्चिमी भाग में जल का संचय होने से पश्चिम से पूर्व की ओर ढाल प्रवणता का निर्माण होना।
• एल-निनो जलधारा (El-Nino):- एल-निनो पेरू तट के पश्चिम में 180 किलोमीटर की दूरी से उत्तर पश्चिमी दिशा में चलने वाली एक गर्म जल धारा है। जो प्रशांत महासागर से होकर हिंद महासागर में प्रवेश कर भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून को कमजोर करती है। इसे विपरीत धारा (Counter Current) के नाम से भी जाना जाता है। यह एक अस्थाई जलधारा है। यह जल धारा 3-5 वर्षों में एक बार गर्म जलधारा के रूप में उत्पन्न होती हैं। एल-निनो को ईशु शिशु कहा जाता है। क्योंकि इसकी उत्पत्ति शिशु के जन्म के समय से होती है।
विस्तार:- पेरू के तट पर 3° दक्षिण अक्षांश से 36° दक्षिणी अक्षांश के बीच।
उत्पत्ति के कारण:-
विषुवत रेखा क्षेत्र में वायुदाब में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरुप दक्षिण विषुवत रेखीय धारा का कमजोर होना एवं विषुवत रेखीय प्रदेश के जल का 3° दक्षिण से 36° दक्षिणी अक्षांश के बीच प्रवाहित होना।
प्रभाव:-
(I) पेरू धारा का लोप होना।
(II) पेरू एवं चिली के तटवर्ती क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा होना।
(III) तटवर्ती भागों में प्लैंकटन, मछलियों एवं पक्षियों का विनाश होना।
(IV) संपूर्ण विश्व खासकर मानसूनी जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पडना। इससे भारत में वर्षा ऋतु में कम वर्षा होना।
• सुशिमा जलधारा:- 30° उत्तरी अक्षांश के पास क्यूरोशियो धारा से एक शाखा अलग होकर जापान सागर में चली जाती है। जो पश्चिमी जापान तट से होकर प्रवाहित होती है। उसे सुशिमा की धारा के नाम से जानते हैं।
प्रभाव:- अपने उच्च तापक्रम एवं लवणता के कारण यह तटीय भागों की जलवायु को काफी प्रभावित एवं गर्म रखती है।
▪︎ अटलांटिक महासागर की गर्म जलधारा
• गल्फ स्ट्रीम जलधारा
• फ्लोरिडा की जलधारा
• उत्तरी विषुवतरेखीय जलधारा
• उत्तरी अटलांटिक जलधारा
• दक्षिण विषुवतीय जलधारा
• ब्राजील की जलधारा
• विपरीत विषुवत रेखीय जलधारा
• कैरिबियन जलधारा
• एंटीलीज जलधारा
• नार्वे की जलधारा
• इरमिंगर जलधारा
• रेनेल जलधारा
• गल्फ स्ट्रीम जलधारा (Gulf Stream):– इसकी उत्पत्ति मैक्सिको की खाड़ी से होती है। इसलिए इसे गल्फ स्ट्रीम (Gulf Stream) कहा जाता है। गल्फ स्ट्रीम एक विस्तृत धारा क्रम है जो बडे भाग की जलवायु को प्रभावित करती है। इस क्रम में तीन धाराओं को सम्मिलित किया जाता है। ये हैं- गल्फ स्ट्रीम, फ्लोरिडा धारा और उत्तरी अटलांटिक प्रवाह।
विस्तार:- यह जलधारा 20° उत्तरी अक्षांश के पास केप हैटरस (मैक्सिको की खाड़ी) से ग्रैंड बैंक तक
उत्पत्ति के कारण:-
(I) फ्लोरिडा जलधारा एवं एंटलीस जलधारा का मिलना
(II) घनत्व की विभिन्नता
प्रभाव:-
(I) अमेरिका के पूर्वी तट पर ग्रीष्म ऋतु में गर्म लहर का प्रकोप होता है जबकि शीत ऋतु में स्थलीय हवाओं के कारण प्रभाव नहीं होता।
(II) ग्रैंड बैंक के निकट लैब्रोडोर की ठंडी जलधारा से मिलने के कारण कुहरा जैसा वातावरण का निर्माण।
(III) ग्रैंड बैंक के निकट गल्फ स्ट्रीम गर्म जलधारा और लैब्रोडोर ठंडी जलधारा के मिलन के कारण मत्स्य उद्योग को लाभ होता है।
• फ्लोरिडा की जलधारा:- 30° उत्तरी अक्षांश के पास एण्डीलीज गर्म धारा फ्लोरिडा धारा से मिल जाती है। जैसा की विदित है कि फ्लोरिडा धारा उतरी विषुवत रेखीय धारा का ही विस्तार रूप है। जो कि यूकाटन चैनल से होकर मैक्सिको की खाड़ी में पहुंचती है।
विस्तार:- यह जलधारा फ्लोरिडा जलडमरूमध्य से 30° उत्तरी अक्षांश पर स्थित हेटरस अंतरीप के बीच प्रवाहित होती है।
उत्पत्ति के कारण:-
(I) उत्तर विषुवतीय जलधारा के प्रवाह से।
(II) मिसिसिपी मिसौरी नदी द्वारा मैक्सिको की खाड़ी में जल भरने के कारण जल की सतह का ऊपर उठने से।
प्रभाव:-
(I) द. पूर्व अमेरिका में चीन तुल्य एवं मध्य अमेरिका में मानसूनी जलवायु की उत्पत्ति में सहायक।
(II) गर्मी में वर्षा होना।
(III) ग्रीष्म ऋतु में गर्म लहर का प्रकोप
(IV) शीत ऋतु में स्थलीय हवाओं के कारण कम प्रभाव
• उत्तरी अटलांटिक जलधारा (North Atlantic Drift):- 45° उत्तरी अक्षांश तथा 45° पश्चिमी देशांतर के पास गल्फ स्ट्रीम कई शाखाओं में विभक्त हो जाती है। जिन्हें सम्मिलित रूप से उत्तरी अटलांटिक प्रवाह के नाम से भी जानते हैं। उत्तरी अटलांटिक प्रवाह की उत्तरी शाखा उत्तर पूर्व दिशा में प्रवाहित होते हुए, कई उप शाखाओं में विभक्त हो जाती है।
• एक शाखा नार्वे के तट से होकर नार्वे सागर में चली जाती है और नार्वे की गर्म धारा कहलाती है।
• दूसरी शाखा आइसलैंड के दक्षिण तक चली जाती है और इरमिंगर जलधारा किस संज्ञा से जानी जाती है।
• जबकि तीसरी शाखा ग्रीनलैंड के पूर्व तक चलकर ग्रीनलैंड की ठंडी धारा से मिल जाती है।
उत्तरी अटलांटिक प्रवाह की पूर्वी शाखा पूर्व दिशा में प्रवाहित होकर फ्रांस एवं स्पेन के तट तक पहुंचती है। यह भी कई उपशाखा में विभक्त हो जाती है। इसकी एक शाखा रूम या भूमध्य सागर में प्रविष्ट हो जाती है। जबकि दूसरी शाखा बिस्के की खाड़ी तक प्रवाहित होती है। और रेनेल धारा के नाम से जानी जाती हैं। जबकि तीसरी शाखा स्पेन के पश्चिमी तट एवं ओजोर्स आदि द्वीपों से होती हुई अफ्रीका के पश्चिमी तट तक पहुंचती है, और केनारी की ठंडी जलधारा से मिल जाती है।
विस्तार:- 45° उत्तरी अक्षांश एवं 45° पश्चिमी देशांतर के निकट।
शाखाएं:-
(I) नार्वेनियन धारा
(II) इरमिंजर धारा
(III) रेनेल धारा
प्रभाव:-
(I) पश्चिमी यूरोप में पश्चिमी यूरोप तुल्य जलवायु की उत्पत्ति में सहायक।
(II) पश्चिमी यूरोप में सालों भर वर्षा एवं आनंददायक जलवायु में सहायक।
(III) नार्वे का तटवर्ती क्षेत्र सालों भर बर्फ के प्रभाव से मुक्त रहता है।
(IV) रूस का मरमस्क बंदरगाह सालों पर खुला रहता है, जबकि इसकी तुलना में 1000 किलोमीटर से भी अधिक दक्षिण में स्थित लाटविया का रीगा बंदरगाह जाड़े में जम जाता है।
(V) उत्तरी अटलांटिक जलमार्ग को हिमशिला खंडों (Icebergs) के प्रभाव से मुक्त बनाए रखने में सहायक।
• उत्तरी विषुवतरेखीय जलधारा (North Equatorial Warm Current):- अफ्रीका के पश्चिमी तट से, जहां पर के केनारी ठंडी जलधारा का जल इसे धकेलता है। यह धारा प्रारंभ होकर व्यापारिक पवनों के प्रभाव में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होती है। जैसे ही यह धारा 15° उत्तरी अक्षांश के उत्तर में मध्य अटलांटिक कटक के पास पहुंचती है। इसकी दिशा उत्तर की ओर हो जाती है तथा उसे पार करने के बाद दक्षिण की ओर मुड़ जाती है।
दक्षिण अमेरिका के पूर्वी तट के अवरोध के कारण इसका दो शाखाओं में विभाजन हो जाता है। पहली शाखाएण्टीलीज की गर्म जलधारा के नाम से जानी जाती है। तथा पश्चिम द्वीप समूह के पूर्व में प्रवाहित होती है। जबकि दूसरी शाखा कैरिबियन सागर में प्रविष्ट हो जाती है तथा यूकाटन चैनल तक पहुंचती है।
विस्तार:- उत्तर विषुवत रेखीय धारा 0° से 10° उत्तरी अक्षांशों के मध्य पश्चिमी अफ्रीका से ब्राजील तट तक विकसित होती है।
उत्पत्ति के कारण:-
(I) उ. पूर्व वाणिज्यिक पवनों का प्रभाव
(II) अधिक वर्षा
• दक्षिण विषुवतरेखीय जलधारा (South Equatorial Warm Current):- यह धारा दक्षिण पूर्वी व्यापारिक पवनों के प्रवाह के कारण पश्चिमी अफ्रीका तथा पूर्वी दक्षिणी अमेरिका के तटों के बीच 0° से 20° दक्षिणी अक्षांश के बीच प्रवाहित होती है। सेंट रॉक्स द्वीप से टकराने के बाद यह दो भागों में बट जाती है। पहली शाखा उ. विषुवत रेखीय जलधारा से ट्रिनीडाड के पास मिल जाती है। जबकि दूसरी धारा पूर्वी ब्राजील तट के सहारे गुजरते हुए आगे बढ़ जाती हैं।
विस्तार:- 0° से 20° द. अक्षांश के बीच अफ्रीका के अंकोला तट से ब्राजील तट तक।
उत्पत्ति के कारण:-
(I) व्यापारिक पवनों का प्रभाव
(II) पृथ्वी के घूर्णन का प्रभाव
(III) अधिक वर्षा
• ब्राजील की जलधारा (Brazilian Warm Current):- दक्षिणी विषुवतीय जलधारा पश्चिम में पहुंचकर ब्राजील के तट के साथ बहने लगती है और ब्राजील धारा के नाम से जानी जाती है।
• विपरीत विषुवत रेखीय जलधारा (Counter Equatorial Current):- उत्तरी व दक्षिणी विश्वत रेखा जलधाराएं जब दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट पर पहुंचती हैं, तो तट से टकराकर इन धाराओं का कुछ जल पुनः विषुवत रेखा के शान्त क्षेत्र से होकर अफ्रीका के गिनी तट की ओर आता है। दोनों धाराओं के बीच जल के इस उल्टे बहाव को ही विपरीत विषुवत रेखीय जलधारा कहते हैं। पूर्व में इस धारा का गिनी तट पर अस्तित्व प्रगट होने के कारण इसे गिनी की धारा भी कहते हैं।
विस्तार:- ब्राजील तट से गिनी तट तक।
उत्पत्ति के कारण:- उ. एवं द. विषुवतीय धारा द्वारा पश्चिमी भाग में जल के जमाव के परीणाम स्वरूप ढाल प्रवणता का बनना।
प्रभाव:-
गिनी तट पर तापमान ऊंचा रहना एवं वर्षा कराना
• एंटीलीज जलधारा:-ब्राजील के साओ राॅक अंतरीप के निकट दक्षिणी विषुवतीय धारा दो भाषाओं में बट जाती है। इसकी उत्तरी शाखा उतरी विषुवतीय धारा में मिलकर कैरीबियन सागर तथा मेक्सिको की खाड़ी में प्रवेश करती है। इसका शेष भाग पश्चिमी द्वीप समूह के पूर्वी किनारे पर एंटीलीज धारा के नाम से बहती है।
• नार्वे की जलधारा:– अटलांटिक महासागर के पूर्वी भाग में पहुंचकर उत्तरी अटलांटिक अपवाह धारा दो भाग में विभक्त हो जाती है। इसके मुख्य धारा ब्रिटिश दीप समूह से होती हुई नार्वे के तट तक पहुंच जाती है। यहां इसे नार्वे धारा कहते हैं। इससे आगे यह अटलांटिक महासागर में प्रवेश करती हैं।
• इरमिंगर जलधारा- गर्म जल धारा है। यह उत्तरी अटलांटिक धारा की एक शाखा है।
• रेनेल जलधारा:- गर्म जलधारा है। यह भी उत्तरी अटलांटिक धारा की एक शाखा है।
• कैरिबियन जलधारा:- गर्म जलधारा है। कैरिबियन सागर में बहती है।
▪︎ हिंद महासागर की गर्म जलधारा
1. परिवर्तनशील धाराएं या मानसूनी प्रवाह (Variable Current Monsoon Drift):-विषुवत रेखा के उत्तर की ओर हिंद महासागर की धाराएं मानसून पवनों के अनुसार अपने दिशा और क्रम बदल लेती है। इसलिए यह परिवर्तनशील धाराएं (Variable Current) कहलाती है। इन्हें मानसून प्रवाह (Monsoon Drift) भी कहते हैं। यह प्रवाह भारतीय उपमहाद्वीप से अरब तट के बीच बहता है। इन धाराओं में दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी जलधारा और उत्तर-पूर्वी मानसूनी जलधारा शामिल है। ये दोनों गर्म जलधारा है।
• दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी जलधारा
• उत्तर-पूर्वी मानसूनी जलधारा
• दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी जलधारा (South West Monsoon Drift):- सूर्य के उत्तरायण के साथ ही उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) कर्क रेखा के पास गंगा के मैदान में स्थित हो जाता है। जिस कारण इन क्षेत्रों में निम्न दाब का केंद्र बनता है। परिणाम स्वरूप समुद्र से स्थल भाग की ओर हवाएं चलने लगती है। जिससे दक्षिण पश्चिम मानसून की उत्पत्ति होती है। दक्षिण पश्चिम मानसून के प्रभाव से जल का प्रवाह पश्चिम से पूर्व की ओर होने लगता है। इससे दक्षिण पश्चिम मानसून प्रवाह का जन्म होता है।
विस्तार:- सोमालिया के तट से लेकर भारतीय उपमहाद्वीप की तट रेखा के सहारे सुमात्रा के तट तक।
उत्पत्ति के कारण:- द. प. मानसूनी पवनों का प्रभाव
प्रभाव:-
(I) भारत एवं उत्तर पूर्वी एशिया में मानसूनी जलवायु की उत्पत्ति में सहायक
(II) तटवर्ती क्षेत्रों में भारी वर्षा कराने में सहायक
• उत्तर-पूर्वी मानसूनी जलधारा (North East Monsoon Drift):-सूर्य के दक्षिणायन के साथ ही शीत ऋतु का प्रारंभ होने लगता है। जिससे पवनें उत्तर पूर्व दिशा यानी स्थल से समुद्र की ओर प्रवाहित होने लगती है। इससे उत्तरी विषुवतीय धारा उत्तर-पूर्वी मानसून पवनों के घर्षण द्वारा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होने लगती है। जिसे उत्तर-पूर्वी मानसून प्रवाह के नाम से जानते हैं। यह अंडमान तथा सोमाली के बीच पश्चिम दिशा में प्रवाहित होती है।
विस्तार:- भारतीय उपमहाद्वीप की तट रेखा के सहारे सुमात्रा के तट से लेकर सोमालिया के तट तक।
उत्पत्ति के कारण:- ITCZ का कर्क रेखा से खिसककर मकर रेखा की ओर स्थापित होना।
प्रभाव:- भारत के पूर्वी तटवर्ती क्षेत्रों में वर्षा
2. स्थायी धाराएं (Permanent Current) :- हिंद महासागर में विषुवत रेखा के दक्षिण में चलने वाली धाराएं वर्ष भर एक ही क्रम में चला करती है। अतः इन्हें स्थाई धारा (Permanente Current) कहते हैं। ये धाराएं हैं।
• उत्तरी विषुवत रेखीय जलधारा
• दक्षिण विषुवत रेखीय जलधारा
• विपरीत विषुवत रेखीय जलधारा
• मोजांबिक की जलधारा
• मेडागास्कर की जलधारा
• अगुलहास की जलधारा
• उत्तरी विषुवत रेखीय जलधारा:- यह धारा पूर्व से पश्चिम की ओर इंडोनेशियाई द्वीपों से अफ्रीका के पूर्वी तट की ओर बहता है।
• दक्षिण विषुवत रेखीय जलधारा:- दक्षिणी पूर्वी व्यापारिक पवनों के प्रभाव से अफ्रीका तथा पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के 10° से 15° दक्षिणी अक्षांश के मध्य पूर्व से पश्चिम दिशा में प्रवाहित होने वाली गर्म धारा को दक्षिण विषुवत रेखीय धारा कहा जाता है। यह धारा पूर्वी अफ्रीका तट के सहारे दक्षिण दिशा में बहते हुए मेडागास्कर के पास दो शाखाओं में बट जाती है। जिसकी एक शाखामोजांबिक धारा तो दूसरी शाखामेडागास्कर की धारा के नाम से जानी जाती है।
विस्तार:- अफ्रीका एवं आस्ट्रेलिया के तट के मध्य 10° द. से 15° द. अक्षांश के बीच।
उत्पत्ति के कारण:-
(I) द. पू. वाणिज्य पवन का प्रभाव।
(II) पृथ्वी के घूर्णन का प्रभाव।
प्रभाव:- तंजानिया एवं मोजांबिक के तटवर्ती क्षेत्रों में वर्षा
• मोजांबिक की जलधारा:- मेडागास्कर द्वीप के निकट पहुंचने पर दक्षिण भूमध्य रेखीय धारा दो शाखाओं में बढ़ जाती है। जो शाखा मोजांबिक चैनल से होकर बहने लगती है। उसे मोजांबिक की गर्म जलधारा के नाम से जाना जाता है।
विस्तार:- मोजांबिक तट पर।
उत्पत्ति के कारण:-
(I) द. विषुवत रेखीय चलाया द्वारा जल जमाव
(II) घनत्व भिन्नता
प्रभाव:- मोजांबिक के तटवर्ती क्षेत्रों में वर्षा का होना, जिस कारण तटवर्ती क्षेत्र हरा भरा बना रहना।
• मेडागास्कर की गर्म जलधारा:- वहीं दक्षिण विषुवत रेखीय धारा की दूसरी शाखा मेडागास्कर की पूर्वी तट के सहारे आगे बढती है। उसे मेडागास्कर की गर्म जलधारा के नाम से जाना जाता है। इसे मालागासी की जलधारा के नाम से भी जाना जाता है।
विस्तार:- मेडागास्कर के पूर्वी तट पर।
उत्पत्ति के कारण:-
(I) द. विषुवत रेखीय चलाया द्वारा जल जमाव
(II) घनत्व भिन्नता
प्रभाव:- मेडागास्कर में चक्रवात की उत्पत्ति में सहायक।
• अगुलहास की जलधारा:- मेडागास्कर द्वीप के दक्षिण में 30° अक्षांश पर मोजांबिक धारा और मेडागास्कर की धारा मिलकर एक हो जाती है। जिसे अगुलहास की गर्म जलधारा के नाम से जाना जाता है। यह जलधारा अफ्रीका के दक्षिण छोर तक प्रवाहित होती है। और आगे चलकर पछुआ पवन प्रवाह में मिल जाती है।
विस्तार:- द. अफ्रीका के द. पूर्वी तट पर
उत्पत्ति का कारण:- मोजांबिक एवं मेडागास्कर की जल धाराओं का मिलना तथा जलजमाव।
प्रभाव:-
(I) दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी तट पर चीन तुल्य जलवायु की उत्पत्ति में सहायक
(II) तटवर्ती क्षेत्र में वर्षा में भी सहायक।
• विपरीत विषुवत रेखीय जलधारा:- इसकी उत्पत्ति केवल शीत ऋतु में होती है। यह धारा शीत ऋतु में जंजीबार द्वीप के निकट से प्रारंभ होकर पूर्व की ओर प्रवाहित होती है।
उत्पत्ति का कारण:- उ. पू. मानसूनी धारा और द. विषुवतीय धारा द्वारा पश्चिमी भाग में जल जमाव के कारण ढाल प्रवणता।
● ठण्डी जलधारा
वैसी महासागरीय जलधाराएं जो ठंडे क्षेत्रों से गर्म क्षेत्रों की ओर चलती है, उन्हें ठंडी जलधारा (Cold Currents) के नाम से जाना जाता है। ये प्राय: ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर चलती है। इनके जल का तापमान रास्ते में आने वाले जल के तापमान से कम होता है। अतः ये जलधाराएं जिन क्षेत्रों में चलती है, वहां का तापमान घटा देती है। पृथ्वी पर महाद्वीपों के पश्चिमी तट के सहारे ठंडी जलधारा पाया जाता है। ठंडी जलधारा के कारण आसपास का वातावरण ठंडा होने से वर्षा में कमी हो जाती है। इस कारण प्रायः देखा जाता है कि विश्व के अधिकतर मरुस्थल महाद्वीपों के पश्चिमी तट के सहारे स्थित है।
▪︎ प्रशान्त महासागर की ठण्डी जलधारा
प्रशान्त महासागर की प्रमुख ठण्डी जलधारा निम्नवत है।
• कैलिफोर्निया की जलधारा
• पेरू/हम्बोल्ट की जलधारा
• दक्षिण प्रशान्त जलधारा
• ओखाटस्क की जलधारा
• ओयाशियो जलधारा
• ला-निनो जलधारा
• कैलिफोर्निया की जलधारा (Californian Cold Current):- यह ठंडी जलधारा है। यह उत्तरी प्रशांत प्रवाह के दक्षिण शाखा का ही एक भाग है। यह कैलिफोर्निया के पश्चिम तट के साथ प्रवाहित होते हुए दक्षिण में उतरी भूमध्य रेखीय धारा में मिल जाती है। यह जलधारा अटलांटिक महासागर के केनारी जलधारा से साम्यता रखती है।
विस्तार:- कैलिफोर्निया तट
उत्पत्ति के कारण:-
व्यापारिक पवन द्वारा उत्तरी विषुवतीय जलधारा के रूप में कैलिफोर्निया तट से जल के हटाने के फलस्वरुप नीचे के अपेक्षाकृत ठंडा जल का ऊपर आने (upwelling) से।
प्रभाव:-
(I) कैलिफोर्निया तट पर कोहरा होना एवं वर्षा का अभाव होना है।
(II) कैलिफ़ोर्निया मरुस्थल का निर्माण में योगदान।
• पेरू की जलधारा (Peruvian Cold Current):- दक्षिणी प्रशांत महासागर में अंटार्कटिक प्रवाह जब दक्षिणी अमेरिका के दक्षिणी सिरे पर पहुंचता है, तो केपहाॅन से टकराकर उत्तर की ओर मुड़ जाता है। फिर यह पेरू देश के पश्चिमी तट के साथ-साथ उत्तर की ओर प्रवाहित होता है। जो आगे चलकर दक्षिणी प्रशांत प्रवाह में मिल जाता है। पेरू के समीप इसे पेरूवियन धारा के नाम से जाना जाता है। सर्वप्रथम इसे हंबोल्ट नामक महान भूगोलवेत्ता ने खोजा था। इस कारण यह धारा हंबोल्ट की धारा (Hamboldt Current) के नाम से भी विख्यात है।
विस्तार:- पेरू एवं चिली के तट पर
उत्पत्ति के कारण:-
(I) स्थलीय अवरोध
(II) घनत्व की भिन्नता
(III) दक्षिणी विषुवतीय जलधारा के रूप में पेरू के तट से सतह के जल को हटाए जाने के फलस्वरूप नीचे के ठंडे जल का ऊपर (upwelling) आना।
प्रभाव:-
(I) तटवर्ती भागों में कोहरा होना।
(II) तटवर्ती क्षेत्रों में वर्षा का अभाव होना।
(III) अटाकामा मरुस्थल के निर्माण में योगदान।
(IV) ठंडे जल के ऊपर आने के कारण मत्स्य उद्योग का विकास।
• ओयाशियो की जलधारा (Oyashio Cold Current):- यह जलधारा बेरिंग जल संधि से होती हुई दक्षिण की ओर साइबेरिया तट के साथ बहती है। इसे क्यूराइल या कमचटका ठंडी जलधारा के नाम से भी जानते हैं। 50° उत्तरी अक्षांश के पास इसकी एक शाखा पूर्व की ओर मुड़कर अल्यूशियन एवं क्यूरोशियो धाराओं से मिल जाती है। इस प्रकार आर्कटिक सागर का ठंडा जल आयोशियो धारा के रूप में प्रशांत महासागर में पहुंचता है। जहां यह धारा क्यूरोसियो धारा से मिल जाती है वहां घना कोहरा उत्पन्न होता है। जो समुद्री यातायात के लिए अवरोधक का कार्य करता है।
विस्तार:- बेरिंग जल संधि से जापान के होकैडो तट तक।
उत्पत्ति के कारण:-
(I) बर्फ पिघलने से जल की प्राप्ति
(II) घनत्व की भिन्नता
प्रभाव:-
(I) साइबेरिया एवं साखलीन तट पर शीतलहर एवं हिमपात का प्रकोप
• दक्षिण प्रशान्त जलधारा:- प्रशांत महासागर में पछुआ हवा के प्रभाव से 40°-45° दक्षिणी अक्षांश के पास एक प्रबल जलधारा पश्चिम से पूर्व दिशा में तस्मानिया तथा दक्षिण अमेरिका तट के बीच प्रवाहित होती है। इसे दक्षिण प्रशांत प्रवाह के नाम से जाना जाता है। अत्यधिक जल विस्तार तथा गरजती चालीसा (Roaring Forties) के कारण यह प्रबल धारा का स्वरूप धारण कर लेती है। जो शीघ्र गति के साथ आगे बढ़ते हुए सुदूर पूर्व में जाने पर 45° दक्षिणी अक्षांश के पास इनकी दो शाखाएं हो जाती है। एक शाखा हार्न अंतरीप से होकर अटलांटिक महासागर में चली जाती है। जबकि दूसरी शाखा उत्तर की ओर मुड़ कर पेरू जलधारा से मिल जाती है।
• ला-निनो जलधारा (La-Nina):- जिस वर्ष एल-निनो का प्रभाव नहीं रहता, उस वर्ष पेरू के तट से शीतल जल की धारा चलती है। जिसे ला-निना कहा जाता है। ला-लिना भी एक प्रति सागरीय जलधारा है। इसकी उत्पत्ति पश्चिम प्रशांत महासागर में उस समय होती है जब पूर्वी प्रशांत महासागर में एल-निनो का प्रभाव समाप्त हो जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पश्चिमी प्रशांत महासागर में एल-निनो जनित अति सूखे की स्थिति को ला-निना बदल देती है। तथा आर्द्र मौसम को जन्म देती है।
प्रभाव:-
(I) ला-निना के आविर्भाव के साथ इंडोनेशिया एवं समीपवर्ती भागों में सामान्य से अधिक चल वर्षा होती है।
(II) ला-निना के कारण भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून अधिक सक्रिय हो जाता है।
▪︎ अटलांटिक महासागर की ठण्डी जलधारा
• लैब्रोडोर जलधारा
• केनारी जलधारा
• फाॅकलैण्ड जलधारा
• बेंगुएला जलधारा
• दक्षिण अटलांटिक/पछुआ पवन जलधारा
• लैब्रोडोर जलधारा (Labrador Cold Current):- यह ग्रीनलैंड के पश्चिमी तट पर बैफिन की खाड़ी से निकलकर लैब्रोडोर पठार के सहारे-सहारे प्रवाहित होते हुए न्यूफाउण्डलैण्ड के निकट गल्फ स्ट्रीम में मिल जाती है। यह जलधारा ध्रुवीय सागरों से आने के कारण ठंडी होती है। न्यूफाउण्डलैण्ड के निकट ठंडे और गर्म जल के मिलने के कारण घना कोहरा छा जाता है। जो मछलियों के विकास के लिए आदर्श दशाएं उपस्थित करता है।
विस्तार:- बैफिन की खाड़ी एवं डेविस जलडमरूमध्य से लेकर 45° उत्तरी अक्षांश तक
उत्पत्ति के कारण:-
(I) हिमशिला खंडों पर पिघलने से स्वच्छ जल की मात्रा में वृद्धि
(II) लवणता की भिन्नता
प्रभाव:-
(I) कनाडा के पूर्वी तट पर शीतलहर का प्रकोप एवं सालों भर तापमान में कमी।
(II) बड़े-बड़े हिम शीला खंडों का न्यूफाउंडलैंड तक आना।
(III) गल्फ स्ट्रीम से मिलने के पश्चात कोहरे से भरे वातावरण का निर्माण फलस्वरूप सागरीय यातायात में बाधा।
• केनारी जलधारा (Canary Cold Current):-उत्तरी अफ्रीका के पश्चिमी तट के सहारे मडेरिया तथा केपवर्डे के बीच प्रवाहित होने वाली ठंडी जलधारा को केनारी की जलधारा के नाम से जानते हैं। यह वास्तव में उत्तरी अटलांटिक प्रवाह का अग्र रूप तथा अपनी गर्मी खो चुका दक्षिणी भाग है। जो व्यापारिक पवनों के प्रवाह से पश्चिम दिशा की ओर मुड़ कर उत्तर विषुवत रेखीय धारा से मिल जाती है।
विस्तार:- उत्तरी अफ्रीका के पश्चिमी तट के सहारे मडेरिया तथा केपवर्डे के बीच प्रवाहित होती है।
उत्पत्ति के कारण:-
वाणिज्यिक पवनों द्वारा अफ्रीका के पश्चिमी तट के निकट से सतह के जल के हटने के कारण नीचे के ठंडे जल का ऊपर आना (upwelling)।
प्रभाव:-
(I) तटवर्ती क्षेत्रों में कुहासा छाया रहना परंतु वर्षा का अभाव।
(II) सहारा मरुस्थल का अफ्रीका के पश्चिम तट से पूरब तट तक विस्तार।
• फाॅकलैण्ड जलधारा (Falkland Cold Current):- यह ठंडे जल की धारा दक्षिणी अमेरिका के दक्षिणी-पूर्वी तट के साथ दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है। यह अपने साथ अंटार्कटिक प्रदेश से हिम शिलाएं बहा कर लाती है। गर्म तथा ठंडे जल के मिलने से यहां पर भी कुहासा छाया रहता है।
विस्तार:- अर्जेन्टाइना के पूर्वी तट पर
उत्पत्ति के कारण:-
(I) घनत्व में भिन्नता।
(II) हिम के पिघलने से स्वच्छ जल की प्राप्ति।
प्रभाव:-
(I) इस जलधारा द्वारा अंटार्कटिक क्षेत्र से हिम शीला खंड अर्जेंन्टाइना तट तक लाए जाते हैं।
(II) पैटागोनिया मरुस्थल की उत्पत्ति में यह जलधारा सहायक।
• बेंगुएला जलधारा (Bangula Cold Current):- दक्षिणी अटलांटिक प्रवाह दक्षिणी अफ्रीका के पश्चिमी तट से टकराकर उसके सहारे उत्तर की ओर मुड़ जाती है। इसे ही बेंगुएला की ठंडी जलधारा के नाम से जानते हैं। आगे चलकर यह दक्षिणी विषुवत रेखीय धारा में मिल जाती है।
विस्तार:- द. अफ्रीका एवं नामीबिया के प. तट पर
उत्पत्ति के कारण:-
(I) स्थलीय अवरोध
(II) घनत्व की भिन्नता
प्रभाव:-
(I) तटवर्ती भाग में कुहरा का छाना परन्तु वर्षा का अभाव।
(II) नामीबिया एवं कालाहारी मरुस्थल के निर्माण में सहायक।
• दक्षिण अटलांटिक/पछुआ पवन जलधारा:- जब ब्राजील धारा पृथ्वी के परिभ्रमण के कारण विक्षेप बल द्वारा पूर्व दिशा की ओर मुड़ती है, तो स्थल के अभाव में पछुआ पवनों द्वारा प्रेरित होकर तीव्र गति से प्रवाहित होती है। इसे दक्षिण अटलांटिक प्रवाह, पछुआ पवन प्रवाह, अंटार्कटिक प्रवाह आदि नामों से भी जाना जाता है। यह एक ठंडे जल की धारा है।
▪︎ हिंद महासागर की ठण्डी जल धारा
• पश्चिमी पवन प्रवाह :- 40° दक्षिणी अक्षांश के पास पछुआ पवन के प्रभाव से अगुलहास की धारा हिंद महासागर में पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है। जिसे पछुआ पवन प्रवाह के नाम से जानते हैं। यह ठंडी जलधारा है। इसे दक्षिणी हिन्द प्रवाह भी कहा जाता है। यह धारा हिंद महासागर के दक्षिण में पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हुई, ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट के दक्षिणी सिरे के निकट तक पहुंच जाती है।
विस्तार:- 2° से 8° द. अक्षांश के मध्य जंजीबार एवं सुमात्रा के बीच।
उत्पत्ति का कारण:- पछुआ पवनों के प्रभाव से उत्पत्ति।
• पश्चिमी आस्ट्रेलिया की जलधारा:- पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया धारा ठंडी जलधारा है। यह पछुआ पवन प्रवाह 110° पूर्वी देशांतर के पास विभाजित हो कर दो शाखाओं में बट जाती है। एक शाखा उत्तर की ओर मुड़कर पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तट के सहारे प्रवाहित होने लगती है। और पश्चिमी आस्ट्रेलिया की ठंडी धारा के नाम से जानी जाती है। यह धारा उत्तर में जाकर दक्षिणी विषुवत रेखीय धारा से मिल जाती है। पछुआ पवन प्रवाह की दूसरी शाखा दक्षिण की ओर मुड़कर ऑस्ट्रेलिया के दक्षिणी तट के सहारे प्रवाहित होती है।
विस्तार:- आस्ट्रेलिया का पश्चिमी तट
उत्पत्ति के कारण:- दक्षिणी विषुवतीय जलधारा के रूप में जल के हटने के कारण ढाल प्रवणता के निर्माण के फलस्वरुप पछुआ पवन प्रवाह के जल का उत्तर की ओर प्रवाहित होना।
प्रभाव:-
(I) ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर उच्च वायुदाब का निर्माण होना।
(II) वायु का स्थलखंड से समुद्र की ओर प्रवाह।
(III) ऑस्ट्रेलिया के मरुस्थल का तटवर्ती क्षेत्रों तक विस्तार
☆ महासागरीय जलधाराओं का मानव जीवन पर प्रभाव:-
▪︎ तापमान की दृष्टि से
▪︎ वर्षा की दृष्टि से
▪︎ मत्स्य उद्योग पर प्रभाव
▪︎ पत्तनों (Ports) का सदा खुला रहना
▪︎ आंधी और चक्रवात की उत्पत्ति
▪︎ कुहरा-कुहासा होना
▪︎ तापमान की दृष्टि से:- जल धाराओं के ठंडी एवं गर्म होना मानव जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। यदि समुद्री धारा ठंडी रही तो उसके समीपवर्ती भूभाग का तापमान अपेक्षाकृत कम हो जाएगा। जैसा लैब्राडोर की ठंडी धारा तटीय भागों का तापमान काफी गिरा देती है। यदि समुद्री धारा गर्म रही तो समीप वाले क्षेत्रों का तापमान अपेक्षाकृत बढ़ जाएगा। जैसे गल्फ स्ट्रीम से उत्तर पूर्व अमेरिका और उत्तरी अटलांटिक प्रवाह से यूरोप के पश्चिमी देशों का तापमान बढ़ जाता है। और जलवायु सम हो जाती है।
▪︎ वर्षा की दृष्टि से:- वैसे क्षेत्र जो गर्म जल धाराओं के समीप स्थित है ,वहां अच्छी वर्षा होती है। जैसे यूनाइटेड किंगडम में। इसका कारण यह है कि गर्म धाराओं के ऊपर से जो पवन चलते हैं उनमें आद्रता बनाए रखने की क्षमता बढ़ जाती है, और स्थल पर पहुंचकर अधिक वर्षा कर पाते हैं। इसके विपरीत जहां ठंडी जलधाराएं चलती है वहां वर्षा कम होती है। जैसे बेंगुएला धारा से कालाहारी वर्षा नहीं हो पाती है। प्रायः सभी मरुस्थलीय तट ठंडी जल धाराओं के प्रभाव के कारण बने हैं।
▪︎ मत्स्य उद्योग पर प्रभाव:- जलधाराएं मछलियों के जीवित रहने के लिए आवश्यक तत्व है। ये ऑक्सीजन तथा भोजन को वितरित करने का यह कार्य करती हैं। जल धाराओं द्वारा प्लैंकटन नामक घास को लाया जाना मछलियों के लिए आदर्श स्थिति पैदा करती है। जैसे गल्फ स्ट्रीम द्वारा यह प्लैंकटनन्यूफाउंडलैंड तथा उत्तर पश्चिम यूरोपीय तट पर पहुंचाया जाता है। जिस कारण वहां पर मत्स्य उद्योग अत्यधिक विकसित हो गया है। परंतु पेरू तट पर एलनिनो धारा के कारण प्लैंकटन के अदृश्य हो जाने पर मछलियां मर जाती है। जिससे वहां मत्स्य उद्योग को क्षति उठानी पड़ती है।
शीत क्षेत्रों में पैदा होने वाली खाद्य मछलियां ठंडी धाराओं के साथ गर्म प्रदेशों में आ जाती है। गर्म और ठंडी धाराएं भी मिलकर विभिन्न प्रकार की मछलियों को जन्म देने में सहायक होती है।
▪︎ पत्तनों (Ports) का सदा खुला रहना:- गर्म जल धाराओं के प्रभाव से उच्च अक्षांश में स्थित समुद्री पतनों के तटों पर बर्फ नहीं जम पाती। अतः वर्ष भर यहां पत्तन खुले रहते हैं। जैसे उत्तरी अटलांटिक प्रवाह एवं उनकी शाखाओं के प्रभाव से पश्चिमी यूरोप के अधिकतर बंदरगाह वर्ष भर खुले रहते हैं। नार्वे इस धारा से सर्वाधिक लाभ की स्थिति में रहता है। यहां स्थित हेमरफेस्ट बंदरगाह 71° उत्तरी अक्षांश पर स्थित होने के कारण भी वर्ष भर खुला रहता है। उसी तरह रूस का मरमंस्क बंदरगाह69° उत्तरी अक्षांश में होने के बावजूद इस धारा के प्रवाह के कारण सालों भर खुला रहता है।
▪︎ कुहरा-कुहासा होना:- जब सागर पर ठंडी और गर्म जल धाराएं मिलती है तब वहां कुहरा-कुहासा उत्पन्न हो जाता है। न्यूफाउंडलैंड के निकट लैब्राडोर की ठंडी धारा और गल्फ स्ट्रीम नामक गर्म जलधारा का मिलन स्थल है। यहां सालों भर सबसे अधिक घना कोहरा-कुहासा मिलता है। इसी तरह ओयाशियो और क्यूरोशियो का मिलन स्थल भी कुहासे से भरा रहता है।कोहरा और कुहासे के कारण जल यातायात को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता।
▪︎ आंधी और चक्रवात की उत्पत्ति:- ठंडी और गर्म जल धाराओं के मिलने से बड़ी-बड़ी आंधियों और चक्रवात उत्पन्न होते पाए गए हैं। समुद्रों में उत्पन्न होने वाले यह चक्रवात स्थल भाग पर आकर विनाशकारी प्रभाव छोड़ते हैं।
☆ परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण तथ्य
• महाद्वीपों के पूर्वी तटों के सहारे गर्म जलधारा का विकास देखा जाता है। गर्म जलधारा के कारण इन क्षेत्रों में पर्याप्त वर्षा भी होती है। इस कारण पूरे पृथ्वी पर महाद्वीपों के पूर्वी तटीय क्षेत्र हरे-भरे पाए जाते हैं।
• जबकि महाद्वीपों के पश्चिमी तट के सहारे ठंडी जलधारा का विकास देखा जाता है। इन ठंडी जलधाराओं के कारण इन क्षेत्रों में वर्षा की कमी देखी जाती है। फलस्वरूप विश्व के अधिकतर मरुस्थल महाद्वीपों के पश्चिमी तट के सहारे ही देखने को मिलता है।
• पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण धाराओं की दिशा में झुकाव हो जाता है। यह झुकाव उत्तरी गोलार्ध में दाहिनी हाथ की ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में बाएं हाथ की ओर होता है। इस झुकाव को कोरियालिस बल या फेरल के नियम से जाना जाता है।
• उत्तरी हिंद महासागर में मानसूनी हवाओं का मौसमी दिक् परिवर्तन धाराओं की दिशा में परिवर्तन करता है। अर्थात मौसम के बदलने से धाराओं की दिशा परिवर्तित हो जाती है।
• अटलांटिक महासागर में सर्वाधिक लवणता सारगैसो सागर में पाई जाती है। सारगैसो सागर का नाम जड़ विहीन के कारण पड़ा है।
• एलनिनो धारा को एक मौसमी घटना के रूप में लिया जाता है।
• विपरीत विषुवत रेखीय धारा का सर्वाधिक विस्तार प्रशांत महासागर में देखा जाता है।
• मार्च में पूर्वी दीप समूह के पास जब एलनिनो धारा पहुंचती है। तो उसे केल्विन धारा के नाम से जाना जाता है। यही केल्विन या एलनिनो धारा हिंद महासागर में प्रविष्ट होती है।
• पेरू के तट पर एलनिनो के प्रबल होने से अतिवृष्टि के कारण सागरीय जीवों का विनाश हो जाता है। खासकर प्लैंकटन के अदृश्य हो जाने से मछलियां मर जाया करती हैं।
• उत्तरी हिंद महासागर में दक्षिण पश्चिम मानसून के प्रभाव से उत्तर पूर्व मानसून धारा एवं विपरीत विषुवत रेखीय धारा लुप्त हो जाती है।
• लैब्राडोर धारा द्वारा लाए गए प्लावी हिमशैल से टकराकर टाइटेनिक जहाज ध्वस्त होकर डूब गया था।
• गल्फ स्ट्रीम जलधारा की खोज पोंस डी लिओन ने की थी।
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संकलन
महेंद्र प्रसाद दांगी
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