राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की 112वीं जयंति आज है, जानें जीवन परिचय
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर हिंदी के प्रमुख लेखक, कवि और निबंधकार के रूप में जाने जाते हैं। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवियों में से एक हैं। रामधारी सिंह दिनकर स्वतंत्रता से पहले एक विद्रोही कवि के रूप में तथा स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र कवि के रूप में प्रसिद्ध हुए। वह छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। उनकी रचनाओं में मुख्यतः ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रांति नजर आती है। इसके साथ ही साथ उनकी रचनाएं शृंगारिक भावनाओं को कोमल अभिव्यक्ति भी प्रदान करती है। कुरुक्षेत्र और उर्वशी उनकी प्रमुख रचना है।
प्रारंभिक जीवन
हिंदी के ओजस्वी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म आज ही के दिन 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में स्नातक किया।
महत्वपूर्ण पदों पर कार्य
स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद वे विद्यालय में अध्यापन का कार्य करने लगे। तत्पश्चात 1934 से 1947 तक वे बिहार सरकार की सेवा में सब रजिस्टार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर कार्य किया।
भारत जब 1947 में स्वतंत्र हुआ, तब वे बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष नियुक्त होकर मुजफ्फरपुर पहुंचे। जहां वे 1950 से 1952 तक कार्य किया। जब भारत में स्वतंत्रता के बाद पहली बार 1952 में चुनाव हुए हैं तब उन्हें राज्यसभा का सदस्य के रूप में चुना गया। वे लगातार तीन कार्यकाल के लिए संसद सदस्य के रूप में कार्य किया। उसके बाद वे 1964-65 में भागलपुर विश्वविद्यालय के उप कुलपति के पद पर कार्य किया। तत्पश्चात वे भारत सरकार के हिंदी सलाहकार के रूप में भी कार्य किया।
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दिनकर की रचनाएँ
ओजस्वी, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ विद्रोह, आक्रोश, क्रांति और शृंगारिक भावना से ओतप्रोत है। उनके लेखन का आरंभ मुख्यतः वर्ष 1935 से हुआ जब काव्य कृति के रूप में “रेणुका” प्रकाशित हुई। यह रचना हिंदी जगत में एक बिल्कुल नई शैली, नई शक्ति और नई भाषा के रूप में आया। तत्पश्चात उनकी रचना हुंकार और रसवंती ने समूचे युवा जगत को मोह लिया। उनकी रचनाएँ सामाजिक, आर्थिक असमानता और शोषण के खिलाफ जमकर आवाज उठाई।
दिनकर जी को हिन्दी, संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू जैसे कई भाषाओं की गहरी पकड़ थी। उनकी अधिकतर रचनाएं वीर रस से ओतप्रोत हैं। रेणुका, हुंकार, उर्वशी, रसवंती, प्रणभंग, द्वंव्यगीत, कुरुक्षेत्र, धूपछांव, सामधेनी, बापू, रश्मिरथी, दिल्ली जैसी प्रमुख ग्रंथों की रचनाएं उन्होंने की।
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पुरस्कार एवं सम्मान
उनकी रचना “उर्वशी” के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा “संस्कृति के चार अध्याय” के लिए साहित्य अकादमी से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया।
• 1959 में साहित्य अकादमी
• 1959 में पद्म भूषण
• 1972 में ज्ञानपीठ
मृत्यु
65 वर्ष की उम्र में तमिलनाडु के मद्रास (चेन्नई) में 24 अप्रैल 1974 को उनका निधन हो गया।
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