फांसी पर चढ़ने वाले सबसे युवा क्रांतिकारी शहीद खुदीराम बोस
“आज अमर शहीद खुदीराम बोस की 112वीं शहादत दिवस है”
भारत वीरों की धरती रही है। कई वीर सपूतों की कुर्बानियों से हमने आजादी पाई है। उन वीर सपूतों में एक नाम है शहीद खुदीराम बोस का। उन्होंने सबसे कम उम्र में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए और हंसते-हंसते शहीद हो गए। आज 11 अगस्त को उनकी शहादत दिवस है। इस पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे देश की आजादी में फांसी पर चढ़ने वाले सबसे युवा क्रांतिकारी शहीद खुदीराम बोस का जीवन परिचय।
प्रारंभिक जीवन
खुदीराम बोस का जन्म “3 दिसंबर 1889 ई•” को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में के “बहुवैनी गांव” में हुआ था। उनके पिता का नाम “बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस” और माता का नाम “लक्ष्मी प्रिया देवी” था। बाल्यावस्था से ही खुदीराम बोस में देशभक्ति का जज्बा कूट-कूट कर भरा था।
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क्रांतिकारी जीवन
जब वे नौवीं कक्षा में पढ़ रहे थे! तभी देश में “स्वदेशी आंदोलन” हुआ और वे उसमें कूद पड़े। अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ उनके मन में आक्रोश भड़क रहा था। 1905 ई• में हुए “बंगाल विभाजन” का उन्होंने जोरदार विरोध किया। विद्रोही क्रियाकलापों के कारण 1906 ई• में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। तब उनकी उम्र मात्र 17 साल की थी। हालांकि सिर्फ दो महिने में ही जेल से वे प्रहरियों को चकमा देकर भाग निकले। इसके 2 महीने बाद फिर पकड़े गया। पर गवाह ना होने के कारण उन्हें छोड़ दिया गया।
भारतीय क्रांतिकारी संगठन “युगांतर” ने क्रूर न्यायाधीश “किंग्जफोर्ड” को मारने के लिए दो क्रांतिकारियों को चुना था। उनमें से एक “खुदीराम बोस” है और दूसरे का नाम “प्रफुल्ल कुमार चाकी” था। दोनों ने मिलकर न्यायाधीश किंग्जफोर्ड को मारने की योजना बनाई।
खुदीराम बोस ने फेंका पहला बम
30 अप्रैल 1908 ई• का दिन था। जब दोनों क्रांतिकारी किंग्सफोर्ड को बंगले से बाहर निकलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। रात को साढ़े 8 बज चुकी थी। चारों ओर अंधेरा पसरा था। उसी बंगले से “किंग्जफोर्ड” के घोड़े की बग्गी के समान दिखने वाली गाड़ी बाहर निकली! खुदीराम बोस उस बग्गी गाड़ी के आगे आगे चल दिए और मौका देखते ही बम फेंका। बम के हमले में उस बग्गी में सवार दो अंग्रेज महिलाएं मारी गई। अंधेरा के कारण खुदीराम बोस ने “किंग्जफोर्ड” का बग्घी गाड़ी समझा था। इस गलती का “खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी” को काफी अफसोस भी था।
बंगले से कुछ देर से निकलने के कारण न्यायाधीश “किंग्जफोर्ड” की जान बच गई थी। परंतु इस बम की गूंज केवल भारत में ही नहीं बल्कि इंग्लैंड तक सुनाई दी थी। इस धमाके से ब्रिटिश साम्राज्य हिल गई।
वैनी रेलवे स्टेशन
वैनी अर्थात् “पूसा रोड़ रेलवे स्टेशन” जिसे अब “खुदीराम बोस पूसा रेलवे स्टेशन” के नाम से जाना जाता है। यह अब बिहार के समस्तीपुर जिले में स्थित है।
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खुदीराम बोस की गिरफ्तारी
बम विस्फोट करने के बाद “खुदीराम बोस और प्रफुल्ल कुमार चाकी” वहां से भाग निकले। अंततः “खुदीराम बोस को एक मई को “वैनी रेलवे स्टेशन” पर पकड़ लिया गया। वही दूसरे साथी और “प्रफुल्ल कुमार चाकी” को “मोकामा घाट” पर अंग्रेजों ने घेर लिया। अपने आप को घिरे देखकर “प्रफुल्ल” ने खुद को गोली मारकर शहादत दे दी।

हंसते-हंसते चढ़े फांसी पर
केस सुनवाई के दौरान अदालत ने खुदीराम बोस को दोषी पाया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई। मुजफ्फरपुर जेल में 11 अगस्त 1960 ई• को वह पुण्य दिन था जब खुदीराम बोस को फांसी दे दी गई। वे हंसते-हंसते हाथों में गीता लेकर वे फांसी की बेदी पर चढ़ गये।
खुदीराम बोस की लोकप्रियता
कम उम्र में ही अंग्रेजों के दांत खट्टे करने और देश के लिए शहीद होने के कारण वे लोगों के बीच इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के “जुलाहों” ने उन्हें सम्मान देने के लिए एक खास किस्म की “धोती” बनाना शुरू किया! जिस पर “खुदीराम बोस” का नाम लिखा होता था। खुदीराम बोस के शहीद होने के बाद विद्यार्थियों में काफी शौक था। उनकी शहादत के कारण कई दिनों तक स्कूल बंद रहे।
उनकी शहादत से पूरे भारत में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी। “रचनाकारों” ने उनके सम्मान में गीतों की रचना की। इतिहासकारों के अनुसार नई पीढ़ी के क्रांतिकारियों के लिए वे प्रेरणास्रोत बन गए।
“भारत के ऐसे वीर सपूत को शत्-शत् नमन्!”
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धन्यवाद!