परिचय (Introduction)
भारत में हर राज्य अपनी संस्कृति और परंपराओं से अलग पहचान रखता है। इन्हीं में से एक है झारखण्ड—जहाँ की संस्कृति में जनजातीय जीवन, लोककला, लोकनृत्य और त्यौहारों का विशेष स्थान है।
झारखण्ड के त्योहार सिर्फ धार्मिक मान्यताओं तक सीमित नहीं हैं बल्कि यह प्रकृति, कृषि, भाईचारे और सामुदायिक जीवन से गहराई से जुड़े हुए हैं।
झारखण्ड के जनजातीय समाज का जीवन इन पर्वों के बिना अधूरा है। आइए विस्तार से जानते हैं झारखण्ड के प्रमुख त्योहारों के बारे में।
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1. सरहुल पर्व (Sarhul Festival)
- समय: चैत्र मास (मार्च–अप्रैल)
- महत्व: सरहुल का अर्थ है “फूलों का त्योहार”।
- इस पर्व में साल वृक्ष (Sal Tree) की पूजा की जाती है।
- गाँव का पुजारी जिसे “पाहन” कहते हैं, पूरे समाज की भलाई के लिए प्रार्थना करता है।
- लोग नए कपड़े पहनकर नृत्य और गीत गाते हैं।
- यह त्योहार प्रकृति और मानव के बीच गहरे रिश्ते को दर्शाता है।
2. कर्मा पर्व (Karma Festival)
- समय: भाद्रपद मास (सितंबर–अक्टूबर)
- महत्व: कर्मा पर्व भाई-बहन के रिश्ते और प्रकृति संरक्षण का प्रतीक है।
- इसमें युवा लड़के और लड़कियाँ कर्मा वृक्ष की डाल लाकर उसकी पूजा करते हैं।
- ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की थाप पर पूरी रात नृत्य और गीत होते हैं।
- महिलाएँ अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
3. तुसु पर्व (Tusu Festival)
- समय: मकर संक्रांति (जनवरी)
- महत्व: तुसु पर्व कृषि और फसल कटाई से जुड़ा हुआ त्योहार है।
- यह खासकर युवा लड़कियों और किसानों द्वारा बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
- “तुसु गीत” गाए जाते हैं और पूरे गाँव में मेले जैसा माहौल रहता है।
- यह पर्व झारखण्ड की लोककला और लोकगीतों का जीवंत उदाहरण है।
4. सोहराय पर्व (Sohrai Festival)
- समय: दीपावली के आसपास
- महत्व: यह पर्व पशुधन और कृषि से जुड़ा है।
- इस दिन घरों की दीवारों पर खूबसूरत पेंटिंग्स और पारंपरिक चित्र बनाए जाते हैं।
- पशुओं को नहलाकर, सजाकर उनकी पूजा की जाती है।
- सोहराय पर्व प्रकृति, पशु और मानव के सामंजस्य का प्रतीक है।
5. मागे परब (Mage Parab)
- समय: माघ मास (जनवरी–फरवरी)
- महत्व: यह त्योहार खासकर हो जनजाति द्वारा मनाया जाता है।
- यह पर्व नए साल और नई फसल का स्वागत करने का प्रतीक है।
- लोग नृत्य, गीत और सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं।
6. जानी–शिकार (Jani Shikar)
- यह त्योहार महिलाओं द्वारा मनाया जाता है।
- इसमें महिलाएँ शिकार का नाटक करती हैं और अपने साहस का प्रदर्शन करती हैं।
- यह पर्व महिलाओं की शक्ति और स्वतंत्रता को दर्शाता है।
7. फागुनी पर्व (Phaguni Parva)
- यह पर्व होली के समय मनाया जाता है।
- लोग रंगों से खेलते हैं, नृत्य और गीत गाते हैं।
- यह पर्व खुशहाली, एकता और आनंद का प्रतीक है।
8. जुम्ला/छठ पूजा (Chhath Puja)
- महत्व: सूर्य देवता और प्रकृति की उपासना के लिए मनाया जाता है।
- समय: अक्टूबर-नवम्बर (छठ व्रत)
- प्रमुख गतिविधियाँ: सूर्य उपासना, नदी के किनारे अरघ्य देना, लोकगीत।
झारखण्ड के त्योहारों की विशेषताएँ
- प्रकृति से जुड़ाव: अधिकांश पर्व पेड़-पौधों, नदियों और पशुधन से जुड़े हैं।
- सामुदायिक भावना: सभी त्योहार सामूहिक रूप से मनाए जाते हैं।
- लोकनृत्य और संगीत: हर पर्व में नृत्य और लोकगीत का विशेष महत्व है।
- महिलाओं की भागीदारी: कई पर्वों में महिलाएँ मुख्य भूमिका निभाती हैं।
- सांस्कृतिक धरोहर: यह त्योहार झारखण्ड की पहचान और गर्व हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
झारखण्ड के पर्व और त्यौहार सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि ये जीवन-शैली, संस्कृति और सामाजिक एकता के प्रतीक हैं।
सरहुल, कर्मा, तुसु, हराय जैसे प्रमुख त्योहार न केवल झारखण्ड की जनजातीय संस्कृति को दर्शाते हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़े रखते हैं।
इसीलिए कहा जाता है कि – “झारखण्ड के त्योहार प्रकृति, संस्कृति और समाज को जोड़ते हैं।”