श्रीनिवास पानुरी की जीवनी | Srinivas Panuri | khortha wirter sirnivas panuri
पुकारू नाम:- चिनिवास, कवि जी
बचपन का नाम:- श्रीनिबास पानुरी
साहित्यिक नाम:- श्रीनिवास पानुरी
जन्म:- 25 दिसंबर 1920
मृत्यु:- 07 अक्टूबर 1986
पिता:- शालीग्राम पानुरी
माता:- दुखनी देवी
पत्नी:- मूर्ति देवी
जन्म स्थान:- ग्राम- बाड़ाजमुआ, पोस्ट- कल्याणपुर, थाना- बरवाअड्डा, जिला- धनबाद, राज्य- झारखंड
विचारधारा:- मानवतावादी/जनवादी
श्रीनिवास पानुरी खोरठा भाषा से एक धुरंधर विद्वान के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने खोरठा को जमीन से उठाकर आसमान तक पहुंचाया। खोरठा के क्षेत्र में उनके इन्ही योगदान के लिए उन्हें खोरठा के भीष्म पितामह, बाल्मीकि, ध्रुवतारा, नागार्जुन, टैगोर जैसे उपनामों से संबोधित किया जाता है। पानुरी जी एक जनवादी कवि के रूप में खोरठा भाषा की विभिन्न विधाओं में रचनाएँ की है। उनकी रचना जनमानस को प्रतिबिंबित करती है। खोरठा के क्षेत्र में उनके इसी अनुपम योगदान के लिए उनके नाम से विभिन्न प्रकार के पुरस्कार भी प्रदान किए जाते हैं।
विषय सूची
■ पारिवारिक जीवन
■ शिक्षा
■ खोरठा भाषा के क्षेत्र में योगदान
☆ खोरठा पत्र – पत्रिका का संपादन
☆ प्रकाशित रचना
☆ अप्रकाशित रचना
☆ खोरठा पइद साहित्य में योगदान
☆ खोरठा गइद साहित्य में योगदान
■ श्रीनिवास पानुरी जी की उपलब्धि
■ श्रीनिवास पानुरी जी के उपनाम
■ श्रीनिवास पानुरी जी के नाम से पुरस्कार/सम्मान
■ श्रीनिवास पानुरी जी से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
■ श्रीनिवास पानुरी जी से संबंधित 50 महत्वपूर्ण MCQs
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■ पारिवारिक जीवन
25 दिसंबर 1920 को झारखंड के कोयला नगरी धनबाद जिला के बरवाअड्डा थाना, कल्याणपुर बाड़ाजमुआ गांवमें कोयले के माटी के बीच एक अनमोल हीरे ने जन्म लिया, जिसका नाम था श्रीनिबास पानुरी! ऐसा माना जाता है कि पानुरी जी के पुर्वज बिहार के नावादा जिले के बेलदारी गांव से आकर कोयला नगरी धनबाद के बरवाअड्डा के कल्याणपुर में बस गये। पानुरी जी की माता का नाम दुखनी देवी तथा पिता का नाम शालीग्राम पानुरी है। इनका बचपन का नाम श्रीनिबास पानुरी था जो बाद में साहित्य लेखन के दौरान इनका नाम श्रीनिवास पानुरी हो गया। इनके पांच पुत्र और तीन पुत्रियां हैं। इनके पुत्रों के नाम हैं- राजकिशोर पानुरी, ध्रुव पानुरी, अर्जुन पानुरी, अरूण चौरसिया, भगवान दास और पुत्रियों के नाम हैं निर्मला, रेखा और आशा।
1939 में जब पानुरी जी 19 वर्ष के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गयी, तत्पश्चात 1944 में मां की भी मृत्यु हो गयी। इस कारण परिवार का सारा बोझ उनपर आ गया। परिवार के रोजी – रोटी के लिए उन्होंने धनबाद के पुरानी बाजार में एक पान की दुकान (गुमटी) खोल ली। और इसी पान गुमटी में पान बेचने के साथ – साथ खोरठा भाषा में साहित्य की रचना करते गये। एक ओर जहाँ पानुरी जी का हाथ पान में कत्था और चूना लगाते – लगाते रंग जाता था वहीं दुसरी ओर कविता, कहानियों से कागज के पन्ने भी रंग जाते थे। लोग उनके पान गुमटी पास पान का स्वाद के साथ – साथ खोरठा भाषा में कविता और कहानियों का भी आनंद लेते थे। ऐसा माना जाता है कि वर्ष 1950 से इसी पान गुमटी से पानुरी जी ने खोरठा भाषा में रचनाएं शुरू की।
■ शिक्षा
श्रीनिवास पानुरी जी की लोअर प्राइमरी तक की शिक्षा बरवाअड्डा के स्कूल में हुई। मैट्रिक तक की पढ़ाई उन्होंने जिला स्कूल धनबाद से की। पैसे के अभाव में वे मैट्रिक से आगे की पढ़ाई नहीं कर सके।
■ खोरठा भाषा के क्षेत्र में योगदान
खोरठा भाषा के क्षेत्र में पानुरी जी का योगदान आकाश से धरती पर गंगा उतारे के जैसा है। उनके भागीरथ प्रयास से ही ठेठ, गंवार, देहाती, अनपढ़, जंगली समझी जाने वाली भाषा खोरठा आज एक शिष्ट भाषा के रूप में जानी जाती है। पानुरी जी ने खोरठा भाषा की विभिन्न विधाओं जैसे-कहानी, नाटक, कविता इत्यादि में रचनाएं की। इनकी रचनाओं में माटी के दुख-दर्द, मानवतावाद और दर्शन के भाव देखने को मिलता है। पानुरी जी की साहित्य भाषा में ठेठ और तत्सम शब्द का बड़ा ही सुंदर मेल मिलता है। इन्हें खोरठा शिष्ट साहित्य का जनक माना जाता है। यही वजह है कि आज खोरठा को झारखंड की द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। जेपीएससी, जेटेट, नेट, सीजीएल, शिक्षक बहाली, पीचडी हेतु शोध इत्यादि में खोरठा भाषा की महता बढ़ गयी है।
☆ खोरठा पत्रिका का संपादन
खोरठा भाषा के विकास के लिए उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन किया।
• मातृभाषा नाम से पत्रिका का संपादन एवं प्रकाशन:-
श्रीनिवास पानुरी पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने वर्ष 1957 में खोरठा भाषा के विकास के लिए खोरठा पत्रिका छपवाने की शुरुआत की। उस पत्रिका का नाम था “मातृभाषा“! यह खोरठा भाषा में छपने वाली पहली पत्रिका थी जिसके संपादक और प्रकाशक श्रीनिवास पानुरी थे। उस समय जब खोरठा को ठेठ, गंवार समझा जाता था तब खोरठा भाषा में पत्रिका छपवाना कोई चमत्कार से कम न था। इस पत्रिका में कहानी, एकांकी, कविता, लेख इत्यादि छपा करता था। लेकिन दुख की बात तब हुई जब 16 अंकों के बाद ये पत्रिका निकलना बंद हो गयी।
• खोरठा नाम से पत्रिका का संपादन:-
मातृभाषा पत्रिका निकलने के 12 वर्षों बाद 1970 में श्रीनिवास पानुरी ने अपने संपादन में ही बोरवाअड्डा, धनबाद से “खोरठा” नामक एक दुसरी पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। जिसके सह संपादक नरेश नीलकमल और प्रकाशक नारायण महतो थे।
• तितकी खोरठा पत्रिका में मार्गदर्शन की भूमिका:-
श्रीनिवास पानुरी जी के मार्गदर्शन में तितकी पत्रिका पहली बार 1977 में कतरास, धनबाद से छपना प्रारंभ हुई जिसके संपादक विश्वनाथ दसोंधी ‘राज’ थे। उस समय तितकी पत्रिका खोरठा साहित्य का सबसे बड़ा मंच था. इस पत्र का पेज एक दम समाचार पत्र के जैसा था. खोरठा भाषा आंदोलन में कतरास से निकलने वाली इस पत्रिका का बड़ा योगदान रहा है. उस समय इस पत्रिका में खोरठा की विभिन्न विधाओं में रचनाएं छपती थी. कुछ रचनाएँ अप्रकाशित भी है।
☆ प्रकाशित रचना
वर्ष 1954 में पानुरी जी की पहली खोरठा रचना प्रकाशित हुई जिसका नाम था “बाल किरण” (कविता संग्रह)। तत्पश्चात श्रीनिवास पानुरी ने विविध विधाओं में खोरठा भाषा में रचनाएं की है।
• बाल किरिण (कविता संग्रह)
• तितकी (कविता संग्रह)
• दिव्य ज्योति (कविता संग्रह)
• मेघदूत (कालीदास द्वारा रचितरचित मेघदूत का खोरठा अनुवाद), प्रकाशन -1968 ई. में
• रामकथामृत (खण्डकाव्य)
• मालाक फूल (संयुक्त कविता संग्रह)
• आंखिक गीत (72 कविताओं का संग्रह), प्रकाशन – 1977 ई. में
• कुसुमी (कहानी)
• समाधान (हिंदी लघु कव्य)
• चाभी -काठी (नाटक), प्रकाशन- 2006 में
• सबले बीस (कविता संग्रह)
• उद्भासल कर्ण (नाटक), प्रकाशन- 2012 में
• अग्नि परीखा (खोरठा लघु काव्य)
☆ अप्रकाशित रचना
• जुगेक गीता (कम्यूनिस्ट मैनिफेस्टो की खोरठा अनुवाद)
• रक्ते भिंजल पांखा (8 कहानी का संग्रह)
• मधुक देसें (कविता संग्रह)
• मोहभंग (काव्य)
• हामर गाँव
• भ्रमर गीत
• मोतिक चूर
• परिजात (कविता संग्रह)
• अजनास (नाटक) इत्यादि
☆ खोरठा पइद साहित्य में योगदान
श्रीनिवास पानुरी जी खोरठा के आदि कवि के रूप में जाने जाते हैं। 1946 में कवि सम्मेलन में शामिल होने के बाद पानुरी जी का कवि मन जाग गया और वे पान गुमटी में कविता का लेखन करने लगे। पानुरी जी की कविता ऐसी थी कि लोग पान के बहाने कविता सुनने पान गुमटी पर आते थे। पानुरी जी कवि सम्मेलनों में हिंदी के कविता के बीच खोरठा कविता का पाठ किया करते थे। जिसकी सराहना हिंदी के बड़े कवियों द्वारा होती थी। जिस कारण राहुल सांकृत्यायन, राधाकृष्ण, हंस कुमार तिवारी, बेधड़क बनारसी, रामदयाल पाण्डेय, जानकी वल्लभ शास्त्री, भवानी प्रसाद मिश्र, वीर भारत तलवार जैसे रचनाकारों के साथ पानुरी जी का परिचय था।
राहुल सांकृत्यायन जी ने पानुरी जी के नाम एक चिट्ठी लिखी जिसमें उन्होंने लिखा- “मातृभाषाओं का अधिकार कोई छीन नहीं सकता है न ही लोक कविता को आगे बढ़ने से कोई रोक सकता है, हाँ कविता करने में आप साहित्यिक कवियों की कविताओं का अनुकरण हर्गिज न करे। उसके लिए आदर्श हे लोक कवि और उनकी अछूती भाषा।” पानुरी जी इस चिठ्ठी में लिखे शब्द से गदगद हो गये और उसके बाद से खोरठा साहित्य की रचना में पानुरी जी रम गये।
खोरठा भाषा में उनकी पहली किताब 1954 में बाल किरण के नाम से प्रकाशित हुई। जो एक कविता संग्रह थी। 1957 में ‘मातृभाषा’ नाम सेखोरठा पत्रिका का संपादन शुरू किया। 1957 में ही आकाशवाणी रांची से पहिल बार खोरठा कविता का पाठ किया। 1970 में पुनः ‘खोरठा‘ नामक पत्रिका का संपादन किया। 1984 में रांची विश्वविद्यालय, रांची में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग खुला और खोरठा भाषा की पढ़ाई शुरू हुई। श्रीनिवास पानुरी जी को सिलेबस बोर्ड का सदस्य बनाया गया और वे इस पद पर आजीवन बने रहे।
बाल किरिण (कविता संग्रह), तितकी (कविता संग्रह), दिव्य ज्योति (कविता संग्रह), मेघदूत (कालीदास द्वारा रचितरचित मेघदूत का खोरठा अनुवाद), रामकथामृत (खण्डकाव्य), मालाक फूल (संयुक्त कविता संग्रह), आंखिक गीत (72 कविताओं का संग्रह), सबले बीस (कविता संग्रह), अग्नि परीखा, जुगेक गीता (कम्यूनिस्ट मैनिफेस्टो की खोरठा अनुवाद), मधुक देसें (कविता संग्रह), मोहभंग (काव्य), भ्रमर गीत, परिजात (कविता संग्रह) इत्यादि की रचना श्रीनिवास पानुरी जी ने की है।
कविता संकलन में बाल किरण और आंखीक गीत सबसे लोक प्रिये है। इनमें प्रकृति और श्रृंगार का अच्छा चित्रण किया गया है। इनके कविताओं में यथार्थवादी और कल्पनावादी पाया जाता है। पानुरी जी के कविता के भाव जनवादी है। इनकी कविताओं में छायावादी प्रकृति, सामाजिक शोषण, श्रृंगार रस, दुख – दर्द इत्यादि का चित्रण मिलता है।
• प्रकृति का चित्रण का:-
“आइझ हमर गीतेक देसें
फूटल सुधे फूल
डारी – डारी पाते- पाते
लटकल अलिकूल,
सघन मंजरल आमेक गाछ
करे छाँहुर-दान
कोकिल कुहू कुहू डाके
ऋतु राजेक आहवान”
• उपेक्षा और शोसन का चित्रण:-
मानभूमेक माटि तरे, हीरा मोती मानिक फरे
ताओ पेटेक जालांय, मानभूमेक लोक मोरे।
• सामाजिक व्यवस्था का चित्रण:-
“नाँच बाँदर नाँच रे
मोर चाहे बाँच रे
तोर खातिर सुसनी साग
हमर खातिर माछ रे
नाँच बाँदर नाँच रे
मोर चाहे बाँच रे”
• सामाजिक दुर्दशा और गरीबी का चित्रण:-
“खइट खइट दिन राइत, ककर नखइ पेटें भात
ककर नायं देहीं लुगा, ककर कांपे जाडें गात
ककर मुंहले बहराइ एखन, छोलल छोलल बात”
• छायावादी कविताक दो उदाहरण:-
“घुइर- घुइर ककरा देखे आँइख
पागल ऐसन ताइक ।
ककर रूपके आलो
सदा धरती झरे
गिरि-मालाक शिखर-देशें
महा सागरके तटें”
“बिना मेघें अमृत बरसे
आँखी फुले-फूल
चन्दन शीतल हावा बोहे
नतुन जीवन-दान
नील आकाशें उड़े खातिर
आनन्द-सागरे हूब – डूब
पागल होवे मन
सरग छूवे तन”
• वियोगी श्रृंगार रस का चित्रण:-
“सखि, आइझ तोर आशें
तरू तरे बास।
आइझो नदी पानी बोहें
आइझो गाछें फुल
आइझो पथें पथिक
आइझो ओहे कूल
आइझो ओहे कूप, सखि ।
आइझो ओहे तरास”
• व्यंग्य का उदाहरण:-
“आइझ नायं तो काइल हामर बात माने हतो
गोड़ेक कांटा मुंहें धइर टाने हतो। “
☆ खोरठा गइद साहित्य में योगदान
श्रीनिवास पानुरी जी का खोरठा गद्य साहित्य की शुरुआत नाटक से मानी जाती है। उन्होंने खोरठा में 1963 में ‘उद्भासल कर्ण’ नामक नाटक लिखी थी। जो महाभारत की कहानी पर आधारित था। इस नाटक को रंगमंच पर खेला गया था। पानुरी जी का दुसरा नाटक ‘चाभी – काठी’ है। जो महाजनी सूदखोरी प्रथा पर लिखी गयी है।
इसके अलावा पानुरी जी ने गद्य विधा में कहानी के रूप में “रकते भींजल पांखा” में पांच कहानी का संग्रह लिखा है। इसमें मनबोध, जादू, बदला, कुसमी और रकते भींजल पांखा कहानियाँ शामिल है। ‘मनबोध’ कहानी भाई – भाई के प्रेम पर आधारित है। ‘जादू‘ कहानी गांव के छुटभैया नेता से संबंधित है। ‘बदला‘ कहानी में जमींदार के करतूत का बदला एक गरीब के द्वारा लेने की कहानी है। ‘कुसमी‘ कहानी यौन शोषण पर आधारित है। पांचवीं कहानी ‘रकते भींजल पांखा‘ दबंग से लूटपाट पर आधारित है।
पानुरी जी ने खोरठा भाषा में “खोरठा सहितेक धरती‘ निबंध लिखी है। इसे दसवीं कक्षा के पाठ पुस्तक ‘दू डाइर जिरहूल फूल‘ में शामिल किया गया है। इससे पता चलता है कि पानुरी जी एक अच्छे निबंधकार थे।
■ श्रीनिवास पानुरी जी की उपलब्धि
पानुरी जी ने साहित्य साधना के 40 वर्षों में 40 खोरठा किताब लिखी। जिसमें कुछ अप्रकाशित भी है।
• 25 दिसंबर पानुरी जी के जन्म दिवस को “खोरठा दिवस” के रुप में मनाया जाता है।
• विभिन्न खोरठा विद्वानों ने उन्हें विभिन्न उपनाम से अलंकृत किया।
• खोरठा के क्षेत्र में किये गये योगदान के कारण श्रीनिवास पानुरी जी के नाम से कई संस्थाओं द्वारा पुरस्कार प्रदान किये जा रहे हैं। जैसे खोरठा साहित्य – संस्कृति परिषद, बोकारो द्वारा श्रीनिवास पानुरी स्मृति सम्मान और खोरठा साहित्य विकास मंच बरवाअड्डा, धनबाद द्वारा श्रीनिवास पानुरी खोरठा प्रबुद्ध सम्मान।
• 1957 में आकाशवाणी रांची से खोरठा का पहला कविता पाठ प्रसारित हुआ।
• पानुरी जी रांची विश्वविद्यालय के सिलेबस बोर्ड के सदस्य थे। साथ ही साथ वे जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के संपादक मंडल के आजीवन सदस्य भी थे।
• उनकी लिखी पुस्तकें, कविता, कहानी और नाटक जेपीएससी, जेटेट, शिक्षक बहाली, आठवीं से पीएचडी तक के पाठ्यक्रम में शामिल की गई हैं।
■ पानुरी जी को दिये गये उपनाम
खोरठा भाषा के क्षेत्र में दिये योगदान के कारण विभिन्न खोरठा विद्वानों ने श्रीनिवास पानुरी जी को विभिन्न उपनामों से अलंकृत किया है।
• पानुरी जी समकालीन और खोरठा पत्रिका तितकी के पहले संपादक विश्वनाथ दसौंधी ‘राज’ जी ने पानुरी जी को “खोरठा के भीष्म पितामह” के नाम से संबोधित किया है।
• खोरठा बेजोड़ विद्वान डॉ ए के झा ने पानुरी जी को “खोरठा का अक्षय बोर” कहा है।
• प्रदीप कुमार ‘दीपक’ ने पानुरी जी को “खोरठा का ध्रुवतारा” कहा है।
• पंडित रामदयाल पाण्डेय ने पानुरी जी को “खोरठा का बाल्मीकि” कहा है।
• खोरठा भाषा के रचनाकार श्याम सुंदर महतो ‘श्याम‘ ने एक आलेख में पानुरी जी को “खोरठा का टैगोर” से संबोधित किया है।
• विकल शास्त्री ने श्रीनिवास पानुरी जी को “खोरठा का नागार्जुन” के नाम से संबोधित किया है।
• तितकी के संपादक शांति भारत ने पानुरी जी पर लिखे एक लेख में उन्हें “बरवाअड्डा अखइ बोर” से संबोधित किया है।
• उभरते हुए खोरठा भाषा के लेखक महेन्द्र प्रसाद दांगी ने पानुरी जी को “खोरठा के अनंत पुरूष” से संबोधित किया है।
• “खोरठा शिष्ट साहित्य के जनक“, “खोरठा के आदि कवि” और “खोरठा के भारतेन्दु” से भी पानुरी जी को संबोधित किया जाता है।
■ पानुरी जी के नाम से पुरस्कार/सम्मान
जो सम्मान भारत में गांधी जी के लिए है उससे भी कहीं अधिक सम्मान खोरठा जगत में श्रीनिवास पानुरी जी के लिए है। कहीं भी किसी भी समय किसी भी काल में खोरठा की चर्चा पानुरी जी के बीना अधुरी होगी। अत: उन्हें “खोरठा का अन्नत पुरूष” कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। खोरठा के क्षेत्र में किये गये महत्वपूर्ण योगदानों के कारण कई संस्थाओं ने पानुरी जी के नाम से सम्मान एवं पुरस्कारों की घोषणा की है।
• खोरठा साहित्य – संस्कृति परिषद, बोकारो द्वारा पानुरी के निधन के बाद “श्रीनिवास पानुरी स्मृति सम्मान” दिया जाता है। यह सम्मान वैसे खोरठा साहित्यकार को दिया जाता है जिसकी खोरठा भाषा के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि हो। साथ ही उसकी उम्र 60 वर्ष से ऊपर हो तथा खोरठा में उसकी एक प्रसिद्ध रचना भी हो। इस पुरस्कार से वर्ष 2019 के लिए शिवनाथ प्रमाणिक, 2020 के लिए पंचम महतो, 2021 के लिए चितरंजन महतो ‘चीत्रा’ और 2022 के लिए बंशीलाल ‘बंशी’ को दिया गया।
• जाने माने खोरठा साहित्यकार को खोरठा साहित्य विकास मंच बरवाअड्डा, धनबाद द्वारा 2015 से प्रति वर्ष “श्रीनिवास पानुरी खोरठा प्रबुद्ध सम्मान” दिया जा रहा है। यह पुरस्कार पानुरी जी के जन्म दिवस 25 दिसंबर को दिया जाता है। वर्ष 2022 में इस पुरस्कार से तारकेश्वर महतो ‘गरीब’, प्रयाग महतो, महेन्द्र प्रसाद दांगी, पुनीत साव, अमिता मधुर, आनंद किशोर दांगी सम्मानित किये गये थे।
■ श्रीनिवास पानुरी जी से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
• श्रीनिवास पानुरी जी का जन्म 25 दिसंबर 1920 को धनबाद, बरवाअड्डा, कल्याणपुर में हुआ था।
• पानुरी जी के जन्म दिवस 25 दिसंबर को “खोरठा दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
• इनके माता का नाम दुखनी देवी और पिता का नाम शालीग्राम पानुरी था। जबकि पत्नी का नाम मुर्ति देवी था।
• उनकी शिक्षा मैट्रिक तक हुई। पैसे के अभाव में आगे की पढ़ाई नहीं कर सके।
• 1939 में पिता और 1944 में माता की मृत्यु के बाद परिवार की जिम्मेवारी पानुरी जी पर आ गया।
• घर – गृहस्थी चलाने के लिए पानुरी जी ने एक गुमटी खोलकर पान बेचने लगे।
• इसी पान गुमटी से पानुरी जी ने खोरठा में रचनाएं शुरू की जो अनवरत चलता रहा।
• 1946 से पानुरी जी खोरठा साहित्य की रचना में रम गये और अपने जीवन में उन्होंने 40 किताबें लिखी।
• खोरठा क्षेत्र में 1950 से 1986 तक का काल पानुरी युग के नाम से जाना जाता है।
• 1954 में पानुरी जी की पहली खोरठा रचना “बाल किरण” के रूप में प्रकाशित हुई जो एक कविता संग्रह था।
• पानुरी जी ने खोरठा भाषा को बढ़ावा देने के लिए जनवरी 1957 में खोरठा की पहली पत्रिका निकाली जिसका था “मातृभाषा“। तत्पश्चात 1970 में ‘खोरठा‘ नाम से पत्रिका छपवाई। 1977 में तितकी पत्रिका में मार्गदर्शन की भूमिका निभाई।
• पानुरी जी ने कालीदास रचित मेघदूत का खोरठा अनुवाद किया। खोरठा जगत के लिए इस तरह का यह पहला प्रयास था।
• पानुरी जी की प्रकाशित रचना – बाल किरिण (कविता संग्रह),दिव्य ज्योति (कविता संग्रह), मेघदूत (कालीदास द्वारा रचितरचित मेघदूत का खोरठा अनुवाद), तितकी (कविता संग्रह), रामकथामृत (खण्डकाव्य), मालाक फूल (संयुक्त कविता संग्रह), आंखिक गीत (72 कविताओं का संग्रह), कुसुमी (कहानी), समाधान (हिंदी लघु कव्य), चाभी -काठी (नाटक), सबले बीस (कविता संग्रह), उद्भासल कर्ण (नाटक), अग्नि परीखा (खोरठा लघु काव्य) है।
• पानुरी जी की अप्रकाशित रचना – जुगेक गीता (कम्यूनिस्ट मैनिफेस्टो की खोरठा अनुवाद), रक्ते भिंजल पांखा (8 कहानी का संग्रह), मधुक देसें (कविता संग्रह), मोहभंग (काव्य), हामर गाँव, भ्रमर गीत, मोतिक चूर, परिजात (कविता संग्रह), अजनास (नाटक) इत्यादि
• श्रीनिवास पानुरी जी कि रचनाओं में माटी के दुख-दर्द, मानवतावाद और दर्शन के भाव देखने को मिलता है।
• पानुरी जी की साहित्य भाषा में ठेठ और तत्सम शब्द का बड़ा ही सुंदर मेल मिलता है।
• श्रीनिवास पानुरी जी को खोरठा शिष्ट साहित्य का जनक माना जाता है।
• पानुरी जी के नाम से मुख्यत: दो पुरस्कार प्रदान किये जा रहे हैं। खोरठा साहित्य – संस्कृति परिषद, बोकारो द्वारा श्रीनिवास पानुरी स्मृति सम्मान और खोरठा साहित्य विकास मंच बरवाअड्डा, धनबाद द्वारा श्रीनिवास पानुरी खोरठा प्रबुद्ध सम्मान।
• पानुरी जी को विभिन्न विद्वानों द्वारा विभिन्न उपनामों से संबोधित किया गया। खोरठा के बाल्मीकि, खोरठा के भीष्म पितामह, खोरठा के ध्रुवतारा, खोरठा के अक्षय बोर, खोरठा के टैगोर, खोरठा के भारतेंदु, खोरठा के आदि कवि जैसे उपनामों से अलंकृत किया गया है।
• पानुरी जी जनवादी विचारधारा के थे। जिस कारण झारखण्ड आंदोलन के जाने – माने नेता विनोद बिहारी महतो और ए के राय से उनका मेल – जोल था।
• 7 अक्टूबर 1986 को श्रीनिवास पानुरी जी का ह्दय गति रूकने से मौत हो गई।
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स्रोत:-
• खोरठाक घरडिंडा – तारकेश्वर महतो ‘गरीब”
• नावां खांटी खोरठा – दिनेश दिनमणि
• दू डाइर जिरहूल फूल – 10th. किताब
• विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग के बेबसाइट www.bvu.ac.in
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प्रस्तुतीकरण
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महेंद्र प्रसाद दांगी, शिक्षक