भू संसाधन तथा भारत में भू-उपयोग प्रारूप class 10th. Geography
पृथ्वी ब्रह्मांड का एक अनुपम देन है और पृथ्वी की ऊपरी परत का एक तिहाई भाग मिट्टी और चट्टानों से ढका हुआ है। जिसे भू संसाधन के रूप में जाना जाता है। पृथ्वी का लगभग अधिकांश जीव अपने जीवन के लिए इन्हीं भू संसाधनों पर निर्भर रहता है। क्योंकि भोजन के लिए अन्न, पीने के लिए जल, सांस लेने के लिए वायु और रहने के लिए आवास इसी भूमि से प्राप्त होता है।
हम जिस भूमि पर रहते हैं इसी पर अनेक आर्थिक क्रियाकलाप करते हैं और विभिन्न रूपों में इसका उपयोग करते हैं। इसलिए भूमि एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। प्राकृतिक वनस्पति, वन्य जीवन एवं मानवीय क्रियाकलाप सभी भूमि पर ही आधारित है। परंतु भूमि एक सीमित संसाधन है। इसलिए पृथ्वी पर उपलब्ध भूमि का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए सावधानीपूर्वक एवं योजनाबद्ध तरीके से करना चाहिए।
भारत की धरती पर विभिन्न प्रकार की भू आकृतियां जैसे पर्वत, पठार, मैदान, और द्वीप पाए जाते हैं। संपूर्ण भू धरातल का लगभग 43% भूभाग पर मैदान का विस्तार है। जो कृषि और उद्योग के विकास के लिए सुविधाजनक है। कूल भू धरातल का लगभग 30% भूभाग पर पर्वत का विस्तार है। यह पर्वत कुछ बारहमासी नदियों के प्रवाह को सुनिश्चित करते हैं तथा पर्यटन विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां प्रदान करते हैं। साथ ही पर्वत पारिस्थितिक तंत्र के लिए भी महत्वपूर्ण है। भारत के कुल धरातल का लगभग 27% भाग पर पठार स्थित है। भारत का पठारी भूमि खनिज संसाधनों तथा वन संपदा से भरापुरा है।
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भारत में भू उपयोग प्रारूप
भू-उपयोग भारत के किसी क्षेत्र का मानव द्वारा उपयोग को इंगित करता है। किसी भी भौगोलिक क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में उपयोग की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। भारत में भू-उपयक से संबंधित मामले भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय से संबंधित है।
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भू-उपयोग
भारत में उपयोग का प्रारूप निम्न रूप से किया गया है. यह आंकड़े डायरेक्टर ऑफ इकोनॉमिक्स एंड स्टैटिस्टिक्स, मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर, 2017 के अनुसार है.
भू संसाधनों का उपयोग निम्नलिखित उद्देश्यों से किया जाता है।
1• वन
वृक्ष एवं झाड़ियों से ढ़की भूमि
2• कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि
(अ) बंजर तथा कृषि योग्य भूमि
(ब) गैर कृषि प्रयोजनों में लगाई गई भूमि जैसे- इमारत, सड़क, उद्योग इत्यादि।
3• परती भूमि के अतिरिक्त अन्य कृषि अयोग्य भूमि
(अ) अस्थाई चारागाहों तथा अन्य गोचर भूमि
(ब) विविध वृक्षों, वृक्ष फसलों तथा उपवनों के अधीन भूमि (जो शुद्ध बोए गए क्षेत्र में शामिल नहीं है)
(स) कृषि योग्य बंजर भूमि जहां 5 से अधिक वर्षों से खेती न की गई हो
4• परती भूमि
(अ) वर्तमान परती भूमि (जहां एक कृषि वर्ष या उससे कम समय से खेती ना की गई हो)
(ब) वर्तमान परती भूमि के अतिरिक्त अन्य परती भूमि या पुरातन परती भूमि (जहां एक से पांच कृषि वर्ष से खेती ना की गई हो)
5• शुद्ध (निवल) बोए गए क्षेत्र
एक कृषि वर्ष में एक बार से अधिक बोये गए क्षेत्र को शुद्ध (निवल) बोए गए क्षेत्र में जोड़ दिया जाए तो वह सकल कृषित क्षेत्र कहलाता है।
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भू-उपयोग प्रारूप को प्रभावित करने वाले कारक
भू-उपयोग को प्रभावित करने वाले कारक निम्न है
1• भौतिक कारक
(अ) भू-आकृति
(ब) जलवायु
(स) मृदा के प्रकार इत्यादि
2• मानवीय कारक
(अ) जनसंख्या घनत्व
(ब) प्रौद्योगिकी क्षमता
(स) संस्कृति और परंपराएं इत्यादि
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