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खोरठा दरपन के पाँचवें अंक का हुआ विमोचन

On: September 6, 2025 3:36 PM
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खोरठा दरपन के पाँचवें अंक का हुआ विमोचन

रामगढ़ — खोरठा दरपन के प्रधान कार्यालय लखी रानी निवास में करमा पर्व के अवसर पर डिजिटल पत्रिका खोरठा दरपन के पाँचवें अंक का लोकार्पण किया गया। जल, जंगल, जमीन एवं माय-माटी-मानुस को समर्पित यह पत्रिका खोरठा भाषा, साहित्य और संस्कृति की छमाही पत्रिका है। इसमें खोरठा स्मृति, संस्कृति, प्रकृति, पर्व-त्योहार से जुड़े आलेख, गीत, कविता, निबंध, कहानी, लेख, एकांकी आदि प्रकाशित होते हैं।


पत्रिका के प्रधान संपादक संदीप कुमार महतो तथा सह संपादक राधा गोविन्द विश्वविद्यालय खोरठा विभागाध्यक्ष ओहदार अनाम अजनबी हैं। वहीं संरक्षक मंडल में रांची विश्वविद्यालय, राँची के स्नातकोत्तर खोरठा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. कुमारी शशि, खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद् अध्यक्ष डॉ. बी.एन. ओहदार, साहित्यकार दिनेश दिनमणि, डॉ. गजाधर महतो प्रभाकर तथा कोयलांचल विश्वविद्यालय हिंदी सहायक प्राध्यापक व टीआरएल के समन्वयक डॉ. मुकुंद रविदास शामिल हैं।


सलाहकार समिति में डॉ. अर्चना कुमारी, डॉ. अहिल्या कुमारी, डॉ. रितु घांसी, डॉ. कृष्णा गोप, डॉ. अजय कुमार, डॉ. ज्ञान रंजन, कंचन बरनवाल, खोरठा साहित्यकार एवं गीतकार विनय तिवारी, मानिक कुमार, बसंत कुमार, अजय कुमार दास, विनोद कुमार महतो, अशोक कुमार महतो एवं आनंद ज्ञान जी शामिल हैं।


लोकार्पण के अवसर पर संयुक्त रूप से ओहदार अनाम अजनबी और संदीप कुमार महतो ने बताया कि खोरठा भाषा के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए यह डिजिटल पत्रिका लगातार प्रयासरत है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए भी यह पत्रिका बेहद उपयोगी सिद्ध हो रही है, विशेषकर उनके लिए जो खोरठा भाषा विषय लेकर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होते हैं। खोरठा साहित्यकार एवं गीतकार विनय तिवारी नेँ कहा कि संदीप कुमार महतो एवं अनाम अजनबी का प्रयास काफी सराहनीय है।हमारी भसाएं हामरे राज्य की धरोहर है और पूर्ण रूप से परिपक्व है। हमारा उत्तरदायित्व बनता है कि हम उन्हें न सिर्फ संजोएं बल्कि उनका प्रयोग नए से नए आयामों में भी करें।

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Sindhu

अगर सही मार्ग पर चला जाए तो सफलता निश्चित है। अभ्यास सफलता की कुंजी मानी जाती है, और यह अभ्यास यदि सही दिशा में हो तो मंजिल मिलने में देर नहीं लगती। इस लिए कहा भी गया है:- " करत-करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान। रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान।।"

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