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Savitribai Phule natak in hindi | सावित्री बाई फूले नाटक

On: September 27, 2024 9:50 PM
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Savitribai Phule natak in hindi | सावित्री बाई फूले नाटक

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सावित्री बाई फुले नाटक

नारी शिक्षा के अग्रदूत सावित्री बाई फूले | लघु नाटिका


आकाशवाणी (भूमिका):- भारत के इतिहास में 19वीं शताब्दी के पूर्वाध का काल पूर्णजागरण के नाम से जाना जाता है। उस समय भारतीय समाज घोर ब्राह्मणवाद और अंधविश्वास व्याप्त था। यह काल बाल विवाह, महिलाओं का शोषण, छुत – अछुत और सति प्रथा से जकड़ा हुआ था। इस प्रकार के शोषण युक्त भारतीय समाज में एक स्त्री का भविष्य क्या होगा, उनकी दशा – दिशा क्या होगी! वो एक स्त्रिी ही समझ सकती है, और ऐसे ही समय में महाराष्ट्र के सतारा जिले में 3 जनवरी 1831 को भारत की पहली महिला शिक्षिका, महान समाज सेवी और नारी चेतना के अग्रदूत सावित्री बाई फूले का जन्म हुआ। उस समय भारतीय समाज के किसी भी जाति में महिलाओं के लिए शिक्षा एक पाप समझा जाता था। लेकिन इन विकट परिस्थितियों के वावजूद सावित्री बाई को पढाई करने की खुब इच्छा थी। हम इस कहानी को उस समय से शुरू कर रहे हैं, जब समाज की एक गंभीर कुरूती “बाल विवाह” के कारण 9 साल की सावित्री की शादी 13 साल के ज्योतिबा से कर दिया जाता है।


दृश्य:- 1
खपरेल का घर, घर के बाहर एक चारपाई (खटिया), सावित्री बाई और ज्योतिबा का घर आना, (गले में वर माला पहने) परंपरागत शादी का म्यूजिक / शहनाई बजना (1 मिनट)
ज्योतिबा:- सावित्री आज हम दोनों विवाह के बंधन मे बंध गये हैं। मैं वचन देता हूँ जीवन भर तुम्हारे सुख – दुःख में साथ रहेंगे।
सावित्री – (सावित्री बाई ज्योतिबा का हाथ पकड़ते हुए) हां स्वामी मैं भी आपके हर कार्य में सहभागी बनुंगी। (दोनों खाट पर बैठ जाते हैं।)
ज्योतिबा:- (ज्योतिबा सावित्री को स्लेट और खली देते हुए)
मैं जानता हूं सावित्री तुम भी हमारी तरह पढ़ना – लिखना चाहती हो। (सावित्री हां में सिर हिलाती है)
मैं तुम्हें पढाऊंगा, ये लो (स्लेट और चाक सावित्री को देते हुए)
सावित्री:- सच, आप मुझे पढ़ायेंगें, बहुत अच्छा लगेगा।
(सावित्री स्लेट लेकर पढ़ने लगी)
(ज्योतिबा सावित्री को पढा़ते है।)
क ख ग घ ङ
क म ल = कमल
1
2
3
4
.
.
आकाशवाणी:- और इस तरह सावित्री बाई की शिक्षा आरंभ हुई। समय के साथ – साथ उनकी उम्र भी बढ़ती गई और उनके बीच का प्यार भी।
जब दोनों बड़े हुए तब ज्योतिबा ने आगे की पढ़ाई के लिए सावित्री बाई का एडमिशन पास के छोटे शहर अहमदनगर में स्थित एक मिशनरी स्कूल में कराई। लेकिन नारी शोषण से युक्त उस समाज में एक स्त्री को शिक्षा ग्रहण करना आसान न था। पेशवा और ब्राह्मणों ने उनकी शिक्षा में कई तरह की रूकावटें डालने का प्रयास किया।

दृश्य:- 2
(सावित्री का मिशनरी स्कूल पढ़ने जाने का दृश्य है। Back Ground म्यूजियक के बीच सावित्री बाई संड़क पर जा रही है। ब्राह्मणों का एक ग्रुप हाथों में लाठी लिये रास्ता रोकता है।)
एक ब्राह्मण:- (लाठी के सहारे सावित्री का रास्ता रोकते हुए) रूको
सावित्री:- तुम कौन हो और तुम्हारा साहस कैसे हुआ मेरा रास्ता रोकने का!
दुसरा ब्राह्मण:- (सामने आते हुए) सुना है तुम ज्योतिबा की पत्नी हो, ज्योतिबा की तरह तुम भी उड़ रही हो, ज्यादा फडफडायेगी तो पंख तोड़ देंगे। तुमको पढ़ने का अधिकार नहीं है। एक स्त्री पढ़ेगी तो समाज में पुरूषों की ओकात क्या रह जाएगी।
(सावित्री दोनों हाथ से रास्ता रोक रहे ब्राह्मणों को हटाते हुए स्कूल के लिए आगे बढ़ जाती है)
दुसरा ब्राह्मण:- सुनो सावित्री, आज से पढ़ने का भूत दिमाग से उतार दो, नहीं तो इसका परीणाम भयंकर होगा।
आकाशवाणी:- इस प्रकार सावित्री बाई इन ब्राह्मणों का विरोध और यातनाओं को सहते हुए अन्तत: ज्योतिबा के सहयोग से सावित्रीबाई ने शिक्षा भी पूरी कर ली थी, लेकिन समाज में महिलाओं की दुर्दशा उस वक्त भी नहीं बदली थी। यही सोच – सोच कर ज्योतिबा चिंतित हो रहे थे ।

दृश्य:- 3
(सावित्री चुल्हे पर खाना बना रही है। ज्योतिबा बरामदे में चिंतित मुद्रा में टहल रहे हैं। (1:30 मिनट का बैक ग्राउंड म्यूजियम)
(सावित्री एक हाथ में थाली (रोटी – सब्जी) दुसरे हाथ में लोटा लिए ज्योतिबा के पास पहुंचती है।)
सावित्री बाई:- (ज्योतिबा को बरामदे में चिंतित मुद्रा में टहलते हुए देखकर कुछ सेकेंड रूकती है फिर बोलती है)
क्या बात है आप इतने परेशान क्यों है चलिए नास्ता कर लिजिए।
ज्योतिबा:- (ज्योतिबा लोटा हाथ में लेते हैं हाथ धोते हुए खाने पर बैठते हुए बोलते हैं)
सावित्री कितनी अजीब बात है, हम अपने आंगन को साफ देखना पसंद करते हैं, पर अपने समाज को नहीं! पानी तब तक स्वच्छ रहता है जब तक वह बहता है। इसी प्रकार समय के साथ-साथ हमारे विचार हमारे समाज आगे नहीं बढ़ा तो हम पीछड़ जाएंगे, मलिन ही रह जाएंगे।
सावित्री बाई:- क्या समस्या है जो आपको इतना विचलित कर रही है।
ज्योतिबा:- स्त्रियों की दुर्दशा। स्त्रियों की दुर्दशा, मुझसे देखी नहीं जा रही है और उस दुर्दशा का एक ही निराकरण है स्त्रियों को शिक्षित करना। सावित्री मैंने तुम्हें शिक्षा देकर एक दिए को जलाया है, क्या हम उसे दिए से हजार दिए नहीं जला पाएंगे? तुम मेरे लिए उसे निश्चय को पूरा कर सकती है।
सावित्री बाई:- आपका प्यार और आपका विश्वास है मेरे लिए प्रतिबद्धता है।
ज्योतिबा:- सोच लो! रास्ता बहुत ही कठिन है। पेशवा और ब्राह्मण यह कभी नहीं होने देना चाहेंगे कि स्त्री पढ़े! इसमें कई अड़चनें आएगी, तुम्हें उन अड़चनों और संकटों को पार पाना होगा।
सावित्री बाई:- अगर आपका साथ रहा तो सारी अड़चने और मुश्किलें दूर हो जाएगी। (सावित्री ज्योतिबा का हाथ अपने हाथ में रखते हुए) अंधकार कितना भी गहरा हो एक सूरज उस अंधकार को दूर करने के लिए काफी होता है।
आकाशवाणी:- सावित्रीबाई फुले ने पति ज्योतिबा के साथ मिलकर देश में महिला शिक्षा की नींव रखी थी, और वह देश की पहली महिला अध्यापिका बन गई थी और वह गांव में घर-घर जाकर बालिकाओं को शिक्षा के लिए आमंत्रित किया।
दृश्य:- 4
(सावित्री बाई आकाशवाणी के दौरान गल्ली से गुजरती है हाथों में एक डायरी है)
सावित्री:- (एक घर में) काका मैं बालिकाओं को शिक्षित करना चाहता हूं। क्या आप नहीं चाहते कि आपकी बेटियां, पढ़ – लिखकर शिक्षित हो, कुछ बने! क्या आप यह चाहते हैं कि वह सब भी वे भुगते जो अभी तक महिलाएं भुगत रही थी। आपकी बटियों को भी शिक्षा पर उतना ही अधिकार है जितना बेटों का! आप मेरा भरोसा कीजिए मेरा विश्वास कीजिए।
एक व्यक्ति:- नहीं करना है भरोसा, माय – मुर्गियों को नहीं पढ़ना है, यहां से जोओ।
आकाशवाणी:- उनके इस कदम का बहुत लोगों ने विरोध किया तो कुछ लोगों ने समर्थन भी किया। ऐसा करके उन्होंने घोर ब्राह्मणवाद के वर्चस्व और पेशवा साम्राज्य को सीधी चुनौती देने का काम किया था।

दृश्य:- 5
(पेशवा गद्दी पर बैठा है, द्वार पाल ब्राह्मण के आने की सूचना देता है। आज्ञा प्राप्त होने के बाद ब्राह्मण पेशवा के समक्ष उपस्थित होता है।
पेशवा:- कहो क्या बात है ब्राह्मण
ब्राह्मण:- वो हमारी धार्मिक मान्यताओं को चुनौती और सामाजिक परम्पराओं का अपमान करे, हम ये कदाचित सहन नहीं करेंगे।
पेशवा:- जल के प्रवाह को कौन रोक पाया है पंडित! और इन छोटे-मोटे कंकड़ों से कुछ फर्क नहीं पड़ता। समुद्र हो या नदी! साम, दाम, दंड, भेद जो करना है करेंगे, परंतु उसे सावित्रीबाई को शिक्षा देने से आज रोकेंगे।
ब्राह्मण:- जी महराज
(सभी विद्यालय के लिए निकल जाते हैं साथ में एक अंग रक्षक भी है)

दृश्य:- 6
(विद्यालय का दृश्य, सावित्री बाई विद्यालय में बालिकाओं को पढ़ा रही है)
सावित्री बाई:- बच्चों शिक्षा तो एक ऐसा प्रकाश है जिससे जीवन के सारे अंधकार दूर हो जाते हैं। शिक्षा तो एक शक्ति है जिससे हम अपने अंदर की सारी कमजोरी को दूर कर सकते हैं।
सावित्रीबाई:- विद्या पर हम सब का अधिकार है विद्या के लिए कोई उच्च नीच छूट कुछ नहीं होता शिक्षा तो एक पारस की तरह जिसे छूने मात्र से इंसान का दीवाना चमकने लगता है। विद्या से इंसान केवल अपना ही नहीं बल्कि पूरे समाज का विकास करता है समझे मेरी बात
सभी बच्चे:- (एक साथ) जी
(बैकग्राउंड म्यूजिक के बीच ब्राह्मण और पेशवा का आना)
पेशवा:- (विद्यालय पहुंचकर) बंद करो ये सब। बच्चों तुम सब अपने घर जाओ।
( बच्चे घर जाने लगते हैं सावित्री रोकने का प्रयास करती है फिर भी बच्चे नहीं रूकते।
पेशवा:- (बच्चों को) यहां आने का दुस्साहस नहीं करना
सावित्रीबाई:- (बच्चों से) अरे सुनो, रूको, ठहरो, सुनो
( जब सब बच्चे जाने लगते हैं तब सावित्री भी वहां से जाने लगती है इसी बीच पेशवा बोलता है)
पेशवा:- रूको, हमारी बराबरी करने की चेष्टा ना करो। नहीं तो हमारा एक निर्देश में ऐसा दण्ड मिलेगा कि तुम्हारी सारी निष्ठा मिट्टी में मिल जाएगी। हम स्वयं यहाँ के व्यवस्था है। हमसे ना टकराना।
देखो सावित्री यदि कल तक तुमने अपना ये प्रयास बंद नहीं किया तो कल के सूर्यास्त तक तुम सदा – सदा के लिए अस्त हो जाओगे।
सावित्री बाई:- एक सावित्री के अस्त होने से मेरा निश्चय अस्त नहीं होगा महाराज! लोगों को शिक्षित करना कोई अपराध तो नहीं!
पेशवा:- अरे हमारे शास्त्रों का विरोध करना अपराध है।
सावित्री:- किसी भी शास्त्र में तो ये नहीं लिखा है कि शिक्षा प्राप्ति अपराध है।
पेशवा:- तुम अब हमें ज्ञान दोगी हाॅन, सावित्री! हमें ज्ञान दोगी, हाॅ, सावित्री हमें ज्ञान दोगी।
सावित्री:- नहीं, मैं अज्ञानता मिटा रहा हूं।
पेशवा:- इसका परीणाम बहुत बुरा होगा।
सावित्री:- चिंता नहीं
पेशवा:- अरे बहिष्कृत कर देंगे तुम्हें, दाना – पानी उठ जाएगा इस गाँव से।
सावित्री:-तो एक नये समाज का निर्माण होगा।
पेशवा:- तो तुम हमें ललकार रही हो।
सावित्री बाई:- नहीं, महाराज! ये पुकार मेरी नहीं, बल्कि आने वाली कल की आहट है।
पेशवा:- अरे तुम्हारा आने वाला कल और भी दुश्वार होगा, सावित्री याद रखना।
सावित्री:- मुझे कल की नहीं काल की चिंता है।
पेशवा:- यहां के काल हम हैं, हम महाकाल हैं।
सावित्री बाई:- तो ठीक है अब आप ही मेरा निश्चय कीजिए कि आने वाला कल को दुस्वार करें, कि आने वाला कल आपको दुरुस्त करता है। (थोड़ा रूककर) आज्ञा दीजिए महाराज (हाथ जोड़कर सावित्री घर जाती है)
आकाशवाणी:- मगर पेशवा के विरोध के बावजूद भी सावित्री बाई के इरादे कमजोर नहीं हुए थे।

दृश्य:- 7
( सावित्रीबाई दूसरे दिन स्कूल के लिए निकलती है पीछे से ज्योतिबा आते हैं और उनसे कहते हैं)
ज्योतिबा:- सावित्री
सावित्री:- (रूकते हुए पिछे देखकर) जी
ज्योतिबा:- डर तो नहीं लग रहा है।
सावित्री:- नहीं, बिल्कुल भी नहीं।
ज्योतिबा:- कुछ भी हो सकता है।
सावित्री:- हम तो यही चाहते हैं कि आखिर कुछ तो हो।
ज्योतिबा:- ये लो इसकी जरूरत पड़ेगी (साड़ी देते हुए)
ज्योतिबा:- (साड़ी देने के बाद) सावित्री, तुम जिस रास्ते पर चल रही हो वहाँ तुम्हे इसकी जरूरत पड़ेगी। घर से लेकर विद्यालय तक सामाजिक कुरूतियों का कीचड़ है। और उस कुरूतियों की कीचड़ से सनी साड़ी पहनकर कैसे शिक्षित करोगी विद्यार्थियों को।
सावित्री बाई:- समझ गयी
(इतना कहकर सावित्री स्कूल के लिए चल पड़ती है।)
दृश्य:- 8
(रास्ते में जब सावित्री विद्यालय जा रही थी तब ब्राह्मण रास्ते में कीचड़, गोबर, पत्थर लेकर इंतजार कर रहे होते हैं।)
एक ब्राह्मण:- अरे ओ सावित्री कहां जा रही है बालिकाओं को पढ़ाने के लिए। अरे जानती नहीं बहुत बड़ा पाप कर रही है, पाप! क्यों भाई।
(सावित्री अनसुना कर देती है और आगे बढ़ जाती है)
आकाशवाणी:- समाज के बनाये हुए नियम, रिति और रिवाजों के खिलाफ सावित्री बाई ने अपने कदम बढ़ा लिए थे। दलित और कुचले समाजों के लिए उनके ये कदम इतिहास लिखने वाला था।)
(आगे रास्ते में फिर ब्राह्मण मिलते हैं सावित्री को घेर कर)
दुसरा ब्राह्मण:- अरे देख क्या रहे हो मारो – मारो
( और फिर सभी उन पर किचड़ – गोबर और पत्थर फेंकते हैं। सावित्री कीचड़ और गोबर से सन जाती है। इसके बाद वे उनका विरोध करती है अपनी चप्पल उठाती है। सावित्री को ऐसा करते देख ब्राह्मण पीछे हट जाते हैं के लिए इसके बाद वहां से उसे हालत में विद्यालय पहुंचती है। कीचड़ और गोबर से सनी सावित्री बाई विद्यालय पहुंचती है। विद्यालय में कपड़े बदलकर बच्चों को फिर एक नई ऊर्जा के साथ पढ़ना शुरू करती है।)
दृश्य:- 9
(विद्यालय का दृश्य है बच्चे कक्षा में हैं। एक कुर्सी लगी है। सावित्री विद्यालय में ही कीचड़ से सने गंदे कपड़े बदलकर कक्षा में पढ़ाने के लिए पहुंचती है।
सावित्री बाई:- बच्चों जितने भी मुसीबतें आएंगे हम लड़ेंगे और तुम्हें शिक्षित करेंगे आप सब साथ दोगे ना सभी बच्चे खड़े होकर हां में हां मिलाते हैं।
सभी बच्चियां बोलते हैं “हम अंधविश्वासी समाज से लड़ेंगे, शिक्षित होकर दिखाएंगे।”
(सावित्री सभी को गले लगा लेती है।
(इसके साथ ही यह लघु नाटिका समाप्त हो जाती है)
धन्यवाद:-

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प्रस्तुतीकरण
www.gyantarang.com
संकलन
महेन्द्र प्र. दांगी

Sindhu

अगर सही मार्ग पर चला जाए तो सफलता निश्चित है। अभ्यास सफलता की कुंजी मानी जाती है, और यह अभ्यास यदि सही दिशा में हो तो मंजिल मिलने में देर नहीं लगती। इस लिए कहा भी गया है:- " करत-करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान। रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान।।"

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