गिद्धौर में दुर्गापूजा | History of Durgapuja in Gidhour

गिद्धौर में दुर्गापूजा का इतिहास | History of Durgapuja in Gidhour

गिद्धौर में दुर्गापूजा का इतिहास बड़ा ही पुराना रहा है। ऐसा माना जाता है कि आजादी के समय 1948 के आस-पास में गिद्धौर में फोटो पर दुर्गा पूजा मनाने की शुरुआत हुई। तत्पश्चात 6-7 वर्षों के बाद 1954 में मूर्ति बनाकर दुर्गा पूजा प्रारंभ किया गया। गिद्धौर में दुर्गा पूजा चतरा जिले में आकर्षण का केंद्र रहता है। बेहद आकर्षक पंडाल, मन को भांती मूर्तियां, रात्री में चकाचौंध करती लाइटनिंग सिस्टम, सब के सब गिद्धौर के दुर्गा पूजा को खास बनाते हैं इस पोस्ट के जरिए गिद्धौर का दुर्गा पूजा का इतिहास और वर्तमान के बारे में जानेगें।

इस पोस्ट में शामिल है

☆ गिद्धौर में दुर्गापूजा की शुरुआत
☆ गिद्धौर में मुर्ति निर्माण की शुरुआत
गिद्धौर में दुर्गापूजा समिति के अध्यक्ष
गिद्धौर में नौटंक/ड्रामा की शुरुआत
गिद्धौर में पंडाल निर्माण की शुरुआत
गिद्धौर में डांडिया-गरबा नृत्य की शुरुआत
गिद्धौर में चलंत एवं बोलती मूर्तियों की शुरुआत
गिद्धौर में प्रकाश व्यवस्था की शुरुआत
गिद्धौर में कलश स्थापना
गिद्धौर में कलश विसर्जन
☆ गिद्धौर में मेला
☆ गिद्धौर में मुर्ति विसर्जन

☆ गिद्धौर में दुर्गापूजा की शुरुआत:-

गिद्धौर में दुर्गा पूजा का इतिहास बड़ा ही पुराना है। ऐसा माना जाता है कि यहां आजादी के आसपास 1948 ई• में दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई, तब दुर्गा पूजा फोटो पर होता था। 6-7 वर्षों के पश्चात मूर्ति निर्माण कर दुर्गा पूजा की परंपरा शुरू हुई।

☆ गिद्धौर में मुर्ति निर्माण की शुरुआत:-

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मां दूर्गे की प्रतिमा

गिद्धौर में दुर्गा पूजा के दौरान मूर्ति बनाने का कार्य आजादी के बाद 1954 ई• से माना जाता है। जब इटखोरी के “राम अवतार पंडित” ने गिद्धौर आकर मूर्तियों का निर्माण का कार्य शुरू किया था। 10-12 वर्षों तक उन्होंने यह कार्य किया। उसके पश्चात मुर्ति निर्माण कार्य चतरा के कैलाश प्रजापति ने किया। कुछ वर्षों के बाद 1977-78 ई• से चतरा के ही “गोविंद प्रजापति और रामदेव प्रजापति” ने गिद्धौर में दुर्गा पूजा के दौरान मूर्ति निर्माण का कार्य किया। जो अब तक अनवरत जारी है। हालांकि 80 के दशक के शुरुआत में गिद्धौर के महान कलाकार स्वर्गीय जानकी राणा ने भी कुछ वर्ष मूर्तियां बनाई थी।

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मूर्तिकार रामदेव प्रजापति

☆ गिद्धौर में दुर्गापूजा समिति के अध्यक्ष

प्रत्येक वर्ष दुर्गा पूजा के एक – डेढ़ माह पूर्व दुर्गा पूजा के सफल संचालन हेतु दुर्गा पूजा समिति का गठन किया जाता है। ये समिति ही दुर्गा पूजा को सफलता पूर्वक सम्पन्न करती है। यहां कुछ विगत वर्ष के दूर्गा पूजा अध्यक्ष की सूची देख सकते हैं-

वर्ष 2010:- श्री राजेश कुमार दांगी (राजू), ठाकुरबाड़ी टोला
वर्ष 2011:- श्रीमती निर्मला देवी, उपर टोला (मुखिया, गिद्धौर)
वर्ष 2012:- श्री राजेश कुमार दांगी (ठाकुरबाड़ी टोला)
वर्ष 2013:- श्री संजय कु• दांगी (हेठटोला)
वर्ष 2014:- श्री चरित्र दांगी (सिमर टोला)
वर्ष 2015:- श्री बसंत दांगी (सिमर टोला)
वर्ष 2016:- श्री राजेश कुमार दांगी (राजू), ठाकुरबाड़ी टोला (मुखिया, गिद्धौर)
वर्ष 2017:- श्री सत्येन्द्र कुशवाहा, रामनगर (कटघरा)
वर्ष 2018:- श्री सुरेन्द्र दांगी, पाण्डेय टोला (गिद्धौर)
वर्ष 2019:- श्री दसरथ दांगी, हेठटोला
वर्ष 2020:- श्री दसरथ दांगी, हेठटोला
वर्ष 2021:- श्री संजय कुमार दांगी, उपर टोला
वर्ष 2022:- श्री मुकेश कुमार, उपर टोला
वर्ष 2023:-
वर्ष 2024:-
वर्ष 2025:-

☆ गिद्धौर दूर्गापूजा समिति अध्यक्ष का विवरण

वर्ष 2010:- श्री राजेश कुमार दांगी (राजू), ठाकुरबाड़ी टोला

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राजेश कुमार दांगी (राजू)

वर्ष 2010 में पंचायत चुनाव से पूर्व दूर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष के रूप में राजेश कुमार दांगी (राजू) चुने गये. लोगों का मानना है कि पहली बार उन्हीं के कार्यकाल 2010 में ही गिद्धौर में दांडिया-गरबा नृत्य प्रस्तुत किया गया था. जब वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव में राजेश कुमार दांगी (राजू) ने मुखिया पद पर जीत हासिल की तब ग्राम वासियों ने उन्हें पुन: दोबारा दूर्गा पूजा समिति का अध्यक्ष चुना. उन्होंने पुन: शानदार तरीके से इस कार्य का निर्वहन किया.

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दूर्गा पंडाल, वर्ष:- 2011

• वर्ष 2011:- श्रीमती निर्मला देवी, उपर टोला (मुखिया, गिद्धौर)

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निर्मला देवी

वर्ष 2011 में उपर टोला निवासी और उस समय की वर्तमान तत्कालीन मुखिया निर्मला देवी पति श्री उपेन्द्र दांगी दूर्गापूजा समिति की अध्यक्ष बनायी गयी. बहुत लंबे अरसे के बाद पंचायत चुनाव 2010 में हुआ था और इस चुनाव में निर्मला देवी ने विजय हासिल की थी. अत: चुनाव उपरांत गिद्धौर की ग्रामीण जनता ने उन्हें दूर्गापूजा समिति का अध्यक्ष चुना. जिसका उन्होने शानदार तरीके से किया.
वर्ष 2012:- श्री राजेश कुमार दांगी (ठाकुरबाड़ी टोला)
वर्ष 2013:- श्री संजय कु• दांगी (हेठटोला)

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गिद्धौर हेठटोला निवासी संजय कुमार दांगी (पिता श्री दरसहाय महतो) को वर्ष 2013 का गिद्धौर दूर्गा पूजा समिति का अध्यक्ष चुना गया. इन्होंने शानदार तरीके से पूजा संपन्न करवाया.
वर्ष 2014:- श्री चरित्र दांगी (सिमर टोला)
वर्ष 2015:- श्री बसंत दांगी (सिमर टोला)


वर्ष 2017:- श्री सत्येन्द्र कुशवाहा, रामनगर (कटघरा)

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राम नगर कटघरा निवासी समाज सेवी सत्येन्द्र दांगी (सत्येन्द्र कुशवाहा) वर्ष 2017 में दूर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष चुने गये. इनके कार्यकाल में बेहतरीन दूर्गा पंडाल का निर्माण किया गया.
वर्ष 2018:- श्री सुरेन्द्र दांगी, पाण्डेय टोला (गिद्धौर)
वर्ष 2019:- श्री दसरथ दांगी, हेठटोला

गिद्धौर हेठटोला निवासी दसरथ दांगी 2019 और 2020 में गिद्धौर दूर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष चुने गये.

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वर्ष 2021:- श्री संजय कुमार दांगी, उपर टोला

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संजय कुमार दांगी उपर टोला (सिमर मोहल्ला) निवासी गिद्धौर दूर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष चुने गये.
वर्ष 2022:- श्री मुकेश कुमार, उपर टोला

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उपर टोला निवासी मुकेश कुमार को वर्ष 2022 के दूर्गा पूजा समिति का अध्यक्ष बनाया गया. वे इससे पहले छठ पूजा समिति के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. इन्होंने बेहतरीन नेतृत्व का परिचय दिया और एक शानदार पंडाल का निर्माण करवाया.

☆ गिद्धौर में नौटंक/ड्रामा की शुरुआत :-

गिद्धौर में नौटंकी/ड्रामा की शुरुआत आज से तकरीबन 60 वर्ष पूर्व 1957-58 से माना जाता है। जब महादेव पाण्डेय, धर्मदेव दांगी, महेश पाण्डेय, नेमधारी पाण्डेय, कमल पाण्डेय, चमन पाण्डेय, गंदौरी पाण्डेय, वासुदेव मास्टर, जगदीश महतो, ताहिर मियां आदि जैसे कलाकार हुआ करते थे। ये पहली पीढ़ी के कलाकार थे, तब निर्देशन की जिम्मेदारी वनरक्षी “शिव कुमार सिंह” संभालते थे। वे मुख्य रूप से दैहर के निवासी थे। तब वे गिद्धौर में वन रक्षी के तौर पर पदस्थापित थे। शिवकुमार सिंह के बाद निर्देशन की जिम्मेवारी “महादेव पाण्डेय” ने संभाली। ध्यान रहे गिद्धौर में पहली बार नौटंकी की शुरुआत हुई तत्पश्चात बाद के वर्षों में ड्रामा खेला गया।

दूसरी पीढ़ी की शुरुआत 70 के दशक में माना जाता है जब ‘डोमन महतो‘ (सिपाही) के निर्देशन में नौटंकी और ड्रामा खेले जाते थे। उस दौर में वासुदेव महतो, राम चरण महतो, भुनेश्वर महतो, मुनीराम दांगी, दर्शन महतो, जगदीश महतो, मथुरा दांगी महादेव महतो जैसे कलाकार हुआ करते थे।

तीसरी पीढ़ी की शुरुआत 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध और 90 के दशक के शुरुआत में माना जाता है। जब सिमर मोहल्ला निवासी “बालकिशुन दांगी” (शिक्षक) ने निर्देशन की जिम्मेदारी संभाली थी। इस पीढ़ी में मुख्य कलाकारों में लखन दांगी, प्रदीप दांगी, जुगेश्वर दांगी, धर्मदेव दांगी, लखन दांगी (कटघरा), ब्रहम्देव दांगी, तुलसी दांगी, बैजनाथ दांगी, परमेश्वर दांगी, महादेव दांगी, कमलेश दांगी, रविन्द्र कुमार, नरेश पासवान आदि थे। हालांकि कुछ वर्षों बाद तीसरी पीढ़ी में फुट पड़ गयी और गिद्धौर में ड्रामा पार्टी का विभाजन चार टोले के रूप में हो गया। ऊपर टोला, हेठ टोला, सिमर टोला और ठाकुरबाड़ी टोला के रूप में। उनमें से हेठटोला भाग का निर्देशन बालेश्वर प्रसाद कुशवाहा ने किया था।

चौथी पीढ़ी की शुरुआत 21 वी शताब्दी के पूर्वार्ध में मानी जाती है।

वर्ष 2015 से पांचवी पीढ़ी की शुरुआत हो गयी है। हालांकि अब  टेलिविजन, कंप्यूटर, लेपटॉप, मोबाइल, इंटरनेट के इस युग में नाटक या नौटंकी में महत्व कम होता जा रहा है।

☆ गिद्धौर में पंडाल निर्माण की शुरुआत :-

भव्य और आकर्षक पंडाल गिद्धौर दुर्गा पूजा को खास बनाता है। इसी कारण से चतरा जिले में गिद्धौर के दुर्गा पूजा की एक अलग पहचान है। गिद्धौर में 15 वर्षों से भी अधिक समय से पंडाल निर्माण कार्य हो रहा है। विगत कुछ वर्षों के पंडाल यहां देख सकते हैं।

वर्ष:- 2016 का पंडाल

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वर्ष:- 2017 का पंडाल

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वर्ष:- 2018 का पंडाल

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वर्ष:- 2019 का पंडाल

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वर्ष :- 2020 का पंडाल

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वर्ष:- 2021 का पंडाल

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वर्ष:- 2022 का पंडाल

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वर्ष:- 2015 से 2021 के बीच दुर्गा पंडाल

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☆ गिद्धौर में डांडिया-गरबा नृत्य की शुरुआत

गरबा-डांडिया नृत्य मूलतः गुजरात और महाराष्ट्र राज्य संबंधित है। जो समय के साथ भारत के अन्य भागों में फैलता गया। गिद्धौर में भी पहली बार वर्ष 2010 में इसे शुरू किया गया। जब ठाकुरबारी टोला निवासी राजेश कुमार दांगी (राजू) पूजा समिति के अध्यक्ष थे। “गरबा-डांडिया” नृत्य के दो भाग हैं एक ‘गरबा‘ और दूसरा ‘डांडिया‘। गरबा नृत्य सबसे पहले किया जाता है इसमें ताली बजाने के लिए केवल हथेली का प्रयोग करते हैं। इस क्रिया से प्रभु की आराधना की जाती है। जबकि दूसरे भाग में डांडिया खेली जाती है, डांडिया के लिए दोनों हाथों में दो डंडे होते हैं।

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गिद्धौर में गरबा-डांडिया शुरू करने का श्रेय “अनिल कुमार दांगी” तथा उसके सहयोगियों को जाता है। अनिल कुमार दांगी के मन में ही पहली बार गरबा डांडिया शुरू करने का विचार आया था। गरबा डांडिया नृत्य में शामिल होने वाले कलाकारों में शामिल थे अनिल कुमार दांगी, संतोष दांगी (जय गुरुदेव), विजय दांगी, बसंत दांगी, महेश राणा, प्रकाश दांगी, कमलेश दांगी, लक्ष्मण दांगी, यदुनंदन पाण्डेय, भुनेश्वर दांगी, दीपेंद्र सोनी, धनेश्वर दांगी, प्रेम राणा, कपिल राणा, संदीप राणा इत्यादि।

☆ गिद्धौर में चलंत एवं बोलती मूर्तियों की शुरुआत

गिद्धौर में दुर्गा पूजा के दौरान चलंत और बोलती मूर्ति की शुरुआत वर्ष 2007 से मान जाती है। उस समय दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष राजेश कुमार दांगी (ठाकुरबाडी टोला, निवासी) थे। दुर्गा माता, महिषासुर और अन्य देवताओं की मूर्तियां चलती है बोलती हुई प्रतीत होती है। जो लोगों के बीच काफी आकर्षण पैदा करती है।

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☆ गिद्धौर में प्रकाश व्यवस्था की शुरुआत

गिद्धौर में दुर्गा पूजा के दौरान दुर्गा पूजा समिति द्वारा जनरेटर के माध्यम से प्रकाश की व्यवस्था की शुरुआत वर्ष 2007 से मानी जाती है। इससे पूर्व पेट्रोमैक्स, लैम्प या लालटेन से प्रकाश किया जाता था। ड्रामा या नौटंकी के दौरान पेट्रोमैक्स के जरिए प्रकाश की व्यवस्था होती थी। समय-समय पर पेट्रोमैक्स में हवा और तेल भरी जाती थी। जो काफी आकर्षण पैदा करता था।

☆ गिद्धौर में कलश स्थापना

गिद्धौर में अन्य की भांति आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पहली तिथि को कलश स्थापित की जाती है। इसी दिन से शारदीय नवरात्र प्रारंभ होता है। गिद्धौर में दुर्गा पूजा के दौरान अब सामूहिक रूप से कलश लेने की प्रथा प्रचलन में है। परंतु यह प्रथा पहले नहीं था। 10 – 15 वर्ष पूर्व कुछ लोगों के द्वारा ही खास करके दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष द्वारा ही कलश लिया जाता था। पर बाद के वर्षों में सामूहिक रूप से कलश लेने की प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ। जो अब तक अनवरत जारी है। सभी श्रद्धालू मिट्टी के कलश लेकर गिद्धौर के हेठटोला मोहल्ला स्थित रामसागर तालाब से जल उठाकर ठाकुरबाड़ी स्थित दुर्गा मंडप में कलश स्थापित की जाती है। परंपरा के तहत 500 से अधिक लोग कलश उठाते है। नवमी या दशमी तिथि को कलश रामसागर तालाब में ही विसर्जन किया जाता है।

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☆ गिद्धौर में मेला

दशमी तिथि को मुख्य चौक पर मेला लगता है। इस मेले में जिलेबी सबसे पसंदीदा मिठ्ठाई होता है। बच्चे मेले में मिठ्ठाई और खिलौने खरीदते हैं। महिलाएं भी मेले में शाॅपिंग करती है।

☆ गिद्धौर में मुर्ति विसर्जन

अमुमन दशमी तिथि को मुर्ति विसर्जन किया जाता है। मुर्ति विसर्जन रामसागर तालाब में होता है। लोग जुलुश की शक्ल में आते हैं और मां अंबे को भावभीनी विदाई देते है।
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