खोरठा कविता | khortha kavita | रूसल बदरी | नावा जुइग आ गेलइ | खोरठा कबिता
खोरठा भासा झारखंडेक एगो बड़ छेतरीय भासा/भाखा हे। खोरठा भाखा के साहित समरिध हे। ढेरो रचना भेंटा हे आर अभियो हो रहल हे। हिआं कइगो खोरठा कबिता पोस्ट करल जा रहल हे। इ खोरठा कबिता परकिति, झारखंडेक संसकिरती, समाजिकता, कल कारखाना आरो – आरो रूप पर हे।
कबिता न. 1.
रूसल बदरी
आव बदरी आव रे
झमर-झमर बरस रे
लोटा दतुन देबउ रे
हमरे दुवरे बरस रे।
जोंढ़रा लगवे आस रे
धान जोहे बाट रे
नदी-पोखर पिआस रे
पहार-टुंगरी तरसे रे
आव बदरी आव रे
झमर-झमर बरस रे।
खेत-किआरी सुख रे
टांड-टिकुल बंजर रे
बोन पहार उजड़ल रे
गली-खोरी सुन रे
आव बदरी आव रे
झमर-झमर बरस रे
टर-टर करे बेंग रे
फर-फर करे चिरइ रे
झुमर खेले मोर रे
ओटन-टोटन करे मानुस रे
आव बदरी आव रे
झमर-झमर बरस रे।
बितल जाए दिन रे
आसाढ़-सावन मास रे
कुहकल जाइ किसान रे
जीव छोइड़ला आस रे
तइयो नाञ् बरसे बदरी रे।
आव बदरी आव रे
झमर-झमर बरस रे।
कोइ जाए पंजाब रे
कोइ जाए गुजरात रे
कोइ करे नउकरी रे
कोइ करे चाकरी रे
तइयो नाञ् बरसे बदरी रे।
आव बदरी आव रे
झमर-झमर बरस रे।
काहे रूसले बदरी रे
कुइआं-तालाब सुख लइ रे
किसानेक तोड़ले कमर रे
अब फंदा पर झुलतउ किसान रे
तइयो नाञ बरसे बदइरिया रे।
आव बदरी आव रे
झमर-झमर बरस रे।
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उखरवइया (लेखक)
महेंद्र प्रसाद दांगी, शिक्षक
एम ए भूगोल, एम ए खोरठा
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कबिता न. 2.
नावा जुइग आ गेलइ
नावा जुइग आ गेलइ
टाटा-हटिया बस गेलइ
बोन पहार उजर गेलइ
कल-कारखाना लग गेलइ।
बाहरेक लोग आ गेला
जनसंख्या बढ़ा देलका
हिआंक संसाधन छीन लेलका
गांव घर उजाड़ देलका।
नावा जुइग आ गेलइ
टाटा-हटिया बस गेलइ।
नदी-नाला सील करलका
टांड-टिकुल छीन लेलका
हाथी-बाघ मार देलका
हमनिक घर से निकाल देलका।
नावा जुइग आ गेलइ
टाटा-हटिया बस गेलइ।
कोयला लोहा निकाल लेलका
झारखंड के कंगाल करलका
रोजगार सभे गटक गेला
नेता अफसर पेट भर लेलका।
नावा जुइग आ गेलइ
टाटा-हटिया बस गेलइ।
संसकिरति-सभियता छीन लेलका
रीति-रिवाज मिटा देलका
छेड़खानी बढ़ा देलका
गुंडा राज पनपा देलका।
नावा जुइग आ गेलइ
टाटा-हटिया बस गेलइ
बोन पहार उजर गेलइ
कल-कारखाना लग गेलइ।
नावा जुइग आ गेलइ
टाटा-हटिया बस गेलइ।
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उखरवइया (लेखक)
महेंद्र प्रसाद दांगी, शिक्षक
एम ए भूगोल, एम ए खोरठा
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कविता न. 3
हमर डुबल आस
झारखंडेक जनम भेई गेलइ
हिंआक लोकेक आस बढ़ गेलइ।
अब बिकासेक लहर चलतइ
झारखंडेक मान – मरियादा बढ़तइ।
मराण्डी मुख्यमंत्री बन गेलइ
सभीन लोक मन गददगद भेइ गेलइ
खतिआन अब लागू हो जइतइ
अही सोंचेक मन हमर हुलस गेलइ।
झारखंडेक जनम भेई गेलइ
हिंआक लोकेक आस बढ़ गेलइ।
बोन – झार हिंआक लोकेक होतई
खान – खनिज झारखंडी निकालतई
अब नउकरी – चाकरी लग जतइय
अफसर – नेता झारखंडी बनतई।
झारखंडेक जनम भेई गेलइ
हिंआक लोकेक आस बढ़ गेलइ।
खिचड़ी पको लगलइ
तोड़ – जोड चलो लगलइ
मोल – भाव हवे लगलइ
निर्दलीय सरकार बनो लगलइ।
झारखंडेक जनम भेल बीत गेलइ
हिंआक लोकेक मन अब डरो लगलइ।
बीस बछर बीत गेलइ
कइगो मुख्यमंत्री आ गेलइ
दुख – अशांति फैइल गेलइ
लुट-पाट हवे लगलइ।
झारखंडेक जनम भेल बीत गेलइ
हिंआक लोकेक मन अब डरो लगलइ।
जे पी एस सी घोटाला हवो लगलइ
नउकरी सब बिक गेलइ
नेता-अफसर माल भरो लगलइ
गरीब – गुरबाक घरति लूटो लगलइ।
झारखंडेक जनम भेल बीत गेलइ
हिंआक लोकेक मनक अब डरो लगलइ।
नियोजन नीति गड़बडाई गेलइ
खतिआन खारिज भेई गेलइ
नउकरी पर बहरियनेक कब्जा भेई गेलइ
झारखंडेक बेटा फेंका गेलइ।
झारखंडेक जनम भेल बीत गेलइ
हिंआक लोकेक मनक अब डरो लगलइ।
झारखंडें भ्रष्टाचार फैइल गेलइ
आस हमर डुब गेलइ
नेता – अफसर लूट लेलका
गरीब – गुरबाक चुस लेलका।
झारखंडेक जनम भेल बीत गेलइ
आस हमर डुब गेलइ।
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उखरवइया (लेखक)
महेंद्र प्रसाद दांगी, शिक्षक
एम ए भूगोल, एम ए खोरठा
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कबिता न. 4
अइले बसंत झूइम के
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परास फूल फूले लागल,
सरइ बोनें झूमे लागल।
पिपइर डाइरें कोइल कारी,
भिनसरे गीत गावे लागल।
महुवा गाछें बैठ चिरइं,
कहे घुइम-घुइम के।
अइले बसंत झूइम के।।
महुवा खोंचाइ गेल,
आम डारी मेंजुर भेल।
लाले लाल सिमइर फूल,
सइरसा पिअर फूइल गेल।
नदिक धारें सीतल हवा,
कहे चरन चूइम के।
अइले बसंत झूइम के।।
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उखवइया (लेखक)
युगल किशोर पंडित
शिक्षक
गिरिडीह, झारखंड
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