हिंदी की सुप्रसिद्ध रचनाकार सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय

हिंदी की सुप्रसिद्ध रचनाकार सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय

सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी जगत के सुप्रसिद्ध कवियत्री एवं लेखिका थी। “खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी” कविता से उन्हें राष्ट्रीय चेतना कवियत्री के रूप में पहचान मिली। आजादी की लड़ाई में वे गांधीजी के साथ खड़ी दिखी। वे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई बार जेल भी गयी। जिसका असर उनकी रचनाओं में साफ तौर पर देखा जा सकता है। इस पोस्ट में हिंदी की सुप्रसिद्ध रचनाकार सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय देखेंगे।

पारिवारिक जीवन

सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म प्रयागराज में 16 अगस्त 1904 ई• को एक जमींदार परिवार में हुई थी। उनके पिता का नाम ‘ठाकुर रामनाथ सिंह’ था। सुभद्रा कुमारी चंचल स्वभाव की और कुशाग्र बुद्धि की थी। सुभद्रा और महादेवी वर्मा दोनों बचपन की सहेलियां थी। बड़े होने पर दोनों ने ही साहित्य के क्षेत्र में अपनी प्रसिद्धि पाई। वर्ष 1919 ईस्वी में उनका विवाह खण्डवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह से हुआ।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

अपने शादी के लगभग डेढ़ वर्ष बाद ही वे स्वतंत्र संग्राम में कूद पड़ी। गांधी जी के आह्वान पर 1921 में वे असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले पहली महिला थी। वे नागपुर की अदालत में गिरफ्तार होने वाली देश की प्रथम सत्याग्रही महिला भी थी। वे दो बार जेल भी गयी इस कारण उनकी रचनाओं पर आजादी के छाप दिखाई पड़ते हैं।

साहित्य के क्षेत्र में योगदान

1913 में जब वे मात्र 9 वर्ष की थी, तब उनकी पहली कविता “मर्यादा” नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। यह कविता नीम के पेड़ पर लिखी गई थी।

कविता संग्रह

मुकुल और त्रिधारा के नाम से उनके दो कविता संग्रह प्रकाशित हुई है।

कुछ प्रमुख कविताएं

• झांसी की रानी
• मेरा नया बचपन
• यह कदम का पेड़
• पानी और धूप
• वीरों का कैसा हो बसंत
• खिलौने वाला
• झिलमिल तारे
• मेरा जीवन
• मुरझाया फूल
• समर्पण
• अनोखा दान
• मेरा गीत
• वेदना
• सभा का खेल
• बालिका का परिचय
• प्रभु तुम मेरे मन की जानो
• विदाई
• प्रतीक्षा
• आराधना
• प्रथम दर्शन

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इसे भी जानें

? कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद
? गायक किशोर कुमार
? डीएवी स्कूल के संस्थापक महात्मा हंसराज
? भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के जनक डॉ विक्रम साराभाई
? नारी शक्ति के प्रतिक अहिल्याबाई होल्कर
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कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ

स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने कई बार जेल की यात्राएं भी की। इस कारण उनके रचनाओं पर राष्ट्रप्रेम की भावनाएं भी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है।

‘झांसी की रानी’ की कुछ पंक्तियां

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।

कानपुर के नाना की, मुंहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथाएं, उसको याद जबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह, हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।

….. और भी पंक्तियां हैं इस कविता में

‘यह कदंब का पेड़’ की कुछ पंक्तियां

यह कदंब का पेड़ अगर मां होता जमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे।।

ले देतीं मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीचे हो जाती यह कदंब की डाली।।

तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊंचे पर चढ़ जाता।।

वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हें बुलाता।।

….. और भी पंक्तियां हैं इस कविता में

‘वीरों का कैसा हो बसंत’ की कुछ पंक्तियां

आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गरजता बार-बार
प्राची पश्चिम भू नभ आभार,
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगंत
वीरों का कैसा हो बसंत

फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुंचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग अंग,
है वीर देश में किंतु कंत
वीरों का कैसा हो वसंत

भर रही कोकिला इधर तान
मारु बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान
मिलने को आए आदि अंत
वीरों का हो कैसा बसंत

….. और भी पंक्तियां हैं इस कविता में

कहानी संग्रह

बिखरे मोती, उन्मादिनी और सीधे-साधे चित्र के रूप में तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुई।

बिखरे मोती‘ उनका पहला कहानी संग्रह है। जो 1932 में प्रकाशित हुई थी। इसमें मछुये की बेटी, एकादशी, कदम के फूल, किस्मत जैसे 15 कहानियों का संग्रह है।

उन्मादिनी‘ नामक शीर्षक से उनका दूसरा कहानी संग्रह 1934 में छपा। इसमें सोने की कंठ, नारी ह्रदय, पवित्र रिश्ता, वेश्या की लड़की जैसी कुल 9 कहानियों का संग्रह है।

सीधे साधे चित्र‘ सुभद्रा कुमारी चौहान की तीसरी एवं अंतिम कहानी संग्रह है। जो 1947 में प्रकाशित हुई थी। इसमें कैलाश नानी, बिआल्हा, दो साथी, तांगे वाला, राही जैसे 14 कहानियों का संग्रह है।

सम्मान

भारतीय डाक विभाग ने 1976 में उनके नाम पर 25 पैसे का डाक टिकट जारी किए था। उनके राष्ट्रप्रेम की भावना को सम्मानित करने के लिए ‘भारतीय तटरक्षक सेना’ ने वर्ष 2006 में एक तटरक्षक जहाज का नाम “सुभद्रा कुमारी चौहान” के नाम दिया।

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जीवनी

उनके जीवनी को उनकी एक पुत्री ‘सुधा चौहान’ ने “मिला तेज से तेज” नामक पुस्तक में लिखी है। इसे प्रयागराज से हंस प्रकाशन में प्रकाशित किया गया था।

निधन

43 साल की अल्पायु में 15 फरवरी 1948 ई• में एक कार दुर्घटना में उनका निधन हो गया।

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इसे भी देखें

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