नेतलाल यादव का जीवन परिचय | Netlal Yadav ki life Story in hindi
बहुमुखी प्रतिभा के धनी हिंदी के उभरते हुए युवा रचनाकार कवि नेतलाल प्रसाद यादव किसी परिचय के मोहताज नहीं! उनकी ख्याति झारखंड ही नहीं बल्कि समूचे भारत में फैली हुई है. नेतलाल जी की रचनाओं ने पाठकों के दिलों में ऐसा जादू किया है कि मानो समंदर की सारी बुंदे गागर में समा गयी हो. हिन्दी के क्षेत्र में उनके इन्ही उल्लेखनीय योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया गया है. नेतलाल जी की रचनाएँ केवल हिन्दी ही नहीं बल्कि खोरठा में भी छपी है. उनकी छवि एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी रही है. गरीबी और अभावों से संघर्ष करते हुए नेतलाल जी ने नई-नई ऊंचाईयों को छुआ. इस आलेख के जरिए हिंदी के युवा रचनाकार नेतलाल यादव का जीवन परिचय जानेंगे.
विषय वस्तु
• पारिवारिक जीवन
• शिक्षा
• हिन्दी के प्रति रूझान
• कला के क्षेत्र में रूची
• शिक्षक के तौर पर विभिन्न विद्यालयों में कार्य
• हिन्दी के क्षेत्र में योगदान
• हिंदी की कुछ प्रसिद्ध कविताएं
• खोरठा के क्षेत्र में योगदान
• खोरठा की कुछ प्रसिद्ध कविताएं
• साहित्य प्रकाशन
• विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं रचना का प्रकाशन
• सम्मान एवं पुरस्कार
• भ्रमण और पाक कला में विशेष रूची
• फोटो गैलरी
पारिवारिक जीवन
पुरा नाम:- नेतलाल प्रसाद यादव
उपनाम:- नरेश प्रसाद
साहित्यिक नाम:- नेतलाल यादव
जन्म:- 05-01-1978
पता:- ग्राम- नावाडीह, पोस्ट- चरघरा, प्रखण्ड+थाना- जमुआ, जिला- गिरिडीह (झारखंड)
नेतलाल यादव का जन्म झारखण्ड के गिरिडीह जिले के जमुआ प्रखण्ड के नावाडीह गांव में एक निर्धन परिवार में हुआ था. इनके पिता सोमर महतो ने ऑटो चलाकर इनका लालन-पालन किया. इनकी मां का नाम टीनू देवी हैं जो एक गृहिणी हैं. माता-पिता की इकलौते पुत्र नेतलाल यादव जी का परिवार प्रारंभ से ही कष्टों से गुजरा है. इनके भाई-बहनें बचपन में ही मौत के आगोश में समा गए. इनका जन्म भी 7 माह में हुआ था. जन्म लेने के बाद इनके परिवार वाले सतमास जानकर आशंकित भी थे. पर प्रकृति की लीला ही कुछ और थी. ईश्वर ने नेतलाल जी को धरती पर हिंदी के एक उत्कृष्ट रचनाकार के रूप में भेजा.
नेतलाल यादव ने वर्ष 2002 में मंजू से विवाह किया. शादी के बाद नेतलाल जी ने पत्नी को स्नातक तक की पढ़ाई करवाया. इनकी पत्नी मंजू देवी एक गृहिणी है. इनकी तीन संतानें हैं- ईशा रानी, करण कुमार और वरनीत कुमार.
शिक्षा
नेतलाल यादव की शिक्षा सरकारी विद्यालयों से हुई है, उन्होंने पांचवीं तक की पढ़ाई प्राथमिक विद्यालय नावाडीह से और आठवीं तक की पढ़ाई मध्य विद्यालय चरघरा से की है. नेतलाल जी ने वर्ष 1995 में राजकीयकृत उच्च विद्यालय चरघरा से मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की. वे बचपन में एक कमजोर छात्र के रूप में जाने जाते थे. बचपन में रामानंद सिंह, चंद्रकांत पाण्डेय, सकूर अंसारी जैसे गुरुवों से इन्होंने शिक्षा ग्रहण की.
मैट्रिक की परीक्षा के उपरांत उन्होंने गिरिडीह महाविद्यालय गिरिडीह से विज्ञान विषय से इंटर की परीक्षा दी, लेकिन वे असफल हो गए. इस असफलता ने उन्हें झकझोर कर रख दिया. इसके बाद उन्होंने प्रण लिया कि मेहनत के बल पर वे हर परीक्षा पास करेंगे और वो हर मुकाम हासिल करेंगे जो हर किसी के लिए एक सपना होता है.
तत्पश्चात उन्होंने इंटर में विज्ञान (Science) की पढ़ाई छोड़ दी और पारसनाथ महाविद्यालय डुमरी से कला (Arts) से इंटर की पढ़ाई पूरी की. घर की आर्थिक तंगी और पारिवारिक उथल-पुथल से संघर्ष करते हुए नेतलाल जी ने वर्ष 2001 में गिरिडीह महाविद्यालय, गिरिडीह से हिंदी से स्नातक (B. A.) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की. उस समय हिंदी में प्रथम श्रेणी में परीक्षा पास करने वाले वे इकलौता छात्र थे. गिरिडीह महाविद्यालय, गिरिडीह के प्रोफेसर और हिंदी के बड़े विद्वान डाॅ. अनिल पंडित के संपर्क में आने से इनके हिंदी भाषा में निखार आया.
आर के महिला महाविद्यालय, गिरिडीह की हिंदी की ख्याति लब्ध प्रतिष्ठित लेखिका और प्रोफेसर आरती वर्मा से लगातार संपर्क में रहे. इन्होंने डाॅ. अनिल पंडित और आरती वर्मा से समर्पण भाव से हिंदी की बारिकियों को समझा और सीखा. जिसका परिणाम है कि आज वे “कवि नेतलाल” के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं. उन्होंने वर्ष 2010 में इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) से हिंदी में ही स्नातकोत्तर (M.A.) की डिग्री हासिल की. निजी विद्यालयों में अध्यापन के दौरान उन्होंने शिक्षा में स्नातक (बी.एड.) की डिग्री प्राप्त की.
कला के क्षेत्र में रूची
नेतलाल यादव लगातार सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे. गांव में रामनवमी और दुर्गा पूजा के दौरान वे नाटकों के मंचन में शामिल होते रहे हैं. स्टेज पर जो भी भूमिका निभाते उसे देख दर्शक मंत्रमुग्ध हो जाते थे. उनके अभिनय के सभी कायल थे. उन्हें मंच संचालन में भी महारत हासिल है. उन्होंने अबतक कई बड़े मंचों का संचालन किया है.
हिन्दी के प्रति रूझान
मैट्रिक परीक्षा के उपरांत नेतलाल जी की कविता पत्र-पत्रिकाओं में छपी थी, तब लोगों ने उनकी खूब तारीफ की थी. शायद इससे उन्हें हिंदी के प्रति रुचि जगी और उत्साहित होकर उन्होंने हिंदी विषय से स्नातक करने की ठानी.
नेतलाल यादव स्नातक में अध्ययन के दौरान गिरिडीह महाविद्यालय, गिरिडीह के प्रोफेसर और हिंदी के जाने-माने विद्वान डॉ अनिल पंडित जी और आरके महिला महाविद्यालय, गिरिडीह के प्रोफेसर, लेखिका आरती वर्मा का सानिध्य प्राप्त हुआ. उनसे उन्होंने हिंदी की गहराई को समझा. शायद यही वजह है कि नेतलाल जी को हिंदी के प्रति रुचि बढ़ी.
वे नाटकों में बेहतरीन अभिनय के लिए जाने जाते थे शायद इससे भी उन्हें हिंदी के प्रति रुचि जगी.
शिक्षक के तौर पर विभिन्न विद्यालयों में कार्य
मेहनत के बल पर नेतलाल जी ने कई मुकाम हासिल किये. उनकी इच्छा पत्रकार बनने की थी, परन्तु पिता की इच्छा थी कि पुत्र शिक्षक बने. उनके पिता जानते थे कि सामाज में गुरु का बड़ा ही सम्मान होता है. जब एक शिक्षक गली से गुजरते थे तब सभी बड़े-बुजुर्ग गुरू के सम्मान में खड़े हो जाते थे. अन्तत: नेतलाल जी ने पिता की सपनों को साकार करने की ठानी और पिता की इच्छानुसार वे शिक्षक जैसे प्रतिष्ठित पद को चुना.
नेतलाल जी ने अपने पिता को वचन दिया था कि “पिताजी आप आर्थिक तंगी के कारण मुझे संसाधन संपन्न स्कूलों में पढ़ा नहीं पाये, लेकिन हम उन्ही स्कूलों में जरूर पढ़ायेंगें.“
उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई, उन्होंने जो ठाना वो कर दिखाया. वर्ष 2002 से 2014 तक वे निजी विद्यालय में हाई स्कूल शिक्षक के तौर पर कार्य किया. 2014 से 2016 तक केंद्रीय विद्यालय, चन्द्रपुरा (बोकारो) में और 2016 से 2017 तक केंद्रीय विद्यालय, मैथान डैम (धनबाद) में हाई स्कूल शिक्षक के रूप में कार्य किया. वहीं 2017 से 2019 तक +2 उच्च विद्यालय भदवा रफीगंज, औरंगाबाद (बिहार) में कार्य किया. जबकि 2019 से अबतक हाई स्कूल शिक्षक के तौर पर उत्क्रमित उच्च विद्यालय शहरपुरा, जमुआ गिरिडीह (झारखंड) में कार्यरत हैं.
हिन्दी के क्षेत्र में योगदान
नेतलाल यादव ने हिंदी की विभिन्न विधाओं में लेखन किया है. कविता, कहानी, लघुकथा, आलेख के रूप में उनकी रचनाओं ने पाठकों के दिलों पर राज किया है. इस कारण वे पाठकों के बीच “कवि नेतलाल” के नाम से भी जाने जाते हैं.
चर्चित कविताऍं
• छत पर नहाती हुई मैना
• प्रेम करो प्रकृति से
• मजदूर और उसकी जिंदगी
• शमशान में मुर्दे
• दलदल से उठा आदमी
• बचपन का प्यार भूल नहीं जाना
• हमसे बेहतर पक्षी
• क्या लिखूं मैं गोरी
• बेटी को बचाना है
• चांद वाला मुखड़ा और मास्क
चर्चित कहानी
• गांव के दो बैल
• घायल युवक
• बाल विधवा
चर्चित लघुकथा
• टुटते अंधविश्वास
आलेख
• भगवान भी शीश झुकाते हैं गुरु के सम्मान में
• मंहगाई में पिस्ता आमजन
हिंदी की कुछ प्रसिद्ध कविताऍं
प्रेम करो प्रकृति से
****************
शाम-सवेरे सुनते हैं
पंक्षियों के मधुर-गान
बहुत खूबसूरत लगता है
अपना यह सारा जहां
कबूतरों का गुटूर गु
सुग्गों की है, प्यारी बोली
मैनों का गूँजन भी भाता है
रहतीं हैं जब पूरी टोली
चहक-चहक कर जब गातीं हैं
भोर की तन्द्रालस दूर भगातीं हैं
सबके कलरव में छिपे हैं
जगत के कुछ संचित ज्ञान
प्रातःकाल कर देते हैं सबको
देखो! कितना ऊर्जावान
तब इनके बसेरों को
हरगिज़ उजड़ने नहीं देंगे
जो धरा पर बचे हैं पेड़
उनको उखड़ने नहीं देंगे
लकड़ियों की जगह पर
अब लोहे को लगा देंगे
प्रेम करो प्रकृति से
जन-जन में, यह भाव जगा देंगे ।।
•••••••
क्या लिखूँ मैं गौरी
***************
क्या लिखूँ मैं गौरी !
तेरे लिए, इस साल में
नजरें अटकी हैं मेरी,
तेरे गोरे -गोरे गाल में
ऊपर से गजरा लगाई है
अपने लम्बे-लम्बे बाल में
कजरे की धार,नयना कटार
करके तू सोलह श्रृंगार
अँखियों से बहा रही है प्यार
भर गया है, दिल का जार
गजब ढा रही हो
अपनी मस्तानी चाल में
क्या लिखूँ मैं गौरी !
तेरे लिए, इस साल में
रूप है अनोखा तेरा
एक छोटे, गाँव में रहती हो
गाँव में ही लगता है दिल
अक्सर मुझसे कहती हो
सरसों की बाड़ी में
तू एकदम परी लगती हो
पागल हूँ, मैं तेरा प्रेमी
और भी पागल करती हो
नशा है बहुत तुम्हारे प्रेम में
संभाल नहीं पाता हूँ हर हाल में
क्या लिखूँ मैं गौरी !
तेरे लिए, इस साल में ।।
•••••••
दलदल से उठा आदमी
*******************
एक आदमी दलदल में
धँसता चला जा रहा है
वह दलदल है
गरीबी, बेरोजगारी ,लाचारी
कर्ज़ और बेबसी का
जब एक पाँव निकलता है
दूसरा पाँव धँस जाता है
महंगाई का घोर अँधेरा
जीवन के आकाश में
अमावस्या की काली रात -सी
फैली है चारों तरफ
नौकरी की मोमबत्तियां भी
रोज़ बुझती जा रही हैं
आशाओं की रेत पर
दौड़ लगाता है आदमी
अनवरत पढ़ता है
किताबों का पन्ना-पन्ना
रचना है उसे एक दिन
संघर्ष का इतिहास
पर संघर्ष के चट्टानों से
टकराकर थक गया है
वह हारा नहीं है
झुका भी तो नहीं है
झुकना सीखा भी नहीं है
दुर्दिनों ने फौलाद बनाया है
उसे ,घबराता नहीं है
दशरथ मांझी जी को
आदर्श मानता है
चलता है अपने धुन में
ख्वाब जिंदा है जुनून में
वह ख्वाब, जिसे देखा है
उसने दिल की खिड़कियों से
बचपन से वयस्क तक
जो उसे जगाता है
मस्जिद में अजान की तरह
वह जागता है भोर में
जैसे महुआ चुनने जाती हैं
मुहल्ले की महिलाएँ
वह सोती आँखों में भी
कैद कर रखा है
चट्टानी आत्मविश्वास को
जिसके सहारे लाँघना है
सफलता की दरिया को
बनना है पथप्रदर्शक
गढ़ना है आदर्श का मुलम्मा
जिसे दिखाकर कोई तो कहे
इस आदमी को वर्षों से
बहुत करीब से जानता हूँ
यह दलदल से उठा आदमी है ।।
•••••••••
पत्थरबाज
******************
सुना है तेरे शहर में भी
पत्थरबाज रहते हैं
बड़े चीख़-चीखकर
शहर वाले कहते हैं
तब मजबूर होकर
मैं पत्थरों का इतिहास पढ़ता हूँ
पत्थर भी कभी
पूर्वजों के चूल्हे जलाते थे
जलाते नहीं थें,घर-परिवार
तब पत्थर युग में भी
आदमी एक-दूसरे पर
पत्थर नहीं चलाते थे
कन्दराओं में भी प्यार से
भोजन पकाते थे
पत्थर ही घर,पत्थर ही औजार
उनका पत्थर ही सब कुछ था
पत्थरों पर लिखी चीजें
खुदाई में मिलती रही हैं
पत्थरों की बनी मूर्तियाँ
उनको गढ़ने वाले शिल्पकारों को
दुनियां सलाम करती हैं
पर आज किन लोगों के हाथों में है
ये प्राचीन काल के पत्थर कि
चौराहे पर दनादन बरसाने लगे हैं
साथ ही घर के छतों पर
पत्थरों को सजाने लगे हैं
शहरों में दंगे-फ़साद
कभी भी कराने लगे हैं
पड़ोस का प्यार भी
क्षण में भुलाने लगे हैं
शांति और सौहार्द का प्रतीक
यह वतन, किस ओर जा रहा है !
यह चिंतनीय सवाल है
उत्तर की खोज भी नहीं करते
सब रोटियां सेंकते हैं
भाषण में खूब फेंकते हैं
तब हृदय को कर स्वच्छ
राजनीति से रहकर दूर
आजआपलोग सेवई ख़िलाओ
हमलोग भी पुआ खिलाते हैं
आओ मिलजुलकर
अपनी संस्कृति को बचाते हैं ।।
•••••••••••
श्मशान में मुर्दे
*****************
विषय था ऑक्सीजन !
चर्चे दिन-रात कर रहे थे
श्मशान में भी
मुर्दे बात कर रहे थे !
जिसकी जो
समस्या रही
प्रमुखता से सबने
अपनी बात कही
जो कल तक
कर रहे थे लड़ाई
आज सब थे
आपस में भाई-भाई
न जाति का भेद
न ही धर्म का भेद
बस लोगों में
एक ही था खेद
यदि ऑक्सीजन
समय पर मिलता
तो जीवन का कमल
जरूर खिलता
जंग जीत जाते
इस महामारी से
पर हार गये
कालाबाजारी से
सिस्टम की
दुनियादारी से
दर्द आँसुओं का
मुझे गाना पड़ा
बिलखते परिजन को
छोड़कर आना पड़ा
पर एक दिन तो
आना ही था
चित्रगुप्त जी के पास
जाना ही था
किसी दिन तो
सबको चले आना है
अपने कर्मों का
फल जरूर पाना है
पर आदमी
बन गया है कसाई
जंगलों का करता है
अंधाधुंध कटाई
माँ गंगा को दूषित कर
करता है सफ़ाई
रोज़ फैला कर गंदगी
जीना चाहते हैं जिंदगी
श्मशान के कोख़ से
कड़वी बात आई
जिंदा आदमी पर
सबने चिंता जताई ।।
खोरठा के क्षेत्र में योगदान
कवि नेतलाल जी की कलम केवल हिंदी भाषा तक सिमटकर नहीं रही, बल्कि झारखंड की एक बड़ी क्षेत्रीय भाषा खोरठा में भी कई प्रसिद्ध और चर्चित रचनाएं उनकी लेखनी से देखने को मिला. उनकी खोरठा रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है. हाल ही में खोरठा की प्रसिद्ध पत्रिका परास फूल में उनकी दो कविताएं छपी है. वे खोरठा भाषा को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयासरत हैं. वे अपने पदस्थापित विद्यालय उत्क्रमित उच्च विद्यालय शहरपुरा, जमुआ गिरिडीह में भी हिन्दी के साथ-साथ खोरठा भाषा में छात्र/छात्राओं को कई वर्षों से पठन-पाठन करा रहे हैं.
नेतलाल जी की प्रसिद्ध खोरठा कविताऍं
• करिया गइया
• सुगवा
• अपन मोन साफ
• चल धानी
खोरठा की कुछ प्रसिद्ध कविताऍं
करिया गइया
*************
करिया गइया किन कें,
हामर बापें जहिया आनले हलइ।
तहिना मइया गइयाक सिंघें,
सिंदूर खूभे लगइले हलइ!
गइयाक गोड़ धोलाक बादें,
गोड़ लाइग कें आसीस मांगले हलय।
खरिया,चोकरवा आर भूसिया,
मइयें खूभे खियइले हलइ!
ताब गइया के बाट से,
मइयें दूध दुहले हलय।
पितर-पुरखाक चढ़इलाक बादें,
घारें खीर बनइले हलइ।
गइयें बसो हे देवी मइया,
साभेक मइया सुनइले हलय।
गाँव-घारेक रीढ़ लागय गइया,
साभेक एहे बतइले हलय।
जहिया करिया गइया मोरलइ,
मइया छाती पीट के कांदो हलइ!
हामर देसें गइया,मइयाक दरजा,
से लेल गइया पूजल जा हे।
•••••••
सुगवा
*******************
जखने अपन मुहा खोले हे
सुगवा बडी बेस बजको हे
सुगवा के होठ हे लाले -लाल
एकर देहियो हे हरियर
सरगे उड़ान भरो हे
कोय पकरेक ले
पिंजरा में डालय न देय
से लेय मनुखेक से डरो हे।
सुगवाक इसब गुन
छउवा बेरा मिलल हे
कखनो गछा लुकाय हे
कखनो पतये लुकाय हे
हमनीके मना बडी हरसा हे
जइसन खुसीक बरखा हे
केकरो पियारे से
बोलो हथिन सुगवा अउर
सुगवा बने खातिर
बोलो पडे हे मीठ
मिठके बोली से दुनिया-दारी हे।
अउर हे अपन संसार
मिठका के गुन ददा
बचपने के संस्कार हे
बचपने के संस्कार हे।।
साहित्य प्रकाशन
नेतलाल जी की तीन साझा किताबें छपी हैं.
1. काव्यानुभूति साझा संकलन (मध्य प्रदेश )
2. अमर विश्व साहित्य साझा संकलन(उत्तर प्रदेश)
3. काव्य सलील साझा संकलन (मुंबई)
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं रचना का प्रकाशन
नेतलाल जी की हिंदी रचनाएं देश भर में 50 से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है. उन पत्र-पत्रिकाओं का विवरण यहां पर दिया जा रहा है.
समाचार पत्र:-
1. कोलफिल्ड मिरर (पश्चिम बंगाल)
2. प्रभात खबर( झारखंड)
3. एक संदेश (झारखंड)
4. सर्वव्यापी (छत्तीसगढ़)
5. इंदौर समाचार (मध्य प्रदेश)
6. रेड हैंडेड (नई दिल्ली)
7. वूमेन एक्सप्रेस (नई दिल्ली )
8. दस्तक प्रभात (बिहार)
9. दिशेरा टाइम्स (बिहार)
10. राष्ट्रीय शान (नई दिल्ली)
11. नेशनल एक्सप्रेस ( नई दिल्ली)
12. रोजनामा (झारखंड)
13. साहित्य परिवेश परिवेश मेल (उत्तर प्रदेश)
पत्रिकाएं:-
1. मैं हूं किसान, जयपुर (राजस्थान)
2. साहित्य वाटिका, उन्नाव (उत्तर प्रदेश)
3. परिणाम पर्यटन, कानपुर (उत्तर प्रदेश)
4. शुभ तारिका, अंबाला (हरियाणा)
5. साहित्य सुरभि, चंदौली (उत्तर प्रदेश)
6. मानवी, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
7. सुसंभाव्य
8. सुबह की धूप, पलामू (झारखंड)
9. प्रेम सहित साहित्य, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
10. क्षितिज के पार, रुद्रपुर (उत्तराखंड)
11. हार्ट लाइन, रांची (झारखंड)
12. पद्यनाभ, हाजीपुर वैशाली (बिहार)
13. समयानुकूल, मैनपुरी (उत्तर प्रदेश)
14. नवकिरण बस्ती, उत्तर प्रदेश
15. वीणा, इंदौर (मध्य प्रदेश)
16. संगिनी आपकी हमसफर, वडोदरा (गुजरात)
17. सरस्वती सुमन, देहरादून (उत्तराखंड)
18. समर सलील, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
19. सुवासित, बिहार
20. अंडरलाइन, कानपुर (उत्तर प्रदेश)
21. मुस्कान एक एहसास, मुंबई
22.अरण्य वाणी, जपला (झारखंड)
23. लोक गंगा, देहरादून (उत्तराखंड)
24. कविता कानन, भागलपुर (बिहार)
25. शबरी स्लैम, तमिलनाडु
26. बाल किलकारी, पटना (बिहार)
27. समय सुरभि अनंत, बेगूसराय (बिहार)
28. साहित्य के सारथी, कानपुर देहात (उत्तर प्रदेश)
29. शब्द गुंजन, देवास (मध्य प्रदेश)
30. अभ्युदय, मुंबई
31. कलम चलने दो
32. कविताएं काव्य मंजरी
33. इंडिया साहित्यनामा, मुंबई
34. उजाला, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
35. जयदीप पत्रिका
36. डिप्रेस्ड एक्सप्रेस, मथुरा (उत्तर प्रदेश)
37. सुविचार पत्रिका
38. प्रकृत्ति मेल, लखनऊ
39. साहित्य उदय, बोध गया
40. स्वाधीनता, कोलकाता
सम्मान एवं पुरस्कार
विलक्षण प्रतिभा के धनी नेतलाल प्रसाद यादव ने हिंदी भाषा में कई अनमोल रचनाएं लिखी हैं. साथ ही जेसीईआरटी द्वारा आयोजित छठी से आठवीं तक के पाठ योजना निर्माण में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उनकी प्रतिभा को देखते हुए विभिन्न संस्थाओं ने उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान से सम्मानित किया है. जिसका विवरण यहां पर दिया जा रहा है.
• ज्ञानोदय अकादमी भारत द्वारा उन्हें वर्ष 2021 में शिक्षा रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया.
• हिंदी साहित्य ज्योतिपुंज राजस्थान द्वारा हिंदी ज्योति रत्न पुरस्कार से उन्हें पुरस्कृत किया गया.
• कविता कानन भागलपुर बिहार द्वारा रघुवीर सहाय सम्मान से सम्मानित किया गया.
• कविता कानन भागलपुर बिहार द्वारा ही उन्हें वागेश्वरी सम्मान से सम्मानित किया गया.
• पार्श्वनाथ अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें पार्श्वनाथ सम्मान से सम्मानित किया गया.
भ्रमण और पाक कला में विशेष रूची
नेतलाल जी फुर्सत में घुमना पंसद करते हैं. उन्हें देशाटन का बड़ा शौक है. जब भी समय मिलता है वे परिवार या दोस्तों संग पर्यटक स्थलों की खुबसूरती और रहस्य देखने, जानने और समझने निकल पड़ते हैं.
उनकी रूची पाक कला में भी है वे खाली समय में तरह-तरह के व्यंजन बनाना पंसद करते हैं.
फोटो गैलरी
नेतलाल यादव रचनाकार और अध्यापक के साथ-साथ एक जिंदादिल इंसान भी है. यही वजह है कि मधुर स्वभाव के नेतलाल जी दोस्तों और स्कूली बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. कुछ बेहतरीन फोटो यहां पोस्ट की जा रही है.
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संकलन एवं आलेख
महेंद्र प्रसाद दांगी
शिक्षक
+2 उ. वि. गाण्डेय, गिरिडीह