खोरठा रचनाकार दिनेश दिनमणि का जीवन परिचय | Dinesh Dinmani
दिनेश कुमार ‘दिनमणि’ खोरठा भाषा के एक बहुमुखी, प्रतिभा संपन्न, हुबगर (उत्साही) रचनाकार के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने खोरठा भाषा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज खोरठा भाषा की अपनी पहचान है। जेपीएससी, जेटेट, जेएसएससी, सीजीएल तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में खोरठा भाषा शामिल हो रही है। विद्यालय और महाविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में खोरठा भाषा एवं साहित्य को जगह दी गयी है। आज विद्यार्थी खोरठा भाषा को अध्ययन- अध्यापन के लिए चयन कर रहे। इन सब में प्राध्यापक दिनेश दिनमणि का भी महत्वपूर्ण योगदान है। इस पोस्ट में खोरठा रचनाकार दिनेश दिनमणि का जीवन परिचय जानेंगे।
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☆ पारिवारिक जीवन
☆ शिक्षा
☆ खोरठा भाषा क्षेत्र में योगदान
▪खोरठा भाषा आंदोलन में योगदान
▪पाठ्य पुस्तक निर्माण में योगदान
▪पत्रिका संपादन का कार्य
▪खोरठा लिपि का आविष्कार
▪खोरठा रचनाएं
• कविता
• कहानी
• नाटक
• गीत
• गीत एलबम
• प्रकाशित किताब
☆ सम्मान/पुरस्कार
☆ पारिवारिक जीवन
जन्म:- 13 सितंबर 1969 ई.
पता:- ग्राम- बाराडीह, पंचायत- बांधडीह (जैनामोड़), थाना- जरीडीह, जिला- बोकारो
प्राध्यापक दिनेश दिनमणि का जन्म 13 सितंबर 1969 ई. को बोकारो जिला के बाराडीह गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। इनका विद्यालयी नाम ‘दिनेश कुमार‘ है। उपनाम ‘दिनमणि‘ है। इसलिए इन्हें ‘दिनेश दिनमणि‘ या ‘दिनेश कुमार दिनमणि’ के नाम से जाना जाता है। इनके माता का नाम फुलु देवी तथा पिता का नाम महेश्वर महतो है। महेश्वर महतो हाई स्कूल शिक्षक थे। वे हमेशा सामाजिक बुराइयों के खिलाफ काफी संघर्षशील रहे। अभी वे सेवा निवृत्त है। दिनमणि जी ने 28 जून 1999 ई. को कमला से शादी की। उनकी दो संतान हैं। पुत्र प्रसून सारंग और पुत्री हर्षिता मंजुल। शिक्षा पूरी करने के बाद दिनमणि जी ने वर्ष 2005 ई. में आर. टी. सी महाविद्यालय ओरमांझी में खोरठा विषय के सहायक प्राध्यापक के रूप में अध्यापन की शुरूआत की। साथ ही वे हिन्दी भी पढ़ाते रहे। वर्तमान समय में वे जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची विश्वविद्यालय, रांची में एक सहायक प्राध्यापक (अनुबंधित) के रूप में जनवरी, 2018 से कार्यरत हैं।

☆ शिक्षा
मध्यम परिवार में जन्म लेने के कारण इनका बचपन अभावों में बीता। वर्ष 1985 ई. में उन्होंने सर्वोदय उच्च विद्यालय पिंड्राजोर से मैट्रिक की परीक्षा पास की। 1992 ई. में हिंदी विषय से उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की। जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची से 1995 ई. में वे खोरठा भाषा से एम.ए. प्रथम श्रेणी में द्वितीय आकर परीक्षा पास की। विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग से उन्होंने वर्ष 2003 ई. में हिंदी में एम.ए. की डिग्री प्रथम श्रेणी में प्रथम आकर हासिल की। इस तरह उन्होंने खोरठा और हिंदी में एम. ए. की डिग्री प्राप्त की है। उन्होंने यूजीसी नेट की भी परीक्षा पास की है। वर्तमान समय में वे “खोरठा भाषा का तात्विक अध्ययन” विषय पर पीएचडी की डिग्री के लिए शोध कार्य में लगे हैं।

☆ खोरठा भाषा क्षेत्र में योगदान
विलक्षण प्रतिभा के धनी प्राध्यापक दिनेश दिनमणि ने खोरठा भाषा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है। कविता, कहानी, नाटक, गीत, एलबम, खोरठा किताब का प्रकाशन, नाटकों का मंचन, पाठ्यपुस्तकों में खोरठा भाषा को शामिल करने हेतु संघर्ष जैसे उनके कार्य खोरठा भाषा के विकास के लिए अहम रहा है।
▪︎ खोरठा भाषा आंदोलन में योगदान:-
दिनेश कुमार ‘दिनमणि’ ने खोरठा भाषा के विकास आंदोलन में महत्वपूर्ण सहयोग दिया है। वर्ष 1986-87 ई. से इनका जुड़ाव खोरठा भाषा आंदोलन से हुआ। शहीद शक्तिनाथ महतो स्मारक मेला सिजुआ, धनबाद में हुए पहले कवि सम्मेलन में भाग लेने के साथ ही उन्होंने अपने आप को खोरठा भाषा के विकास के लिए समर्पित कर दिया। इसके बाद खोरठा भाषा-साहित्य से संबंधित रचनात्मक और आंदोलनात्मक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाते रहे, जो अब तक जारी है।

खोरठा भाषा और झारखंडी पहचान के लिए झारखंडी जनता को जगाने के लिए 1989 ई. में हुए ऐतिहासिक “दामुदर पारसनाथ डहर जातरा” में और 1994 ई. में “दामुदर-सेवांती” पद यात्रा में उन्होंने भाग लिया था। 1988 से 97 तक खोरठा भाषा-भाषी जन को ‘खोरठा नाटकों के मंचन’ से जगाते रहे। खोरठा भाषियों को उनकी ही भाषा में सामाजिक चेतना भरते रहे। इस क्रम में इन्होंने कई नाटकों का स्वयं लेखन भी किया।
खोरठा भाषा साहित्य में इनकी प्रतिबद्धता के लिए खोरठा अग्रणी संगठन ‘खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद‘ का सन् 2006 में सचिव नियुक्त किया गया था। दिनमणि जी को खोरठा के उद्भट विद्वान ए. के. झा का लंबा सान्निध्य प्राप्त हुआ था। जिनसे इन्होंने खोरठा भाषा की बारीकियों को जाना-समझा था। जो इनकी रचनाओं की भाषायी शुद्धता और इनकी खोरठा व्याकरण की किताब में झलकती है।
▪︎ पाठ्यपुस्तक निर्माण में योगदान:-
दिनेश कुमार ‘दिनमणि’ ने आंगनबाड़ी केन्द्र, नवम् से स्नातकोत्तर एवं प्रतियोगी परीक्षाओं तक के पाठ्यक्रमों (Syllabus) के निर्माण में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विद्यालय और महाविद्यालय स्तर के कई पाठ्यपुस्तकों का संपादक मंडल के सदस्य भी रहे।
▪︎ पत्रिका संपादन का कार्य:-
दिनमणि जी 1997 ई. से 2000 ई. तक खोरठा की पत्रिका ‘तितकी‘ के ‘सहायक संपादक’ रहे। ‘युद्धरत आम आदमी‘ संपादक रमणिका गुप्ता, में कुछ अंकों में ‘सहायक संपादक’ का कार्य भी किया। वे वर्ष 2009 से खोरठा पत्रिका ‘करील‘ के “प्रबंध संपादक” हैं। हालांकि ‘करील‘ पत्रिका का प्रकाशन केवल एक बार ही हुआ है।
▪︎ खोरठा लिपि का आविष्कार:-
खोरठा भाषा लिपि के विकास में भी दिनेश कुमार ‘दिनमणि’ का उल्लेखनीय योगदान रहा है। इन्होंने खोरठा की स्वतंत्र लिपि का आविष्कार 1988 ई. में कर दिया था। इस लिपि को दिनमणि जी ने ‘खोरठा भाषा साहित्य संस्कृति‘ पर वर्ष 1989 ई. में हुए खोरठा सम्मेलन भतुवा, बोकारो में प्रस्तुत किया था। जिसमें राज्य के जाने माने विद्वान बी. पी. केसरी, रामदयाल मुण्डा, बिनोद बिहारी महतो, ए. के. झा पहुंचे थे। इन लोगों के समक्ष इन्होंने खोरठा लिपि को अवलोकनार्थ रखा था। जिसकी लोगों ने सराहना भी की थी। ये खोरठा भाषा के लिए गौरव की बात थी। लेकिन उस समय भाषा के विद्वानों ने खोरठा भाषा के लिए अलग से लिपि की आवश्यकता नहीं समझी।

ऐसा माना गया कि यदि खोरठा भाषा की एक अलग लिपि होगी तो खोरठा भाषा को अधिक लोगों तक पहुंचाना मुश्किल होगा। क्योंकि लोग लिपि ही नहीं जानेंगे तो खोरठा भाषा को पढ़ेगे कैसे, जानेंगे कैसे और समझेंगे कैसे। इसलिए उस समय खोरठा भाषा की अलग से लिपि की बात को स्थगित कर दिया गया। यही वजह थी। कि दिनमणि जी ने अपनी मौलिक खोरठा लिपि के लिए आगे प्रयास छोड़ दिया था। आज खोरठा को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है।
भले ही आज खोरठा भाषा के लिए अलग से लिपि की आवश्यक नहीं है। परन्तु जैसे ही खोरठा भाषा का और विकास होगा। खोरठा भाषा-भाषी क्षेत्र के विद्यालयों और महाविद्यालय में अधिकतर विद्यार्थी अध्ययन के लिए खोरठा भाषा का चयन करने लगेंगे। जन-जन तक इसकी महत्ता बढ़ेगी। तैसे ही खोरठा भाषा के लिए अलग से लिपि की आवश्यकता भी महसूस होगी। लोग चाहेगें कि खोरठा भाषा की भी अपनी लिपि हो। तब दिनमणि जी द्वारा खोरठा भाषा के लिए आविष्कार की गयी लिपि की याद आयेगी। ज्ञातव्य रहे कि डाॅ. नागेश्वर महतो ने भी खोरठा लिपि का आविष्कार किया है।
▪︎ खोरठा रचनाएं:-
प्राध्यापक दिनेश दिनमणि ने खोरठा भाषा के विकास के लिए साहित्य की विभिन्न विधाओं में रचनाएं की है। उनकी रचनाएं कविता, गीत, नाटक, कहानी इत्यादि रूपों में मिलती है। ये रचनाएं समाचार पत्रों, आकाशवाणी, दूरदर्शन और किताबों में प्रसारित एवं प्रकाशित हो चुकी है। उनकी रचनाएं नवम्, दशम् और बारहवीं में अध्ययन के लिए शामिल की गयी है।

कविता:-दिनमणि जी की अलग-अलग संग्रह संकलनों में दर्जनों कविताएं प्रकाशित और आकाशवाणी-दूरदर्शन से अनेक कविताएं प्रसारित हो चुकी है। उनकी कविता दशम् और बारहवीं खोरठा विषय के पाठ्यपुस्तक में शामिल की गयी है। यहां उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताएं देख सकते हैं।
• ए मानुस (ये कविता दशम् वर्ग के खोरठा पाठ्यपुस्तक में शामिल की गयी है।)
• सोंचो उपाय (ये कविता बारहवीं वर्ग के खोरठा पाठ्य पुस्तक में शामिल की गयी है।)
• आइग आर धुंगा
• इंजोरियाक बांटा

कहानी:- दिनेश दिनमणि ने कई कहानियां लिखी हैं। उनकी कुछ कहानी प्रकाशित है तो कुछ कहानी अप्रकाशित। अप्रकाशित कुछ कहानी पांडुलिपि के रूप में भी है। दिनमणि जी की एक कहानी “फुल कोबिक झोर” नवम् कक्षा की खोरठा पाठ्य पुस्तक में शामिल की गयी है। कुछ प्रसिद्ध कहानी यहां लिखी जा रही है।
• फुल कोबिक झोर
• धरम करम
• पगली मोइर गेली
• जीत
इसके अलावा लगभग एक दर्जन कहानी अप्रकाशित है जो पांडुलिपि के रूप में है।
नाटक:- दिनमणि जी तीन दशक से भी अधिक समय से खोरठा भाषा-भाषी जन को उनकी ही भाषा में ‘खोरठा नाटकों के मंचन’ से जन चेतना जगाते रहे हैं। उन्होंने कई नाटक भी लिखे और कई नाटकों का निर्देशन भी किया। हालांकि ये नाटक अप्रकाशित है। यहां कुछ प्रसिद्ध नाटकों को लिखा जा रहा है।
• जिनगिक संगी
• गुरू बाबाक दाढ़ी
• सम्बूक वध
गीत:- दिनेश दिनमणि ने खोरठा गीत की भी रचना की है। उनकी कुछ गीत को यहां लिखा जा रहा है।
• छाती बिछे गेल हलो, कुसुम बेड़ाक बोन…
• संइया चाला, चाला ना हो बोने पााकोलइ संइया कोइर….
• एक मूठा सूरगुंजा….
• माथाञ लड़के माटी के……
● “सोहान लागे रे” गीत संग्रह भी प्रकाशित हुआ है जिसका दो बार संपादन दिनमणि जी ने किया है।
गीत एलबम:- दिनेश दिनमणि द्वारा रचित गीतों का “खोरठा गीत एलबम” भी निकला है। यहां कुछ एलबम की चर्चा की जा रही है।
• सोना रकम पिया :-10 गीतों का यह एलबम नवंबर 1998 ई. में आया था। जिसमें दिनमणि जी द्वारा रचित एक गीत “एक मूठा सुरगुंजा” शामिल की गयी थी। यह खोरठा इतिहास का पहला सांस्कृतिक एल्बम था और इस एलबम का पहला गीत ‘एक मुठा सुरगुंजा‘ के रचनाकार दिनमणि जी थे।
• छापा साड़ी :- 8 गीतों का यह एलबम 1999 ई. में निकला था। जिसमें दिनमणि जी द्वारा रचित 6 गीत शामिल था।
• सजनी :- वर्ष 1999 ई. में 8 गीतों का एक और एलबम बाजार में आया था। जिसमें 7 गीत दिनेश कुमार ‘दिनमणि’ द्वारा लिखा गया था।
प्रकाशित किताब:- खोरठा भाषा-भाषी के लिए समर्पित खोरठा रचनाकार दिनेश दिनमणि ने खोरठा विकास को बढ़ावा देने के लिए, खोरठा विद्यार्थियों के सुविधा के लिए कई पुस्तकों की रचना की है। उनकी कुछ पुस्तकें बाजार में प्रकाशित हो चुकी है। ये पुस्तकें विद्यालय और महाविद्यालय तथा प्रतियोगी परीक्षा में लगे विद्यार्थियों के लिए अति महत्वपूर्ण है। इन पुस्तकों में खोरठा व्याकरण एवं साहित्य के अलावा खोरठा की संपूर्ण जानकारी दी गयी है। जिसे विद्यार्थियों ने हाथों-हाथ लिया है। यहां प्रकाशित पुस्तकों का विवरण दिया जा रहा है।
1. खोरठा भाषा व्याकरण एवं साहित्य (प्रथम संस्करण 2018 में)
2. आधुनिक खोरठा बेयाकरण आर रचना (प्रथम संस्करण 2020 में)
3. टोटल खोरठा – भाषा व्याकरण एवं साहित्य (प्रथम संस्करण 2020, द्वितीय संस्करण 2022)


☆ सम्मान/पुरस्कार
झारखंड में आज खोरठा मुख्य स्थानीय भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है। कविता, कहानी, नाटक, गीत, गीत एलबम आदि रूपों में आज खोरठा की अपनी विरासत है। विद्यालय से लेकर प्रतियोगी परीक्षा तक के विद्यार्थी आज खोरठा विषय को अध्ययन-अध्यापन के लिए चुन रहे हैं। खोरठा भाषा को यहां तक पहुंचाने में खोरठा रचनाकार दिनेश दिनमणि का अहम योगदान रहा है। उनके इन्हीं योगदान के कारण खोरठा समाज के द्वारा उन्हें कई सम्मान/पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। जिसका विवरण यहां दिया जा रहा है।
• खोरठा रत्न सम्मान:- बोकारो खोरठा कमेटी द्वारा वर्ष 2011 में उन्हें ‘खोरठा रत्न सम्मान’ से सम्मानित किया गया।
• श्री निवास पानुरी प्रबुद्ध सम्मान:-वर्ष 2018 में खोरठा भाषा साहित्य विकास मंच बरवाअड्डा, धनबाद द्वारा दिनमणि जी को ‘श्रीनिवास पानुरी खोरठा प्रबुद्ध सम्मान’ से सम्मानित किया गया।

• खोरठा श्री सम्मान:-धनबाद की एक संस्था द्वारा उन्हें खोरठा श्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया है।
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खोरठा रचनाकार दिनेश दिनमणि का जीवन परिचय
प्रस्तुतीकरण
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संकलन
महेन्द्र प्रसाद दांगी
शिक्षक
एम. ए. भूगोल
एम. ए. खोरठा