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सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय | savitribai phule life story

On: January 3, 2025 9:08 PM
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सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय | savitribai phule life story in hindi

सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका समाज सुधारक और मराठी कवियत्री थी. उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले (ज्योतिबा फुले) के साथ मिलकर महिला अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य किए. उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत भी माना जाता है. वे जीवन पर्यन्त एक राष्ट्र माता के रूप में समाज के हर वर्ग के लिए सेवा करती रही. सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रधानाचार्या और पहले किसान स्कूल की संस्थापिका थीं. महात्मा ज्योतिबा को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है. उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है. ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए, सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे. सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया. जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना. वे एक कवयित्री भी थीं। उन्हें ‘मराठी की आदिकवयित्री’ के रूप में भी जाना जाता था.

सावित्रीबाई फुले का पारिवारिक जीवन:-

जन्म:- 3 जनवरी 1831 ई• नायगांव, महाराष्ट्र
मृत्यु:- 10 मार्च 1897 ई• पुणे, महाराष्ट्र

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव में हुआ था. इनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मी था. मात्र 9 वर्ष की आयु में 1840 में इनका विवाह ज्योतिराव फुले से हुआ. उस समय ज्योतिबा फुले की भी उम्र मात्र 13 साल थी. सावित्रीबाई का पूरा नाम सावित्री ज्योतिरा फुले था. उनके पति ज्योतिराव फुले भारत के महान समाज सुधारक रहे. लोगों के बीच वे ज्योतिबा या महात्मा फुले आदि नामों से जाने गये. सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिबा के मार्गदर्शन में जीवन पर्यन्त दलित, पिछड़े, दबे-कुचले की सेवा करती रही. ज्योतिबा फुले उनके संरक्षक, गुरु और बड़े समर्थक थे.

सामाजिक विरोध के वावजूद प्राप्त की शिक्षा:-

जिस समय सावित्रीबाई स्कूल पढ़ने जाती थी समाज के लोग उन पर गंदगी फेंकते थे. उस समय स्त्रियों के शिक्षा पर सामाजिक पाबंदी लगी हुई थी. लोग महिला शिक्षा को पाप समझते थे. घर से बालिकाओं या महिलाओं को शिक्षा के लिए निकलना मुश्किल था. चाह कर भी बालिका या महिला शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकती थी. ऐसे में उन्हें समाज से कई तरह के विरोधों का सामना करना पड़ा. पर, उन्होंने हार नहीं मानी. उनकी शिक्षा में उनके पति ज्योतिबा फुले ने भरपूर सहयोग दिया. बाद में उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए अपने पति के साथ मिलकर भारत में बालिकाओं के लिए पहला विद्यालय खोला.

भारत में पहले महिला विद्यालय की स्थापना:-

3 फरवरी 1848 को उन्होंने पुणे में अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर विभिन्न जातियों के 9 छात्राओं को लेकर महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की. उन्होंने इस तरह पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला. जो भारत में बालिका के लिए खोला गया पहला विद्यालय था. एक साल के भीतर उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर पांच और विद्यालयों की स्थापना की. उन्होंने जाति और लिंग के आधार पर लोगों के प्रति भेदभाव और अनुचित व्यवहार को समाप्त करने के लिए काम किया. उन्हें महाराष्ट्र में सामाजिक सुधार आंदोलन का एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है. एक परोपकारी और शिक्षाविद् होने के साथ-साथ फुले एक विपुल मराठी लेखिका भी थीं. वैसे समय जब महिलाओं पर कई सामाजिक पाबंदियां लगी हुई थी. तब सावित्रीबाई ने खुद शिक्षा ग्रहण की तथा दूसरी महिलाओं के पढ़ने का अवसर का निर्माण किया. जब वे बालिकाओं को पढ़ाने के लिए जाती थी तब समाज के लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर फेंककर उनकी साड़ी गंदी कर देते थे. इसलिए सावित्रीबाई साथ में थैले में एक साड़ी लेकर विद्यालय जाती थी और स्कूल पहुंचकर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थी. इतनी मुश्किलों से भी उन्होंने हार नहीं मानी और एक महानायिका की तरह समाज में महिलाओं की शिक्षा के लिए खड़ी रही. इसी लिए आज वे महिलाओं के लिए एक आदर्श नारी के रूप में स्थापित हैं. सच्च में वे राष्ट्र माता हैं.

निधन:-

प्लेग महामारी के दौरान एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गयी. मरीजों की सेवा करते हुए 10 मार्च 1897 को प्लेग के संक्रमण के कारण उनकी मौत हो गई. इस तरह लोगों की सेवा करने वाले सावित्रीबाई दुनिया से चल बसी.

स्रोत:- विकिपीडिया एवं अन्य
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प्रस्तुतीकरण
www.gyantarang.com
संकलन
महेंद्र प्रसाद दांगी

Sindhu

अगर सही मार्ग पर चला जाए तो सफलता निश्चित है। अभ्यास सफलता की कुंजी मानी जाती है, और यह अभ्यास यदि सही दिशा में हो तो मंजिल मिलने में देर नहीं लगती। इस लिए कहा भी गया है:- " करत-करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान। रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान।।"

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