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शहीद निर्मल महतो की जीवनी | shahid nirmal mahto life story

On: December 26, 2021 12:01 PM
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शहीद निर्मल महतो की जीवनी | shahid nirmal mahto life story in hindi

निर्मल महतो झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेता थे। 37 वर्ष के छोटे से उम्र में ही उन्होंने नेतृत्व का ऐसा बीन बजाया था कि लोग कायल हो गए थे। ये एक ऐसा व्यक्ति थे, जिसने झामुमो के कार्यकर्ता से महज 4 साल में ही अध्यक्ष पद तक पहुंचे। गरीबों का ऐसा मददगार जिसके शहादत पर झकोरा था पूरे झारखंड को! उनके अथक प्रयास का ही नतीजा है कि आज झारखंड का एक अपना अस्तित्व है। इस पोस्ट में शहीद निर्मल महतो का जीवन परिचय के बारे में जानेंगे।

प्रारंभिक जीवन

निर्मल महतो का जन्म 25 दिसंबर 1950 को पूर्वी सिंहभूम जिला के उलियान गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम जगबंधु महतो तथा माता का नाम प्रिया बाला महतो था। उन्होंने जमशेदपुर वर्कर्स यूनियन हाई स्कूल से मैट्रिक के परीक्षा पास की। उसके बाद कोऑपरेटिव कॉलेज जमशेदपुर से निर्मल वे स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। प्रारंभ में आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण ये बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपनी आजीविका चलाते थे।

राजनीतिक जीवन

शैलेंद्र महतो की प्रेरणा से निर्मल महतो 15 दिसंबर 1980 को झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) में शामिल हुए। सिर्फ 4 साल में ही वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता से अध्यक्ष पद तक पहुंचे। 1984 में जब ऐसे हालात बने कि बिनोद बिहारी महतो के स्थान पर किसी अन्य को झामुमो का अध्यक्ष चुना जाना सुनिश्चित हुआ। तब झामुमो सुप्रीमो ने निर्मल महतो को अध्यक्ष के रूप में चुना। यह उनके नेतृत्व क्षमता का ही पुरस्कार था। यह उनका ही विजन और सपना था कि झारखंड आंदोलन के लिए एक पार्टी का गठन हो, जिसके परिणाम स्वरूप 22 जून 1986 को ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) पार्टी  (AJSU) का गठन हुआ।

सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में

निर्मल महतो राजनीति से हटकर सामाजिक कार्यों में लगे रहते थे। उनमें नेतृत्व और सहयोग का गजब का गुण था। वे नशा से दूर रहकर इसके खिलाफ लोगों के बीच आवाज उठाते रहते थे। वह न तो शराब पीते थे और नहीं सिगरेट! वे अवैध शराब बनाने वाले और इस प्रकार के धंधों में शामिल लोगों को पकड़वाते भी थे।

वे समाज में व्याप्त साहूकारी व्यवस्था के खिलाफ थे। सूदखोरों के विरुद्ध वे लड़ते रहते थे। एक कहानी ऐसी है कि अस्सी के दशक में जमशेदपुर में सूदखोरों का आतंक था। टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (टिस्को) के सफाई कर्मियों को ये सूदखोर फंसाते थे और वेतन मिलने पर उनका पैसा छीन लेते थे। जिसकी जानकारी मिलने पर निर्मल महतो अपनी टीम के साथ जाकर हॉकी स्टिक से सूदखोरों की पिटाई करते थे। इस प्रकार सूदखोरों तक लोगों के पैसा पहुंचने से बचाते थे।

वे गरीबों के मसीहा थे। एक कहानी प्रचलित है कि एक दिन जमशेदपुर में एक ब्राह्मण परिवार में एक लड़की की शादी हो रही थी। बारात पश्चिम बंगाल से आई थी। अंतिम मौके पर दूल्हे वालों ने सोने की चेन की मांग की! नहीं मिलने पर शादी से मना कर रहे थे। जैसे ही निर्मल महतो को इसकी खबर मिली, वे शादी स्थल पर पहुंचे, और लड़की के पिता को सोने की चैन देने की बात कही। उस समय निर्मल महतो मां द्वारा दी गई सोने की चैन पहना करते थे। उन्होंने अपना चैन निकाल कर दिया तब शादी हो गई। इतने हमदर्द थे निर्मल महतो!

हत्या

8 अगस्त 1987 का वह काला दिन जब निर्मल महतो, सूरज मंडल और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ जमशेदपुर के चमरिया, बिष्टुपुर स्थित टिस्को गेस्ट हाउस से बाहर निकल रहे थे। उसी समय घात लगाकर बैठे लोगों ने निर्मल महतो पर गोलियों की बौछार कर दी। उन्हें 3 गोलियां लगी और घटनास्थल पर ही उनकी मौत हो गई। और इसके साथ ही झारखंड आंदोलन का एक उभरता नेता शहीद हो गया। एक सच्चा, गरीब हितैषी व्यक्तित्व हम सब के बीच से सदा के लिए चल बसा। ऐसे झारखंड के सच्चे सपूत को शत् शत् नमन! ?????
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अगर सही मार्ग पर चला जाए तो सफलता निश्चित है। अभ्यास सफलता की कुंजी मानी जाती है, और यह अभ्यास यदि सही दिशा में हो तो मंजिल मिलने में देर नहीं लगती। इस लिए कहा भी गया है:- " करत-करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान। रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान।।"

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