खोरठा गीतकार विनय तिवारी एवं मैं हूँ झारखण्ड के लेखक देव कुमार ने कील विश्वविद्यालय जर्मनी डॉ. नेत्रा पी पौडयाल से की मुलाकात
*खोरठा भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने पर हुई चर्चा*
राँची — खोरठा भाषा को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने के लिए जर्मनी के कील विश्वविद्यालय के शोध विद्वान डॉ. नेत्रा पी. पौडयाल से खोरठा के चर्चित साहित्यकार एवं गीतकार विनय तिवारी नें शिष्टाचार मुलाकात की। इस दौरान विनय तिवारी ने अपनी कृति “रवि रथी” एवं देव कुमार ने ” मैं हूँ झारखण्ड ” पुस्तक भेंट की। इस मुलाकात में खोरठा भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने और विश्वविद्यालय स्तर पर इसके पाठ्यक्रम में संशोधन कर खोरठा भाषा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने संबंधित चर्चा हुई।
“खोरठा भाषा झारखण्ड की प्रमुख भाषा है, और इसका वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित होना आवश्यक है। हमें उम्मीद है कि इस संशोधन से खोरठा भाषा को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिलेगी। इससे नए रोजगार का सृजन भी हो सकेगा।”-*विनय तिवारी, खोरठा गीतकार*
“खोरठा भाषा का वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित होना एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। हम झारखण्ड राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों में खोरठा भाषा के पाठ्यक्रम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने के लिए हर संभव सहयोग करने के लिए तैयार हैं।”- *डॉ. नेत्रा पी. पौडयाल, शोध विद्वान, कील विश्वविद्यालय, जर्मनी*
इस मुलाकात में विस्तार पूर्वक यह चर्चा हुई कि खोरठा भाषा के पाठ्यक्रम में लिंग्विस्टिक्स (भाषाविज्ञान) को शामिल करने से खोरठा भाषा को वैश्विक स्तर पर और अधिक प्रतिष्ठित किया जा सकता है। यह कदम खोरठा भाषा के अध्ययन और अनुसंधान को बढ़ावा देगा और इसे वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण भाषा के रूप में स्थापित करेगा।
इस मुलाकात से खोरठा भाषा के भविष्य को लेकर नए अवसरों की उम्मीद जगी है। यह कदम न केवल खोरठा भाषा के विकास में मदद करेगा, बल्कि झारखण्ड की सांस्कृतिक विरासत को भी बढ़ावा देगा।
खोरठा भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने से कई लाभ हो सकते हैं जो इस प्रकार हैं-
*सरकारी मान्यता*: आठवीं अनुसूची में शामिल होने से खोरठा भाषा को सरकारी मान्यता मिलेगी, जिससे इसका महत्व और प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
*शिक्षा में प्रयोग*: खोरठा भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने से इसका प्रयोग शिक्षा में भी हो सकेगा, जिससे झारखंड के छात्रों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा ।
*सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण*: खोरठा भाषा झारखंड की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसको आठवीं अनुसूची में शामिल करने से इसका संरक्षण हो सकेगा और यह आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहेगी।
*रोजगार के अवसर*: खोरठा भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने से इसके प्रयोग से जुड़े रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे, जैसे कि शिक्षक, अनुवादक और लेखक


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