Types of mountain in the world in hindi
विश्व में पर्वत के प्रकार
धरातल पर सबसे ऊंचे उठे भू-भाग पर्वत के रूप में जाने जाते हैं, जिनका ढाल तीव्र होता है और सबसे ऊपर का भाग शंकु के आकार का होता है। यद्यपि पठार भी धरातल से ऊंचे उठे हुए भाग होते हैं, परंतु कुछ मामलों में यह पर्वत से भिन्न होते हैं। जहां पर्वतों का शिखर शंकु के आकार में तीव्र ढाल वाला होता है, वहीं पठारों का शिखर चौरस और सपाट होता है। धरातल पर मोड़दार, भ्रंशोत्थ, ज्वालामुखी, गुंबदाकार, अपशिष्ट जैसे पर्वत के प्रकार है। पर्वत भूपटल पर प्राथमिक स्थलाकृति के रूप में पहचाने गए हैं। ये भौगोलिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि पर्वत उस आस-पास के स्थान की जलवायु को प्रभावित करते हैं, जहां वे स्थित होते हैं। हिमालय जैसे पर्वतों का सामरिक महत्व भी है। यह भारत को चीन से प्राकृतिक सुरक्षा भी प्रदान करती है।
पर्वतों का निर्माण कई कारकों पर निर्भर रहा है। आज इस पोस्ट में आप देखने जा रहे हैं-
• पर्वत किसे कहते हैं
• पर्वत के समान दृष्टिगोचर अन्य स्थलाकृतियां
• पर्वत के प्रकार
• पर्वत निर्माण से संबंधित प्रमुख सिद्धांत
• विश्व के कुछ प्रमुख पर्वत श्रेणियां
• महाद्वीपों में स्थित सबसे ऊंची चोटियां
• पर्वत से संबंधित महत्वपूर्ण परीक्षोपयोगी तथ्य
पर्वत किसे कहते हैं
उस सुस्पष्ट उच्चभूमि (highland) को जिसमें एक या एक से अधिक शिखर (a summit or summits) हों, पर्वत कहा जाता है। धीमी ढाल से खड़ी ढाल को प्राप्त करते हुए वृहत् ऊँचाई तक पहुँचना पर्वत की अपनी विशेषता है। निम्न- भाग में यह ढाल 25° से 35° तक होती है, परन्तु शिखरों के पास ढाल अधिक तीव्र या खड़ी हुआ करती है। शिखर-क्षेत्र नीचे के आधार-क्षेत्र से बहुत ही कम हुआ करता है। नए पर्वत-शिखर प्रायः नुकीले और पुराने पर्वत-शिखर अपेक्षाकृत चपटे होते हैं। पर्वतों की ऊँचाई सैकड़ों मीटर से लेकर हजारों मीटर तक हो सकती है। साधारणत: 900 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र को पर्वत और कम ऊँचाई वाले पर्वत को “पहाड़ी” (hill) कहते हैं। झारखंड के गिरिडीह में स्थित पारसनाथ को पहाड़ी के रूप में जाना जाता है। जबकि इसकी ऊंचाई 1365 मीटर है।
पर्वत के समान दृष्टिगोचर अन्य स्थलाकृतियां
पर्वत के समान ही कुछ और अन्य ऊंची स्थलाकृतियां दिखाई पड़ती हैं जिसे पहाड़ी, पर्वत कटक, पर्वत श्रेणी, पर्वत प्रणाली और पर्वत श्रृंखला, पर्वत वर्ग के नाम से जाना जाता है।
• पहाड़ी (Hill):- पर्वतों के छोटे रूप को पहाड़ी कहा जाता है। इनकी ढाल की तीव्रता पर्वतों की तुलना में थोड़ी कम होती है। ये अपने आसपास के भूभाग से 1000 मीटर तक ऊंचे हो सकते हैं। जैसे पारसनाथ की पहाड़ी, नेतरहाट की पहाड़ी इत्यादि।
• पर्वत कटक (Mountain Ridge):- लंबे और सँकरे पर्वत को कुट या कटक (ridge) कहते हैं। जिसकी ढाल धीमी हो सकती है और तीव्र (खड़ी) भी।
• पर्वत श्रेणी (Mountain Range):- कटकों और शिखरों के समूह को जो प्रायः समानांतर हो और एक ही युग के तथा एक-सी प्रक्रियाओं द्वारा बने हों, पर्वतश्रेणी (mountain range) कहते हैं। हिमालय पर्वत श्रेणी इसका प्रमुख उदाहरण है।
• पर्वत प्रणाली (Mountain System) :- जब कई पर्वत श्रेणियाँ क्रमवार स्थित हों और सब-की-सब एक ही युग की बनी हों तो उनसे पर्वत प्रणाली (mountain system) बनती है। जैसे:- हिमालय, हिन्दूकुश, आल्पस इत्यादि पर्वत प्रणाली बनाते हैं।
• पर्वत श्रृंखला (Mountain Chain):- दो या अधिक पर्वत श्रेणियाँ अथवा पर्वत प्रणालियाँ जो अलग-अलग युगों में और अलग-अलग प्रक्रियाओं से बनी हैं। किन्तु एक लम्बी पंक्ति में जुट गयी हैं (स्थिर हैं), पर्वतश्रृंखला (mountain chain) कहलाती हैं। जैसे एप्लेशियन पर्वतमाला, रॉकी पर्वतमाला इत्यादि।
• पर्वत वर्ग (Mountain Group):- जब पर्वतों का समूह एक गोलाकार रूप में विस्तृत होता है। तथा उसकी श्रेणियां एवं कटक असमान रूप से विस्तृत होती है, तब उसे पर्वत वर्ग की संज्ञा दी जाती है।
• कार्डिलेरा या पर्वत समूह (Cordillera):- जब विभिन्न युगों में निर्मित पर्वत श्रेणी या पर्वत श्रृंखलाएं तथा पर्वत तंत्र एक साथ ही बिना किसी क्रम के विस्तृत होते हैं तब उसे कॉर्डिलेरा है या पर्वत समूह कहा जाता है।
पर्वत के प्रकार
(क) निर्माण-विधि (mode of origion) के अनुसार पर्वतों के चार वर्ग किए गए हैं-
(1) मोड़दार पर्वत (Folded Mountains)
(2) भ्रंशोत्थ पर्वत (Block Mountains)
(3) ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountains)
(4) गुंबदाकार पर्वत (Dome Mountains)
(5) अवशिष्ट पर्वत (Relict Mountains)
(1) मोड़दार पर्वत (Folded Mountains):-
मोड़दार पर्वतों का निर्माण ऐसी छिछली किन्तु लम्बे और सँकरे समुद्र में होता है, जिसमें तलछटीय जमाव (sediment deposit) होता रहता है। ऐसे छिछले समुद्र को भू-सन्नति या भू-अभिनति (geosyncline) कहते हैं। भू-सन्नति में नदियाँ अपरदित पदार्थों को लाकर भरती रहती हैं और तलछटी चट्टानों का निर्माण करती है। इन चट्टानों की परते क्षैतिज (horizontal) होती हैं। जमाव के भार से ये चट्टानें दबती जाती हैं। निक्षेपण और अवतलन का यह क्रम लंबे युग तक अर्थात लाखों वर्षों तक चलता रहता है। फलस्वरूप भू-सन्नति में हजारों मीटर मोटा तलछट जमा होता गया।
बढ़ते हुए दबाव के साथ भू-सन्नति का निचला भाग जब और अधिक नीचे दबता अथवा धँसता है, तब भू-संतुलन अव्यवस्थित हो जाता है। इससे भू-संचलन (earth movement) होने लगता है। इस कारण भू-सन्नति की चट्टानों पर संपीडन या बगल से दबाव पड़ने लगता है और वे चट्टानें मुड़ने लगती है। उनमें वलन (folds) पड़ने लगते हैं। ऊपर की और उठा मोड़ अपनति (anticline) और नीचे की ओर धँसा मोड़ अभिनति या सन्नति (syncline) कहलाता है।
अधिक गहराई पर पहुँचने पर ताप के कारण भी भूसन्नति की चट्टानों में उभार होता है और चट्टानें मुड़ने लगती हैं। मोड़ों का पड़ना दीर्घकाल तक जारी रहे तो वे उठकर मोड़दार/वलित पर्वत का रूप ले लेती हैं। परन्तु ध्यान रहे, मोड़दार पर्वतों का निर्माण एक धीमी प्रक्रिया है जो लाखों-करोड़ों वर्षों तक चलती रहती है। हिमालय, रॉकी एंडीज जैसे विशाल पर्वत (जो मोड़दार पर्वत का उदाहरण है) का निर्माण इसी प्रकार हुआ है। और इसका ऊपर उठना आज भी जारी है। संसार में सबसे ऊँचे पर्वत मोड़दार ही हैं।
ऐसा कोई महाद्वीप नहीं, जहाँ ये पर्वत न मिलते हों। एशिया के मोड़दार पर्वतों में हिमालय, अराकान, सुलेमान, हिंदूकुश, जैग्राॅस, एलबुर्ज, पौंटिक, टाॅरस, काराकोरम और क्यूनलुन प्रमुख हैं। इनमें हिमालय की ऊँचाई संसार में सबसे अधिक है। सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट 8848 m ऊँचा। और उसके बाद काराकोरम की सर्वोच्च शिखर गॉडविन ऑस्टिन (K2) 8611 मीटर ऊँचा है।
यूरोप के मोड़दार पर्वतों में काकेशस, बालकन, कारपेथियन, आल्पस, डिनारिक आल्प्स, एपीनाइन, पिरेनीज, केंटाब्रियन और सियरा नेवाड़ा प्रमुख है। इनमें सबसे ऊंचा काकेशस (5630 m) और आल्प्स (4810 m) है। अफ्रीका में एटलस, उतरी अमेरिका में रॉकी और दक्षिणी अमेरिका में एंडीज प्रसिद्ध मोड़दार पर्वत हैं। जिनमें एंडीज की लम्बाई संसार में सबसे अधिक है (लगभग 7000 km)। ऑस्ट्रेलिया का ग्रेट डिवाइडिंग रेंज बहुत पुराना मोड़दार पर्वत है।
मोड़दार पर्वतों से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य-
(i) ये अत्यधिक लंबाई में पाए जाते हैं। इनकी चौड़ाई लंबाई की अपेक्षा बहुत कम होती है।
(ii) ये प्रायः धनुषाकार या चापतुल्य हैं।
(iii) इनका जन्म छिछले सागर में भू-सन्नतियों में और तलछटी (परतदार) चट्टानों से हुआ है।
(iv) इनमें चट्टानों की परतें काफी मुड़ी हुई होती हैं और भ्रंशित भी होती है।
(v) इनकी चट्टानों में छिछले सागर में रहने वाले जीवों के जीवाश्म (fossils) पाए जाते हैं।
(vi) विश्व के सबसे ऊंचे शिखर मोड़दार पर्वतों में ही मिलते हैं।
(2) भ्रंशोत्थ पर्वत (Block Mountains)
इन्हें खंड या ब्लॉक पर्वत भी कहते हैं। इनका निर्माण मुख्यतः भ्रंशों (faults) द्वारा होता है। जब दो भ्रंश-तलों (fault planes) के सहारे जब कोई भू-खण्ड़ ऊपर उठकर पर्वत का रूप ले लेता है तो ऐसे पर्वतों को भ्रंशोत्थ या ब्लॉक पर्वत कहा जाता है। संसार में ऐसे पर्वत कम मिलते हैं। भारत में नीलगिरी भ्रंशोत्थ पर्वत का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। यह दो भ्रंशों के बीच उठा हुआ ऊंच भूभाग है। यदि भ्रंशों के सहारे भूमि धंस जाए तो उससे सटा हुआ भूभाग भी पर्वत का रूप ले सकता है और उसे भ्रंशोत्थ की ही श्रेणी में रखा जाता है।
भ्रंशोत्थ पर्वतों के दोनों पार्श्व प्रायः खड़ी ढाल बनाते हैं। जिन्हें भ्रंश कगार (fault scarp) कहा जाता है। कैलिफोर्निया का सिएरा नेवादा, यूरोप में हार्ज पर्वत (Hartz Mountain) ब्लैक फॉरेस्ट (Black Forest), वाॅस्जेज (Vosges) और पाकिस्तान का साल्ट रेंज भ्रंशोत्थ (Block Mountain) पर्वत के बेहतरीन उदाहरणों में से एक हैं।
भ्रंशोत्थ पर्वत से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य:-
(i) भ्रंशोत्थ पर्वत मोड़दार पर्वतों की अपेक्षा छोटे होते हैं तथा इनका विस्तार सीमित क्षेत्रों तक होता है।
(ii) ये आकार में प्राया सीधे होते हैं।
(iii) इनका निर्माण पहाड़ी क्षेत्रों में होता है।
(iv) इनके निर्माण में मुख्यतः तनाव बल (tensional force) काम करता है, यद्यपि कहीं-कहीं पार्श्विक दबाव या संपीडन बल (Compressional force) भी काम करता है।
(v) भ्रंशोत्थ पर्वत का निर्माण चट्टानों के वलन से नहीं अपितु उन में दरार पड़ने अर्थात भ्रंशन से होता है।
(vi) संसार में ऐसे पर्वत बहुत कम है
(vii) इस प्रकार के सबसे प्रसिद्ध पर्वत यूरोपीय महा देश में पाए जाते हैं।
(3) ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountains)
ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण ज्वालामुखी उद्गार से निकले पदार्थों जैसे लावा, राख के लगातार जमा होने से पर्वत के रूप में बदलने के कारण से होता है। ज्वालामुखी के मुख अर्थात नली-द्वार के सहारे पिघली हुई चट्टानें जिसे ‘लावा’ के नाम से जानते हैं बाहर निकलकर धरातल पर फैल जाती है और शंकु की तरह जमा होकर कोणाकार पर्वत का निर्माण करती है। इसे ज्वालामुखी पर्वत के नाम से जानते हैं। इन पर्वतों को संचयन या निक्षेपन से बने पर्वत भी कहा जाता है। जापान का फ्यूजीसान, इटली का विसुवियस, चिल्ली का एकांकागुआ इत्यादि ज्वालामुखी पर्वत के उदाहरण हैं।
दुनियां का सबसे ऊंचा ज्वालामुखी पर्वत दक्षिण अमेरिका में चिली देश में स्थित “एकंकागुआ” है। जिसकी ऊंचाई 7021 मीटर है। यह एक मृत ज्वालामुखी है। विश्व का सबसे ऊंचा सक्रिय ज्वालामुखी भी दक्षिण अमेरिका में इक्वेडोर में स्थित “कोटोपैक्सी” है। जिसकी ऊंचाई 5897 मीटर है। इसके अलावा चिम्बराजो (6272 मी), पोपोकैटेपेट्ल (5492 मीटर), किलिमंजारो (5492 मीटर) माउंट केन्या (5194मीटर) आदि ज्वालामुखी पर्वतों के उदाहरण है। इन सबके अतिरिक्त कभी-कभी ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण समुद्र तल पर भी होता है, और ये द्वीप के रूप में समुद्र से बाहर निकल आते हैं। जैसे एल्यूशियन द्वीप समूह।
विश्व के ज्वालामुखी पर्वतों की वर्तमान स्थिति के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इनका वितरण मुख्य रूप से मध्य महाद्वीपीय मेखला और परिप्रशांत पेटी क्षेत्र में स्थित है।
ज्वालामुखी पर्वत से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य:-
(i) ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण मुख्यतः भूगर्भ से निकले तरल लावा आदि से हुआ है।
(ii) इसका विस्तार मुख्यतः मध्य महाद्वीपीय मेखला और परिप्रशांत पेटी में है।
(iii) विश्व का सबसे ऊंचा ज्वालामुखी पर्वत चिली का एकांकागुआ है, जिसकी ऊंचाई 7021 मीटर है।
(4) गुंबदाकार पर्वत (Dome Mountains)
धरातल में किसी स्थान पर अंदर से ऊपर की दिशा में उभार होने के कारण गुंबदाकार पर्वतों का निर्माण होता है। इस प्रकार के पर्वतों को रचना की दृष्टि से साधारण गुंबद (Simple Dome), साल्ट गुंबद (Salt Dome) और लावा गुंबद के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। हेनरी पर्वत, ब्लैक हिल्स, बिग हार्न्स गुंबदाकार पर्वत के प्रमुख उदाहरण है।
(5) अवशिष्ट पर्वत (Relict Mountains)
अवशिष्ट पर्वतों का निर्माण पठार और वलित पर्वतों के अपरदन होने से होता है। इन पर्वतों के निर्माण में नदियों और हिम नदियों की भूमिका प्रमुख होती है। वाह्य अपरदनकारी शक्तियों द्वारा ऊंचे पर्वत भी खींचकर छोटे हो जाते हैं। जैसे:- भारत में अरावली, यूरोप में यूराल, स्कॉटलैंड की पहाड़ियां और पेनाइल श्रेणी, संयुक्त राज्य अमेरिका में मोनैडनाॅक अवशिष्ट पर्वत के उदाहरण है। पश्चिमी घाट की पहाड़ी, पूर्वी घाट में महेंद्रगिरी पर्वत अवशिष्ट पर्वत का उदाहरण है।
छोटा नागपुर पठार पर कड़ी रूपांतर चट्टानों की छोटी-छोटी अपशिष्ट पहाड़ियां अमेरिका के मोनैडनाॅक से मिलती-जुलती है। अध्ययन यह बताते हैं कि विश्व के ऊंचे से ऊंचे पर्वतों को एक न एक दिन अनावृत होकर अपरदित होकर, घीस-कटकर अपशिष्ट बनकर वामन अर्थात बोना रूप धारण करना ही है।
अपशिष्ट पर्वत से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
(i) अवशिष्ट पर्वतों का निर्माण नदी हिमानी आदि के अपरदन के परिणाम स्वरूप होता है।
(ii) अवशिष्ट पर्वत पठार, वलित पर्वत के ही घिसे हुए भाग हैं
(iii) भारत में स्थित अरावली, यूरोप में यूराल, संयुक्त राज्य अमेरिका में मॉनैडनॉक अवशिष्ट पर्वत के बेहतरीन उदाहरण हैं।
(iv) झारखंड के छोटा नागपुर में भी कई पहाड़ियां अवशिष्ट पर्वत के उदाहरण।
(v) सभी सभी ऊंचे पर्वतों को एक न एक दिन घिसकर, छोटे होकर अवशिष्ट पर्वत में बदल बदलना है।
(ख) पर्वत निर्माणकारी घटना के अनुसार पर्वतों के प्रकार
धरातल पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के पर्वत अपने निर्माणकारी घटना एवं आयु के आधार पर काफी भिन्नता रखते हैं। क्योंकि इन पर्वतों का निर्माण कोई एक काल में नहीं हुआ है, बल्कि कई भौगोलिक हलचलो के बाद पर्वतों का निर्माण हुआ है। यही वजह है कि पृथ्वी पर विभिन्न कालक्रम के पर्वत दिखाई पड़ते हैं। इन्हीं कालक्रमों के आधार पर पर्वतों को निम्न प्रकार से बांटा जा सकता है।
(I) प्री-कैम्बियन युग के पर्वत
प्री-कैम्ब्रियन युग में सबसे पहली बार पर्वत निर्माणकारी घटना घटी थी। इसे चर्नियन हलचलों के नाम से भी जाना जाता है। इस युग में निर्मित पर्वतों में प्रमुख रूप से भारत में अरावली पर्वत, धारवाड़ युग के वलित चट्टानें, छोटा नागपुर में स्थित कई पहाड़िया, कुडप्पा समूह के रूप में भारत में देखा जाता है। उत्तरी अमेरिका के ग्रेट लेक्स के निकटवर्ती पर्वत तथा स्कॉटलैंड एवं स्कैंडिनेविया में भी ऐसे पर्वतों के उदाहरण मौजूद हैं। जो अपरदन के कारण काफी छोटे हो गए।
(II) कैलिडोनियन युग के पर्वत
कैलिडोनियन युग के पर्वतों का निर्माण सिल्यूरियन, डिवोनियन तथा पर्मियन युगों में हुआ था। उत्तरी अमेरिका में एप्लेशियन पर्वत, यूरोप में स्कॉटलैंड के पर्वत, आयरलैंड के पर्वत, स्कैंडिनेविया के पर्वत, दक्षिण अमेरिका में ब्राजील के पर्वत कैलिडोनियन युग के पर्वत के उदाहरण है। यह पर्वत अपरदन क्रिया के कारण घीस-घीसकर छोटे हो गए।
(III) हर्सीनियन युग के पर्वत
कार्बोनिफरस युग के अंतिम चरण तथा पर्मियन युग में तीसरी पर्वत निर्माणकारी हलचल हुआ इस हलचल को एप्लेशियन अथवा अल्टाइल या हर्सीनियन पर्वत कहते है। भ्रंशोत्थ पर्वत इस तरह के पर्वतों का उदाहरण है। जैसे- पेनाइन, हार्ज, वास्जेस, ब्लैक फॉरेस्ट, तियेनशान, अल्टाई, खिंगन, तारिम बेसिन, नानशान, पूर्वी कार्डिलेरा इत्यादि।
(IV) अल्पाइनयुग के पर्वत
हर्सीनियन हलचलों के पश्चात टर्शियरी युग में पर्वत निर्माणकारी हलचल हुआ। इसे अल्पाइन पर्वत कहा जाता है। यह सबसे नवीनतम पर्वत निर्माणकारी हलचल है। आज विश्व में मिलने वाले सबसे ऊंची पर्वत इसी प्रकार के पर्वत के अंतर्गत आते हैं। ‘अल्पाइन’ नामकरण यूरोप के आल्पस पर्वतों के आधार पर किया गया। इस युग में हुए हलचल के कारण नवीन मोड़दार पर्वतों का निर्माण हुआ। आज विश्व के सभी मोड़दार पर्वत इसी वर्ग के अंतर्गत आते हैं। आल्पस, रॉकी, एण्डीज, एलबुर्ज, हिंदुकुश, हिमालय, कराकोरम, अराकान इत्यादि ये सभी अल्पाइनयुग के पर्वत के अंतर्गत आते हैं।
पर्वत निर्माण से संबंधित प्रमुख सिद्धांत
कोबर, जेफरीज, डेली, होम्स, जाली इत्यादि भूगोलवेत्ताओं ने पर्वत निर्माण संबंधी सिद्धांत दिए हैं। ये सिद्धांत निम्न है।
• भू-सन्नति सिद्धांत- कोबर
• तापीय संकुचन सिद्धांत – जेफरीज
• खिसकते महाद्वीपों की परिकल्पना – डेली
• संवहन तरंग सिद्धांत – होम्स
• रेडियो सक्रिय सिद्धांत,
तापीय चक्र सिद्धांत – जाली
• प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत- विल्सन, मॉर्गन, मैकेंजी,
विश्व के कुछ प्रमुख पर्वत श्रेणियां
विश्व के हरेक महाद्वीपीयों में पर्वत श्रेणियां विद्यमान है। एंडीज, रॉकी, हिमालय, ग्रेट डिवाइडिंग रेंज, एप्लेशियन, आलस्का आदि प्रमुख पर्वत श्रेणियां है। यहां दुनिया भर के प्रमुख पर्वत श्रेणियां को देख सकते हैं।
क्रम सं• – पर्वत श्रेणी:- स्थिति – सर्वोच्च शिखर – ऊंचाई (मीटर में) – लम्बाई (km. में)
1. एण्डीज पर्वत श्रेणी:- दक्षिण पश्चिम अमेरिका – एकांकागुआ – 6960 – 7200
2. रॉकी पर्वत श्रेणी:- पश्चिम उत्तरी अमेरिका:- माउंट एल्बर्ट – 4400 – 4800
3. हिमालय:- काराकोरम – हिंदूकुश:- दक्षिण मध्य एशिया – माउंट एवरेस्ट – 8848 – 3800
4. ग्रेट डिवाइडिंग रेंज:- पूर्वी ऑस्ट्रेलिया – कोस्यूस्को – 2228 – 3600
5. ट्रांस अंटार्कटिका पर्वत:- अंटार्कटिका – माउंट किर्कपैट्रिक – 4529 – 3500
6. ब्राजीलियन एटलाण्टिक तटीय श्रेणी:- पूर्वी ब्राजील – पिको डिवैण्डोरिया – 2890 – 3000
7. पश्चिमी सुमात्रा जावा श्रेणी:- पश्चिमी सुमात्रा तथा जावा – केरिण्टजी- 3805 – 2900
8. एल्यूशियन रेंज:- अलास्का तथा उ• प• प्रशांत महासागर – शिशैल्डन – 2861 – 2650
9. तियेन शान:- दक्षिण मध्य एशिया – पीके पोबेड़ा – 7439 – 2250
10. सेंट्रल न्यू गिनिया रेंज:- आयरिस जाया पापुआ न्यू गिनिया – जाया कुसुमा – 4883 – 2000
11. अल्टाई माउंटेंस:- मध्य एशिया – गोरा बेखुला – 4505 – 2000
12. यूराल पर्वत श्रेणी:- मध्य रूस – गोरा नैरोड्नाया – 1894 – 2000
13. कमचटका श्रेणी:- पूर्वी रूस – क्ल्यूचेव्सकाया सोपका – 4850 – 1930
14. एटलस पर्वत श्रेणी:- उत्तरी पश्चिमी अफ्रीका – जेबेल टाउब्काल – 4165 – 1930
15. बर्खोयान्स्क पर्वत:- पूर्वी रूस – गोरा मास खाया – 2959 – 1610
16. पश्चिमी घाट:- दक्षिण पश्चिम भारत – अनाईमुडी 2694 – 1610
17. सियरा माद्रे ओरिएंटल:- मैक्सिको – ओरीजाबा – 5699 – 1530
18. जैग्रोस पर्वत श्रेणी:- ईरान – जार्ड कुह – 4547 – 1530
19. स्कैंडिनेवियन रेंज:- पश्चिमी नॉर्वे – गैलढोपिजेन – 2470 – 1530
20. इथोपियन उच्च भूमि:- इथोपिया – रास डाउन – 4600 – 1450
21. पश्चिमी सियरा माद्रे:- मैक्सिको – नेवाडो डी कोलिमा – 4265 – 1450
22. मलागासी श्रेणी:- मेडागास्कर – मारोमोकोट्रो – 2876 – 1370
23. डेकेन्सबर्ग:- दक्षिण पूर्वी अफ्रीका – दबानाएन्टलेन्याना- 3482 – 1290
24. चेर्सकोगो खेबेट:- पूर्वी रूस – गोरा पोबेडा – 3147 – 1290
25. काकेशस:- जॉर्जिया – माउंट एलबुर्ज – 5633 – 1200
26. अलास्का श्रेणी:- अलास्का – माउंट मेकिन्ले – 6193 – 1130
27. असम:- म्यांमार श्रेणी:- असम (भारत)- पश्चिमी म्यांमार – हकाकाबो राजी – 5881 – 1130
28. कॉस्केड रेंज:- अमेरिका और कनाडा – माउंट रेनियर – 4392 – 1130
29. सेंट्रल बोर्नियो रेंज:- मध्य बोर्नियो – कीनाबालु – 4101 – 1130
30. टीहामाट ऐश शाम:- दक्षिण-पश्चिम अरेबिया – जेबेल हाथार – 3760 – 1130
महाद्वीपों में स्थित सबसे ऊंची चोटियां
महाद्वीप चोटी ऊंचाई
एशिया माउंट एवरेस्ट 8848 मीटर
अफ्रीका माउंट किलिमंजारो 5895 मीटर
उत्तरी अमेरिका माउंट मैकिनले (माउंट देनाली) 6190 मीटर
दक्षिण अमेरिका माउंट एकंकागुआ 6962 मीटर
यूरोप माउंट एलब्रुस 5642 मीटर
ऑस्ट्रेलिया माउंट कोस्यूस्को 2228 मीटर
अंटार्कटिका विंसन पर्वत 4892 मीटर
पर्वत से संबंधित महत्वपूर्ण परीक्षोपयोगी तथ्य
• हिमालय विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रेणी है। विश्व का सबसे ऊंचा चोटी माउंट एवरेस्ट इसी पर्वत पर स्थित है।
• विश्व की सबसे ऊंची चोटी नवीन मोड़दार पर्वतों पर स्थित है। इन नवीन मोड़दार पर्वतों का निर्माण सबसे बाद में हुआ है।
• विश्व में अवशिष्ट पर्वतों की संख्या सबसे अधिक है।
• भारत में सबसे पुराना पर्वत अरावली है। इसकी रचना प्री-कैंब्रियन काल में हुई थी।
• अरावली पर्वत की सबसे ऊंची चोटी माउंट आबू (गुरु शिखर) है, जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई 1727 मीटर है।
• अरावली पर्वत अवशिष्ट पर्वत का एक बेहतरीन उदाहरण है।
• उत्तरी अमेरिका में कैलिफोर्निया का ‘सियरा नेवेदा’ विश्व का सर्वाधिक विस्तृत ब्लॉक पर्वत है।
• एंण्डीज विश्व की सबसे लंबी पर्वत श्रृंखला है। इसके बाद क्रमश: रॉकी, हिमालय और व ग्रेट डिवाइडिंग रेंज है।
• मध्य भारत में स्थित विंध्याचल पर्वत कैंब्रियन युग में निर्मित हुआ है।
• एकांकागुआ एंडीज पर्वत की सबसे ऊंची चोटी है।
• विश्व में अधिकतर भ्रंशोत्थ अर्थात ब्लॉक पर्वत यूरोपियन देशों में स्थित है।
• पर्वत उस क्षेत्र के आस-पास की जलवायु को प्रभावित करते हैं जहां वे स्थित होते हैं।
• हिमालय जैसे कुछ पर्वत सामरिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं।
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संकलन
महेंद्र प्रसाद दांगी
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