सोंध माटी कविता | sondh mati kavita mcqs | sondh mati kavita objective questions
सोंध माटी खोरठा की एक प्रसिद्ध कहानी और कविता संग्रह की पुस्तक है। इस पुस्तक के लेखक डाॅ. बिनोद कुमार हैं। इसमें 10 कहानियां और 31 कविताएं शामिल है। सोंध माटी पुस्तक की कविताओं में नशा पान, नेता की नियत, श्रमिक की जिनगी, दहेज प्रथा, आजादी के सिपाही, किसानों की जिनगी, झारखंड के ऊर्जा खनिज कोयला, नारी कमजोर नहीं जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर कवि ने बेबाक तरीके से अपनी बात रखी है। सोंध माटी पुस्तक की कविता जेपीएससी, जेएसएससी, सीजीएल जैसे कई प्रतियोगी परीक्षा के साथ-साथ मैट्रिक, इंटर, स्नातक, स्नातकोत्तर इत्यादि ड्रिग्री कोर्स में शामिल है।
इस दृष्टिकोण से इस पुस्तक का अध्ययन करना झारखंड के प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है।
? इस पोस्ट के अंत में कविता सेक्शन से महत्वपूर्ण 40 mcqs (बहुविकल्प प्रश्नों) के उत्तर भी देखेंगे। पोस्ट के अंत में
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कविता खंधा
1. आजादीक रइसका
2. जुवान
3. माटी
4. दहेज समाजेक करिखा
5. आस
6. आजादीक गीत
7. माटी आर संस्कीरति
8. नारी
9. खोढ़र
10. आंखिक कांदना
11. धरती माय
12. किसानेक जिनगी
13. गुलौंची फूल
14. नीम
15. पीआसल धरती
16. मम्मी-पापा
17. रे मन
18. जुवान आर किसान
19. बरिसा रितु
20. जिनगी एक मजुरा के
21. बोनेक डाक
22. जाड़ा रितु
23. रछा बंधन
24. बछरेक कांदना
25. करिया हीरा
26. अदमी निक जीव हे
27. भगजोगनी
28. नेता आर नियत
29. बिजलीक महिमा
30. नसा पान
31. पेपर बेचवा
सोंध माटी कविता | sondh mati kavita
1. आजादीक रइसका
इस कविता में आजादी के वीरों की बखान की गयी है। यह कविता शेख भीखारी, चांद, भैरव, सिदु, कानु, तिलका, गांधी, भगत, सुभाष के अमर बलिदान की गाथा कहती है। कवि कहता है कि आजादी के इन वीरों के चलते भारत आजाद हुआ है। जिससे आज भारत का सीना गर्व से ऊंचा हो गया।
2. जुवान
यह कविता भारत की सीमा पर डटे जवानों को समर्पित है। कवि कहता है कि ये जवान तुम देश की शान हो। तुम जगह-जगह अपनी लहु का दान देकर देश की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हो। देश में कई तरह के जंजाल है जिससे दुश्मन देश को लुटन सकता है। पर पुरे देश की निगाह आप पर ही है आप ही है जो देश को बचा सकते हैं।
3. माटी
इस कविता में कवि ने उस माटी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है जिस मिट्टी में पल-बढ़ कर बड़ा होकर दुनिया देखता है। कवि कहता है कि माटी भी मां के समान है। एक मां है जिसने नो महिने कोख में रखकर जन्म दिया है दुसरी मां माटी है। जो पालने और बढ़ने में मदद करेगा। धरती मां के समान है जो अन्न के रूप में भोजन देती है। कवि आगे कहता है ये धरती माई अपने आंचर में खनिज, खान, मंडुवा, गोंदली, चावल को समेटे हुए है जिसका कर्ज हम चुका नहीं सकते।
4. दहेज समाजेक करिखा
दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराई पर आधारित है यह कविता। कवि कहता है कि विवाह एक पवित्र बंधन है। जिसे दहेज ने बिगाड दिया है। दहेज एक पिशाच के समान है। जिससे परिवार उजड़ जाता है। इस लिए कवि ने दहेज को करिखा और कर्ज का घर कहा है। मनुष्य को बुद्धि और ज्ञान की आवश्यकता है तभी दहेज जैसा सामाजिक करिखा (कालिख) दूर किया जा सकता है।
5. आस
आसा अर्थात उम्मीद जीवन में आवश्यक है। कवि कहता है कि एक मां अपने बेटा पर उम्मीद/आसा करता है कि जब वह बुढ़ा हो जाएगा तब उसकी देखभाल करेगा। गाय की आस उसके बछड़े से है कि वह बंश को आगे बढ़ायेगा। उसी तरह बाती की आस लौ पर है कि वह उजाला फैलाए।
6. आजादीक गीत
यह कविता आजाद भारत के शान, मान, बान और गौरव गान पर आधारित। कवि कहता है कि प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को आजादी के वीरों को नमन करने के लिए तिरंगा लहराया जाता है। जिससे हमारा सीना चौड़ा हो जाता है और सर गर्व से ऊंचा हो जाता है।
7. माटी आर संस्कीरति
कवि इस कविता के माध्यम से झारखंड की रत्नगर्भा धरती और संस्कृति के बारे वर्णन किया। यहां के उबड़-खाबड़ टोंगरी-पहाड़ के बीच बिरसा, तिलका, भीखू, सिदु-कानु जैसे महान विभूतियों का वर्णन किया गया है। कवि कहता है माटी और संस्कृति पीठिया बहन हैं।
8. नारी
इस कविता में कवि ने नारी/महिला की महिमा का बखान किया है। कवि कहता है कि जहां पर नारी सम्मान होता है वहां धन-धर्म बढ़ता है। मर्द स्त्री बिना अधूरा है और स्त्री पुरूष बिना। कवि आगे कहता है ये नारी तुम कमजोर नहीं हो, तुम अबला नहीं हो, तुम सीता बनकर अन्याय मत सहो। तुम लक्ष्मीबाई बन कर मुकाबला करो। जब कमर कस कर तुम मैदान में उतर जाओगी तो तुम्हारे साहस के सामने कौन ठहर सकता है। कवि अंत में कहता है कि समाज में अब भी फिरंगी/अंग्रेज (बैमान) मौजूद है इस लिए ये नारी फंडा कस (कमर कस) कर तैयार रहो और इस तरह के फिरंगी को सबक सिखाओ।
9. खोढ़र
कवि ने इस कविता में भिखारी के माध्यम से समाज में व्याप्त आर्थिक बिषमता को दर्शाया है। कवि कहता है कि एक और कुछ लोगों को दो जून की रोटी भी प्राप्त नहीं होता है। एक भिखारी का ज़िक्र करते हुए कवि कहता है कि ठठरी जैसा हाड़-पांजर वाला भिखारी है तो वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग खा-खा कर अपना तोंद बढ़ा लिये हैं। तोंद बढ़ाने वाले ये लोग समाज के खोढ़र है।
10. आंखिक कांदना
इस कविता में कवि ने विकास के नाम पर लगने वाले कल कारखानों से निकले धुंआ से पुरे क्षेत्र में प्रदूषण फैलने का वर्णन किया है। कवि कहता है कल कारखाना लगाकर मनुष्य ने विकास की नींव रखी। परन्तु इस कल कारखाना से प्रदुषण होने लगा है। इस प्रदुषण से प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। इस प्रदुषण से कई तरह के रोग फैल रहा है। वर्षा भी अनिश्चित हो गयी है जिससे खेती बारी करना मुश्किल हो रहा है। इन सब के कारण से लोगों के आंखों में आंसु आ रहा है।
11. धरती माय
यह कविता झारखंड की धरती के सपुतों के निकल रहे आंसुओं पर आधारित है। कवि कहता है कि झारखंड की धरती खनिज संपदा से भरा है। पर बाहरी लोगों के हस्तक्षेप से यहां के लोगों को उसका हक नहीं मिल रहा है। इस कारण यहां के लोग कलप-कलप कर रो रहा है। उनके आंख आंसुओं से भींग गया है। कवि आगे कहता है कि धरती हमारी मां है हम इसके आंचल की छांव में पले-बढ़े हैं। इसकी सुरक्षा का दायित्व भी हम पर है। इसी धरती ने तिलका, सिदु-कानू जैसे महान लोगों ने जन्म लिया है।
12. किसानेक जिनगी
कवि ने इस कविता के माध्यम से किसान के जीवन को दर्शाया है। कवि कहता है कि जब सारा दुनिया सोया रहता है तब किसान सुबह होने से पहले ही उठ जाता है। नींद ठीक से खुले बिना ही वह जानवरों को चराने (मेलान) जंगल की ओर चल देता है। किसान न तो आंधी-पानी और न ठण्ढ-गर्मी से डरता है। वह इन सब की परवाह किये बिना खेता का काम निपटाता है। किसान सब का पेट भरता है और हर दुख सह कर अपने कामों में लगा रहता है। कवि आगे कहता है कि पेंड़ जिस प्रकार हवा देता है, फूल जैसे खुशी प्रदान करता है उसी तरह किसान अन्न देता है। कवि अंत में कहता है कि सबकों अन्न उपलब्ध करवाने वाला किसान सर आज कर्ज में डूबा हुआ है।
13. गुलौंची फूल
इस कविता में कवि ने गुलौंची फूल के बारे में वर्णन किया है। कवि कहता है कि चंपा, चमेली, गुलाब, सुरूजमुखी, कमल फूल के गुण तो सभी जानते हैं। अब बचा है गुलोंची फूल के गुण।
14. नीम
इस कविता के माध्यम से कवि ने नीम पेंड़ के औषधिय गुणों का वर्णन किया है। कवि कहता है प्रकृति की गोद में बसा नीम के पेंड के पास क्या नहीं है। नीम के पत्ता, फल के गुण बहुत है। यह कस्तुरी के मृग के समान है। हमारे आस-पास है पर हम इसके गुणों से परिचित नहीं है। नीम के प्रयोग से मतवाही, खोखरिया, दिनाइ, खसखस जैसे बीमारी से राहत मिलता है।
15. पिआसल धरती
कवि ने इस कविता के माध्यम से धरती पर विद्यमान वैमनस्य कलह और अशांति को प्रदर्शित किया है। कवि कहता है कि आज धरती मां शांति, अमन, भाईचारा और अहिंसा की प्यासी है। आज हमारी बुद्धि उल्ट गयी है। विज्ञान के बल बुते हमने खतरनाक हत्थियार बना लिये हैं। जो शांति के लिए नुकशान दायक है। कवि अंत में कहता है कि हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख ईसाई सभी मां की संताने है। अपनी आंख लाल करने के बजाय भाईचारा बढ़ाकर मां की दूध का लाज रखना है।
16. मम्मी-पापा
कवि ने इस कविता के माध्यम से अंग्रेजी शिक्षा के कारण बच्चे अपने मां-पिता को मम्मी- पापा कहते हैं। जिस पर व्यंग किया है। कवि कहता है कि खोरठा में पापा का अर्थ रोटी होता है। जब बाहर से पढ़ लिख कर बच्चा आता है और पापा को बुलाने के लिए कहता है तब गावं के बच्चे को पापा का मतलब रोटी समझता है। वह समझता है कि रोटी तो निर्जीव है इसे बुला कैसे सकते हैं। इसी तरह से मम्मी और पापा के उपर व्यंग्य किया गया है।
17. रे मन
इस कविता के माध्यम से कवि ने वर्तमान समय में वैज्ञानिक खोज के दुरुपयोग को इंगित किया है। कवि कहता है कि मनुष्य को इंगित करते हुए कहता है कि रे मन कितना उड़ रहे हो तुम से क्या करना बचा है। हवा से भी अधिक गति है तुम्हारी। पर ये तुम्हारी चाल-चलन ठीक नहीं है। विज्ञान के बल पर तुने परमाणु बम बना लिए हो, चांद पर पहुंच गये हो और मंगल पर पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हो। मन के अधिक बहकने से नुकसान होता है। कवि अंत में कहता है रे मन सही रास्ता पर चल, मानवता का ख्याल कर प्रकृति के संग चल।
18. जुवान आर किसान
यह कविता जय जवान जय किसान के नारा पर आधारित है। इस कविता के माध्यम से कवि कहता है कि जिस प्रकार से सीमा पर जवान डटे हुए हैं उसी प्रकार खेतों में किसान। एक सचेत, सजग और रक्षक है तो दूसरा (किसान) पालक है अन्न देने वाला है। कवि कहता है जवान अपनी रक्त का दान देकर रक्षा करता है दुश्मन के होस उड़ाता है। उसी तरह किसान धरती को सिंचित कर फसल उपजाता है। कवि पुनः कहता है कि ये किसान और सीमा पर स्थित जवान के हाथों का कमाल है कि एक हाथ में बंदूक थामें है तो एक हाथों में हल और फाल। कवि अंत में कहता है कि एक हमें सीमा से बाहरी दुश्मनों से बचाता है तो दूसरा अनाज उपजाकर भोजन उपलब्ध कराता है। इसलिए दोनों का महत्व सम्मान है।
19. बरिसा रितु
इस कविता के माध्यम से कवि ने प्रकृति का सुंदर चित्रण प्रस्तुत किया है। कवि कहता है कि जेठ माह की तपती धरती प्यास-प्यास पुकार रही है। काले-काले बादल आसमान में मंडरा रहे हैं। जब पहली बार वर्षा की बुंदे धरती पर गिरती है तो मोर नाचने लगते है, बेंग टर-टर करता है। वर्षा होने से किसान का मन खिल उठता है। भोर होते ही किसान उठकर जानवरों को चारा खिलाने ले जाता है। खतों में जोढ़रा (मकई), मंडुवा, गोंदली, धान को खतों में बो रहा है। कवि आगे कहता है कि वर्षा ऋतु आने से चारों तरफ हरियाली छा गई है। वर्षा ऋतु के कारण कई जीव जंतुओं के अरमान पूरे हो गए हैं। खेतों में धान की रोपनी होने लगी है। नदी, नाला, सोता पानी से भर गया है। इस लिए वर्षा की महिमा
20. जिनगी एक मजुरा के
यह कविता एक दिहाड़ी मजदूर की दुर्दशा की कहानी पर आधारित है। जिसमें कवि कहता है कि सूरज के निकलने से पहले ही मजदूर उठकर काम की तलाश में शहर की ओर चल देता है। उसके छोटे-छोटे बच्चे रो-रो कर बुराहाल हो जाता है। टुवर के जैसे उसके बच्चे दिन भर इधर-उधर घुमते रहते हैं और जुठा प्लेट चाट कर दिन काट रहे हैं। कवि आगे कहता है कि शहर के लोग दो मंजिला मकान में रहता है और बैठे-बैठे भोंथला (मोटा) हो गया है। वहीं मजदूर दिनभर हाड़ तोड़ काम करता है और पुरा मजदूरी भी नहीं मिलता है। जिससे घर की जरूरत भी पुरी नहीं कर पाता है। पत्नी की साड़ी भी ला नहीं पाता है। काम करने के बाद जो पैसा मिलता है उसमें से कुछ पैसे वह दारू (शराब) पीकर उड़ा देता है। जिससे उसके परिवार की स्थिति और भी बदतर हो रही है। अंततः पत्नी के समझाने के बाद दारू नहीं पीने का सपथ लेता है।
21. बोनेक डाक
यह कविता वन के महत्व को दर्शाती है। कवि ने वन के माध्यम से मनुष्य को संदेश दिया है कि वन के कारण ही पहाड़, पर्वत, नदी नालों की सोभा है। वन वर्षा कराने में सहायक है। अगर वन नहीं रहेगा तो अकाल की स्थित होगी और हवा प्रदुषित हो जायेगी। बाघ, भालु, सियार, बांदर जैसे सभी जंगली जीवों का आश्रय स्थल है वन। कई तरह के औषधिय पेड़ और पौधे वनों में पाया जाता है। जो रोग से बचाता है। लेकिन मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो गयी है। वह वनों को नुकसान पहुंचा रहा है। कवि अंत में कहता है जंगल प्रकृति का गहना है। हरा भरा उसका आंचर है, नदी,नाला, पहाड़, टोंगरी सभी आवरण है। इस लिए हम सबों को मिलकर वनों को बचाना चाहिए।
22. जाड़ा रितु
यह कविता एक गांव के गरीब की ठण्डी ऋतु में अपने को किस प्रकार ठण्ड से बचाता है का मार्मिक वर्णन किया है। कवि कहता है कि ठण्ड ऋतु आते ही सर्द हवा बहने लगती है। जिससे सभी जीव-जन्तुओं के दांत कटकने लगता है। जाड़ा की रात बड़ी होती है और दिन छोटी। इस अवधि में लोगों को आग और रसम अच्छा लगता है। लोग गर्म कपड़ा पहनते हैं। अधिक ठण्ड से जान जाने का भी खतरा रहता है। पंक्षियों की हालत भी इस अवधि में खराब रहती है। कवि आगे कहता है कि एक बड़ा घर के लोग ठण्ड आते ही गर्म कपड़ा पहनते हैं। वहीं पैसे के अभाव में जीने वाले गरीब लोग झुरी-लकड़ी से बोरसी की आग और गर्म मांड पीकर तथा फाटल लेंदरा बिछाकर रात गुजारते हैं। कवि अंत में कहता है कि ठण्ड से कई गरीब लोगों की जान चली जाती है। कई आदमी को खांसी और बच्चों को कुकुर खांसी भी हो जाता है
23. रछा बंधन
इस कविता में रक्षाबंधन के महत्व को बताया गया है। कवि ने भाई और बहन के बीच के प्रेम को दर्शाया है। कवि कहता है कि सावन का महिना आ गया है दो चार बदल आसमान में भी है जिनसे रिम-झीम वर्षा होती है। इसी बीच बहन मां के घर रक्षा बंधन के लिए आती है। कवि आगे कहता है कि बहुत दिनों का जमा हुआ प्यार भाई-बहन एक दुसरे के बीच बांट रहे हैं। बहन के लिए सभी भाई रक्षा का वचन देते हैं। रक्षाबंधन के बहाने कवि ने जाति, धर्म, ऊंच-नीच के बीच के भेद को मिटाने का प्रयास किया है। इस कविता में कवि ने कर्णावती और हुमायूं का उदाहरण रख विश्व में प्रेम की भावना को विकसित करने की बात कही है।
24. बछरेक कांदना
यह कवित समय के रूंदन पर आधारित है। कवि ने समय के महत्व को बताया है कि किस प्रकार देखते ही देखते समय नष्ट हो जाता है। मानव उन क्षणों का उपयोग मानव हित में ना करके मानवीय सभ्यता के अहित के लिए करता है। जिस कारण समय रोता है। इस कविता में कवि वर्ष के बहाने कहता है कि बैठे-बैठे वर्ष रो रहा है। वर्ष कहता है ईस्वी सन के रूप में हम पहचाने जाते हैं। बारह महिना की जिंदगी रहती है और ये बारह महिना कैसे बीत जाता है पता भी नहीं चलता है। वर्ष कहता है इन्ही बारह महीनों में हमने खुब दुनिया देखी है। उथल-पुथल देखा, न्याय और अन्याय देखा। और यह भी देखा कि लोग सभी पैसे के पीछ भागते हैं। वर्ष कहता है इस एक वर्ष में हमने जनता में शोसन को देखा है बेरोजगारी देखी है और महंगाई देखा है। लोगों को बी ए, एम ए कर के ठेकेदारी करते हुए भी देखा है। कवि वर्ष के बहाने कहता है एक घोड़ा ऐसा भी देखा है जो कागज का है यानी नाम का है। सब काम कागज पर है जमीन पर कुछ भी नहीं। विज्ञान के बल पर मनुष्य ने आज बम बारूद बना लिए हैं। दिनों दिन जनता में असंतोष बढ़ रहा है। कवि वर्ष के बहाने कहता है कि इन सब समस्या का निदान आदमी ही कर सकता है।
25. करिया हीरा
यह कविता काला हीरा अर्थात कोयला के महत्व पर आधारित है। इस कविता के माध्यम से कवि कहता है कि झारखंड में कोयला का भंडार है। यह कोयला शक्ति का प्रमुख साधन है। इसे बिजली बनती है। कवि कहता है कोयला जहां विज्ञान है वहां है। कोयला से रेल इंजन चलता है। कोयला के कारण यहां कल कारखाने खुल गये हैं। कवि अंत में कहता है कि कोयला जहां विकास का प्रयाय है वहीं कल कारखानों के खुलने से बाहरी लोगों का भी यहां आना-जाना हो रहा है। इस कारण यहां लुट-खसोट बढ़ गया है। झारखंड में झारखंड के लोग लाभ से वंचित हो रहे हैं और बाहरी लोग इसका लाभ उठा रहे हैं।
26. अदमी निक जीव हे
कवि ने इस कविता के माध्यम से मनुष्य की बल बुद्धि की महिमा का बखान किया है। कवि ने आदमी को सब जीवों में श्रेष्ठ माना है और कहता है कि यह विचार, नियत, बुद्धि में सभी जीवों में आगे है। कवि आगे कहता है कि आदमी का पहला काम लोगों के बीच प्रेम, परोपकार, धर्म और ईमानदारी के गुण से आदमी बड़ा इंसान होता है यदि ऐसा नहीं है तो वह हैवान के समान है। कवि आगे कहता है कि यह न हिंदु है न मुस्लिम और न सिख, यह केवल इंसान है। कवि अंत में कहता है कि शांति, सत्य और अहिंसा से आदमी दुनियां में प्रकाश फैलाता है।
27. भगजोगनी
इस कविता के माध्यम से कवि ने मनुष्य को भागजोगनी से सीख लेने की बात कही है। भगजोगनी छोटा है पर अपने सामर्थ्य से अंधेरे को दूर कर रोशनी से जगमग करने का प्रयास करता है। कवि कहता कि जब दुनियां अंधेरा में रहती है तब भगजोगनी जलकर लोगों को प्रकाश के जरिए दिशा दिखाता है। कवि भगजोगनी के बहाने मनुष्य को संदेश देता है कि अपने पास सब कुछ है बस करने की आवश्यकता है। यदि अपने में आलस्य लाते हो तो बोंका और गंवार बनेगे। अंत में कवि कहता है कि जिस प्रकार भगजोगनी भक्-भक् कर दुनियां को प्रकाशमय कर रही है उसी तरह मनुष्य को भी आज करनी चाहिए।
28. नेता आर नियत
इस कविता के माध्यम से कवि ने नेता और उनकी नियत के बारे में बताया है। कवि कहता है कि नेता और नियत एक दुसरे के दुश्मन हैं। क्यों कि नेता का अर्थ गाल बजवा अर्थात केवल झूठ बोलने वाला होता है। नेता आज भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया है। कवि आगे कहता है कि जिस समय जनता नेता के गुणगान करता उस समय नेता फुल के कुपा हो जाता है। नेता अपनी नियत (ईमानदारी) छोड़ देता है। कवि अंत में कहता है कि आज नौकरी के लिए घुस देना पड़ता है। इस कारण नेता और नियत से मेल नहीं खाता है। नेता के कार्य से आज नियत (ईमानदारी) झुप गया है।
29. बिजलीक महिमा
कवि ने इस कविता के माध्यम से बिजली (विद्युत) की महिमा का बखान किया है। कवि कहता है कि बिजली के बीना सब कुछ सुन है। यह महारानी है सरकार का हरेक काम इसके बीन संभव नहीं है। कवि आगे कहता है कि सरकार के सरकार है बिजली, यह कल्याण करने वाली विकास का आधार है। कल कारखाना, सिनेमा घर, खेती-बारी सभी में बिजली की दरकार है। आज बिजली के चलते रात दिन के समान प्रतित होता है। कवि अंत में कहता है कि जैसे हवा बिना जीवन नहीं है वैसे ही बिजली के बिना दुनिया सब सुन है। बिजली से जीवन की प्रगति होगी।
30. नसा पान
इस कविता के माध्यम से कवि ने नशा पान के बुराई को बताया है। कवि कहता है कि नशा करना आज फैशन बन गया है। बीना नशा पान के पार्टी का महत्व नहीं है। नशा पान करवाने वाले लोगों का मान ऊंचा समझा जाता है। कवि आगे कहता है कि इस नशा पान से समाज, मकान, घर गिरहस्ती उजड़ रहा है। नशा पान को बढ़ावा देकर आदमी आज हेवान बन गया है। मनुष्य की आज बुद्धि गायब हो गयी है। वह समझ नहीं पा रहा है कि मनुष्य का जीवन कितना अनमोल है।
31. पेपर बेचवा
इस कविता के माध्यम से कवि ने पेपर बेचने वाले के जीवन को बताने का प्रयास किया है। कवि ने इस कविता के माध्यम से बताया है कि जब सब कोई सोया रहता है तब आलस्य त्याग कर बहुत ही सुबह उठकर पेपर बेचने वाले घर घर पेपर पहुंचाते हैं। लोगों को नया, ताजा खबर पहुंचाकर एक बड़ा उपकार करता है। पेपर बेचने वाला रोज पेट चलाने का उपाय करता है। लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। उनके उपर बच्चों की पढ़ाई का फिक्र भी है। अंत में कवि कहता है कि पेपर बेचने वाले नर्म व्यवहार और ईमानदार इंसान होते हैं।
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सोंध माटी कविता | sondh mati kavita mcqs
अब आपने पढ़ाई को परखें, यहां 40 mcqs प्रश्न उत्तर सहित दिये जा रहे हैं।
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Results
#1. एकर में कोन सोंध माटी कितापेक उखरवइया (लेखक) लागथ?
उत्तर:- डा. बिनोद कुमार
#2. जनी जाइतेक हक अधिकारेक ओकालत कोन कबिताञ कर गेल हेल
उत्तर:- नारी
#3. सोंध माटी कितापें कोन कबिता में समाज मे व्याप्त आर्थिक विषम के देखावल गेल हे?
उत्तर:- खोढ़र
#4. मम्मी पापा कबिताञ कबि कि कहे खोज हे?
उत्तर:- अनठेकानी नकल टा बेजाय लागे
#5. “जिनगीक एक मजुरा के” कबिताञ कि उखरावल गेल हे?
उत्तर:- मजुराक दुरदसा
#6. “कल कारखानाक गोड़े धाइर, मानुस करलक जिनगीक सुसाइर, करिआ होके कारखाने बहराइल, भरल संवास धुएं रेंताइल” इ पंक्ति कोन कबिता से लेल गेल हे?
उत्तर:- आंखिक कांदना
#7. सोंध माटी के पहिल कबिता कोन टा लागइ?
उत्तर:- आजादीक रइसका
#8. आस, नारी, खोढ़र, आंखिक कांदना आर आजादीक रइसका कबिताक कबि के लागथ
उत्तर:- डा. बिनोद कुमार
#9. करिया हीरा केकरा कहल गेल हे?
उत्तर:- कोयला के
#10. जिनगी एक मजुरा, नेता आर नियत, पेपर बेचवा, जुवान आर नीम कबिताक कबि के लागथ?
उत्तर:- डा. बिनोद कुमार
#11. खोरठा भासाक कोन एइसन किताप हइ जेकरा सउब ले बेसी पाइठकरमें (पाठ्यक्रम) सामिल करल गेल हइ?
उत्तर:- सोंध माटी
#12. सोंध माटी में कइगो कबिता सामिल हे?
उत्तर:- 31
#13. बिदेशी चाइल चलन के आंधा नकल करवइया उपरें फिंगाठी (व्यंग्य) कोन कबिता में करल गेल हे?
उत्तर:- मम्मी पापा
#14. सोंध माटी के लेखक बिनोद कुमार के एकर में कोन उपाधि से सम्मानित करल गेल हइ?
उत्तर:- खोरठा रत्न सम्मान
#15. खोंढ़र कबिताञ कबि केकर दसा के उखरावेक कोसिस करल रहे?
उत्तर:- भिखमंगा
#16. बोन झार उजरावेक बखान कोन कबिताञ करल गेल हे?
उत्तर:- बोनेक डाक
#17. भगजोगनी कबिताञ कबि कि संदेस देल हथ?
उत्तर:- आपन हुब आर लगन से सभे कुछ पावल जाय पारे
#18. “हाड़-पांजर गिनवल बुले, जइसे कोनो ठठरी बुले, दीदाक लोर ओहो सुखल, ओठ चाइट-चाइट गिल करे, टुकुर-टुकुर सरग देखे।” ई पंक्ति कोन कबिता से हे आर इ कबिताक लेखक के सही मेल बतवा?
उत्तर:- खोंढ़र – डा. बिनोद कुमार
#19. रे मन कबिताय कि संदेस देल गेल हे?
उत्तर:- सोबटा सही हे
#20. सोंध माटी कितापेक कोन कबिता में धरती पर विद्यमान वैमनस्य, कलह, अशांति के बखान करल गेल हे?
उत्तर:- पीआसल धरती
#21. “तोर कामेक दाम नाञ, दाम मांगे से सपूत नाञ, मान बाढ़े काम पर, सपूत मरे शान पर, जुवान सीमान पर।” कबिताक ई पंक्ति कोन कबिता से लेल गेल हे?
उत्तर:- जुवान आर किसान
#22. कल कारखाना के पइरचल परियावरन परदुसन आर तकर कुनतीजाक बखान कोन कबिताञ करल गेल हइ?
उत्तर:- आंखिक कांदना
#23. आजादीक रइसका कबिता कोन कितापें छपल हे?
उत्तर:- सोंध माटी
#24. गुनगर रहलो बाद कोन गाछ के हीन मानल जाहइ, सोंध माटी कितापेक आधारों बतवा?
उत्तर:- नीम
#25. नारी शीर्षक कबिता में कबि केकर महातम उखरावल हे?
उत्तर:- नारी शक्ति के
#26. ‘बरिसा रितु’ कबिताञ कबि कि उखरावल हे?
उत्तर:- पानी बइरसल बाद लोकेक आर जीव-जन्तु के हुलास के
#27. आजादीक रइसका कोन रकमेक कबिता लागे?
उत्तर:- देशभक्ति परधान
#28. डा. बिनोद कुमार मुइख रूपें कोन बाधाक उखरवइया हेकथ?
उत्तर:- कबिता आर कहनि
#29. खोढ़र कबिता में डा. बिनोद कुमार ककर आयां चितरन करलका हथ?
उत्तर:- गरीब भीखारिक दुरदसा के
#30. “मरद जेनी बिन अधुरा, मरद बिन जेनी अधुरी, दुइयो संग-संग चले, चले जइसे गाडीक धुरी” कबिता पंक्ति कोन कबिता से लेल गेल हे?
उत्तर:- नारी
#31. जुवान कबिताञ कवि कि खोज हे?
उत्तर:- सोबटा सही
#32. माटी आर संस्कीरति कबिताञ केकर वर्णन करल गेल हे?
उत्तर:- झारखंड के रत्नगर्भा धरती आर संस्कीरति
#33. “चाइरो दने जुटेक हांक, कोनो ठीन नाञ रहे फांक, गावा सगरे पिरितेक गान, दुनियायें ऊंचा भारतेक मान।” कबिताक पंक्ति कोन कबिता आर एकर लेखक के नाम मिलान कर बतावा??
उत्तर:- जुवान-डा. बिनोद कुमार
#34. सोंध माटी कितापेक कोन कबिताञ प्रदुषन (प्रदुषण) के चर्चा करल गेल हे?
उत्तर:- आंखिक कांदना
#35. सोंध माटी कितापें कोन कबिता दहेज परथाक खिलाफ लिखल गेल हे?
उत्तर:- दहेज समाजेक करिखा
#36. सोंध माटी कितापेक आखरी कबित कोन टा हे?
उत्तर:- पेपर बेचवा
#37. “गाछ पालो हावा दे हे, फूल करे हांसी, अनेक दाना किसान देहे, उमइक उठे खुसी।” ई पंक्ति कोन कबिताक हके?
उत्तर:- किसानेक जिनगी
#38. बोनेक डाक कबिता से डा. बिनोद कुमार की संदेस देल हथ?
उत्तर:- बोन बचले मनुख आर जीव जन्तु नीक सुखे रहे पारता
#39. माटी कबिता केकर महातम बखान करल गेल हे?
उत्तर:- मातरीभूमि के
#40. आस कबिता कोन भाव फरीछ करो हे?
उत्तर:- संसारेक सब परानी-बसुत एक दोसर से आसेक डोराञ जोराइल रहथ
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