Bhadrakali Temple chatra, भद्रकाली मंदिर इटखोरी, कैसे पहुंचे
Bhadrakali Temple chatra जिले के ईटखोरी (झारखंड) में अवस्थित है। इसे भदुली धाम के नाम से भी जाना जाता है। महाने और बक्सा नदी के संगम पर स्थित यह स्थान हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म का संगम स्थली है। यहाँ इन तीनों धर्मों के ऐतिहासिक साक्ष्य मिले हैं। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह स्थान प्रागैतिहासिक काल, महाकाव्य काल तथा पुराण काल से संबंधित है।
मंदिर का निर्माण
उत्खनन् से प्राप्त शिला लेखों तथा तांब्रपत्रों से ज्ञात होता है कि इस मंदिर का निर्माण पालवंश के शासक महेंद्र पाल ने करवाई थी। जिसका शासन काल 988 ई• से 1038 ई• के बीच था। महेंद्र पाल बंगाल का शासक था। जिसके अधिन मगध भी था! और भदुली मगध का एक अंग था।
मंदिर परिसर में स्थित दर्शनीय स्थल
मां भद्रकाली मंदिर परिसर 158 एकड़ परिसर में फैला हुआ है। यहां मुख्य मंदिर के अलावा कई अन्य मंदिर है, जहां 14 या उससे अधिक प्रतिमाएं स्थापित की गई।
मुख्य मंदिर
मुख्य मंदिर परिसर में गोमोद पत्थर अर्थात अष्ट धातु से निर्मित मां भद्रकाली की प्रतिमा है। जिस पर काल का अबतक कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। मंदिर के चारों कोनों पर भगवान बुद्ध की ध्यान भग्न छोटी-छोटी प्रतिमाएं है। इस पावन स्थल को भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। 1968 तक मंदिर परिसर में मां भद्रकाली के अलावा अष्ट भुजी मां दुर्गा की भी प्रतिमा स्थापित थी! जो 1968 में मां भद्रकाली और अष्टभुजी मां दुर्गा की प्रतिमा चोरी हो गई। मां भद्रकाली की प्रतिमा मां की कृपा से तो वापस आ गयी। पर अष्ट भुजी मां दुर्गा की प्रतिमा वापस न आ सकी।
पंचमुखी हनुमान मंदिर
मुख्य मंदिर के बगल में ही भगवान राम के परम भक्त हनुमान की पंचमुखी प्रतिमा स्थापित की गई है।
सहस्त्र शिवलिंग मंदिर
मुख्य मंदिर परिसर से सटा हुआ एक और मंदिर है जिसे सहस्त्र शिवलिंग मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर परिसर में एक बड़े शिवलिंग में 1008 छोटे-छोटे शिवलिंग उत्कीर्ण किए गए हैं। साथ ही इस मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान शंकर का वाहन नंदी की विशाल शिला से निर्मित प्रतिमा है। ये दोनों वास्तुकला का बहुत ही बेहतरीन उदाहरण है।
बौद्ध स्तूप
यहां का सबसे बड़ा आकर्षण 15 फुट ऊंचा विशाल बौद्ध स्तूप है। यह स्तूप मंदिर परिसर के उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। इस बौद्ध स्तूप में 1004 छोटे तथा चार बड़े विभिन्न मुद्राओं में भगवान बुद्ध की प्रतिमा उत्कीर्ण है। जो उत्कृष्ट कलाकृति का एक बेहतरीन उदाहरण है। यह स्तूप वर्तमान में 6 से 7 फुट ही उचित दिखता है आधे से अधिक भाग धरातल में दबा हुआ है यह अस्तु आस्था के लिए चमत्कार और विज्ञान के लिए आश्चर्य से कम नहीं है। क्योंकि इस शिला स्तूप के ऊपरी हिस्से में बने गढ़े से जल हमेशा रिस्ता रहता है। जो आज भी विज्ञान के लिए एक पहेली बना हुआ है। इस चमत्कारी स्तूप को देखने के लिए देश-विदेश से सैलानी यहां पहुंचते हैं
स्तूप का अर्थ
स्तूप का अर्थ मिट्टी अथवा पत्थर के ढेर से होता है। प्राचीन समय में भगवान बुद्ध के अस्थियों (हड्डी) तथा अन्य अवशेष को भारत सहित विश्व के विभिन्न भागों में ले जाकर स्तूप का निर्माण किया गया था। सारनाथ में धमेक स्तूप, मध्य प्रदेश में सांची स्तूप, बिहार के राजगीर में स्थित विश्व स्तूप, नेपाल के काठमांडू घाटी में स्थित स्तूप, श्रीलंका के अनुराधापुरा में स्थित स्तूप, इंडोनेशिया के बोरोबुदुर में स्थित स्तूप इसके कुछ उदाहरण है।
1008 शीतल नाथ मंदिर
मुख्य मंदिर परिसर से तकरीबन 500 मीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम दिशा में जैन धर्म के 10 तीर्थंकर भगवान शीतल नाथ का मंदिर स्थापित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शीतल नाथ का जन्म इसी पावन भूमि पर हुआ था। 1983 में हुए खुदाई में भगवान शीतलनाथ के “जोड़ चरण” यहां से प्राप्त हुए हैं। जिसे फिलहाल मंदिर परिसर में स्थित म्यूजियम में रखा गया है। जो भी श्रद्धालु यहां आते हैं। वे इस पावन स्थल का भ्रमण एक बार जरूर करते हैं।
राम जानकी मंदिर
मुख्य मंदिर के कुछ ही दूरी पर राम-जानकी मंदिर है। इस मंदिर में राम, सीता, लक्ष्मण, भगवान गणेश और विश्व के पहले वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित की गई है।
कनुनिया माई मंदिर
मुख्य मंदिर से तकरीबन 500 मीटर की दूरी पर कनुनिया माई मंदिर है।
म्यूजियम (संग्रहालय)
यहां खुदाई से हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के साक्ष्य मिले हैं। जहां खुदाई द्वारा प्राप्त मूर्तियों, शिलालेखों, शिला स्तंभों आदि को दर्शन हेतु संरक्षित कर रखा गया है। जो भी श्रद्धालु भद्रकाली मंदिर देखने आते हैं। वे इस संग्रहालय को एक बार जरूर देखते हैं। इस संग्रहालय का भ्रमण का शुल्क 5 रू• रखा गया है।
? म्यूजियम (संग्राहलय) का विडियो click here
प्रतिमा चोरी की रोचक घटना:-
1968 में मां भद्रकाली सहित अष्ट भुजी मां दुर्गा की प्रतिमा चोरी हो गयी। लोग विवहल होकर खोज में जुट गये। चोरी की घटना के एक सप्ताह पश्चात। ईटखोरी के BDO को एक गुमनाम पत्र मिला जिसमें लिखा था- “नालंदा (बिहार) के एक व्यक्ति ने 50 लोगों के साथ प्रतिमा चोरी की है। जिसे बिहार-सरीफ या कलकात्ता में रखा गया है। 2-3 दिनों के अंदर अमेरिका पहुंच जाएगा।” इस पत्र के बाद चतरा प्रशासन सक्रिय हुआ, और पुलिस की दो टीम बनाई गयी। एक टीम बिहार सरीफ तथा दूसरी टीम कलकाता (कोलकाता) रवाना हुआ। कलकत्ता में पुलिस वेष बदल कर नौलखा नामक एक व्यापारी से प्रतिमा लेने का सौदा हुआ! आधी रात 2 बजे छापामारी में मां भद्रकाली की प्रतिमा प्राप्त हुई लेकिन अष्ट भुजी मां दुर्गा की प्रतिमा बरामद न हो सकी, तथा व्यापारी नौलखा को गिरफ्तार किया गया। बाद में उसे इस कृत्य के लिए सजा भी मिली।
ईटखोरी महोत्सव
धर्म सह अस्तित्व का प्रतीक भद्रकाली को मानते हुए झारखंड सरकार द्वारा वर्ष 2015 से हर साल 19 से 21 फरवरी के बीच “ईटखोरी महोत्सव” का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर देश-विदेश से कलाकारों का संगम इस मंदिर परिसर में होता है। इस अवसर पर देश के विभिन्न भागों से कलाकार और पर्यटक इस महोत्सव में शामिल होने आते हैं।
दंतकथा
• प्राचीन दंत कथाओं में ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम, सीत और लक्ष्मण सहित इसी अरण्य में निवास किए थे।
• महाभारत काल में पांडवों ने इसी क्षेत्र में अज्ञात वास व्यतीत किया था।
• राजा सूरथ जिनकी राजधानी चतरा के हंटरगंज के पास कुलेश्वरी पहाड़ पर था। एक यवन राजा से युद्ध में पराजित होकर इटखोरी पहुंचे और इटखोरी स्थित “मेघामुनि आश्रम” में उन्होंने शरण लिया। होम, गंध, बेलपत्र, पुष्पों से सुभाषित एवं सुशोभित मेघामुनि आश्रम के इस पवित्र वातावरण में हिंसक जीव ही हिंसा छोड़ देते थे।
Bhadrakali Temple chatra
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Bhadrakali Temple chatra
ईटखोरी नामकरण का रोचक प्रसंग
मां भद्रकाली मंदिर परिसर झारखंड के चतरा जिले के इटखोरी में स्थित है। ईटखोरी का नाम प्राचीन काल से जुड़ा है। ईटखोरी “इत” ‘खोई‘ से बना है। प्राचीन कथा के अनुसार सिद्धार्थ तथागत अर्थात गौतम बुद्ध यहां अटूट साधना में लीन थे। उस समय उनकी मौसी प्रजापति उन्हें कपिलवस्तु ले जाने हेतु आई। परंतु तथागत अर्थात बुद्ध का ध्यान मौसी के आगमन से भी नहीं टूटा। तब मौसी के मुख से अचानक “ईतखोई ” शब्द निकला जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘यही खोई’ अर्थात पुत्ररत्न सिद्धार्थ तपस्या में यही खो गए। इसी घटना के पश्चात संभवत: इसका नाम “ईतखोरी” पड़ा होगा। जो अब कालांतर में परिवर्तित होकर ईतखोरी से ‘ईटखोरी‘ या ‘इटखोरी‘ में बदला प्रतीत होता है।
भद्रकाली इटखोरी कैसे पहुंचे
भद्रकाली इटखोरी झारखंड (भारत) के चतरा जिले में स्थित है। इटखोरी सड़क मार्ग से जुड़ा है। यहां देश के विभिन्न भागों से सड़क मार्ग के द्वारा ही इस तीन धर्मों के पावन धाम में पहुंचा जा सकता।
सड़क मार्ग से दूरी
चतरा से 35 Km.
चतरा-चौपारण मार्ग में इटखोरी में स्थित मां भद्रकाली मंदिर पहुंचे.
कटकमसांडी 29 किलोमीटर
कटकमसांडी सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है. पर यहाँ रेल गाड़ियों की संख्या सीमित है.
हजारीबाग से 52 km.
हजारीबाग से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 33 में चलकर पदमा मोड़ पहुंचे. पदमा मोड़ से पदमा-इटखोरी मार्ग से इटखोरी भद्रकाली पहुंचे.
कोडरमा से 63km.
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-33 के सहारे कोडरमा से बरही पहुंचे. इसके बाद चौपारण से इटखोरी स्थित मां भद्रकाली पहुंचे. कोडरमा सबसे निकटतम व्यस्त रेलवे स्टेशन भी है. जहां से उत्तर भारत और दक्षिण भारत को जोड़ने वाली रेल गाड़ियां गुजरती है
गिरीडीह से 151km.
गिरिडीह से डुमरी 45 किलोमीटर फिर NH-2 से डुमरी से चौपारण 90 किलोमीटर इसके बाद, चौपारण से भद्रकाली इटखोरी 20 किलोमीटर.
रांची से दुरी 149km.
दो सड़क मार्ग है
1. रांची से हजारीबाग हजारीबाग से पदमा मोड़ तक राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 33 यात्रा करें. पदमा मोड़ से पदमा- इटखोरी सड़क मार्ग होते हुए इटखोरी पहुंचे. यह मार्ग दूसरे मार्ग से ज्यादा सुविधाजनक है.
2. रांची से रातू होते हुए चतरा पहुंचे. चतरा से पुनः इटखोरी पहुंचे.
धनबाद से 161km.
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या दो के सहारे धनबाद से चौपारण पहुंचे पुनः चौपारण से इटखोरी भद्रकाली पहुंच
गया से 90km.
गया से डोभी, पुन: डोभी से चौपारण, तत्पश्चात चौपारण से ईटखोरी भद्रकाली
पटना से 188km.
पटना से गया होते हुए डोभी, डोभी से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 से चौपारण और चौपारण से इटखोरी भद्रकाली पहुंचे.
कोलकाता से 427km.
कोलकाता से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्यासंख्या-2 के सहारे 407 किलोमीटर चलकर चौपारण पहुंचे तथा चौपारण से 20 किलोमीटर दूरी भद्रकाली पहुंचे.
नई दिल्ली से 1080km.
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 से चलकर दिल्ली से मथुरा, आगरा, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी से होते हुए चौपारण पहुंचे. तत्पश्चात चौपारण से 20 किलोमीटर चलकर इटखोरी स्थित मां भद्रकाली मंदिर पहुंचे.
मुंबई से 1761km.
चेन्नई से 1770km.
निकटतम रेलवे जंक्शन से दूरी
कटकमसांडी 28km.
सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन कटकमसांडी है. पर यहां सीमित मात्रा में ट्रेनों का परिचालन होता है.
हजारीबाग 52 km.
दुसरा सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है. यहां पर भी सीमित मात्रा में रेलगाड़ियों की उपलब्धता है.
कोडरमा 63 km.
ईटखोरी भद्रकाली से सबसे निकटतम और महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन कोडरमा है. जो 63 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है क्योंकि यहां पर देश के विभिन्न क्षेत्रों से रेलगाड़ियां पहुंचती है.
धनबाद 161km.
धनबाद एक महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शन है. जो उत्तर भारत और दक्षिण भारत को जोड़ती है. इसलिए देश के विभिन्न भागों से आने वाले पर्यटक इस जंक्शन पर उतर सकते हैं.
रांची 152 km.
यह भी एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है. यहां भी देश के विभिन्न भागों से ट्रेनें आती है.
गया 92 km.
यह भी एक महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शन है. यहां भी देश के विभिन्न भागों से ट्रेनें आती है. पर्यटक इस रेलवे जंक्शन पर भी उतर कर सड़क मार्ग से इटखोरी भद्रकाली पहुंच सकते हैं.
कोलकाता से 423 km.
निकटतम वायु मार्ग से दूरी
• निकटतम हवाई पत्तन रांची 152 km. दुरी पर है.
• पटना 250km.
• कोलकाता 424 km.
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संकलन
महेंद्र प्रसाद दांगी
शिक्षक
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