पलाश का फूल | palash ke phool | पलाश के औषधीय गुण | टेसू फूल के फायदे
पलाश बसंत ऋतु का प्रतीक है। वसंत ऋतु में पलाश के फूल जब खिलते हैं तो पूरा जंगल मनमोहक आकर्षक लगता है। पलाश औषधीय गुणों से परिपूर्ण एक ऐसा पेड़ है, जिसके मानव जीवन में कई लाभ हैं। पलाश का संबंध होली से सीधे तौर पर है। इसका व्यावसायिक उपयोग भी है। पलाश को हिंदू धर्म में पवित्र भी माना गया है। पलाश का फूल झारखंड का राजकीय फूल के रूप में भी जाना जाता है। इस पोस्ट में हम पलाश के फूल के बारे में जानेंगे।
विषय वस्तु
☆ पलाश का वैज्ञानिक नाम
☆ पलाश के विभिन्न क्षेत्रीय नाम
☆ पलाश का क्षेत्र
☆ पलाश फूल के प्रकार
☆ जंगल में आग के नाम से प्रचलित पलाश
☆ पलाश का अर्थ
☆ ढाक के तीन पात मुहावरे का संबंध पलाश से
☆ राजकीय फूल के रूप में पलाश
☆ पलाश और होली
☆ पलाश का व्यावसायिक उपयोग
☆ पलाश का औषधीय गुण
☆ हिन्दु धर्म में पलाश का महत्व
☆ पलाश का वैज्ञानिक नाम
• वैज्ञानिक नाम:- Butea Monosperma
• कुल नाम:- Fabaceae
• अंग्रेजी नाम:- Jungle Flame, Flame of the Forest
☆ पलाश के विभिन्न क्षेत्रीय नाम
पलाश को विभिन्न जगह में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे- जंगल की आग (Flame of the Forest), पलाश, पलास, ढाक, टेसू, Bastard Teak, पलस इत्यादि।
भाषा —- नाम
• संस्कृत — रक्तपुष्पक, ब्रह्मवृक्ष, पलाश, किंशुक, ब्रह्मपादप, याज्ञिक
• हिन्दी — ढाक, टेसू
• बंगाली — पलाश
• गुजराती — खाखरो
• पंजाबी — पलाश
• तेलगु — मोदुगा चेट्टू
• कन्नड़ — मुत्तुग
• द्राविड़ी — पेलाशं
• मारवाडी — छिबरो
• मराठी — पलस
• केरल — प्लासु/चमाता
• ओडिया — पोलासो
• उर्दू — पलाश-पापरा
☆ पलाश का क्षेत्र
पलाश भारतीय उपमहाद्वीप तथा दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय भागों के मुल निवासी Butea की एक प्रजाति है। जिसमें भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, थाइलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, मलेशिया, प• इंडोनेशिया इत्यादि देश है। लगभग भारत के संपूर्ण क्षेत्र में पलाश पाया जाता है। लेकिन उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, बिहार, मध्यप्रदेश, प. बंगाल में अधिक पाया जाता है।
☆ पलाश फूल के प्रकार
पलाश का फूल मुख्यतः तीन प्रकार के होता है। लाल, पीला और सफेद।
• लाल फूल वाले पलाश बहुतायत में पाया जाता है। इसका उपयोग रंग बनाने के अलावे विविध प्रकार के औषधी बनाने में किया जाता है।
• पीला फूल वाला पलाश दुर्लभ श्रेणी का है। यह कम दिखाई पड़ता है। इसका उपयोग रंग और औषधी बनाने के अलावे तांत्रिक शक्ति प्राप्त करने के लिए किया जाता है। ललभितिया, गांडेय गिरिडीह (झारखण्ड) में यह फूल अभी देखा जा सकता है।
• सफेद फूल वाला पलाश भी दुर्लभ श्रेणी में आता है। यह भी पीला के जैसा कम दिखाई पड़ता है। इसका वैज्ञानिक नाम इसका उपयोग औषधीय कार्य के अलावा तांत्रिक कार्यों के लिए भी किया जाता है।
☆ जंगल में आग के नाम से प्रचलित पलाश
बसंत ऋतु में जब पेड़ अपनी पत्तों को गिरा देते हैं तब पलाश के पेड़ों पर लाल-लाल पुष्प निकल आता है, जो देखने में काफी आकर्षक और मनमोहक लगता है। पूरा जंगल पलाश के लाल पुष्प से खिल उठता है। मानो ऐसा प्रतीत होता है कि आग की अंगेठी से पूरे जंगल पट गया है। शायद इसी कारण इसे “जंगल की आग” (Flame of the Forest) की संज्ञा दी गई हो। झारखंड में पलाश लोक परंपराओं से जुड़ा है। यहां की कई लोक साहित्य में पलाश के फूलों को “जंगल की आग” के नाम से वर्णित किया गया है। पलाश के फूल तोते के ठोर के जैसा लगता है।
☆ पलाश का अर्थ
पलाश का अर्थ एक ऐसे पेड़ से है। जो लाल फूलों के लिए जाना जाता है। पलाश के आकर्षक फूलों के कारण इसे “जंगल के आग” के नाम से भी जानते हैं। पलाश का एक मतलब घोड़ा भी होता है। राशिफल के अनुसार पलाश पुलिंग के रूप में जाना जाता है। जो लड़के के नाम के रूप में उपयोग में किया जाता है। राशि के अनुसार पलाश कन्या राशि से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि कन्या राशि वाले लोग बेहद धार्मिक प्रवृति के होते हैं। मान्यता है कि कन्या राशि के अराध्य देव कुबेर हैं।
☆ ढाक के तीन पात मुहावरे का संबंध पलाश से
“ढाक के तीन पात” मुहावरा इसी पलाश अर्थात ढाक से बना है। इसमें तीन पत्त पेड़ पर एक साथ होते हैं। जब पतझड़ का मौसम आता है तो ये तीनों पत्ते जमीन पर एक साथ गिरते हैं। अर्थात किसी भी स्थिति में ये तीनों पत्ते अलग नहीं होते हैं। इस कारण ही हिंदी का मुहावरा “ढाक के तीन पात बना है” ढाक का मतलब पलाश होता है और पात का मतलब पत्ता होता है।
☆ राजकीय फूल के रूप में पलाश
पलाश के औषधीय गुणों और इसके पुष्पों की मोहकता के कारण ही “झारखंड” और “उत्तर प्रदेश” में पलाश को ‘राजकीय पुष्प‘ का दर्जा दिया गया है। पलाश के महत्व के कारण ही भारतीय डाकतार विभाग द्वारा पलाश फूल को डाक टिकट में छापकर सम्मानित किया गया है।
☆ पलाश का फूल और होली
पलाश के फूल और होली का संबंध प्राचीन काल से रहा है। इसका जिक्र लोक कथाओं और गीतों में देखने को मिलता है। राधा संग कृष्ण को टेसू (पलाश) के फूलों से होली खेलने का वर्णन लोकगीतों में सुनाई पड़ता है।
फाल्गुन महीना आते ही टेसू के रंग से होली खेलने की तैयारी शुरू हो जाती है। कुछ लोग पलाश के फूल को पानी के साथ गर्म कर रंग तैयार करते हैं। तो कुछ लोगों द्वारा पलाश के इन फूलों को पानी में रखकर उसमें चूना मिलाकर रंग तैयार किया जाता है। भले ही रंग तैयार करने का अपना-अपना तरीका हो पर यह प्राकृतिक होती है, जो स्वास्थ्य के लिए अनुकूल तथा चर्म रोग के लिए लाभदायक होता है। लेकिन वर्तमान समय में आधुनिकता के कारण बाजार में तरह-तरह के कृत्रिम रंग आ गए हैं। जिससे होली खेलने की प्रवृत्ति बढ़ गई है। इस कारण इन कृत्रिम रंगों के उपयोग से कई तरह के रोगों का खतरा भी बढ़ गया है। हम आधुनिकता के चक्कर में प्राकृतिक चीजों को छोड़े जा रहे हैं। जिसे हमें समय रहते सोचना होगा।
☆ पलाश का व्यावसायिक उपयोग
पलाश एक बहु उपयोगी पेड़ है। इसका प्रयोग औषधि निर्माण, रंग-अबीर बनाने, पत्तल, दोना, दर्री, कागज इत्यादि में किया जाता है।
• पलाश का प्रयोग कई तरह के औषधि निर्माण में भी किया जाता है। जैसे कमरकस आयुर्वेद औषधी।
• पलाश के फूलों से रंग तथा बीज से अबीर बनाई जाती है।
• पलाश एक रेशेदार पेड़ है। इसके छाल के रेशे से दर्री बनाई जाती है। इसके अलावा पलाश के रेशे का प्रयोग पानी वाले जहाज में दो पटरों के बीच दरारों को भरने में किया जाता है।
• पलाश की पतली डालियों को उबालकर कत्था बनाया जाता है। हालांकि यह कत्था घटिया किस्म का होता है। फिर भी पश्चिम बंगाल में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
• पलाश का प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन सामग्री तैयार करने में किया जाता है।
• पलाश के लकड़ी को जलाकर कोयला बनाया जाता है।
• पलाश के गोंद का इस्तेमाल भी कई रूपों में किया जाता है।
• पलाश के पत्ते का उपयोग बीड़ी बनाने में भी किया जाता है।
• इसके अलावा पलाश उपयोग पत्तल, दोना बनाने में भी किया जाता है।
☆ पलाश का औषधीय गुण
आयुर्वेद में पलाश के अनेक गुण बताए गए हैं और इसके पांचो अंग जड़, तना, फल, फूल और बीज औषधीय गुणों से परिपूर्ण है।
? नोट:- यहां दी जा रही जानकारी का आप अपने से दवा के रूप में प्रयोग न करें। कृपया यह ध्यान दें कि किसी आयुर्वेद डाक्टर की सलाह पर ही पलाश का उपयोग दवा के रूप में करें।
• नेत्र संबधी रोग जैसे रतौंधी, फूली मोतियाबिन्द, खील, आंख की झांक इत्यादि पलाश के जड़ का प्रयोग कर ठीक किया जा सकता है।
• मुत्र संबधी बीमारियों जैसे रूका हुआ पेशाब, वृक्क शूल, अंडकोष शोथ इत्यादि में पलाश फूल, गोंद, पलाश की सुखी कोपलें, छाल इत्यादि के प्रयोग से रोग ठीक होता है।
• अतिसार में पलाश (ढाक) के गोंद और बीज का प्रयोग कर ठीक किया जा सकता है।
• पेट के कृमि की स्थित में पलाश (टेसू) के बीज का प्रयोग किया जाता है।
• गर्भ निरोधक के रूप में ढाक (पलाश) के बीज का इस्तेमाल किया जाता है।
• मिर्गी वाले व्यक्ति को पलाश के जड़ का प्रयोग कर मिर्गी से राहत दिलाई जा सकती।
• भुख बढ़ाने के लिए ढाक (पलाश) के जड़ों का उपयोग किया जाता है।
• गलकंड की स्थिति में ढाक की जड़ो को पीसकर लेप लगाकर किया जाता है।
• नकसीर में पलाश के फूल का उपयोग किया जाता है।
• लू से बचने के लिए ढाक के फूल के पानी से स्नान करने से राहत मिलती है।
• योन शक्ति बढ़ाने तथा शीध्रपतन की समस्या के निदान में पलाश का उपयोग किया जाता है।
• इसी तरह सूजन कम करने , पित्तशोध, धाव, दंश, कुष्ठ, दाद, बाबासीर, कीटाणुनाशक, एंटी डायबेटिक, दर्द नाशक एवं ट्यूमर रोधी के रूप में भी जाना जाता है।
☆ हिन्दु धर्म में पलाश का महत्व
पलाश का पेड़ हिन्दु धर्म के बीच पवित्र माना जाता है। इस कारण हिन्दु धर्म में पलाश का विशेष महत्व है। प्राचीन धर्म ग्रंथ ऋग्वेद में सोम, अश्वत्था तथा पलाश के रूप में वर्णन मिलता है। माना गया है कि पलाश के पेड़ में श्रृष्टि निर्माता भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव का निवास स्थान है।
• ग्रह दोष निवारण में भी पलाश पेड़ का अनुष्ठान के बारे में बताया गया है।
• सफेद और पीला फूल वाले पलाश का उपयोग तांत्रिक क्रियाकलाप में भी किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन फूलों के तांत्रिक प्रयोग से अदृश्य करने की क्षमता भी होती है।
• ऐसा माना जाता है कि पलाश का पेंड़ अग्नि और युद्ध के देवता का रूप है। इसके लकड़ी के छोटे टुकड़े का प्रयोग अग्निहोत्र या अग्नि अनुष्ठान के लिए किया जाता है।
• पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पलाश के लकड़ी से दण्ड बनाकर द्विजों का यज्ञोपवीत संस्करण किया जाता है।
• ग्रह्वासूत्रों के अनुसार उपनयन के समय ब्रह्मण कुमार को पलाश के लकड़ी का दंड ग्रहण करने की विधि है।
• श्रोतसूत्रों में कई यज्ञपात्रों को पलाश के लकड़ी से बनाने की विधि का उल्लेख मिलता है।
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स्रोत:-
• विकिपीडिया एवं
• आयुर्वेद जड़ी-बूटी रहस्य (पतंजलि)
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