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International Tiger Day in hindi | अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस

On: July 28, 2025 9:09 PM
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हर वर्ष दुनियां में 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस (International Tiger Day) के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस वर्ष 2010 से लुप्त प्राय बड़ी बिल्ली बाघ को बचाने और संरक्षण के लिए शुरू किया गया था। वर्तमान समय में भारत समेत विश्व के 13 देशों में करीब 4 हजार बाघ पाये जाते हैं, जिनमें तकरीबन 70% बाघ का निवास स्थल भारत है।

विषय सूची:-
☆ अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस की शुरुआत
☆ बाघ परियोजना के उद्देश्य
☆ बाघों की संख्या के कम होने के प्रमुख कारण
☆ विश्व में बाघ के अवास स्थल
☆ भारत में बाघ परियोजना

29 जुलाई 2010 को रूस के सेंट पीट्सबर्ग में एक टाइगर समिति के दौरान विश्व भर में बाघों की घटती संख्या के संदर्भ में एक समझौता किया गया था। जिसके बाद रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतीन के पहल पर 29 जुलाई को हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने की शुरुआत हुई। रूसी राष्ट्रपति ने अमूर बाघ को बचाने के लिए इसे अपना मिशन बना लिया है। उन्होंने रूस में बाघों के अवैध शिकार, अवैध व्यापार, परिवहन या भंडारण के लिए काफी कठोर दंड और लंबी जेल की सजा देने वाले कानूनों पर हस्ताक्षर भी किए।

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस हम सभी को यह याद दिलाता है कि बाघों का संरक्षण केवल सरकार की नहीं, बल्कि हम सभी लोगों की है। यदि हम इनके प्राकृतिक आवास और जीवन को सुरक्षित रखें, तो हम आने वाली पीढ़ियों को भी यह शानदार जीव दिखा सकेंगे।

इस दिवस पर विभिन्न देश, वन्यजीव संगठन, स्कूल और समाजिक संस्थाएं बाघ संरक्षण से जुड़ी गतिविधियाँ जैसे रैली, पोस्टर प्रतियोगिता, वृक्षारोपण एवं जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

  • बाघों की हड्डियों से औषधियों एवं खालों के लिए बाघों को मारकर उनका व्यापार करना।
  • सघन वनों में कमी के कारण बाघों के आवासीय स्थलों का सिंकुडना।
  • बाढ़, सूखा और जंगल की आग बाघों की आबादी और उन पारिस्थितिक तंत्रों के लिए खतरा पैदा करती हैं जिन पर वे निर्भर हैं।
  • बाघों के भोजन जैसे हिरण, खरगोश, जंगली भैंसा आदि की संख्या में लगातार कमी होना।
  • वन क्षेत्रों और टाइगर रिजर्व क्षेत्रों के समीप आवास स्थल होने से मानव और बाघ के बीच परस्पर संघर्ष से बाघ की संख्या में कमी आई है।
  • भारी धातुएँ और कैडमियम जैसे औद्योगिक प्रदूषकों से पर्यावरण संदूषण बाघों के आवासों में जमा हो सकता है, जिससे बाघों के स्वास्थ्य और प्रजनन सफलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

विश्व में बाघ दक्षिण – पूर्व एशिया के कुछ देशों तथा रूस में पाये जाते हैं। ये देश हैं- भारत, नेपाल, रूस, बांग्लादेश, भूटान, थाइलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, चीन, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, म्यांमार।

वन्यजीवन संरचना में बाघ (टाईगर) एक महत्त्वपूर्ण जंगली जाति है। 1973 में अधिकारियों ने पाया कि देश में 20वीं शताब्दी के आरंभ में बाघों की संख्या अनुमानित संख्या 55,000 से घटकर मात्र 1,827 रह गई है। बाघों को मारकर उनको व्यापार के लिए चोरी करना, आवासीय स्थलों का सिकुड़ना, भोजन के लिए आवश्यक जंगली उपजातियों की संख्या कम होना और जनसंख्या में वृद्धि बाघों की घटती संख्या के मुख्य कारण हैं।

बाघों की खाल का व्यापार, और उनकी हड्डियों का एशियाई देशों में परंपरागत औषधियों में प्रयोग के कारण यह जाति विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गई है। चूँकि भारत और नेपाल दुनिया की दो-तिहाई बाघों को आवास उपलब्ध करवाते हैं, अतः ये देश ही शिकार, चोरी और गैर-कानूनी व्यापार करने वालों के मुख्य निशाने पर हैं।

बाघ परियोजना “Project tiger” विश्व की बेहतरीन वन्य जीव परियोजनाओं में से एक हैं। इस परियोजना की शुरुआत 1 अप्रैल 1973 को उत्तराखंड स्थित “जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान” से किया गया। प्रारंभ में 9 बाघ परियोजना की शुरुआत की गई, जो वर्तमान में बढ़कर 50 हो गयी है। वर्ष 2006 में भारत में बाघों की संख्या 1411 थी जो 2010 में 1706 और 2014 में 2226 हो गई। 29 जुलाई 2019 को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर प्रधानमंत्री ने बाघ रिपोर्ट 2018 प्रस्तुत किया। जिसके तहत भारत में बाघों की संख्या बढ़कर “2967” हो गई। वर्ष 2022-23 में हुए बाघ गणना के अनुसार भारत में 3167 बाघ हैं।

भारत के करीब 18 राज्यों में बाघ पाये जाते हैं। मध्यप्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश, केरल, असम जैसे राज्यों में बाघों की संख्या 150 से 600 के बीच है। जो भारत के करीब 50 अभयारण्यों एवं राष्ट्रीय उद्यानों में विचरण करते हैं। जहां तक झारखंड की बात है यहाँ एक मात्र बेतला नेशनल पार्क, लातेहार में चार से पांच बाघ पाये जाते हैं।

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अगर सही मार्ग पर चला जाए तो सफलता निश्चित है। अभ्यास सफलता की कुंजी मानी जाती है, और यह अभ्यास यदि सही दिशा में हो तो मंजिल मिलने में देर नहीं लगती। इस लिए कहा भी गया है:- " करत-करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान। रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान।।"

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