सुशासन दिवस | sushasan day | good governance day in hindi
• हर वर्ष 25 दिसंबर को भारत में सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
• यह दिवस भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिवस पर मनाया जाता है।
• सुशासन दिवस की शुरुआत वर्ष 2014 से हुए, जब प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी चुने गए थे।
• सुशासन दिवस का उद्देश्य भारत के नागरिकों के बीच सरकार की जवाबदेही के प्रति लोगों में जागरूकता लाना है।
सुशासन दिवस का इतिहास
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23 दिसंबर 2014 को अटल बिहारी बाजपेयी और पंडित मदन मोहन मालवीय (मरणोपरांत) को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार “भारत रत्न” से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई थी। इस घोषणा के बाद मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के जन्मदिवस को भारत में प्रतिवर्ष ‘सुशासन दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की। 25 दिसंबर 2014 से हर वर्ष भारत में ‘सुशासन दिवस’ मनाया जा रहा है। हालांकि सरकार के इस निर्णय का मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने तब आलोचना की थी।
वाजपेयी का जीवन परिचय
• अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। वे हिंदी के कवि, पत्रकार, राजनीतिज्ञ एवं प्रखर वक्ता थे।
• वे आजीवन अविवाहित रहे, इस कारण उन्हें भीष्म पितामह के रूप में भी जाना गया।
• उन्होनें महात्मा गांधी के 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश की है।
• 1947 में वे पंडित दीनदयाल उपाध्याय के समाचार पत्रों राष्ट्रधर्म, पांचजन्य, स्वदेश और वीर अर्जुन में पत्रकार के तौर पर कार्य किया।
• 1951 में वे श्यामा प्रसाद मुखर्जी से प्रभावित होकर भारतीय जन संघ में शामिल हो गए। जहां वे 1968 से 1973 तक जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे।
• वाजपेयी 1952 ई. में पहली बार लोकसभा के लिए चुनाव लड़े परंतु सफलता नहीं मिली। इसके पश्चात 1957 ई. में वे उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल कर पहली बार लोकसभा में पहुंचे।
• प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार में वे 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे और विदेशों में भारत की मजबूत छवि बनाई।
• अटल बिहारी बाजपेयी पहले ऐसे भारतीय विदेश मंत्री थे। जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित महसूस करवाया था।

• 1980 में उन्होंने जनता पार्टी से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। और जब 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी के स्थापना हुई। तब वे BJP के पहले अध्यक्ष के रूप में चुने गए। वे दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
• वे 1996 में पहली बार भारत के प्रधानमंत्री बने। इसके बाद में 1998 में दूसरी बार प्रधानमंत्री चुने गए। तत्पश्चात मध्यावधि चुनाव के पश्चात 19 अक्टूबर 1999 को तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और 2004 तक रहे। कांग्रेस पार्टी के बाद वे पहले ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। जिन्होंने 5 साल तक का कार्यकाल पूरा किया हो।
• वे एक सांसद के रूप में 1994 में “सर्वश्रेष्ठ सांसद” के रूप में पंडित गोविंद बल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित हुए। उन्हें वर्ष 2015 ई. में देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से भी सम्मानित किया गया। इससे पूर्व 1994 ई. में दूसरे नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
प्रधानमंत्री के रूप वाजपेयी के महत्वपूर्ण कार्य
अटल बिहारी वाजपेयी भारत में तीन बार प्रधानमंत्री बनें। पहली बार 16 मई 1996 ई. को प्रधानमंत्री बने और मात्र 13 दिन ही रह पाए। क्योंकि उन्हें दूसरे दलों ने समर्थन नहीं दिया। दूसरी बात यह 19 मार्च 1998 को तथा तीसरी बार 19 अक्टूबर 1999 को प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए। और 22 मार्च 2004 तक प्रधानमंत्री बने रहे। अटल विहारी बाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने कई महत्वपूर्ण कार्य किये।
• भारत को परमाणु सम्पन्न बनाया:- अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 13 और 11 मई 1998 को पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण कर, भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश के रूप में घोषित किया। यह सब इतनी गोपनीयता से किया गया था कि अति विकसित जासूसी उपग्रह व तकनीकी से संपन्न पश्चिमी देशों को इसकी भनक तक नहीं लगी। हालांकि इस परीक्षण के बाद भारत को अनेक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा था। लेकिन बाजपेयी सरकार ने सबका दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए, आर्थिक विकास की ऊंचाइयों को छुआ। बतातें चलें कि पहली बार 1974 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी तब परमाणु परीक्षण किया गया था।
पोखरण में परमाणु परीक्षण-2 के बाद वाजपेयी के शब्द थे “हमने पोखरण -2 किसी आत्मश्लाघा के लिए नहीं किया था। किसी पुरुषार्थ के प्रकटीकरण के लिए भी नहीं किया था। वह देश के आत्मरक्षा हेतु था।”
– अटल विहारी वाजपेयी
• पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए पहल:- 19 फरवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा की शुरूआत की। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री वाजपेयी प्रथम यात्री के रूप में पाकिस्तान की यात्रा कर नवाज शरीफ से मुलाकात की। और भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी संबंधों में एक नई शुरुआत की।
• कारगिल युद्ध में जीत:- इधर प्रधानमंत्री बाजपेयी पाकिस्तान से मधुर संबंध की वकालत कर रहे थे। और उधर पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ की सह पर पाकिस्तानी सेना व आतंकवादी कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। वाजपेयी सरकार ने पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन न करने की अंतरराष्ट्रीय सलाह का सम्मान करते हुए, धैर्य पूर्वक कार्रवाई कर भारतीय क्षेत्र को मुक्त कराया। इस युद्ध में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण भारतीय सेना को भी बहुत बड़ा नुकसान हुआ। उधर, पाकिस्तान के साथ शुरू किए गए संबंध एक बार पुन: खराब हो गये।
• स्वर्णिम चतुर्भुज महाराजमार्ग परियोजना:- भारत वर्ष के चारों कोनों को जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री वाजपेयी की महत्वकांक्षी योजना स्वर्णिम चतुर्भुज महा राजमार्ग परियोजना की शुरुआत की गई। इसके अंतर्गत दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई को राज महामार्गो से जोड़ा गया। इन महा मार्गों को चार और छह लाइनों में बदला गया। इसके साथ ही उत्तर दक्षिण और पूरब पश्चिम गलियारे की भी शुरुआत की गई।

• कावेरी जल विवाद का निपटारा:- वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में बहुचर्चित कावेरी नदी जल विवाद का निपटारा हुआ।
• पुरानी पेंशन समाप्त कर नई पेंशन योजना की शुरूआत:- सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को समाप्त कर नई पेंशन योजना की शुरुआत की। हालांकि सांसदों और विधायकों के लिए पुरानी पेंशन की व्यवस्था ही लागू रखी गई। जिससे कर्मचारियों में रोष उत्पन्न हुआ। इससे माना गया कि कर्मचारियों के भविष्य संकट में है। क्योंकि नई पेंशन स्कीम शेयर बाजार पर आधारित है। इस नई पेंशन स्कीम का विरोध पूरे देश में कर्मचारी अभी भी कर रहे हैं। कर्मचारियों का कहना है कि यदि वाकई में नई पेंशन स्कीम इतनी अच्छी है तो फिर सांसदों और विधायकों को पुरानी पेंशन के जगह नई पेंशन योजना में लाया जाना चाहिए।
• इसके अलावा वाजपेयी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाहकार समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति का भी गठन किया।
पुरस्कार
• 1992 में पद्म विभूषण
• 1993 में डी लिट (कानपुर विश्व विद्यालय से)
• 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार
• 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार
• 2015 में डी लिट (मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय से)
• 2015 में फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवाॅर्ड, बांग्लादेश सरकार द्वारा)
• 2015 में भारत रत्न पुरस्कार
रचनाकार के रूप में वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी एक राजनीतिज्ञ के साथ-साथ एक कवि भी थे। उनकी प्रसिद्ध रचना “मेरी इक्यावन कविताएं” एक प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ है। इसके अलावे उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाएं यहा देख सकते हैं।
• रग-रग हिन्दू मेरा परिचय
• मृत्यू या हत्या
• अमर बलिदान (लोकसभा में वाजपेयी जी के वक्ताओं का संग्रह)
• कैदी कविराय की कूण्डलियां
• संसद में तीन दशक
• अमर आग है
• कुछ लेख: कुछ भाषण
• राजनीति की रपटीली राहें
• सेक्युलर वाद
• बिन्दु बिन्दु विचार इत्यादि।
कुछ प्रसिद्ध कविताएं
“कदम मिलाकर चलना होगा”
बाधाएं आती हैं आएं
प्रलय की घोर घटाएं
पांवों के नीचे अंगारे
सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं
निज हाथों में हंसते-हंसते
आग लगाकर जलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
हास्य रूदन में तूफानों में
अगर असंख्यक बलिदानों में
उद्यानों में वीरानों में
अपमानों में सम्मानों में
उन्नत मस्तक उभरा सीना
पीड़ाओं में पटना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
“आओ फिर से दिया जलाएं”
आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतर मन का नेह निचोड़े
बुझी हुई बाती सुलगाएं
आओ फिर से दिया जलाएं
“हार नहीं मानूंगा”
क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत में
कर्तव्य पथ पर जो भी मिला
यह भी सही वो भी सही
वरदान नहीं मांगूंगा
हो कुछ पर हार नहीं मानूंगा
“गीत नया गाता हूं”
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिम की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा
रार नई ठानूंगा
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं
न मैं चुप हूं न गाता हूं
सवेरा है मगर पुरब दिशा में
घिर रहे बादल
रूई से धुंधलके में
मील के पत्थर पड़े घायल
ठिठके पांव
ओझल गांव
जड़ता है न गतिशीलता
स्वयं को दूसरों की दृष्टि से
मैं देख पाता हूं
न मैं चुप हूं न गाता हूं
मृत्यु
अटल विहारी वाजपेयी को 2009 में एक दौरा पड़ा था। जिसके बाद वे बोलने में अक्षम हो गये थे। उन्हें 11 जून 1918 को किडनी में संक्रमण और कुछ अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था। जहां 16 अगस्त 2018 को शाम 5:05 को उनका निधन हो गया। आर्मी सिर निद्रा में सो गए। उन्हें अगले दिन 17 अगस्त को हिंदू रीति रिवाज के अनुसार उनकी दत्तक पुत्री नमिता कौल भट्टाचार्य ने उन्हें मुखाग्नि दी थी। उनका समाधि स्थल राजघाट के पास शांतिवन में बने स्मृति स्थल में बनाया गया है।
ऐसे महान् सपूत को हमारा शत् शत् नमन्
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सुशासन दिवस
प्रस्तुतीकरण
www.gyantarang.com
संकलन
महेंद्र प्रसाद दांगी















