पितृपक्ष 2025 – झारखंड में महत्व, रीति-रिवाज और पूजा | Pitru Paksha 2025 – Significance, Rituals & Worship in Jharkhand
“पितृपक्ष 2025 झारखंड में कब है और इसका महत्व क्या है? जानें पितृपक्ष की तिथियाँ, पूजा विधि, रीति-रिवाज और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण तथ्य।”
परिचय (Introduction)
पितृपक्ष हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे पूर्वजों की पूजा और श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है। यह समय हमारे पूर्वजों को श्राद्ध और तर्पण करने का होता है।
झारखंड जैसे राज्य में यह पर्व गांवों और शहरों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है, और यह ग्रामीण जीवन और संस्कृति का हिस्सा भी है।
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पितृपक्ष के दौरान कृषि, मौसम और धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व होता है। प्रतियोगी परीक्षाओं और सामान्य ज्ञान के लिए पितृपक्ष की तिथियाँ और रीति-रिवाज याद रखना बहुत जरूरी है।
पितृपक्ष का महत्व (Significance of Pitru Paksha)
- पूर्वजों की श्रद्धांजलि
- पितृपक्ष का मुख्य उद्देश्य हमारे पूर्वजों के प्रति आदर और कृतज्ञता व्यक्त करना है।
- इसे हिन्दू पंचांग के अनुसार श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं।
- धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
- इस समय किए गए तर्पण और पिंडदान से मृतात्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- पुराणों के अनुसार, जो लोग इस अवधि में अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं, उनके घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
- सांस्कृतिक महत्व
- ग्रामीण झारखंड में पितृपक्ष के दौरान समुदाय के लोग एक साथ पूजा, भोज और सामूहिक अनुष्ठान करते हैं।
- यह पर्व समाजिक मेलजोल और आदिवासी जीवन की संस्कृति को भी उजागर करता है।
झारखंड में पितृपक्ष (Pitru Paksha in Jharkhand)
1. तिथियाँ और अवधि (Dates & Duration)
- साल 2025 में: 7 सितंबर से 21 सितंबर तक
- यह 16 दिवसीय अवधि होती है, जिसे संध्या तर्पण और पिंडदान के लिए मान्यता प्राप्त है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में इस अवधि में पितृपक्ष मेले और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित होते हैं।
2. रीति-रिवाज (Rituals & Traditions)
- तर्पण: नदी या तालाब के किनारे जाकर पानी में हल्दी, कच्चा दूध और तर्पण सामग्री डालकर किया जाता है।
- पिंडदान: चावल और गेहूँ से बने पिंड (सांकेतिक भोजन) पूर्वजों के लिए अर्पित किए जाते हैं।
- भोजन और भोज: ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना इस पर्व का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- अन्य विशेष रीति: कुछ आदिवासी समुदाय जंगल की पत्तियों और फूलों से पूजा करते हैं।
3. झारखंड की विशिष्ट परंपरा (Jharkhand Specific Practices)
- संथाल और उरांव जनजातियाँ इस समय सामूहिक तर्पण और पूजा करती हैं।
- गांवों में सामूहिक भोज और गीत–नृत्य का आयोजन होता है।
- पितृपक्ष के दौरान स्थानीय नदी और तालाब को पवित्र माना जाता है और वहीं तर्पण किया जाता है।
पितृपक्ष पूजा विधि (How to Perform Pitru Paksha Rituals)
- स्नान और शुद्धिकरण
- घर के मुख्य मंदिर में दीपक और पवित्र जल रखें।
- स्नान और साफ कपड़े पहनकर पूजा प्रारंभ करें।
- तर्पण विधि (Tarpan Ritual)
- नदी, तालाब या पवित्र जल स्रोत के पास जाएँ।
- जल में तर्पण सामग्री डालकर पूर्वजों के नाम का स्मरण करें।
- पिंडदान विधि (Pind Daan Ritual)
- गेहूँ या चावल के छोटे पिंड बनाएं।
- इन्हें नदी के किनारे या घर के पवित्र स्थान पर अर्पित करें।
- भोजन और दान
- ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराएँ।
- यह दान और सेवा पितरों को संतुष्ट करता है और पुण्य लाभ दिलाता है।
प्रतियोगी परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण तथ्य (Important for Competitive Exams)
- पितृपक्ष कब मनाया जाता है? 7–21 सितंबर 2025
- मुख्य उद्देश्य: पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना
- झारखंड में मुख्य रीति: तर्पण, पिंडदान और सामूहिक भोज
- प्रतियोगी परीक्षा प्रश्न:
- पितृपक्ष कितने दिनों का होता है? – उत्तर: 16 दिन
- पितृपक्ष में किसे भोजन कराया जाता है? – उत्तर: ब्राह्मण और जरूरतमंद
- पितृपक्ष का मुख्य उद्देश्य क्या है? – उत्तर: पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना
रोचक तथ्य (Interesting Facts)
- पितृपक्ष में जल स्रोत को पवित्र माना जाता है।
- झारखंड के आदिवासी समुदाय जंगल की पत्तियों और फूलों से पूजा करते हैं।
- इस समय गाँवों में सामूहिक भोजन और मेलों का आयोजन होता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
पितृपक्ष 2025 झारखंड में न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और समाजिक मेलजोल इस पर्व की असली पहचान हैं।
Gyantarang.com पर इस ब्लॉग को पढ़कर आप पितृपक्ष की पूरी जानकारी, पूजा विधि और प्रतियोगी परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण तथ्य जान सकते हैं।