प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है चतरा का इतिहास | history of chatra
पूरे भारत में आजादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. हजारों लाखों वीर और वीरांगनाओं ने इस आजादी के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया था. कई आंदोलनों और लड़ाइयों का परिणाम है आजादी! इस आजादी की लड़ाई में झारखंड के जंगल-झाड़ में बसा चतरा भी गवाह रहा है. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, पाण्डेय गणपत राय, सूबेदार नादिर अली और जयमंगल पाण्डेय जैसे सैंकड़ों वीर सपूतों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. उनका सर्वस्व बलिदान का परिणाम है कि आज हम आजाद हैं.
अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 12 जून 1857 को देवघर के रोहिणी में सैनिकों ने लेफ्टिनेंट नॉर्मन लेस्ली की हत्या कर झारखंड में विद्रोह की शुरुआत कर दी. 25 जुलाई 1857 को बिहार के दानापुर के रेजीमेंट के सैनिकों ने भी विद्रोह कर दिया. जिसकी सूचना पाकर हजारीबाग स्थित रामगढ़ बटालियन की 8 वीं नेटिव इन्फैन्ट्री के जवानों ने सम्मिलित होने का संकल्प लिया. इसके बाद 30 जुलाई 1857 को रामगढ़ बटालियन ने विद्रोह कर दिया. इस विद्रोह के समय रामगढ़ बटालियन का मुख्यालय रांची में अवस्थित था.
2 अगस्त 1857 को रामगढ़ के विद्रोही सैनिक रांची पहुंच गये. इसके बाद रांची के सैनिकों ने भी विद्रोह कर दिया. वहां ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने मुक्तवाहिनी सेना की स्थापना की. विश्वनाथ शाहदेव के नेतृत्व में गठित मुक्तवाहिनी सेना के सेनापतिपंडित गणपत राय थे. मुक्तवाहिनी की एक टुकड़ी सितम्बर 1857 के मध्य में ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के नेतृत्व में बिहार के अमर सेनानी वीर कुंअर सिंह से मिलने चतरा के रास्ते चल पड़े. जिसमें ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के अलावा मुक्तवाहिनी के सेनापति पाण्डेय गणपत राय, सूबेदार जयमंगल पाण्डेय और नादिर अली इत्यादि शामिल थे. मुक्तवाहिनी 2 अक्टूबर 1857 को चतरा पहुंची. तब वहां पहले से ही तैनात मेजर इंग्लिश की सेना के बीच भयंकर मुठभेड़ हुई.
सूबेदार जयमंगल पाण्डेय और नादिर अली के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ घमासान युद्ध करते हुए 150 स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की बलि चढ़ा दी. चतरा की इस लड़ाई में सूबेदार नादिर अली घायल हो गये. उधर मुक्तवाहिनी के नेता ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और सेनापति पाण्डेय गणपत राय भागकर लोहरदगा के जंगलों में छिप गए तथा वहीं से अंग्रेजों के विरूद्ध छापामार युद्ध करते रहे. चतरा में मुठभेड़ के दौरान 3 अक्टूबर को जयमंगल पाण्डेय और नादिर अली को गिरफ्तार कर लिया गया. कमिश्नर सिम्पसन के आदेश पर 4 अक्टूबर को “पांसीहारी तालाब” (हरजीवन तालाब) के पास स्थित आम के पेड़ से लटका कर सुबेदार जयमंगल पाण्डेय और नादिर अली की फांसी दे दी गयी. इस तरह सुबेदार जयमंगल पाण्डेय और नादिर अली ने अपने 150 भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ शहादत देकर चतरा की धरती को धन्य कर दिया.
पांसीहारी तालाब के पास बने शहीद स्मारक में लिखी गई ये पंक्ति मन को भावुक कर देते हैं-
“शहीदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले.
वतन पर मरने वालों का यही बांकी यही निशां होगा.”
जय हिंद
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आलेख ✍️
महेंद्र प्रसाद दांगी