खोरठा भाषा के क्षेत्रीय रूप | खोरठा भाषा पर अन्य भाषा का प्रभाव
खोरठा भाषा के क्षेत्रीय रूप में विविधता पाया जाता है। इसका प्रमुख कारण झारखंड के भौगोलिक बनावट है। नदी-नालों, उबड़-खबड़ पहाड़ी इलाकों से पटा है झारखंड प्रदेश। जिसका प्रभाव झारखंड के खोरठा भाषा के क्षेत्रीय रूप पर भी पडा है। भाषा के ऊपर में एक कहावत प्रचलन में है- “तीन कोस पर पानी बदले सात कोस पर वाणी!” इसका अर्थ यह है कि तीन कोस पर पानी का स्वाद बदल जाता है, उसी तरह सात कोस पर भाषा का क्षेत्रीय रूप में बदलाव देखा जाता है। क्योंकि खोरठा भाषा का विस्तार झारखंड के बड़े क्षेत्र पर हैं। जिस कारण स्थानीय विशेषताओं के कारण इसके विभिन्न क्षेत्रीय रूप देखे जाते हैं। कुल मिलाकर कहें कि खोरठा भाषा पर अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव देखने को मिलता है।
विषय वस्तु
☆ खोरठा भाषा का भौगोलिक विस्तार
☆ खोरठा भाषा के क्षेत्रीय रूप
• सिखरिया या खासपइला
• गोलवारी
• रामगढ़िया
• देसवाली
• परनदिया
• छिका-छिकी खोरठा या संथाल परगनिया
☆ खोरठा भाषा में इसे कैसे लिखें
☆ 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
☆ खोरठा भाषा का भौगोलिक विस्तार
खोरठा विद्वान शिवदयाल सिंह ‘शिवदीप‘ के अनुसार खोरठा भाषा का विस्तार झारखंड के 31 हजार वर्ग किलोमीटर में है। जो मुख्यतः दामोदर नदी बेसिन के आसपास के क्षेत्रों में देखा जाता है। इसकी सीमा रेखा उत्तर में कोडरमा और दनुआ-बनुआ के दुर्गम जंगल क्षेत्र में है तो दक्षिण में रांची की पहाड़ी तक तथा पूर्व में बंगाल की सीमा और पश्चिम में पलामू पहाड़ी के बीच स्थित है। स्थानीय विविधताओं के कारण खोरठा भाषा में क्षेत्रीय विविधता स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं।
☆ खोरठा भाषा के क्षेत्रीय रूप
खोरठा भाषा के विद्वान डॉ एके झा के द्वारा खोरठा के दो क्षेत्रीय रूपों का वर्णन किया गया है।
(क) सिखरिया या खासपइला
(ख) गोलवारी
ये दोनों भेद इन क्षेत्रों में प्रचलित अनाज मापने के औजार के रूप में भी देखा जाता है। जो ‘पइला’ के प्रयोग पर यह आधारित है। इस समय अनाज मापने के पैमाने भी बदल गए हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो वर्तमान समय में खोरठा भाषा को “छह क्षेत्रीय रूपों” में बांटा जा सकता है। जो निम्नलिखित है-
I. सिखरिया या खासपइला
II. गोलवारी
III. रामगढ़िया
IV. देसवाली
V. परनदिया
VI. छिका-छिकी खोरठा या संथाल परगनिया
I. सिखरिया या खासपइला
यह क्षेत्र वर्तमान समय में बोकारो के जैना मोड़ से पूर्व बंगाल सीमा तक स्थित है। इस क्षेत्र में अनाज मापने के लिए पइला व्यहृत होता है। जो लगभग एक सेर के बराबर होता है। इसी से इसका नाम खास पइलिया या सिखरिया पड़ा। इस भाग में आरंभ (जैना मोड़) से पूर्व की ओर जाने पर खोरठा ध्वनि उच्चारण में बांग्ला का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। प्रश्नवाचक शब्द ‘की‘, बहुवचन बोधक शब्द प्रत्यय “गुला, गुलिन, गुलइन” का भी प्रयोग होता है। साथ ही बंगला के स्वर ध्वनि में होने वाला ‘अकार‘ का प्रयोग खोरठा में भी देखा जाता है। यहां कुछ उदाहरणों से समझते हैं।
हामर के बदले – हाॅमर
तोहनिक के बदले – तोहराक
ओखनिक के बदले – उनखांक
दही के बदले – दोही
मछरी के बदले – माॅछ
छगरी के बदले – छाॅइगर
चार (चाइर) – चाल
कोदाइर के बदले – कोदाइल
हर के बदले – हाल
छउआ के बदले – गिदॅर
लेरू के बदले – बाछुर
खइर के बदले – खम्हार
घानी के बदले – कुल्हु
मास्टरबइन के बदले – मास्टरगुला
हे के बदले – हों
हाम के बदले – हामें
कुछ वाक्य प्रयोग जैसे :-
हामें पढ़ों हों
हामर बापें हाल जोते गेला।
इत्यादि का प्रयोग देखा जाता है। इसे खोरठा पर बंगला असर कहा जा सकता है।
II. गोलवारी
इस क्षेत्र के अंतर्गत रामगढ़ जिला के गोला से पूर्व की ओर बोकारो जिला के कसमार के आस-पास के भाग सम्मिलित किये जाते हैं। यहां झारखंड के एक सदानी भाषा कुरमाली का प्रभाव इस भाषा पर दिखाई पड़ता है। खोरठा भाषा में यहां निम्न प्रभाव देखे जाते हैं-
हइ के बदले – आहे
करहें के बदले – करइस आहें
की के बदले – कीना
हम/हाम के बदले – मोंञ
खातिर के बदले – आहे
कुछ वाक्य प्रयोग जैसे :-
उ खाइल आहे।
उ कीना गेल आहे।
III. रामगढ़िया
खोरठा भाषा के बडे विद्वान डाॅ. अजीत कुमार झा के अनुसार इसका मुख्य विस्तार रामगढ़ जिला में है। यह क्षेत्र पूर्व में भेड़ा नदी से पश्चिम में पतरातू तक विस्तृत है। जबकि उत्तर में दामोदर नदी और दक्षिण में ओरमांझी प्रखंड, बुटी, कांके, उमेडांड, पिठोरिया एवं बुडमु तक फैला हुआ है। इस भाषा क्षेत्र के केंद्र में ऐतिहासिक नगर रामगढ़ है। इस कारण इस भाषा क्षेत्र को रामगढ़िया के नाम से जाना जाता है। इस भाषा क्षेत्र पर कुरमाली और नागपुरी दोनों का कुछ प्रभाव देखने को मिलता है। खोरठा प्रभाव को यहां निम्न रूप से देखा जा सकता है।
• यहां प्रश्नवाचक शब्द का और बहुवचन बोधक शब्द प्रत्यय अइन का प्रयोग होता है। जैसे:- छगरिअन
• कुरमाली प्रभाव से प्रश्नवाचक शब्द ‘की‘ (क्या) की जगह कीना का प्रचलन है। जैसे:- उ कीना गेल हे।
• जैसे-जैसे रामगढ़ से दक्षिण और पश्चिम की ओर बढ़ते हैं। त्यों-त्यों नागपुरी प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ने लगता है।
जिस कारण बहुवचन बनाने के लिए मन शब्द जोड़ा जाता है। जैसे:- छगरिअन – छगरिमन, उसी तरह वाक्य के सहायक क्रिया हइ के बदले मूल क्रिया में प्रत्यय रूप ल जोड़ा जाता है। जैसे:- करहइ के बदले – करइला, चलहइ के बदले – चलइला
IV. देसवाली
पतरातु प्रखण्ड की सीमा से पलामू जिले तक विस्तार देखा जाता है। इस भाग के उत्तर में मगही और पश्चिम में भोजपुरी का प्रभाव देखने को मिलता है। इस भाग में खोरठा भाषा देखे जाने वाले क्षेत्रीय विविधता को खेरवारी भी कहा जाता है। जो खेरवार जनजाति के नाम पर पड़ा है।
V. परनदिया
इसका विस्तार दामोदर नदी के उत्तर में स्थित पलामू के पूर्व से कोडरमा घाटी और दक्षिण पूर्व में गिरिडीह तक है। परनदिया क्षेत्रीय रूप में क्रिया पदों में ओ कार और संज्ञा पदों में आ कार जोड़ने की प्रवृत्ति है।
जैसे:-कर हइ – करो हइ, मोहन खेले हे – मोहना खेलो हे, भात खइले – भाता खइलो, पेट फाइट गेलइ – पेटा फाइट गेलो, सोहन कहां गेलइ – सोहना कहां गेलो
नदी किस प्रकार भाषा के क्षेत्रीय रूप में विविधता लाती है। इसका एक उदाहरण इस भाग में दामोदर नदी के सहारे देखा जा सकता है। उदाहरण के रूप में रामगढ़ के पास दामोदर नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित नईसराय गांव है और दक्षिणी किनारे पर रामगढ़! दोनों स्थानों के बीच की दूरी कुछ सौ मीटर है, परंतु दोनों क्षेत्रों की बोली में थोड़ा अंतर दिखाई पड़ता है। जैसे:- रामगढ़ के लोग करता है के लिए कर हइ का प्रयोग करते हैं। जैसे:-रमेश आटो चलावेक काम कर हइ । जबकि नईसराय के लोग करता है के लिए करो हइ का प्रयोग करते हैं। जैसे:- रमेश आटो चलावेक काम करो हइ ।
VI. छिका-छिकी खोरठा या संथाल परगनिया
इसका विस्तार संथाल परगना के जिलों में देखा जाता है। इस भाग में खोरठा भाषा पर मैथली और अंगिका भाषा का प्रभाव देखने को मिलता है। इसमें मैथली भाषा के कुछ प्रत्ययों का समावेश हुआ है। इसमें सहायक क्रिया है के लिए छि, छिक, छै इत्यादि का प्रयोग देखा जाता है। जिसे देख कर भाषा वैज्ञानिक अब्राहम ग्रियर्सन ने छिका-छिकी मैथली कहा है। परंतु सही अर्थ में यह मैथिली ना होकर के खोरठा का ही एक रूप है। क्योंकि मैथिली में सहायक क्रिया है के लिए थिक का प्रयोग होता है। जबकि छिका-छिकी में छिक का प्रयोग होता है। जो खोरठा के हिक के अधिक करीब है।
☆ खोरठा भाषा में इसे कैसे लिखें
खोरठा भाषा के क्षेत्रीय रूप | खोरठा भाषा पर अन्य भाषा का प्रभाव
खोरठा भासाक छेतरिए रूप में ‘विविधता’ पावल जा हे। एकर मुख ओजह हे झारखंड के अजगुज भौगोलिक बनावट हे। झारखंड नदी-नाला, टील्हा-टुंगरीक से पटल हे। जेकर प्रभाव खोरठा भासाक उपरें भेटा हे। भासा के छेतरिए रुप पर एगो कहावत प्रचलित हे कि “तीन कोस उपरें पानी बदले आर सात कोस उपरें बानी।” मनेक इ हे कि तीन कोस (कुछ किलोमीटर) पर पानी के सवाद बदल जा हे, वही रंग सात कोस पर भासा मनेक बोली में तनी फरख भेइ जा हे। किलेकि खोरठा भासा झारखंडेक एगो ढांगा (बडा) छेतरें पसरल हे। से ले स्थानीय बिसेसता के चलते एकर छेतरिए रुपें ‘विविधता’ पावल जा हे। मोटा-मोटी कहल जा पारे कि खोरठा भासा उपरें आर छेतरिए प्रभाव देखल जा हे।
शब्द अर्थ
भासाक – भासा के, रूपें – रूप में, उपरें – उपर में, ओजह – कारण, ढांगा – बडा, पसरल – विस्तार/फैलाव, किलेकि – क्योंकि, अजगुज – अजब-गजब, वही रंग – उसी तरह, मनेक – मतलब, मोटा-मोटी – कुल मिलाकर, से ले – इस लिए, हे – है।
बिसइ बसतु
☆ खोरठा भासाक भौगोलिक विस्तार
☆ खोरठा भासाक छेतरिए रूप
• सिखरिया या खासपइला
• गोलवारी
• रामगढ़िया
• देसवाली
• परनदिया
• छिका-छिकी खोरठा या संथाल परगनिया
☆ खोरठा भासाक भौगोलिक विस्तार
खोरठाक बिदबान शिवदयाल सिंह ‘शिवदीप‘ के अनुसार खोरठा भासाक बिस्तार झारखंड के 31 हजार बर्ग किलोमीटर में हे। इ ढ़ांगा छेतरेक सवा करोड़ ले बेसी लोकेक लोकप्रिय, माय-कोरवा भासा हके। जे मुइख रूप से दामुदर नदी घाटी छेतर में देखल जा हे। एकर सीमा रेखा उत्तर में कोडरमा आर दनुआ-बनुआ के दुर्गम बोन छेतरें हे, दखिन दिसाञं रांची के टुंगरी तक हे, पूरब में बंगाल के सीमा आर पछिम में पलामू पहाड़ी के मधे बिस्तार देखल जा हे। स्थानीय विविधता के चलते खोरठाहुं छेतरिए विविधता स्पष्ट रूप से भेंटा हे।
शब्द अर्थ
दामुदर – दामोदर, दखिन – दक्षिण, दिसाञं – दिशा में, आर – और, पछिम – पश्चिम, खोरठाहुं – खोरठा में भी, भेंटा – पाया जाना/दिखाई पड़ना, लोकेक – लोग, माय-कोरवा – मातृभाषा।
☆ खोरठा भासाक छेतरिए रूप
खोरठा भासाक धुरंधर बिदबान डाॅ. ए के झा के नजरें खोरठा के दु गो छेतरिए रूप के बखान करलका हे।
(क) सिखरिया खास पइलिया
(ख) गोलवारी
इ दुइओ रूप इ छेतरें प्रचलित अनाज नापेक लाइ ओजार के रूप में देखल जा हे। जे पइला के परजोग पर आधारित हे। इ घरि अनाज मापेक पैमाना बदल गेल हे। कुल मिलाकर कहल जाइ पारे कि इ घरि खोरठा भासाक छ गो छेतरिए रूप में बाटल जा सको हे।
शब्द अर्थ
• दुइओ – दो, इ छेतरें – इस छेतर में, लाइ – के लिए, परजोग – प्रयोग, इ घरि – इस समय।
I. सिखरिया या खासपइला
II. गोलवारी
III. रामगढ़िया
IV. देसवाली
V. परनदिया
VI. छिका-छिकी खोरठा या संथाल परगनिया
I. सिखरिया या खासपइला
इ छेतर के विस्तार बोकारो के जैना मोड़ से पूरब बंगाल सीमा तक हे। इ छेतरें अनाज नापे खातिर पइला के परजोग करल जा हे। जे एक सेर के बराबर हव हे। इ खातिर एकरा नाम खासपइल या सिखरिया पड़ल हे। इ छेतर में प्रारंभ से पूरब जाइ पर खोरठा ध्वनि उपरें बंगला के प्रभाव देखल जा हे। प्रश्नवाचक शब्द की बहुबचन बोधक शब्द प्रत्यय गुला, गुलिन, गुलइन के परजोग हवो हे। संगे – संग बंगला के स्वर ध्वनि में आकार के परजोग खोरठाहुं देखल जा हे। हिंआ कुछ पटतइर देखल जा पारे-
हामर के बदले – हाॅमर
तोहनिक के बदले – तोहराक
ओखनिक के बदले – उनखांक
दही के बदले – दोही
मछरी के बदले – माॅछ
छगरी के बदले – छाॅइगर
चार (चाइर) – चाल
कोदाइर के बदले – कोदाइल
हर के बदले – हाल
छउआ के बदले – गिदॅर
लेरू के बदले – बाछुर
खइर के बदले – खम्हार
घानी के बदले – कुल्हु
मास्टरबइन के बदले – मास्टरगुला
हे के बदले – हों
हाम के बदले – हामें
कुछ वाक्य प्रयोग जैसे :-
हामें पढ़ों हों
हामर बापें हाल जोते गेला।
शब्द अर्थ
• पटतइर – उदाहरण, हिंआ – यहां, संगे-संग – साथ ही साथ, खोरठाहुं – खोरठा में भी।
II. गोलवारी
इ छेतर के विस्तार रामगढ़ जिलाक गोला ले पूरब बोकारो जिला के कसमारेक अगल-बगल हे। हिंआ एगो सदानी भासा कुरमाली के प्रभाव खोरठा भासा उपरें देखल जाइ पारे।
हइ के बदले – आहे
करहें के बदले – करइस आहें
की के बदले – कीना
हम/हाम के बदले – मोंञ
खातिर के बदले – आहे
कुछ वाक्य प्रयोग जैसे :-
उ खाइल आहे।
उ कीना गेल आहे।
III. रामगढ़िया
खोरठा भासा के बिदबान डाॅ. अजीत कुमार झा के विचार से एकर विस्तार पूरबें भेड़ा नदी से पछिम पतरातु तक हे। उत्तर में दामुदर नदी आर दखिन में ओरमांझी प्रखंड, बुटी, कांके, उमेडांड, पिठोरिया एवं बुडमु तक फैलल हे। इ भासा के मधे रामगढ़ शहर हे, से ले एकरा नाम रामगढ़िया रखल गेल हे। हिंआ कुरमाली आर नागपुरी के प्रभाव देखल जा हे।
• हिंआ प्रश्नवाचक शब्द का आर बहुबचन बोधक शब्द प्रत्यय अइन का परजोग हवे हे। जइसे:- छगरिअन
• कुरमाली प्रभाव से प्रश्नवाचक शब्द की (क्या) की जगह कीना का प्रचलन हे।
• जे जे रामगढ़ से दखिन आर पछिम तरफ जाइ पारे, ते ते खोरठा उपरें नागपुरी के प्रभाव भेटा हे। हिंआ बहुबचन बनाबे खातिर मन प्रत्यय जोडल जा हे। जइसे:- छगरिअन + मन = छगरिमन।
वही रंग बाइक के सहायक क्रिया में प्रत्यय रूप ल जोडल जा हे। जइसे:- करहइ के बदले – करइला, चलहइ के बदले – चलइला
शब्द अर्थ
मधे – बीच में, आर – और , से ले – इस लिए, जइसे – जैसे।
IV. देसवाली
पतरातु प्रखंडेक सिआड़ी ले पलामू जिला ले विस्तार हे। इ भाग के उत्तरें मगही आर पछिमें भोजपुरी के प्रभाव भेटा हे। तइओ खोरठाक आपन चिन्हामुदा आर खासियत तो दुरें से मलके हे। इ भागें खोरठा भासाञ देखे जाइ वाला छेतरिए विविधता खेरवारी भी कहल जा हे। जे खेरवार जनजाति के नामें उपरें पड़ल हे।
शब्द अर्थ
प्रखंडेक – प्रखंड के सिआडी – सीमा रेखा, ले – से, उतरें – उत्तर में, पछिमें – पश्चिम में, तइओ – फिर भी, चिन्हामुदा – चिन्ह, मलके – दिखाई देना, भासाञ – भाषा में।
V. परनदिया
एकर विस्तार दामुदर नदीक उतरें पलामू के पूरब ले कोडरमा घाटी आर दखिन-पूरबें गिरिडीह तक हे। परनदिया छेतरिए रूप में क्रिया पदें ओ आकार आर संइगा पदें आ आकार जोड़ेक परबिरति हे। जइसे:- कर हइ के बदले – करो हइ, मोहन खेले हे के बदले – मोहना खेलो हे, भात खेइले के बदले – भाता खेइलो, पेट फाइट गेलइ – पेटा फाट गेलो, सोहन कहां गेलइ – सोहना कहां गलो।
नदी की रंग भासाक छेतरिए रूप में विविधता करो हे। एकर हिंआ एगो पटतइर देखल जाउक- इ भागें दामुदर नदिक संगे-संगे देखल जाइ पारे। पटतइर रूपें – रामगढ़ेक ठावें दामुदर नदिक उत्तर छोरें नईसराय गावं हे। आर दखिन छोरें रामगढ़! दुइओ स्थानेक मधे कटी फरक हे। मकिन दुइओ छेतरें बोली बा भासाञ रिची फरक भेटा हे। जइसे:- रामगढ़ेक लोग कर हइ परजोग करे हथ हुंञ नईसराय लोग करो हइ के। एगो पटतइर देखल जाउक- रमेश आटो चलावेक काम करो हइ।
शब्द अर्थ
रंग – किस तरह, हिंआ – यहां पर, नदिक – नदी के, छोरें – हिसा में, आर – और, ठावें – स्थान, मधे – बीच, स्थानेक – स्थान के, रिची – थोड़ा/कुछ,
VI. छिका-छिकी खोरठा या संथाल परगनिया
एकर विस्तार संथाल परगना के जिलाञ देख जा हे। इ भागें खोरठा भासाञ उपरें मैथली भासाक तनि-मनी प्रत्यय के मेल भेल हे। एकरें सहायक क्रिया हे के ओजी छि, छिक, छै के परजोग हवे हे। जेकरा देख के भासा बिगयानी अब्राहम ग्रियर्सन छिका-छिकी मैथली कहल हथ। मकिन सही रूपें मैथली नाञ हे इ खोरठाक एगो रूप हे। किलेकि मैथली सहायक क्रिया हे खातिर थिक परजोग हव हे। मकिन छिका-छिकी में छिक परजोग हवे हे। जे खोरठाक हिक ले ढेर नजदीक हे।
शब्द अर्थ
भासाञ – भाषा में, तनि-मनी – थोड़ा-बहुत, किलेकि – क्योंकि,
☆ 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. पलामू प्रमंडल के खोरठाक कोन छेतरिए रूप पावल जाहे?
A. देसवाली B. सिखरिया C. गोलवारी D. रमगढ़िया
उत्तर:- A. देसवाली
2. गिरिडीह जिलाञ कोन प्रश्नवाचक सबद चलो हे?
A. की B. किना C. का D. कोन
उत्तर:- A. की
3. खोरठाक देसवाली छेतरिए रूपें कोन भासाक प्रभाव हे?
A. नागपुरिया- अंगिका B. मैथली – पंच परगनिया C. मगही – भोजपुरी D. कुरमाली – मैथली
उत्तर:- C. मगही – भोजपुरी
4. खोरठा भासाञ सबसे बेसी कोन भासाक प्रभाव देखल जा हे?
A. बंगला B. असमिया C. उडिया D. भोजपुरिया
उत्तर:- A. बंगला
5. देवघर जिलाञ खोरठाक उपरें कोन भासाक कटि असर हे?
A. मगही B. मैथली C. बांगला D. नागपुरिया
उत्तर:- B. मैथली
6. चतरा जिलाञ खोरठाक कोन छेतरिए रूप पावल जा हे?
A. देसवाली B. गोलवारी C. सिखरिया D. परनदिया
उत्तर:- D. परनदिया
7. भेड़ा नदिक पछिम पतरातु तक खोरठाक कोन छेतरिए रूप भेंटा हे।
A. रामगढिया B. गोलवारी C. परनदिया D. देसवाली
उत्तर:- A. रामगढिया
8.झारखंडे कइ गो खोरठाक छेतरिए रूप हे?
A. दुइ गो B. चाइर गो C. छ गो D. आठ गो
उत्तर:- C. छ गो
9. छिका – छिकी खोरठा कोन छेतरिए रूप के कहल जा हे?
A. गोलवारी B. सीखरिया C. संथाल परगनिया D. परनदिया
उत्तर:- C. संथाल परगनिया
10. जैना मोड ले बंगाल तक खोरठाक कोन छेतरिए रूप देखल जाहे?
A. गोलवारी B. सिखरिया C. देसवाली D. रमगढ़िया
उत्तर:- B. सिखरिया
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स्रोत:-
खोरठा भाषा एवं साहित्य (उद्भव एवं विकास)
– डाॅ बी एन ओहदार
सम्पूर्ण खोरठा भाषा साहित्य
– डाॅ बी एन ओहदार
खोरठा भाषा व्याकरण
– डाॅ गजाधर महतो प्रभाकर
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