शिबू सोरेन का निधन होना झारखंड के लिए अपूर्णीय क्षति -विनय तिवारी खोरठा गीतकार एवं लोकगायक
धनबाद- झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री सह वर्तमान राज्यसभा सांसद आदरणीय दिशोम गुरुजी अब नहीं रहे।
दिशोम गुरु का जीवन संघर्ष, त्याग और समाज के लिए समर्पण का प्रतीक रहा है।
गुरुजी ने न सिर्फ झारखंड राज्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि वर्षों तक वंचितों, आदिवासियों और कमजोर वर्गों की आवाज बनकर उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ी।
उनका जाना न सिर्फ झारखंड बल्कि पूरे देश के लिए अपूरणीय क्षति है।
आइए जाने शिबू सोरेन से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
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☆ शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को तत्कालीन बिहार वर्तमान झारखंड के वर्तमान रामगढ़ जिला के नेमरा गांव में हुआ था। संथाल आदिवासी समुदाय से आते हैं।
☆ इनका निधन 81 वर्ष की आयु में 04 अगस्त 2025 को सुबह हुई।
☆ शिबू सोरेन को दिशोम गुरु (भूमि व जन नेतृत्व) के रूप में भी जाना जाता है।
☆ उन्हें गुरूजी के नाम से भी जाना जाता है।
☆ वे वर्तमान में राज्य सभा के सांसद थे। (22 जून 2020 से 4 अगस्त 2025)
☆ उन्होंने तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।
☆ उन्होंने 1977 में अपना पहला लोकसभा चुनाव हार गए। उसके बाद पहली बार 1980 में दुमका से लोकसभा के लिए चुने गए थे।
☆ वे 1980-84, 1989-98, और 2002-2019 तक दुमका से लोक सभा के सांसद रहे।
☆ वे तीन बार मनमोहन सिंह की सरकार में भारत के कोयला मंत्री रहे।
☆ जब वे पढाई कर रहे थे तब 15 वर्ष की आयु में उनके पिता की हत्या सूदखोरों द्वारा किराए पर लिए गए ठगों ने कर दी थी।
☆ 18 साल की उम्र में ही उन्होंने “संथाल नवयुवक संघ” का गठन किया। जो आदिवासी अधिकारों के लिए पहला राजनीतिक कदम था।
☆ 1972-73 में, संथाल नेता शिबू सोरेन ने बंगाली माक्सवादी ट्रेड यूनियन नेता ए. के. रॉय और कुर्मी-महतो नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का गठन किया।
☆ JMM का गठन मुख्यतः आदिवासी भूमि, पहचान और अलग राज्य की मांग पर आधारित थी, जो अंततः 15 नवम्बर 2000 को झारखंड राज्य बनने के रूप में साकार हुई।
☆ शिबू सोरेन का विवाह रूपी किस्कू से हुआ है। उनके तीन पुत्र हैं। दुर्गा सोरेन, हेमंत सोरेन और बसंत सोरेन और एक बेटी अंजलि सोरेन हैं। पुत्र हेमंत सोरेन वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हैं।
☆ उनका जीवन विवादों से भी अछूता नहीं रहा। 1994 में उनके निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या के आरोप में उन्हें दोषी ठहराए जाने पर आजीवन कारावास की सजा मिली, लेकिन वर्ष 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय व सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। 2007 में उनके काफिले पर बम हमला भी हुआ, लेकिन वे बच गए।

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