Volcano in hindi | ज्वालामुखी | ज्वालामुखी के प्रकार | Types of Volcano in hindi
पृथ्वी की आंतरिक गतिविधियों के कारण धरातल के नीचे से ठोस, द्रव, गैस इत्यादि का बाहर निकलना ज्वालामुखी क्रिया कहलाता है। इसका प्रमुख कारण पृथ्वी में मौजूद प्लेटो में गति होना है। ज्वालामुखी के प्रभाव अमुमन खतरनाक होता है। ज्वालामुखी क्रिया के दौरान पृथ्वी से निकलने वाले गैस, लावा, राख से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। साथ ही इससे पृथ्वी पर भूकंप की घटनाएं होती हैं। जिससे धन-जन प्रभावित होता है। पृथ्वी पर अधिकतर ज्वालामुखी भूगर्भीय प्लेटों के किनारों पर विद्यमान है। अध्ययन के लिए पृथ्वी पर ज्वालामुखी की प्रकृति के आधार पर इसे कई प्रकारों में बांटा जाता है। volcano in hindi पोस्ट के जरिये ज्वालामुखी के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे।
विषय वस्तु
☆ ज्वालामुखी किसे कहते है
☆ ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ
☆ ज्वालामुखी उत्पत्ति के कारण
☆ ज्वालामुखी निर्माण प्रक्रिया
☆ ज्वालामुखी के प्रकार
☆ ज्वालामुखी के प्रभाव
☆ ज्वालामुखी का विश्व वितरण
☆ भारत में ज्वालामुखी क्षेत्र का विवरण
☆ कुछ संक्षिप्त शब्दावली
☆ ज्वालामुखी से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न
☆ ज्वालामुखी से संबंधित महत्वपूर्ण 10 objective questions
☆ ज्वालामुखी क्या है (What is volcano)
ज्वालामुखी का अर्थ उस मुख अथवा दरार से हैं। जिससे पृथ्वी के आंतरिक गतिविधियों के कारण भूगर्भ से तप्त तरल मैग्मा, लावा, गैस जलवाष्प इत्यादि बाहर निकलता है। जबकि ज्वालामुखी क्रिया के तहत मैग्मा, लावा इत्यादि पदार्थ के निकलने से लेकर धरातल के अंदर या बाहर ठंडा होने की प्रक्रिया शामिल है। ज्वालामुखी क्रिया दो रूपों में संपन्न होती है।
(I) धरातल के अंदर मैग्मा के रूप में
(II) धरातल के बाहर लावा व अन्य रूप में
(I) धरातल के अंदर मैग्मा के रूप में:-ज्वालामुखी क्रिया के दौरान भूगर्भ से तप्त तरल पदार्थ का जमाव पृथ्वी के आंतरिक भागों में चट्टानों के दरारों, गढ़ों, विदरों में होता है तो उसे मैग्मा के नाम से जाना जाता है। बैथोलिथ, लैकोलिथ, फैकोलिथ, सिल तथा डाइक इत्यादि रूपों में जमाव होता है। इससे अन्त: स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। ये मूलतः आग्नेय चट्टान के रूप में जाने जाते हैं।
? आग्नेय चट्टान और इनके प्रकार के लिए यहां क्लिक करें
(II) धरातल के बाहर लावा व अन्य रूप में:- ज्वालामुखी क्रिया के दौरान भूगर्भ से तप्त तरल पदार्थ छिद्र (मुख) अथवा दरार के माध्यम से धरातल के बाहर निकलता है तो उसे लावा (Lava) कहा जाता है। यही लावा जब धरातल पर जमकर ठण्डा होकर ठोस पदार्थ में बदल जाता है तो उसे आग्नेय चट्टान के रूप में भी जाना जाता है। जैसे भारत में दक्कन ट्रैप। इसके अलावा गर्म जल स्रोत, गेसर तथा धुआंरे की भी क्रिया इसी के अंतर्गत शामिल है।
☆ ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ (volcanic material)
ज्वालामुखी क्रिया के दौरान भूगर्भ से निकलने वाले पदार्थों को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है।
(I) गैस तथा जलवाष्प
(II) विखण्डत पदार्थ
(III) लावा
(I) गैस तथा जलवाष्प:-ज्वालामुखी उद्गार के समय सर्वप्रथम गैसें एवं जलवाष्प बाहर आते हैं। इनमें जलवाष्प की मात्रा सर्वाधिक 60 से 90% तक होती है। अन्य गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, हाइड्रोजन क्लोराइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन फ्लुराइड एवं सल्फर डाइऑक्साइड इत्यादि हैं।
(II) विखण्डत पदार्थ:-ज्वालामुखी क्रिया के दौरान धूल एवं राख से बने चटानी टुकड़े (टफ), मटर के दाने के आकार वाले टुकड़े (लैपिली), कुछ इंच से लेकर कई फीट तक के व्यास वाले बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े (बाम्ब), कोणाकृत अपेक्षाकृत बड़े आकार के टुकड़े (ब्रेसिया) इत्यादि बाहर धरातल पर निकलते हैं।
(III) लावा:-ज्वालामुखी क्रिया के दौरान धरातल के नीचे स्थित तरल पदार्थ को मैग्मा कहते हैं जब मैग्मा धरातल पर निकलता है तो उसे लावा कहा जाता है। धरातल पर लावा के ठंडा होने के बाद वह आग्नेय चट्टान के रूप में जानी जाती है। सिलिका के आधार पर लावा दो प्रकार के होता है। अम्लीय (एसिड) लावा और क्षारीय (बेसिक)लावा।
☆ ज्वालामुखी उत्पत्ति के कारण (Due to volcanic origin)
ज्वालामुखी सक्रियता का मूल कारण धरातल के नीचे अधिक गहराई वाले ठोस चट्टान का मैग्मा के रूप में तरल अवस्था में बदल जाना है। इस प्रकार स्पष्ट रूप से कहा जाए तो ज्वालामुखी का सीधा संबंध है भूगर्भ से है। परंतु आज तक भूगर्भ के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त नहीं हो पायी है। फिर भी सामान्य रूप से ज्वालामुखी के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं।
(I) संवहनीय धाराओं की उत्पत्ति:- भूगर्भ में रेडियो एक्टिव तत्वों के विघटन के फलस्वरुप अधिक तापमान के कारण संवहनी धाराओं की उत्पत्ति होती है। जो भू प्लेटों के गति के लिए जिम्मेवार होती है। इनसे तीन प्रकार की भूगर्भीय प्लेटों की उत्पत्ति होती है। अभिसारी प्लेट, अपसारी प्लेट और रूपांतरण प्लेट।
(II) अभिसारी प्लेट सीमांत:- जब दो भिन्न धनत्व वाली भूगर्भीय प्लेटें नजदीक आती है। अर्थात् अत्यधिक घनत्व वाली प्लेट कम घनत्व वाली प्लेट के निकट आती है, तब अधिक घनत्व वाली प्लेट भारी होने के कारण नीचे डूबने लगती है। नीचे अधिक गहराई पर, अधिक तापमान के कारण अधिक धनत्व वाली प्लेट पिघलकर मैग्मा में बदल जाती है। यही मैग्मा पृथ्वी की आंतरिक परतों को तोड़ते हुए उपर आता है। जिसे ज्वालामुखी क्रिया कहते है।
(III) अपसारी प्लेट सीमांत:- जब दो भूगर्भीय प्लेटें एक दुसरे से विपरीत दिशा में गमन करती है। जिससे अपसारी प्लेट सीमांत पर भ्रंशन की क्रिया के फलस्वरुप दाब में कमी के कारण शांत दरार प्रकार की ज्वालामुखी की क्रिया संपन्न होती है। परिणाम स्वरूप महासागरीय बेसिन पर जहां बेसाल्ट लावा से महासागरीय कटक का निर्माण होता है। जैसे- मध्य अटलांटिक कटक। वहीं महाद्वीपीय क्षेत्र में बेसाल्टिक पठार का विकास होता है। जैसे – दक्कन का पठार।
☆ ज्वालामुखी के प्रकार (Types of Volcano)
ज्वालामुखी को कई आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है।▪︎ सक्रियता के आधार पर
• सक्रिय ज्वालामुखी
• सुषुप्त ज्वालामुखी
• मृत ज्वालामुखी
▪︎ उद्गार के आधार पर
• केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी
• दरारी उद्गार वाले ज्वालामुखी
▪︎ भौगोलिक अवस्थित के आधार पर
• प्लेट सीमांत ज्वालामुखी
• अंतः प्लेट ज्वालामुखी
▪︎ अम्लीयता एवं क्षारीयता के आधार पर
• हवाई तुल्य ज्वालामुखी
• स्ट्राम्बोली तुल्य ज्वालामुखी
• वल्केनियन तुल्य ज्वालामुखी
• पीलियन तुल्य ज्वालामुखी
• विसुवियस तुल्य ज्वालामुखी
▪︎ सक्रियता के आधार पर
सक्रियता के आधार पर तीन प्रकार के ज्वालामुखी के प्रकार में बांटा गया है।
सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano):-वैसे ज्वालामुखी जिनमें लावा, गैस इत्यादि के रूप में विखंडित पदार्थ सदैव निकलते रहते हैं। उन्हें सक्रिय या जागृत ज्वालामुखी कहा जाता है। वर्तमान समय में विश्व में तकरीबन 500 ज्वालामुखी सक्रिय अवस्था में है। उनमें से कुछ प्रमुख हैं-
• इटली का सिसली द्वीप में माउंटएटना और लेपारी द्वीप में स्ट्राम्बोली।
• हवाई द्वीप का मोनालोआ, किलायू।
• इक्वेडोर का कोटोपैक्सी।
• फिलीपींस का मेयान।
• अंटार्कटिका का माउंट इरेबस।
• अर्जेन्टीना – चिली सीमा पर स्थित ओजल डेल सलाडो।
• इंडोनेशिया का समेरू, मेरापी।
• पापुआ न्यूगिनी का लांगिला एवं बागाना।
• भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह में स्थित बैरन द्वीप।
? इटली के लिपारी द्वीप में स्थित स्ट्राम्बोली से सदैव प्रज्वलित कैसे निकलती रहती है। अतः इस ज्वालामुखी को भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ (Light House) कहा जाता है।
? विश्व का सबसे ऊंचा सक्रिय ज्वालामुखी ओजल डेल सलाडो है। जिसकी ऊंचाई 6908 मीटर है। यह दक्षिण अफ्रीका के अर्जेन्टीना – चिलीसीमा पर स्थित है। इक्वेडोर में स्थित कोटोपैक्सी 5897 मी. विश्व का दूसरा सबसे ऊंचा सक्रिय ज्वालामुखी है।
सुषुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano):- ये वैसे ज्वालामुखी हैं जो उद्गार के बाद शांत पड़ जाते हैं। इसके पुनः उद्गार की संभावना नहीं रह जाती है। परंतु आचानक ही इससे उद्गार हो जाता है। इस कारण इसे सबसे खतरनाक ज्वालामुखी माना जाता है। इसे सुषुप्त या प्रसुप्त ज्वालामुखी के रूप में जाना जाता है। ये ज्वालामुखी हैं-
• इटली का विसुवियस।
• जापान का फ्यूजीयामा।
• इण्डोनेशिया का क्राकातोआ
• भारत के अंडमान निकोबार द्वीप में स्थित नारकोंडम सुषुप्त या प्रसुप्त ज्वालामुखी का उदाहरण है।
? इटली का विसुवियस ऐसे ज्वालामुखी का प्रमुख उदाहरण है। जिसका प्रथम उद्गार 79 ई. में हुआ था। इसका प्रथम सर्वेक्षण प्लिनी महोदय ने किया था। इस कारण से इस ज्वालामुखी को प्लिनियन प्रकार का ज्वालामुखी भी कहते हैं। इस ज्वालामुखी में 1631, 1803, 1872, 1906, 1927, 1928 तथा 1929 में भी उद्गार हुए।
मृत ज्वालामुखी (Extinct Volcano):- वैसे ज्वालामुखी जिनमें भूगर्भिक इतिहास के अनुसार बहुत लंबे समय से पुनः उद्गार नहीं हुआ है, तथा भविष्य में भी उद्गार की कोई संभावना नहीं है। वैसे ज्वालामुखी को मृत या शांत ज्वालामुखी कहते हैं। जैसे-
• म्यांमार का माउंट पोपा।
• अफ्रीका के तंजानिया में स्थित किलिमंजारो।
• ईरान का कोह सुल्तान एवं देमबंद।
• अर्जेंटाइना का एकांकागुआ।
• इक्वेडोर का चिंबोराजो मृत या शांत ज्वालामुखी के उदाहरण है।
? अर्जेंटाइना में स्थित एकांकागुआ विश्व का सबसे ऊंचा ज्वालामुखी पर्वत है। यह 6960 मीटर ऊंचा है। जो एक मृत ज्वालामुखी है।
▪︎ उद्गार के आधार पर
उद्गार के आधार पर दो प्रकार के ज्वालामुखी के प्रकार में बांटा गया है।
केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी (Central Erup-tion):- जब ज्वालामुखी उद्गार किसी एक केंद्रीय मुख से भारी धमाके और तीव्र वेग के साथ होता है। तो वेसे ज्वालामुखी क्रिया को केंद्रीय उद्गार कहते हैं। इस प्रकार के ज्वालामुखी अत्यधिक विनाशकारी होते हैं, एवं इनके उद्गार से भयंकर भूकंप जाते हैं। इसमें लावा/मैग्मा का फैलाव धरातल पर कम होकर, शंकु का निर्माण करता है। विश्व में सभी ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण इसी प्रकार की क्रिया से हुआ है। जैसे- हवाई द्वीप स्थित किलाविया, इटली का स्ट्राम्बोली, जापान का विसुवियस, इक्वेडोर का कोटोपैक्सी इत्यादि।
ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cones):- केंद्रीय उद्गार से निकलने वाले पदार्थ मुंह या छिद्र के आसपास जमा होकर गोलाकार पहाड़ी या शंकु (Cones) का निर्माण करते हैं। शंकु का आकार छोटे टीले से लेकर बड़े पर्वत तक हो सकता है। शंकु की आकृति उद्गार से निकले पदार्थों के विश्रामकोण और उनके एकत्रित होने की शक्ति, लावा के रासायनिक रचना, विस्फोट, पवन दिशा इत्यादि के प्रभाव पर निर्भर करती है। यदि हम बालू का ढेर लगाए तो देखेंगे कि उनके कण एक दूसरे पर टिके हैं, और वह ढेर बाहर की ओर मंद ढाल और सिरे की ओर तीव्र ढाल वाला है। ये ढाल ही कणों के विश्रामकोण बनाती हैं। ज्वालामुखी उद्गार से निकले ठोस पदार्थ में कण जितने ही बड़े होंगे विश्रामकोण उतना ही बड़ा होगा। शंकु की रचना लावा, राख, भूगर्भ से निकलने वाले अन्य पदार्थ से होती है।
(i) राख और अंगार शंकु (Ash and Cindet Cone):- जब लावा या अन्य पदार्थ तीव्र वेग से भूगर्भ से धरातल पर निकलता है, तो बहुत ऊंचाई पर जाकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बट जाता है। यही टुकड़े धरातल पर आकर गिरते हैं और शंकु का निर्माण करते हैं। इस प्रकार के शंकु की ऊंचाई बहुत कम होती है। इसके निर्माण में ज्वालामुखी धूल या राख अथवा अंगार या विखंडित पदार्थों का योगदान रहता है। ध्यान रहे ऐसे शंकु केवल ठोस पदार्थों से बना होता है। इसमें तरल पदार्थ का योगदान नहीं होता है। इटली का नेपुल्स स्थित आवो, मेक्सिको का पाराक्यूटिन, ग्वाटेमाला का वलकेनो डि फ्यूगो इत्यादि।
(ii) लावा शंकु (Lsva Cone):- जब केंद्रीय उद्गार से निकलने वाले पदार्थों में लावा प्रमुख होता है। तब बहुत दूर तक फैल कर लावा शंकु का निर्माण नहीं होता है। ऐसे शंकु की ढाल लावा की रासायनिक संरचना पर निर्भर करती है।
• यदि लावा अम्लीय अर्थात काफी गाढ़ा और चिपचिपा है तो इसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है। जिससे वह धरातल पर आते ही जल्द ठंडा होकर जम जाता है। उसे अधिक फैलने का मौका नहीं मिल पाता। जिससे वहां गुंबद आकार शंकु का निर्माण होता है। इसकी ढाल तीव्र एवं खड़ी (steep slope) होती है। इसे अम्लीय लावा शंकु (Acid Lava Cone) कहते हैं। जैसे- इटली का स्ट्राम्बोली, इंडोनेशिया का क्राकातोआ इत्यादि। कभी-कभी बाहर निकलते लावा के जमाव से ज्वालामुखी का छिद्र या मुख भर जाता है जिसे रीढ़ या प्लग (Volcanic Plug, डाट) कहते हैं। हालांकि प्लग की रचना कम दिखाई पड़ता है क्योंकि ठंढा होते ही यह टुटने लगती है।
• यदि लावा क्षारीय होता है तो वह काफी पतला और हल्का हुआ करता है उसमें सिलिका की मात्रा कम होती है। जिससे भूगर्भ से निकलने पर वे धरातल पर दूर तक फैलने के बाद जमता है। अधिक दूर तक फैलने के कारण शंकु की ढाल बहुत धीमा होता है। जिसे शील्ड-शंकु (Shield Cone) अर्थात बेसिक या पैठिक लावा शंकु कहते हैं। अम्लीय लावा शंकु की अपेक्षा इसकी ऊंचाई कम होती है। इसमें गुंबद का आकार चपटा होता है। हवाई द्वीप का मोना लोआ इसका प्रमुख उदाहरण है। इसके अलावे मैक्सिको का जोरल्लो, सान सल्वाडोर का माउंट इजाल्को, फिलीपींस में लूजोन द्वीप का कैमग्विन इत्यादि।
(iii) शंकु में शंकु (Cone in Cone):- इस प्रकार के शंकु का विकास तब होता है जब लंबे अंतराल के पश्चात प्रसुप्त या सुषुप्त ज्वालामुखी में अपेक्षाकृत छोटे परिणाम का ज्वालामुखी विस्फोट होता है। जैसे – जापान का फ्यूजीयामा।
(iv) मिश्रित शंकु (Composite Cone):- जब केंद्रीय उद्गार से लावा, राख इत्यादि भूगर्भ से निकलते हैं और वे तह के रूप में जमा होते चलते हैं। तो उनसे अत्यधिक ऊंचाई और सुडोल ज्वालामुखी पर्वत का निर्माण होता है। जिसे मिश्रित शंकु कहते हैं। दुनिया भर के अधिकतर ज्वालामुखी मिश्रित शंकु का ही रूप हैं। जिनसे समय-समय पर भूगर्भ से राख, लावा, पदार्थ के टुकड़े इत्यादि निकलते रहते हैं। जिससे इनकी ढालों पर एक पर एक परत के रूप में जमा होते जाते हैं। इस कारण इन्हें परतदार शंकु (Strato cones) भी कहा जाता है। जैसे – इटली का विसुवियस, एटना जापान का फ्यूजीशान फिलीपींस का मेयान तथा अमेरिका का रेनियर और हुड मिश्रित शंकु के बेहतरीन उदाहरण हैं।
(v) परिपोषित शंकु (Parasite Cone):- मिश्रित शंकु की दीवारें कभी-कभी ज्वालामुखी विस्फोट के कारण टूट जाती है और वहां ज्वालामुखी की मुख्य नली से छोटी-छोटी उप नलियां निकल जाती है। इन उप नलियों से लावा इत्यादि पदार्थ निकलकर छोटे-छोटे शंकुओं का निर्माण करते हैं। जिन्हें परिपोषित शंकु के नाम से जाना जाता है। जैसे – अमेरिका का माउंट शास्ता।
दरारी उद्गार वाले ज्वालामुखी (Fissure Erup-tion):-भूगर्भिक हलचलों से भूपर्पटी की चट्टानों में दरारें पड़ जाती है। इन दरारों से लावा धरातल पर प्रवाहित होकर निकलने लगता है। जिसे दरारी उद्भेदन कहते हैं। यह रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे होता है। इस प्रकार के उद्गार क्रीटैशियस युग में बड़े पैमाने पर हुए थे। जिससे धरातल पर लावा पठारों का निर्माण हुआ। जैसे- कोलंबिया के पठार, भारत में दक्कन के पठार और आइसलैंड दरारी उद्गार के उदाहरण है।
▪︎ भौगोलिक अवस्थित के आधार पर
भौगोलिक अवस्थित के आधार पर दो प्रकार के ज्वालामुखी के प्रकार में बांटा गया है।
प्लेट सीमांत ज्वालामुखी:- ज्वालामुखी क्रिया दो प्रकार के प्लेट सीमांत पर होती है।
I. अभिसारी प्लेट सीमांत
II. अपसारी प्लेट सीमांत
I. अभिसारी प्लेट सीमांत:-इस प्रकार की ज्वालामुखी क्रिया वहां होती है, जहां दो भिन्न घनत्व वालीशभूगर्भीय प्लेंटे एक दुसरे के नजदीक आती हैं, और अधिक घनत्व वाले प्लेट कम घनत्व वाली प्लेट के नीचे डूबने लगती है। वहां तापमान में वृद्धि से डुब रही प्लेट पिघलकर मैग्मा में बदल जाती है। यही मैग्मा पृथ्वी की आंतरिक परतों को तोड़ते हुए धरातल पर आती है। तो केन्द्रीय विस्फोटक प्रकार की ज्वालामुखी क्रिया होती है। हवाई तुल्य, स्ट्राम्बोली तुल्य, वलकेनियन तुल्य, पीलियन तुल्य तथा विसुवियस तुल्य ज्वालामुखी इसके अंतर्गत शामिल हैं। इनमें पीलियन तुल्य ज्वालामुखी सबसे अधिक खतरनाक माने जाते हैं। जैसे – पश्चिमी द्वीप समूह के मार्टिनिक द्वीप का पीली ज्वालामुखी, सुंडा जलडमरूमध्य का क्राकातोआ ज्वालामुखी तथा फिलीपाइन द्वीप समूह का माउंट ताल ज्वालामुखी का भयंकर उद्गार।
II. अपसारी प्लेट सीमांत:-जब दो भूगर्भीय प्लेटें एक दुसरे से विपरीत दिशा में गमन करती है। जिससे अपसारी प्लेट सीमांत पर भ्रंशन की क्रिया के फलस्वरुप दाब में कमी के कारण क्षारीय मैग्मा की उत्पत्ति होती है और यही मैग्मा जब धरातल पर आता है तो इससे शांत दरार प्रकार की ज्वालामुखी की क्रिया संपन्न होती है। परिणाम स्वरूप महासागरीय बेसिन पर जहां बेसाल्ट लावा से महासागरीय कटक का निर्माण होता है। वहीं महाद्वीपीय क्षेत्र में बेसाल्टिक पठार का विकास होता है। जैसे – मध्य अटलांटिक कटक, हिंद महासागरीय कटक, प्रशांत महासागरीय कटक, दक्कन का पठार इत्यादि।
अंतः प्लेट ज्वालामुखी:- इस प्रकार के ज्वालामुखी प्लेट सीमांत से दूर स्थित तप्त स्थल (Hot Spot) से होता है। जहां पृथ्वी के अंदर अपेक्षाकृत अधिक तापमान होने से मैग्मा का निर्माण होता है। ये प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत द्वारा अभी तक इनका स्पष्टीकरण नहीं हो पाया है। इस मेखला का एक प्रमुख श्रृंखला हवाई द्वीप से प्रारंभ होकर उत्तर पश्चिमी दिशा में कमचटका तक चली गई। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि मात्र हवाई द्वीप पर ही ज्वालामुखी उद्भेदन द्वारा भूकंप आते हैं। तथा संपूर्ण श्रृंखला भूकंप रहित है। इस कारण इसे भूकंप रहित कटक कहते हैं।
▪︎ अम्लीयता एवं क्षारीयता के आधार पर
अम्लीयता एवं क्षारीयता के आधार पर पांच प्रकार के ज्वालामुखी के प्रकार में बांटा गया है।
पीलियन तुल्य ज्वालामुखी (Pelean Types):-इस प्रकार के ज्वालामुखी में उद्गार सबसे अधिक विस्फोटक एवं भयंकर रूप में होता है तथा सर्वाधिक सर्वाधिक विनाशकारी होता है इससे निकलने वाला इस ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा अत्यंत ही चिपचिपा होता है। इसमें प्रत्येक उद्गार पिछले उद्गार से निर्मित ज्वालामुखी शंकु को तोड़ते हुए होता है।
? इस प्रकार के ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा, विखंडित पदार्थ इत्यादि ढाल के सहारे “एवलांच (Avalanche)” की तरह प्रवाहित होते हैं। जिसे “Nuees Ardentes” अर्थात “जलता हुआ बादल” (Glowing Cloud) कहा जाता है।
? वर्ष 1902 ई. में पश्चिमी द्वीप समूह के मार्टिनिक द्वीप में पेली (Pelee) ज्वालामुखी में इसी प्रकार भयंकर विस्फोट हुआ था। जिससे निकले नुई आरदेन्ते (Nuees Ardentes) से सेंट पियरी नामक शहर पूर्णत: नष्ट हो गया था।
? वर्ष 1983 ई. में जावा एवं सुमात्रा के मध्य स्थित सुंडा जलडमरूमध्य में जावा एवं सुमात्रा के मध्य स्थित क्राकातोआ ज्वालामुखी का उद्गार हुआ था। जिसे भयंकर भूकंप आया था एवं समुद्र में 120 फीट ऊंची लहरें भी उठी थी। इसका एक अन्य उदाहरण फिलिपिंस का हिबक – हिबक ज्वालामुखी भी है।
वल्केनियन तुल्य ज्वालामुखी (Valcanian Types):-इस प्रकार के ज्वालामुखी से ज्वालामुखीय पदार्थ भयंकर विस्फोट एवं अधिक तीव्रता के साथ भूगर्भ से बाहर निकलता है। इस तरह के ज्वालामुखी विस्फोट के पश्चात राख एवं धूल से भरी गैसें, विशाल काले बादलों के रूप में काफी ऊंचाई तक ऊपर उठती है एवं फूलगोभी के रूप में दिखाई पड़ती है।
? इसका नामकरण लिपारी द्वीप समूह स्थित वलकेनो नामक ज्वालामुखी के आधार पर किया गया है।
विसुवियस तुल्य ज्वालामुखी (Vesuvius Types):-इस प्रकार के ज्वालामुखी में गैसों की तीव्रता के कारण लावा भयंकर विस्फोट के साथ बड़े आवेग से निकलता है। गैस व अन्य पदार्थ तीव्र वेग के कारण ऊंचाई तक पहुंचते हैं। इससे निर्मित बादल का आकार फूलगोभी की तरह दिखाई देता है।
? इस प्रकार का ज्वालामुखी विस्फोट विसुवियस में हुआ था। जिसे पहली बार प्लिनी महोदय ने रिकॉर्ड किया था। अतः इसे प्लिनियन प्रकार (Plinian Types) का ज्वालामुखी भी कहा जाता है।
स्ट्राम्बोली तुल्य ज्वालामुखी:-इस प्रकार के ज्वालामुखी मैग्मा में सिलिका की मात्रा कम होने के कारण लावा पतला होता है। जिससे विस्फोट मामूली होता है एवं गैसें लगातार या रुक-रुक कर निकलती है। इस तरह के उद्गार भूमध्य सागर में स्थित सिसली द्वीप के उत्तर में लिपारी द्वीप के स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी में देखा जाता है।
? ध्यान रहे स्ट्राम्बोली एक जागृत ज्वालामुखी है। जिससे लगातार लावा आदि के निकलने के कारण इसे भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ भी कहा जाता है।
हवाई तुल्य ज्वालामुखी (Hawaiian Types):-इस प्रकार के ज्वालामुखी में विस्फोटक क्रिया कम होती है एवं उद्गार शांत तरीके से होता है। इसका मुख्य कारण लावा का पतला एवं अत्यधिक क्षारीय होना तथा गैस की तीव्रता में कमी होना है। अत्यधिक तरल होने के कारण लावा धरातल पर दूर तक फैल कर ठण्डा होने के बाद जमकर कठोर हो जाता है।
? कभी-कभी गैसों के साथ लावा के छोटे-छोटे लाल टुकड़े फव्वारे की तरह ऊपर उठते हैं एवं जब हवा तेज रहती है तो ये लावा के टुकड़े खींचकर लंबे चमकीले धागे की तरह हो जाते हैं। जिन्हें हवाई द्वीप में “पेले के बाल” (Pele’s Hair) के नाम से जाना जाता है।
? इस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार के प्रमुख उदाहरण हवाई द्वीप में देखने को मिलता है। इस कारण इसे हवाई तुल्य ज्वालामुखी कहा जाता है। जैसे- किलाविया (Kilaviea) ज्वालामुखी।
☆ ज्वालामुखी के प्रभाव (Effects of Volcanoe) :-
आकस्मिक भू संचालन के रूप में ज्वालामुखी क्रिया भू-पृष्ठ और धरातल पर निवास करने वाले मानव जीवन पर व्यापक प्रभाव छोड़ता है। ज्वालामुखी क्रिया के कारण विध्वंशात्मक और रचनात्मक दोनों प्रकार के परिणाम देखने को मिलते हैं। ज्वालामुखी क्रिया से जहां हानिकारक प्रभाव देखने को मिलते हैं वहीं इसके कुछ लाभदायक प्रभाव भी होते हैं।
ज्वालामुखी के हानिकारक प्रभाव:- ज्वालामुखी उद्भेदन से मानव एवं संपत्ति को अपार क्षति पहुंचती है। इससे निकलने वाली खतरनाक देशों से असम के प्राणियों की जीवन लीला समाप्त हो गई है।
• 1902 ई. में पश्चिमी द्वीप समूह के पीली पर्वत ने जब ज्वालामुखी विस्फोट के फलस्वरुप खतरनाक धुआं निकला तो देखते ही देखते निकटवर्ती सेंट पारी नगर के 30 हजार निवासी उस खतरनाक गैस की चपेट में सदा के लिए सो गए।
• 1883 ई. में पूर्वी द्वीप समूह के क्राकातोआ द्वीप में हुए ज्वालामुखी विस्फोट से निकलने धूल ने आकाश उड़कर लगभग 8 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को ढक लिया था इस ज्वालामुखी के धमाकों से निकटवर्ती समुद्र में 30 से 35 मीटर ऊंची भयंकर सुनामी लहरें उत्पन्न हुई थी। जो 650 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल कर जावा, सुमात्रा के तटों से टकराकर भारी तबाही मचाई थी। इससे ज्वालामुखी विस्फोट से 36000 व्यक्ति मारे गए थे।
• 1783 ई. आईसलैंड में स्केप्टर जोकल ज्वालामुखी के विस्फोट से जो लावा प्रवाहित हुआ था। जिससे नदियों के मार्ग अवरुद्ध हो गए थे और देश भर में बाढ़ आ गई थी इससे अनेक गांव डूब गए जिससे अपार जन-धन की हानि हुई थी।
• 79 ई. में दक्षिण यूरोप के विसुवियस ज्वालामुखी के उद्गार से तलहटी में बसे पम्पियाई और हरक्यूलैनियम नगर तबाह हो गया था। उसके बाद यह सन् 1631 तक शांत रहा। फिर अचानक अत्यधिक बल के साथ विस्फोट हुआ। बाद में लगातार 1803, 1872,1906, 1927, तथा 1929 में विस्फोट हुआ।
ज्वालामुखी के लाभदायक प्रभाव:- ज्वालामुखी के ढेर सारे हानिकारक प्रभाव है। परन्तु कुछ लाभदायक प्रभाव भी देखे जाते हैं।
• ज्वालामुखी उद्गार से निकले लावा से निर्मित काली मिट्टी बहुत ही उपजाऊ मिट्टी होती है। दुनिया के सभी लावा पठार क्षेत्र इस दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। भारत का दक्कन का पठार लावा से निर्मित है, जो कपास की खेती के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। इटली के एटना और विसूवियस इत्यादि पर्वतों की तलहटी फलों की खेती के लिए जाना जाता है। उसी तरह ब्राजील, इथोपिया, संयुक्त राज्य अमेरिका (कोलंबिया घाटी) और इंडोनेशिया की लावा मिट्टी भी विविध फसलों की खेती के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
• ज्वालामुखी उद्गार के साथ अनेक बहुमूल्य खनिज पदार्थ धरातल पर आ जाते हैं। जहां उन बहुमूल्य खनिजों का निक्षेप होता है। स्वीडेन का लोहा क्षेत्र इसी प्रकार से बना है।
• लोहा, जस्ता, तांबा, एण्टीमनी, मौलिब्डीनम, चांदी, टिन इत्यादि खनिज ज्वालामुखी उद्गार के समय उपर आकर चट्टानों के धारियों में जमा हो जाता है।
• कई खनिज ज्वालामुखी उद्गार के समय निकलने वाले गर्म जल और गैसों के साथ धरातल पर आकर जम जाते हैं। जापान, इटली और सिसली द्वीप में गंधक के निक्षेप इसी प्रकार बने हैं।
• इटली में लावा वाष्प से विद्युत उत्पादन का कार्य लेना शुरू किया गया है।
• लावा के निक्षेप से बनी चट्टानें भवन निर्माण कार्यों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होती है।
• ज्वालामुखी प्रदेशों में गर्म जल के झरने मिलते हैं। जिनके जल से न केवल असाध्य रोगों का इलाज होता है। बल्कि भोजन पकाने और कपड़े धोने का काम भी किया जाता है। साथ ही ऐसे क्षेत्र पर्यटन के दृष्टिकोण से बहुत ही आकर्षक होते हैं।
• ज्वालामुखी क्रिया से पर्वत, पठार, क्रेटर झील, समुद्री द्वीप, कटक इत्यादि स्थलों का निर्माण होता है। जिससे हमारी पृथ्वी के इतिहास की जानकारी में सहायता मिलती है।
☆ ज्वालामुखी का विश्व वितरण (World Distribution of Volcanoes):-
विश्व में ज्वालामुखी का वितरण एक निश्चित क्रम में पाया जाता है। प्लेट विवर्तनिक के आधार पर 80% ज्वालामुखी विनाशात्मक किनारों (अभिसारी प्लेट सीमांत) पर, जबकि 15% रचनात्मक किनारों (अपसारी प्लेट सीमांत) पर एवं शेष 5% प्लेट सीमांत से दूर आंतरिक भाग में स्थित हैं। इस प्रकार देखा जाए तो विश्व के लगभग दो तिहाई ज्वालामुखी प्रशांत महासागर को घेरे हुए हैं, तथा शेष नवीन वलित पर्वतों के क्षेत्र में (हिमालय को छोड़कर) गहरे सागर एवं भ्रंश घाटियों में स्थित है। इनका अध्ययन विभिन्न ज्वालामुखी बेटियों के रूप में विभाजित कर किया जाता है। ये ज्वालामुखी पेट्टियां निम्न है।
(i) परिप्रशांत महासागरीय मेखला (Cirum Pacific Belt)
(ii) मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid-Continentel Belt)
(iii) मध्य अटलांटिक मेखला (Mid-Atlantic Belt)
(iv) अंतरा प्लेट ज्वालामुखी (Intraplate Volcano)
(i) परिप्रशांत महासागरीय मेखला (Cirum Pacific Belt):- ये ज्वालामुखी विनाशात्मक प्लेट (अभिसारी प्लेट सीमांत पर) के क्षेत्र में स्थित हैं। प्रशांत महासागर में स्थित द्वीप और उसके चारों और तटीय भाग में ज्वालामुखियों की संख्या अधिक पाई जाती है। इन्हें परिप्रशांत महासागरीय मेकला के नाम से जाना जाता है। विश्व के ज्वालामुखियों का लगभग दो तिहाई भाग प्रशांत महासागर के दोनों तटीय भागों, द्वीपों तथा समुद्री द्वीपों के सहारे पाया जाता है। इस कारण इसे प्रशांत महासागर की अग्नि श्रृंखला या अग्नि वलय (Fire Ring of the Pacific Ocean) भी कहा जाता है।
विस्तार:- यह पेटी अंटार्कटिक के माउंट इरेबस से शुरू होकर दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतमाला एवं उत्तर अमेरिका के रॉकी पर्वत माला से होते हुए अलास्का, पूर्वी रूस, जापान, फिलीपींस आदि द्वीपों सहित मध्य महाद्वीपीय पेटी में मिल जाती है।
प्रमुख ज्वालामुखी पर्वत:- जापान का फ्यूजीयामा, फिलीपींस का मेयान और ताल, चिली और अर्जेन्टाइना सीमा पर एकांकागुआ और ओजोसडेल सेलेडो, चिली का गुआल्लाटीरी, लैसकर और टुपुंगटीटो, इक्वेडोर का कोटोपैक्सी और चिम्बरेजो महत्वपूर्ण ज्वालामुखी पर्वत हैं।
? विश्व की सबसे ऊंची ज्वालामुखी पर्वत इसी पेटी में स्थित है।
? रिंग ऑफ फायर (Ring oF Fire) प्रशांत महासागर में ज्वालामुखी एवं भूकंप से प्रभावित लगभग 40 हजार किलोमीटर के क्षेत्र में घोड़े के नाल के आकार में विस्तृत एक बड़ा क्षेत्र है। विश्व के अधिकतर भूकंप एवं ज्वालामुखी (सक्रिय एवं सुषुप्त) इसी क्षेत्र में आते हैं जो प्रशांत महासागर के पूर्वी एवं पश्चिमी दोनों किनारों पर स्थित है।
(ii) मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid-Continentel Belt):– यह पेटी महाद्वीपीय प्लेट अभिसरण क्षेत्र में स्थित है। इस पेटी में स्थित अधिकांश ज्वालामुखी विनाशात्मक प्लेट किनारों (अभिसारी प्लेट सीमांत) के सहारे आते हैं। क्योंकि यूरेशियन प्लेट तथा अफ्रीकन एवं इंडियन प्लेट का अभिसरण होता है।
विस्तार:-यह पेटी आइसलैंड से प्रारंभ होकर स्कॉटलैंड होती हुई अफ्रीका के कैमरून पर्वत की ओर जाती है। कनारी द्वीप पर इसकी दो शाखाएं हो जाती है। एक पश्चिम की ओर और दूसरी पूर्व की ओर! पूर्व की ओर वाली शाखा स्पेन, इटली, सिसली, तुर्की, काकेशिया, आर्मेनिया, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, म्यांमार और मलेशिया होती हुई इंडोनेशिया तक चली जाती है। इसके अलावा अरब में जार्डन की भ्रंश घाटी एवं लाल सागर होती हुई इसकी एक श्रृंखला अफ्रीका के विशाल भ्रंश घाटी तक फैली हुई है। वहीं पश्चिम की ओर वाली शाखा कनारी द्वीप से पश्चिम तक जाती है। जहां यूरोप की राइन भ्रंश घाटी में कई ज्वालामुखी देखे जाते हैं।
प्रमुख ज्वालामुखी:- स्ट्राम्बोली, विसुवियस, माउंट एटना, ईरान का देवबंद, कोह सुल्तान, काकेशस का एलबुर्ज, आर्मेनिया का आरारात, अफ्रीका का किलीमंजारो, इंडोनेशिया क्राकातोआ इस पेटी के प्रमुख ज्वालामुखी पर्वत है।
? ध्यान देने वाली बात ये है कि इस पेटी क्षेत्र में हिमालय पर्वत श्रृंखला स्थित है। लेकिन हिमालयन क्षेत्र में ज्वालामुखी क्रिया नहीं होती, क्योंकि इस क्षेत्र में प्लेटों का क्षेपन (गहरीई में डुबना) उस अनुपात में नहीं होता जिस अनुपात में ज्वालामुखी क्रिया के लिए होना चाहिए।
(iii) मध्य अटलांटिक मेखला (Mid-Atlantic Belt):- यह पेटी रचनात्मक प्लेट किनारों (अपसारी प्लेट सीमांत) के सहारे मिलते हैं। जहां पर दो प्लेटें एक दूसरे से दूर जाती है। यहां दो प्लेटों के अपसरन के कारण दरार या भ्रंश का निर्माण होता है। इस भ्रंश का प्रभाव एस्थिनोस्फीयर तक होता है। जहां से पेरिडोटाइट तथा बेसाल्ट मैग्मा ऊपर उठते हैं। इन लावा के धरातल पर आकर ठंडा होने से नवीन भू क्रस्ट का निर्माण होता है। इस तरह की ज्वालामुखी क्रिया सबसे अधिक मध्य अटलांटिक कटक के सहारे होती है। कटक के पास नवीनतम लावा होता है तथा जैसे-जैसे कटक से जितना दूर हटते जाते हैं लावा उतना ही प्राचीन होता जाता है। इस प्रकार की ज्वालामुखी क्रिया में उद्भेदन शांत प्रकार का होता है।
विस्तार:- इस पेटी का विस्तार आइसलैंड से मध्य एटलांटिक कटक के सहारे सेण्ट हेलेना तथा एजोर द्वीप तक है। आइसलैंड इस मेखला का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सक्रिय क्षेत्र है। जहां लाकी हेकला एवं हेल्गाफेल का उद्गार महत्वपूर्ण है। लेसर एण्टीलीज, एजोर द्वीप एवं सेण्ट हेलेना इत्यादि प्रमुख उद्गार है।
प्रमुख ज्वालामुखी:- यहां उद्गार शांत रूप से होता है। मध्य अटलांटिक कटक के सहारे लाकी, हेकला, हेल्गाफेल, एजोर द्वीप, सेण्ट हेलना, लेसर एण्टीलीज इत्यादि।
? इस प्रकार का उद्भेदन अपसारी प्लेट सीमांत पर होता है। जहां दो प्लेटें एक दूसरे से दूर जाती है। यहां शांत प्रकार से ज्वालामुखी क्रिया होती है। जिससे कटकों का निर्माण होता है। साधारण अर्थों में कहा जाय तो समुद्र में स्थित पर्वत को कटक कहते हैं।
(iv) अंतरा प्लेट ज्वालामुखी (Intraplate Volcano):- इस प्रकार की ज्वालामुखी विस्फोट महाद्वीपीय और महासागरीय प्लेट के अंदर देखी जाती है। जिसका उत्पत्ति का प्रमुख कारण छोटे प्लेट गतिविधियों एवं गर्म स्थल संकल्प संकल्पना (Hot Spot) को माना जाता है। इस क्षेत्र में भूगर्भ से गर्म मैग्मा तेजी से उपर उठता है एवं स्थल भाग को तोड़ कर धरातल पर ज्वालामुखी के रूप में दिखाई देता है। इस पेटी के अंतर्गत ज्वालामुखी की एक रैखिक श्रृंखला देखाई देती है जिसके एक छोर पर सबसे पुराने तथा दूसरे छोर पर सबसे नए ज्वालामुखी पाए जाते हैं। जैसे – हवाई द्वीप।
विस्तार:- इस पेटी का विस्तार हवाई द्वीप से प्रारंभ होकर उत्तर पश्चिम दिशा में कमचटका तक है।
प्रमुख ज्वालामुखी:- इस पेटी में स्थित मोनालोआ प्रमुख ज्वालामुखी पर्वत है।
? ध्यान रहे मात्र हवाई द्वीप पर ही ज्वालामुखी उद्गार द्वारा भूकंप आते हैं तथा संपूर्ण श्रृंखला भूकंप रहित है। इसी कारण इसे भूकंप रहित कटक भी कहते हैं।
☆ भारत में ज्वालामुखी क्षेत्र का विवरण (Description of Volcanoes in India)
अंडमान निकोबार द्वीप समूह के कुछ द्वीपों को छोड़कर वर्तमान समय में भारत की मुख्य भूमि पर कहीं भी कोई सक्रिय ज्वालामुखी नहीं है। परंतु अतीत (प्राचीन) में यहां विभिन्न क्षेत्रों में कई ज्वालामुखी उद्गार हुए हैं। प्रोफेसर एच. एल. छिब्बर ने 1945 ई. भारत में प्राचीन समय में हुए ज्वालामुखी उद्गार के आधार पर छह ज्वालामुखी क्षेत्रों की पहचान की है। जो निम्न है-
(i) डालमा क्षेत्र:- यह क्षेत्र मुख्य रूप से झारखंड के डालमा क्षेत्र (जमशेदपुरके निकट) में स्थित है। यहां बैशाल्ट निक्षेप मिलता है। इसे भारत का सबसे प्राचीनतम ज्वालामुखी कहा जा सकता है। इस क्षेत्र में ज्वालामुखी का उद्गार धारवाड़ कल्प में हुआ था।
(ii) कुडप्पा, बिजावर एवं ग्वालियर क्षेत्र:- कुडप्पा काल में कुडप्पा, बिजावर एवं ग्वालियर क्षेत्र में लावा का निक्षेप हुआ था। इसका विस्तार आंध्रप्रदेश और मध्यप्रदेश में मुख्य रूप से देखा जाता है।
(iii) मलानी एवं किराना क्षेत्र:- इस क्षेत्र में विंध्यन काल में ज्वालामुखी का उद्गार हुआ है। मलानी राजस्थान के जोधपुर तथा किराना पहाड़ियों (अरावली पहाड़ी का उत्तरी क्षेत्र) में लावा का निक्षेप मिलता है।
(iv) निम्न हिमालय क्षेत्र:- इस क्षेत्र में लावा का उद्भेदन पुराजीवी (कैंब्रियन से कार्बोनिफेरस) काल में हुआ है। इसके अंतर्गत पीर पंजाल श्रेणी की ऊपरी घाटी, गढ़वाल, नैनीताल इत्यादि क्षेत्र आते हैं।
(v) राजमहल एवं अबोर पहाड़ी:-इस क्षेत्र में लावा का उद्भेदन मेसोजोइक काल में हुआ था। यह क्षेत्र झारखंड के राजमहल पहाड़ियों में तथा असम के अबोर पहाड़ियों में स्थित है।
(vi) दक्कन लावा क्षेत्र:- इस क्षेत्र में लावा का उद्भेदन क्रिटेशस काल में हुआ है। यह क्षेत्र प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर – पश्चिमी भाग में दरारी उद्गारों फलस्वरुप बना है। जिसे दक्कन पठार (दक्कन ट्रैप) के नाम से जाना जाता है। यहां लावा की परतों के जमने से सैकड़ों मीटर मोटा पठार बन गया है।
☆ कुछ संक्षिप्त शब्दावली:-
मैग्मा और लावा (Magma/Lava):- पृथ्वी के ऊपरी ठोस परत के नीचे अधिक तापमान में वृद्धि अथवा दाब में कमी या दोनों के कारण ठोस पदार्थ के पिघलने से ‘मैग्मा’ की उत्पत्ति होती है। यही मैग्मा जब धरातल पर निकलता है तो उसे ‘लावा’ के रूप में जाना जाता है।
• गाढ़ा मैग्मा (अम्लीय) पृथ्वी की आंतरिक परतों को तोड़ते हुए केंद्रीय विस्फोटक ज्वालामुखी क्रिया के रूप में जब सतह पर आता है। तो यह ठंडा होकर डायोराइट, एंडेसाइट, ग्रेनाइट एवं रायोलाइट के रूप में चट्टान एवं संरचनाओं का निर्माण होता है।
• वहीं तरल मैग्मा (क्षारीय) शांत प्रकार से धरातल पर आता है। ये मुख्यतः दरार और भ्रशः के सहारे भूगर्भ से उपर धरातल पर आता है। जिससे बेसाल्ट चट्टान से निर्मित संरचनाओं पठार एवं महासागरीय कटक का निर्माण होता है।
ज्वालामुखीय बम (Volcanic Bomb) :- ज्वालामुखी के दौरान निकले बड़े-बड़े टुकड़ों को बम कहा जाता है।
लैपिली (Lapilli):- लावा धरातल पर पहुंचने के बाद ठोस आकार में परिवर्तित हो जाता है। मटर के दाने या अखरोट के आकार वाले टुकड़ों को लैपिली कहते हैं।
स्कोरिया (Scoria):- लैपिली से भी छोटे खंड (चने के दानों की तरह) टुकड़ों को स्कोरिया कहलाता है।
प्यूमिस (Pumice):- कुछ शिलाखंड बहुत हल्के और छिद्रदार होते हैं जो लावा के झांग से बने होते हैं। उन्हें प्यूमिस कहते हैं।
ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cone):- ज्वालामुखी से निकले पदार्थ जब ज्वालामुखी छिद्र के चारों और जमा हो जाते हैं, तो उससे ज्वालामुखी शंकु का निर्माण होता है।
ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountain):- जब अधिक जमाव के कारण शंकु का आकार बड़ा हो जाता है और एक पर्वत का रूप धारण कर लेता है तो इस प्रकार के बड़े शंकु को ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं।
ज्वालामुखी छिद्र (Volcanic Vent):- ज्वालामुखी पर्वत के ऊपरी भाग के बीच में एक छिद्र होता है जिसे ज्वालामुखी छिद्र कहते हैं।
ज्वालामुखी नली (Volcanic Pipe):- ज्वालामुखी छिद्र धरातल के नीचे एक पतली नली के सहारे जुड़ा रहता है जिसे ज्वालामुखी नली कहते हैं।
ज्वालामुखी मुख (Volcano Crater):- ज्वालामुखी छिद्र के विस्तृत रूप को ज्वालामुखी मुख कहते हैं।
पाइरोक्लास्ट (Pyroclasts):- ज्वालामुखी क्रिया के दौरान निकलने वाले चट्टानों के बड़े टुकड़ों को पाइरोक्लास्ट कहा जाता है।
धूल/राख (Dust/ash):- ज्वालामुखी क्रिया के दौरान निकलने वाले अति महीन चट्टानी कण जो हवा के साथ उड़ सकते हैं, धूल/राख के नाम से जाने जाते हैं।
काल्डेरा (Caldera):- काल्डेरा का निर्माण क्रेटर के धंसने या ज्वालामुखी के विस्फोटक उद्भेदन से होता है। जिससे इसके मुख और छिद्र का आकार बहुत बड़ा हो जाता है। जैसे – जापान का आसो और ऐरा, अमेरिका का बेलिस काल्डेरा।
• विश्व का सबसे बड़ा काल्डेरा जापान का आसो (ASO) है। जिसकी परिधि 112 किलोमीटर तथा अधिकतम चढ़ाई 27 किलोमीटर है
•अत्यधिक बड़े काल्डेरा को सुपर काल्डेरा कहते हैं ।जैसे इंडोनेशिया के सुमात्रा में स्थित लेक टोवा तथा अमेरिका में स्थित क्रेटरलेक।
• जब काल्डेरा के अंदर पुन: ज्वालामुखी उद्गार होता है, तो नये शंकु की रचना होती है। इन शंकुओं के विस्फोटक विनाश से घोंसलादार काल्डेरा (Nested Caldera) का निर्माण होता है।
धुंआरे (Fumaroles):- धरातल में स्थित ऐसा छिद्र है, जिससे ज्वालामुखी क्रिया के दौरान राख एवं लावा निकलना जब बन्द हो जाता है। तब उसी छिद्र के सहारे गैस तथा वाष्प निकला करती है। उसे धुंआरे कहा जाता है। इसका सीधा संबंध ज्वालामुखी क्रिया से होता है। यह वास्तव में ज्वालामुखी की सक्रियता के अंतिम लक्षण माने जाते हैं। गेसर या गर्म जल स्रोत की अपेक्षा धुंआरे से निकलने वाले गैस या वाष्प का तापमान बहुत अधिक होता है। इस दौरान गैस और जलवाष्प का तापमान 645° सेल्सियस तक होता है।
• सभी प्रकार के धुंआरों से निकलने वाले पदार्थों में 98 से 99% तक वाष्प होता है। कुछ मात्रा में कार्बन डाई आक्साइड, HCL, हाइड्रोजन सल्फर, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, अमोनिया, गंधक होता है।
• विश्व के प्रमुख धुंआरों में अलास्का के कटमई में स्थित दस सहस्त्र धूम्र घाटी (A Velley of Ten Thousand Smokes), ईरान क स्थित कोह सुल्तान धुंआरा तथा न्यूजीलैंड की प्लेंटी की घाटी में ह्वाइट टापू का धुंआरा प्रसिद्ध है
• धुंआरों का आर्थिक उपयोग भी होता है। इनसे गंधक एवं बोरिक एसिड प्राप्त किया जाता है। गर्म जलवाष्प और गैसों को एकत्रित कर इटली तथा अमेरिका में बिजली उत्पन्न की जाती है।
सोल्फतारा (Solfatara):- जब धुंआरों से अधिक मात्रा मेंगंधक का उत्सर्जन होता है तब उन्हें सोल्फतारा (Solfatara) कहा जाता है। यह नाम भूमध्यसागर के किनारे स्थित सोल्फतारा ज्वालामुखी से लिया गया है।
गेसर (Geyser):- गेसर गर्म जल स्रोत होते हैं, जिनसे भूगर्भ से एक अंतराल पर गर्म जल तथा वाष्प बाहर निकलती है। कभी-कभी इनकी ऊंचाई 100 फीट या इससे अधिक भी होती है। जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क का ओल्ड फेथफुल तथा एक्सेल्सियर गेसर
गर्म जल स्रोत (Hot Spring):- गेसर और गर्म जल स्रोत दोनों एक जैसे होते हैं परन्तु जहां गेसर में गर्म जल या वाष्प एक अंतराल से निकलता है। वहीं गर्म जल स्रोत में गर्म जल और वाष्प अंतराल नहीं होता बल्कि लगातार निकलता है। गर्म जल स्रोत निकलने का प्रमुख कारण चट्टानों में रेडियोधर्मी तत्वों की उपस्थिति है। जैसे- बिहार के नालंदा में स्थित राजगीर, झारखण्ड के हजारीबाग में स्थित बरकठ्ठा सूर्य कुण्ड इत्यादि।
मड वल्केनो (Mud Volcano):- मड वोल्केनो एक ऐसी प्राकृतिक रचना है, जिनमें से भू गर्भ से गैसों और कीचड़ से मिश्रित गाद जैसे तरल पदार्थों का उत्सर्जन होता है। मड वेल्कनो पृथ्वी पर मौजूद टेक्टोनिक प्लेटों को अलग करने वाली सीमावर्ती क्षेत्रों (Subdiction Zone) के आसपास अधिकतर पाए जाते हैं। ये अमेरिका, कनाडा, ताइवान, इटली, ईरान, पाकिस्तान, रोमानिया, चीन, जापान, इण्डोनेशिया, कोलम्बिया सहित विश्व के कई देशों मे पाया जाता है। भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह के बाराटांग नामक द्वीप में पाये जाते हैं।
• विश्व का सबसे बड़ा मड वल्केनो ‘लूसी’ है जो इंडोनेशिया में स्थित है।
भूगर्भीय प्लेट:- पृथ्वी का ऊपरी ठोस परत जो नीचे स्थित तरल मैग्मा पर तैर रहा है भूगर्भीय प्लेट कहलाता है। इन प्लेटों में गति के आधार पर अभिसारी प्लेट, अपसारी प्लेट और रूपांतरण (तीन प्रकार के) भूगर्भीय प्लेट के रूप में बांटा गया है। ज्वालामुखी क्रिया में भूगर्भीय प्लेटें मुख्य रूप से जिम्मेवार होती है।
• अभिसारी प्लेट (विनाशात्मक प्लेट):- जब दो भूगर्भीय प्लेटें आमने-सामने टकराती है या समीप आती है तो इसे अभिसारी प्लेट क्रिया कहते हैं। चुकी इस क्रिया में प्लेट सीमांत पर भारी प्लेट हल्की प्लेट के नीचे डूबने लगती (क्षेपन होता) है, जिससे भारी यानी अधिक घनत्व वाली प्लेट नीचे अधिक तापमान के कारण पिघलने (विनाश) लगती है। यानी प्लेट का विनाश होता है। इस कारण इसे विनाशात्मक प्लेट क्रिया भी कहा जाता है। यही पिघली मैग्मा धरातल को तोड़कर बाहर निकलती है जिसे ज्वालामुखी विस्फोट कहते हैं। ज्वालामुखी क्रिया के अलावा इस क्रिया में भूकंप की घटना एवं वलित पर्वत का निर्माण इत्यादि भी हो सकता है।
• अपसारी प्लेट (रचनात्मक प्लेट):- जब दो भूगर्भीय प्लेट एक दूसरे से दूर जाते हैं तब दोनों दूर जा रहे प्लेट सीमांत पर दरार या भ्रंश के कारण भूगर्भ में स्थित मैग्मा लावा के रूप में ऊपर निकलने लगता है। जिसे नए भू-कस्ट की रचना होती है। क्योंकि इसमें नए भू धरातल की रचना होती है। इसलिए इस क्रिया को रचनात्मक प्लेट क्रिया या अपसारी प्लेट क्रिया कहते हैं। इससे कटकों का निर्माण होता है। इस क्रिया में भूगर्भ से धीरे-धीरे शांत रूप से दरारों या भ्रशों के माध्यम से मैग्मा लावा के रूप में निकलता है।
? ध्यान रहे अपसारी प्लेट क्रिया में भूकंप की घटना नहीं होती।
• रूपांतरण प्लेट :- जब दो भूगर्भीय प्लेटें रगड़ के साथ अगल-बगल चलती है, तब रूपांतरण प्लेट क्रिया कहा जाता है। इस क्रिया में रूपांतरण प्लेट सीमांत पर तीव्र भूकंप की घटना होती है।
? ज्ञातव्य है कि प्लेट की इस गति क्रिया में किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं होता।
? जैसा कि विदित है कि पृथ्वी का सबसे ऊपरी ठोस परत जो तरल मैग्मा पर तैर रहा है प्लेट कहलाता है। जिसकी मोटाई 60 से 100 किलोमीटर तक है। पृथ्वी पर 7 बड़े तथा कई छोटी प्लेटें विद्यमान है जैसे अफ्रीकन प्लेट, यूरेशियन प्लेट, इंडो ऑस्ट्रेलियाई प्लेट, प्रशांत प्लेट, उत्तरी अमेरिकी प्लेट, दक्षिण अमेरिका प्लेट, अंटार्कटिक प्लेट इत्यादि।
☆ ज्वालामुखी से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (Important questions related to Volcanoes)
• ज्वालामुखी से सबसे अधिक कौन सी गैस निकलती है?
उत्तर:- जलवाष्प
• पृथ्वी का सबसे बड़ा ज्वालामुखी का दर्जा किसे प्रदान किया गया है?
उत्तर:- मोना लोवा (अमेरिका के हवाई द्वीप में स्थित)
• विश्व की सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित मृत ज्वालामुखी कौन सी है?
उत्तर:- एकांकागुआ (6960 मी.)
• विश्व की सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित सक्रिय ज्वालामुखी कौन सी है?
उत्तर:- ओजस डेल सालाडो (6908 मी. एण्डीज पर्वत पर चिली-अर्जेंन्टाइना)
• सौरमंडल का सबसे ज्ञात बड़ा ज्वालामुखी कौन सा है?
उत्तर:- ओलंपस मोंस (मंगल ग्रह)
• येलो स्टोन पार्क कहां स्थित है?
उत्तर:- संयुक्त राज्य अमेरिका
• गर्म स्थल संकल्पना (Hot Spot) का प्रतिपादन किसने किया?
उत्तर:- जेसन मार्गन एवं टूजो विल्सन
• ज्वालामुखी क्रेटर में वर्षा जल एकत्र होने से क्रेटर झील का निर्माण होता है। ऐसे जिलों के कुछ उदाहरण बताएं?
उत्तर:- टिटिकाका (द. अमेरिका), विक्टोरिया (अफ्रीका), लोनार (महाराष्ट्र-भारत)
• भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ के नाम से कौन सा ज्वालामुखी जाना जाता है?
उत्तर:- स्ट्राम्बोली (इटली)
• किस महाद्वीप में एक भी ज्वालामुखी नहीं है?
उत्तर:- आस्ट्रेलिया में
• किस ज्वालामुखी परि मेखला को अग्नि वलय की संज्ञा दी गई है?
उत्तर:- परिप्रशांत महासागरीय मेखला
• भारत में स्थित सक्रिय ज्वालामुखी का नाम क्या है।
उत्तर:- बैरन द्वीप (अंडमान निकोबार द्वीप समूह)
• केंद्रीय विस्फोट वाले ज्वालामुखी में से किस प्रकार का ज्वालामुखी सर्वाधिक विनाशकारी, विस्फोटक एवं भयंकर होता है?
उत्तर:- पीलियन तुल्य
• भारत में सबसे पहले ज्वालामुखी का उद्भेदन कहां हुआ था?
उत्तर:- डालमा (झारखण्ड में जमशेदपुर के निकट)
• भारत में सबसे विस्तृत ज्वालामुखी का उद्गार कहा हुआ है?
उत्तर:- दक्कन पठार (क्रिटेशियस काल में)
• अंटार्कटिका में स्थित एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी का क्या नाम है?
उत्तर:- माउंट इरेबस
• फ्यूजीयामा ज्वालामुखी किस देश में स्थित है?
उत्तर:- जापान
• क्राकातोआ ज्वालामुखी किस देश में स्थित है?
उत्तर:- इंडोनेशिया
• विश्व का सबसे बड़ा काल्डेरा कहां स्थित है?
उत्तर:- जापान का आसो (ASO)
• विश्व के प्रमुख धुंआरों दस सहस्त्र धूम्र घाटी (A Velley of Ten Thousand Smokes)कहां स्थित है?
उत्तर:- अलास्का के कटमई में स्थित
☆ ज्वालामुखी से संबंधित महत्वपूर्ण 10 objective questions answer
1. मोना लोवा एक सक्रिय ज्वालामुखी है?
A. अलास्का का B. हवाई द्वीप का C. जापान का D. फिलीपींस का
उत्तर:- B. हवाई द्वीप का
2. ज्वालामुखी पर्वत माउंट सेंट हेलेंस कहां स्थित है?
A. संयुक्त राज्य अमेरिका B. इटली C. जापान D. आस्ट्रेलिया
उत्तर:- A. संयुक्त राज्य अमेरिका
3. इनमें से विश्व का सबसे ऊंचा ज्वालामुखी पर्वत कौन है?
A. स्ट्राम्बोली B. कोटोपैक्सी C. ओजोस डेल सलाडो D. एकांकागुआ
उत्तर:- D. एकांकागुआ
व्याख्या:- स्ट्राम्बोली- 924 मी., कोटोपैक्सी- 5897 मी., ओजोस डेल सलाडो – 6908 मी., एकांकागुआ- 6960 मी.
4. पृथ्वी के अंदर पिघले पदार्थ को क्या कहते हैं?
A. मैग्मा B. लावा C. बैशाल्ट D. आब्सीडियन
उत्तर:- A. मैग्मा
व्याख्या:- भूगर्भ में अधिक तापमान के कारण ठोस पदार्थ जब पिघलता है तो उसे मैग्मा के नाम से जाना जाता है, और यही मैग्मा जब धरातल पर निकलता है तो उसे लावा कहते हैं।
5. जब धंसाव या अन्य कारण से ज्वालामुखी का विस्तार अत्यधिक हो जाता है तो उसे क्या कहते?
A. ज्वालामुखी शंकु B. ज्वालामुखी छिद्र C. ज्वालामुखी नली D. काल्डेरा
उत्तर:- D. काल्डेरा
6. भारत में मड वल्केनो (Mud Volcano) कहां स्थित है?
A. बैरन द्वीप B. नारकोंडम C. बाराटांग D. लक्षद्वीप
उत्तर:- C. बाराटांग
व्याख्या:- मड वल्केनो ऐसी प्राकृतिक रचना है जिससे भूगर्भ से उत्सर्जित गैसों और किचडनुमा गाद जैसे तरल पदार्थों का उत्सर्जन होता है। यह पृथ्वी पर मौजूद टेक्टोनिक प्लेटों को अलग करने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों में या इसी के आस पास पाए जाते हैं। विश्व के कई क्षेत्रों में मड वल्केनो पाया जाता है। भारत के अंडमान द्वीप समूह के बाराटांग नामक द्वीप में यह स्थिति है। जैसा की ज्ञात है विश्व का सबसे बड़ा मड वल्केनो लूसी है, जो इंडोनेशिया में स्थित है।
7. इनमें से कौन सक्रिय ज्वालामुखी नहीं है?
A. स्ट्राम्बोली B. मोनालोआ C. चिम्बोराजो D. कोटोपैक्सी,
उत्तर:- C. चिंबोराजो
व्याख्या:- इक्वेडोर का चिम्बोराजो एक मृत ज्वालामुखी है। जबकि इटली का स्ट्राम्बोली, हवाई द्वीप का मोनालोआ, इक्वेडोर का कोटोपैक्सी जाग्रत या सक्रिय ज्वालामुखी है।
8. विश्व प्रसिद्ध गेसर (Geyser) ओल्ड फेथ फुल कहां स्थित है।
A. येलोस्टोन नेशनल पार्क, अमेरिका B. राजगीर बिहार, भारत C. कोह सुल्तान, ईरान D. सहस्त्र ध्रूम घाटी अलास्का
उत्तर:- A. येलोस्टोन नेशनल पार्क, अमेरिका
9. इनमें से कौन लावा से बने पठार का उदाहरण है?
A. कोलंबिया का पठार B. तिब्बत का पठार C. छोटानागपुर का पठार D. पैटागोनिया का पठार
उत्तर:- A. कोलंबिया का पठार
व्याख्या:- द. अमेरिका स्थित कोलंबिया का पठार लावा निर्मित पठार का उदाहरण है। ज्वालामुखी उद्गार से बने पठार को लावा निर्मित पठार कहते हैं। प्रायद्वीपीय भारत में दक्कन का पठार, द. अमेरिका में कोलंबिया का पठार, यूरोप में आयरलैंड स्थित एन्ट्रीम का पठार, ब्राजील एवं पराग्वे में पराना का पठार ज्वालामुखी उद्गार से बने लावा पठार के उदाहरण है।
10. किस ज्वालामुखी के विस्फोट से पोम्पीआई, पाम्पर, हरक्यलेनियन और स्टेबी नगर पुर्णतः नष्ट हो गए थे?
A. क्राकातोआ B. विसुवियस C. मोनालोआ D. एटना
उत्तर:- B. विसुवियस
व्याख्या:- 79 ई. में दक्षिण यूरोप के विसुवियस ज्वालामुखी के उद्गार से तलहटी में बसे पोम्पियाई, पाम्पर, स्टेबी और हरक्यूलेनियम नगर तबाह हो गया था।
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प्रस्तुतीकरण
www.gyantarang.com
संकलन
महेंद्र प्रसाद दांगी
शिक्षक