climate 9 in hindi | जलवायु 9 इंपोर्टेंट टापिक
भारत की जलवायु मानसूनी जलवायु कहलाती है। इस प्रकार की जलवायु मुख्य रूप से दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में पाई जाती है। आम तौर पर लगभग एकरूपता होते हुए भी देश की जलवायु-अवस्था में स्पष्ट प्रादेशिक अंतर हैं। ग्रीष्म ऋतु में राजस्थान के मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50° से० तक पहुँच जाता है, जबकि ठीक उसी समय जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20° से० रहता है। शीत ऋतु की रात में, जम्मू-कश्मीर में द्रास का तापमान -45° से० तक नीचे आ सकता है, जबकि केरल के तिरुवनंतपुरम् में यह 22° से० हो सकता है। इस पोस्ट में जलवायु चैप्टर से महत्वपूर्ण शब्दों के अर्थ एवं कारण जानेंगे जो जलवायु को समझने में मदद करेगा।
कुछ महत्वपूर्ण शब्दावली
जलवायु:-
एक विशाल क्षेत्र में लंबी समयावधि (30 वर्ष से अधिक) में मौसम की दशाओं तथा विविधताओं का कुल योग को जलवायु कहते हैं। विश्व के विभिन्न भागों में अलग-अलग जलवायु पाई जाती है। जैसे भारत तथा आसपास मानसूनी जलवायु, ऊंच अक्षांशों में शीत जलवायु, सहारा जैसे बंजर और शुष्क क्षेत्रों में मरूस्थलीय जलवायु, पृथ्वी के बीचो बीच 0° के पास विषुवतीय जलवायु पायी जाती है। जिनकी अलग-अलग विशेषताएं पाई जाती है।
मौसम:-
एक विशेष समय में छोटी अवधि में एक क्षेत्र की वायुमंडलीय दशाओं को मौसम कहते हैं।
वायुमंडलीय दशाएं/वायुमंडलीय अवस्था/जलवायु के तत्व:-
तापमान, वर्षा, आर्द्रता, वायुमंडलीय दाब, पवन इत्यादि।
मानसून:-
मानसून शब्द की व्युत्पत्ति अरबी शब्द मौसिम से हुई है। जिसका शाब्दिक अर्थ मौसम होता है।
मानसूनी पवनें:-
जो पवनें ऋतुओं के अनुसार अपने दिशा में परिवर्तन लाती है, उन्हें मानसूनी पवनें कहते हैं।
मानसूनी जलवायु:-
वर्ष भर में पवनों की दिशा में होने वाले ऋतुवत परिवर्तन को ही मानसूनी पवनें तथा इससे संबंधित जलवायु को मानसूनी जलवायु कहते हैं।
कोरिआलिस बलः-
पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न आभासी बल को कोरिआलिस बल कहते हैं। इस बल के कारण पवनें पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर विक्षेपित हो जाती हैं। इसे ‘फेरेल’ का नियम भी कहा जाता है।
जेट धाराः-
ये एक संकरी पट्टी में स्थित क्षोभमंडल में अत्यधिक ऊँचाई (12,000 मीटर से अधिक) वाली पश्चिमी हवाएँ होती हैं। इनकी गति गर्मी में 110 कि॰मी॰ प्रति घंटा एवं सर्दी में 184 कि॰मी॰ प्रति घंटा होती है। बहुत-सी अलग-अलग जेट धाराओं को पहचाना गया है। उनमें सबसे स्थिर मध्य अक्षांशीय एवं उपोष्ण कटिबंधीय जेट धाराएँ हैं।
पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ:-
मर्दी के महीनों में उत्पन्न होने वाला पश्चिमी चक्रवातीग विक्षोभ भूमध्यसागरीय क्षेत्र से आने वाले पश्चिमी प्रवाह के कारण होता है। वे प्रायः भारत के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। उष्ण कटिबंधीय चक्रवात मानसूनी महीनों के साथ-साथ अक्टूबर एवं नवंबर के महीनों में आते है तथा ये पूर्वी प्रवाह के एक भाग होते हैं एवं देश के तटीय क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। क्या आपने आंध्र प्रदेश एवं उड़ीसा के तटों पर उनके द्वारा किए गए विनाश के बारे में पढ़ा या सुना है?
अंतः उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र:-
ये विषुवतीय अक्षांशों में विस्तृत गर्त एवं निम्न दाब का क्षेत्र होता है। यहीं पर उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें आपस में मिलती हैं। यह अभिसरण क्षेत्र विषुवत् वृत्त के लगभग समानांतर होता है, लेकिन सूर्य की आभासी गति के साथ-साथ यह उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता है।
एलनीनो:-
ठंडी पेरू जलधारा के स्थान पर अस्थायी तौर पर गर्म जलधारा के विकास को एलनीनो का नाम दिया गया है। एलनिनो स्पैनिश शब्द है, जिसका अर्थ होता है बच्चा तथा जो कि बेबी क्राइस्ट को व्यक्त करता है, क्योंकि यह धारा क्रिसमस के समय बहना शुरू करती है। एलनिनो की उपस्थिति समुद्र की सतह के तापमान को बढ़ा देती है तथा उस क्षेत्र में व्यापारिक पवनों को शिथिल कर देती है। जिससे भारत की ओर आने वाली द. प. मानसूनी पवनें प्रभावित होती है और वर्षा कम होती है।
महावट:-
शीत ऋतु में उत्तरी मैदानों में पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ से होने वाली वर्षा को स्थानीय तौर पर महावट के नाम से जाना जाता है।
काल वैशाखी:-
ग्रीष्म ऋतु के वैशाख माह में गरज के साथ होने वाली वर्षा को प. बंगाल में काल वैशाखी के नाम से जाना जाता है।
आम्र वृष्टि/आम्र वर्षा:-
ग्रीष्म ऋतु के अंत में कर्नाटक एवं केरल में मानसून पूर्व वर्षा होती है। इसके कारण आम जल्दी पक जाते हैं तथा प्रायः इसे ‘आम्र वर्षा’ भी कहा जाता है।
वृष्टि छाया:-
पर्वत या ऊंचे भूभाग में जहां एक तरफ की ढलान पर अधिक वर्षा तो विपरीत वाले ढलान पर बहुत कम वर्षा होती है। इसी विपरीत ढलान जहां बहुत कम वर्षा होती है उसे वृष्टि छाया कहा जाता है। जैसे कर्नाटक में पश्चिमी घाट के पूर्वी भाग वृष्टि छाया का बड़ा उदाहरण है। यहां दक्षिण पश्चिमी पवन से पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढलान पर अधिक वर्षा होती है, वहीं ये पवनें जब पश्चिमी घाट पार कर पूर्व की ढलान पर पहुंचती है तो बहुत कम होती है। क्योंकि पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढलान पर बादल में मौजूद पानी बरस जाता है।
स्टैलैग्माइट और स्टैलैक्टाइट गुफा:-
ये दोनों आकृति चुनापत्थर क्षेत्र में चुना पत्थर की गुफा में बनने वाली आकृति है। स्टैलैग्माइट नीचे से उपर की ओर छत को छुने से पहले बनी स्तंभ को कहते हैं, जबकि स्टैलैक्टाइट गुफा में उपर से नीचे लटकने धरातल को छुने से पहले बनने वाली स्तंभ को कहा जाता है। जब ये दोनों स्तंभ या तो उपर या फिर नीचे जुड़ जाती है तो इसे गुफा स्तंभ कहा जाता है।
•राजस्थान में घरों की दीवार मोटी तथा छत चपटी क्यों होती है?
उत्तर:- राजस्थान में ग्रीष्म ऋतु में दिन का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है। अतः अत्यधिक गर्मी से बचने के लिए घरों की दीवारें मोटी होती हैं। यहाँ वर्षा बहुत कम होती है अतः घरों की छत चपटी होती है।
•तराई क्षेत्र तथा गोवा एवं मैंगलोर में ढाल वाली छतें क्यों होती हैं?
उत्तर:- तराई क्षेत्र तथा गोवा एवं मंगलौर में भारी वर्षा होती है। वर्षा का पानी शीघ्रता से छतों से निकल जाय और वर्षा से घरों को नुकसान न हो इसलिये यहाँ घरों की छतें ढाल वाली होती है।
•असम में प्रायः कुछ घर बाँस के खंभों (Stilt) पर क्यों बने होते हैं?
उत्तर:- असम बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। यहाँ के अधिकतर भागों में लगभग प्रत्येक वर्ष बाढ़ आती है और जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। साथ ही असम में बाँस बहुतायत से होता है अतः बाढ़ के पानी से बचने के लिए कुछ घर बाँस के खम्भों पर बनाए जाते हैं।
•विश्व के अधिकतर मरुस्थल उपोष्ण कटिबंधीय भागों में स्थित महाद्वीपों के पश्चिमी किनारे पर क्यों स्थित हैं?
उत्तर:- ये भाग उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्ध क्षेत्र में स्थित है जहाँ उच्चदाब वाली शुष्क पवनें नीचे उतरती हैं अतः इनसे वर्षा नहीं होती। दूसरे उपोष्ण कटिबन्धीय भागों में स्थित महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों के साथ-साथ ठंडी महासागरीय धाराएँ चलती हैं जो वर्षा में बाधक होती हैं। इन दो कारणों से इन भागों में अधिकतर मरुस्थल पाए जाते हैं।
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