डाॅ होमी जहाँगीर भाभा, भारत में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक
आज भारत परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में जिस मुकाम पर है उसका सारा श्रेय डॉ होमी जहांगीर भाभा को जाता है। उन्होंने मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की सहायता से 1944 में नाभिकीय ऊर्जा अनुसंधान का कार्य प्रारंभ किया। वे शांति के क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा के उपयोग के प्रबल समर्थक थे। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में कई संस्थानों की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत में पहला परमाणु ऊर्जा रिएक्टर की स्थापना उन्हीं के प्रयास से हुआ। उनकी प्रतिभा को देख दुनिया अचंभित थी। यदि असामयिक हवाई दुर्घटना में उनकी मौत नहीं हुई होती, तो आज परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत बुलंदियों पर होता है।
• जन्म:- 30 अक्टूबर 1909 ई• मुम्बई, भारत
• मृत्यु:- 24 जनवरी 1966 ई• माउंट ब्लांक, फ्रांस
☆ प्रारंभिक जीवन:-
इनका जन्म 30 अक्टूबर 1909 ई• को तत्कालीन बंबई (अब मुंबई) में एक धनी पारसी परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम जे एच भाभा और माता का नाम मेहरबाई पांडे था। विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉक्टर भाभा को बचपन से ही विज्ञान, शास्त्रीय संगीत, चित्र कला और साहित्य में रुचि थी।
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डॉक्टर भाभा जब छोटे थे तो चांद और तारों के बारे में उनकी गहरी दिलचस्पी थी। जब रात में सोते थे तो उन्हें कई घंटों तक नींद नहीं आती थी। इसकी वजह कोई बीमारी नहीं थी, बल्कि उनके दिमाग में विचारों की ख्याल उमड़ता रहता था। जब वे मात्र 15 वर्ष के थे तब उन्होंने महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत समझ लिया था। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन विज्ञान को समर्पित कर दिया। और जीवन भर अविवाहित है।
☆ शिक्षा
डॉ होमी जहांगीर भाभा की शिक्षा मुंबई स्थित जान कैनन और कैथीड्रल उच्च विद्यालय से हुई। इसके बाद मुंबई के एल्फिस्टन कॉलेज रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की। डॉ भाभा के पिता उन्हें इंजीनियरिंग की शिक्षा दिलाना चाहते थे, ताकि वे टाटा की आयरन एवं स्टील संस्थान का काम संभाल सकें। तत्पश्चात 1930 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। 1934 में आइजैक न्यूटन छात्रवृत्ति प्राप्त किया। 1934 में ही उन्होंने पीएचडी की उपाधि ग्रहण किया। तत्पश्चात उन्होंने “नील्स बोहर इंस्टिट्यूट ऑफ प्रैक्टिकल फिजिक्स” में डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में शिक्षा ग्रहण की।
☆ विज्ञान के क्षेत्र में योगदान एवं उपलब्धि
भारत आज विश्व में परमाणु शक्ति के रूप में उभरा है तो इसका सारा श्रेय डॉ भाभा को जाता है। वर्ष 1937 में डॉ• भाभा और जर्मनी के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डब्ल्यू हिटलर ने मिलकर कॉस्मिक किरणों (Cosmic Rays) की गुत्थी को सुलझाया। कॉस्मिक किरणों के क्षेत्र में अपनी उपलब्धि के कारण ही डॉ भाभा विश्व में प्रसिद्ध हो गए।
• परमाणु ऊर्जा के लिए कार्य
डॉ• भाभा ने 1945 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की। भारत जब आजाद हुआ तब डाॅ होमी जहांगीर भाभा ने दुनिया भर में काम कर रहे भारतीय वैज्ञानिकों से अपील की कि वे भारत लौट आयें और यहां आकर वैज्ञानिक अनुसंधान करें। उनकी अपील का असर हुआ कुछ वैज्ञानिक भारत लौट आए। उन्हीं में से एक थे मैनचेस्टर की इंपीरियल केमिकल कंपनी में काम करने वाले होमी नौशेरवांजी सेठना। वैज्ञानिक सेठना डाॅ भाभा की प्रतिभा से प्रभावित थे। उन्हें डाॅ भाभा में काफी संभावनाएं दिखाई दी। ये दोनों वैज्ञानिक भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश के रूप में बनाने में जुट गए। भारत में परमाणु कार्यक्रम मूलतः डॉ होमी जहांगीर भाभा का ही देन था। लेकिन जब भाभा का असामयिक निधन हो गया, तब वैज्ञानिक सेठना ने परमाणु कार्यक्रम को रूकने नहीं दिया और आगे बढ़ाया।
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• भारत ने ऐसे किया पहला परमाणु विस्फोट
डॉ होमी जहांगीर भाभा के निधन के बाद होमी नौशेरवांजी सेठना ने भारत के परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। सेठना ने 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बताया कि उन्होंने शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट की तैयारी पूरी कर ली है। ने प्रधानमंत्री से पूछा क्या परमाणु बम से संबंधित सिस्टम को शुरू कर सकते हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री को यह भी बताया कि यदि सिस्टम शुरू होगा तो उसे रोक पाना संभव नहीं है। ऐसे में अगर वे मना भी कर देंगी तो उनकी बातों को सुना नहीं जाएगा। क्योंकि तब विस्फोट होकर ही रहेगा।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वैज्ञानिक सेठना को अनुमती दी और और अगले ही दिन वैज्ञानिक सेठना ने कोर्ड वर्ड में इंदिरा गांधी को संदेश भेजा “बुद्ध मुस्कुराए”। 18 मई 1974 को भारत में पहला परमाणु विस्फोट कर दुनिया में तहलका मचा दिया। इस विस्फोट के साथ ही डॉ भाभा के प्रयास और सपने को पूरा किया।
भारत का परमाणु विस्फोट का कार्यक्रम बहुत ही गोपनीय था। डॉ होमी जहांगीर भाभा ने डॉ होमी न• सेठना को भारत लौटने के बाद बहुत ही सोच समझकर केरल के अलवाए स्थित “इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड” का प्रमुख बनाया था। जहां उन्होंने केरल के समुद्र तटीय बालू से (मोनाजाइट रेत से) दुर्लभ परमाणु पदार्थों का अंश निकाले।
• महत्वपूर्ण पदों पर कार्य
1939 में बेंगलुरु के ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस’ के भौतिक विभाग में नौकरी कर ली। जहां उन्होंने लेक्चरर के पद पर कार्य किया। तत्पश्चात 1942 में प्रोफेसर नियुक्त किए गए। वर्ष 1948 में भारत में परमाणु ऊर्जा आयोग के गठन के बाद डॉ• भाभा को चेयरमैन नियुक्त किया गया। 1954 में भारत में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना हुई जिसमें डाॅ• भाभा सचिव बनाए गए। 1955 में जेनेवा में हुए प्रथम परमाणु ऊर्जा सम्मेलन में डाॅ• भाभा परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के प्रथम अंतरराष्ट्रीय प्रमुख चुने गए। डॉ• भाभा के निर्देशन में ही 1956 में परमाणु भट्टी अप्सरा (Apsara) ट्रांबे, मुंबई में प्रारंभ किया गया। एशिया का पहला परमाणु ऊर्जा केंद्र था। डॉ• भाभा के निर्देशन में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान का निर्माण हुआ तथा तिरुवंतपुरम के निकट भूमध्य राकेट प्रक्षेपण केंद्र की स्थापना की।
☆ पुरस्कार एवं सम्मान
बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉक्टर भाभा को कई पुरस्कार एवं उपाधियां प्राप्त हुई। भारतीय केंद्रीय मंत्रिमंडल के वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे। उनके निर्देशन में भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान का निर्माण हुआ तथा तिरुवंतपुरम के निकट भूमध्य राकेट प्रक्षेपण केंद्र स्थापित हुआ। डॉ भाभा को अमेरिका इंग्लैंड एवं भारत की अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कार दिया गया। उन्हें ‘अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट एंड साइंस’ की सदस्यता मिली। 1948 में उन्हें रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन की, 1957 में रॉयल सोसायटी आफ एडिनबर्ग की, 1959 में अमेरिकन नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की मानद सदस्यता मिली।
1963 में डॉ भाभा को ‘न्यूयार्क एकेडमी आफ साइंसेज’ का आजीवन सदस्य बनाया गया। उन्हें अनेक विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि से भी सम्मानित किया गया। जिनमें पटना से 1944 में, लखनऊ से 1949 में, वाराणसी से 1950 में, आगरा से 1952 में, ऑस्ट्रेलिया के पर्थ से 1954 में, उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से 1958 में, इंग्लैंड के कैंब्रिज से 1959 में, लंदन से 1960 में डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। 1954 में राष्ट्रपति ने उन्हें अलंकृत किया था। इनके सम्मान में मुंबई के ट्राम्बे स्थित परमाणु केंद्र का नाम “भाभा परमाणु रिसर्च सेंटर” रखा गया है।
☆ रहस्यमई मौत
24 जनवरी 1966 को मुंबई से न्यूयार्क जा रही है बोइंग 707 यूरोप के आल्प्स पर्वत में स्थित माउंट ब्लॉक में वायुयान दुर्घटनाग्रस्त होने से मौत हो गई। और असामयिक निधन से भारत ने एक महान वैज्ञानिक को खो दिया। हालांकि इस विमान दुर्घटना का रहस्य आज तक नहीं सुलझ नहीं पाया है। कुछ ऐसी भी खबरें सामने आई थी कि इस विमान दुर्घटना के पीछे अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA का हाथ था। हालांकि इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हुई है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी भाभा के प्रतिभा से डरती थी। अमेरिकी एजेंसी को अंदेशा था कि भारत भी परमाणु संपन्न देश बन जाएगा। शीत युद्ध के दौरान भारत और रूस काफी करीब थे, वहीं अमेरिका और रूस के बीच तनाव रहता था। शायद इसी का डर अमेरिका को था कि भारत डाॅ भाभा के नेतृत्व में एक महाशक्ति के रूप में उभरेगा।
हांलाकि यह संभव भी दिख रहा था, यदि भाभा कुछ दिन और जीवित रहते तो 1974 से पहले ही भारत परमाणु बम का विस्फोट कर परमाणु संपन्न देश बन जाता। आज की परिस्थिति में उसी देश की बोलबाला है जिसके पास परमाणु बम की क्षमता है। डॉ होमी जहांगीर भाभा के कार्यो को देश हमेशा स्मारण करते रहेगा। उनके 111 वीं जयंती पर हमारी ओर से नमन!
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Presentation
www.gyantarang.com
Writer
M P Dangi
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Post Date:- 30-10-2020















