Class 10 History मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया प्रश्नोत्तर in hindi
Class:- 10th
SUBJECT :- HISTORY
Chapter: 05
Print culture and modern world
मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
Topic:- Class 10 History मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया प्रश्नोत्तर in hindi
अभ्यास के प्रश्नों का उत्तर
CHAPTER :- 05 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
1. निम्नलिखित के कारण दे :-
(क) वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई।
उत्तर :- 1295 ई॰ में मार्को पोलो नामक खोजी यात्री चीन में काफी वर्ष तक खोज करने के बाद इटली वापस लौटा। चीन के पास वुडब्लॉक वाली छपाई की तकनीक पहले से मौजूद थी। मार्को पोलो यह ज्ञान अपने साथ लेकर लौटा, फिर क्या था? इतालवी भी तख्ती की छपाई से किताबें निकालने लगे और जल्दी ही यह तकनीक शेष यूरोप में फैल गई।
(ख) मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की।
उत्तर:- धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी 95 स्थापनाएँ लिखीं। इसमें लूथर ने चर्च को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी थी। शीघ्र ही लूथर के लेख एक बड़ी संख्या में छापे और पढ़े जाने लगे। लूथर के न्यू टेस्टामेंट के अनुवाद की 5000 प्रतियां बिक गई और 3 महीने के अंदर दूसरा संस्करण निकालना पड़ा। प्रिंट के प्रति सच्चे मन से कृतज्ञ लूथर ने कहा मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है सबसे बड़ा तोहफा।
(ग) रोमन कैथोलिक चर्च ने 16वीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी।
उत्तर :- सोलहवीं सदी को इटली के एक किसान मेनोकियो ने अपने इलाके में उपलब्ध किताबों को पढ़ना शुरू कर दिया था। उन किताबों को पढ़ना शुरू कर दिया था। उन किताबों के आधार पर उसने बाइबिल के नए अर्थ लगाने शुरू कर दिए और उसने ईश्वर और सृष्टि के बारे में ऐसे विचार बनाएं की रोमन कैथोलिक चर्च उससे क्रुद्ध हो गया। ऐसे धर्म विरोधी विचारों को दबाने के लिए रोमन चर्च ने जब इन्क्विजिशन (धर्म – द्रोहियों को दुरुस्त करने वाली संस्था) शुरू किया। धर्म के बारे में उठाए जा रहे सवालों से परेशान रोमन चर्च ने प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं पर कई तरह की रोक लगाई और 1558 ई॰ से संबंधित प्रतिबंधित किताबों की सूची रखने लगे।
(घ) महात्मा गांधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।
उत्तर :- गांधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया था। उनका विश्वास था कि स्वतंत्रता सच्चे लोकतंत्र का सर्वाधिक शक्तिशाली सिद्धांत है, इसीलिए उन्होंने प्रेस की आजादी का पक्ष लिया। उन्होंने विचारों की अभिव्यक्ति और बोलने की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। उन्होंने संघ (संगठन) बनाने के विचार का भी समर्थन किया।
2. छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएं –
(क) गुटेन्बर्ग प्रेस:-
गुटेन्बर्ग प्रेस का मॉडल जैतून प्रेस ही था। इसका निर्माण गुटेनबर्ग ने 1448 ई॰ में की इसमें सांचे का उपयोग अक्षरों की धातुई आकृतियों को गढ़ने के लिए किया गया। गुटेन्बर्ग प्रेस में छपी पहली किताब बाइबिल थी। जिसकी 180 प्रतियां बनाने में 3 साल लगे जो उस समय के हिसाब से काफी तेज था।
(ख) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार :-
लातिन के विद्वान और कैथोलिक धर्म सुधारक इरैस्मस जिसने कैथोलिक धर्म की ज्यादतियों की आलोचना की, पर मार्टिन लूथर से भी दूरी बना कर रखी। इरैस्मस प्रिंट को लेकर बहुत परेशान था उसने ऐडेजेज में लिखा:- किताबें भिनभिनाती मक्खियों की तरह है, दुनिया का कौन सा कोना है जहां ये नहीं पहुंच जाती! हो सकता है कि जहां-तहां एकाध जानने लायक चीजें भी बताएँ लेकिन इनका ज्यादा हिस्सा तो विद्वता के लिए हानिकारक ही हैं। बेकार ढेर है क्योंकि अच्छी चीजों की अति भी हानिकारक ही है। इनसे बचना चाहिए। मुद्रक सिर्फ तुच्छ चीजों से ही नहीं पाट रहे बल्कि बकवास बेवकूफ, सनसनीखेज, धर्म विरोधी, अज्ञानी और षड्यंत्रकारी किताबें छापते हैं। और उनकी तादाद ऐसी है कि मूल्यवान साहित्य का मूल्य भी नहीं रह जाता।
(ग) वर्नाक्यूलर या देसी प्रेस एक्ट :- (Jac 2010,2014)
उत्तर:- 1857 ई॰ के विद्रोह के बाद प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति रवैया बदला और आयरिश प्रेस कानून की तर्ज पर 1878 ई॰ में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट लागू कर दिया गया। इससे सरकार को भाषाई प्रेस में छपी रपट और संपादकीय को सेंसर करने का व्यापक हक मिल गया। अब सरकार ने विभिन्न प्रदेशों से छपने वाले भाषाई अखबारों पर नियमित नजर रखनी शुरू कर दी। अगर किसी रपट को बागी करार दिया जाता था, तो अखबार को पहले चेतावनी दी जाती थी। और अगर चेतावनी की अनसुनी हुई तो अखबार को जब्त कर लिया जाता था और छपाई की मशीनें छीन ली जाती थी।
3. 19वीं सदी में भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-
(क) महिलाएँ :-
उत्तर:- 19वीं सदी भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार में महिलाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ा जो निम्न है :-
(i) महिलाओं की जिंदगी और उनकी भावनाओं पर गंभीरता से पुस्तकें लिखी गई।
(ii) मध्यवर्गीय घरों की महिलाएं पहले से ज्यादा पढने लगी।
(iii) 19वीं सदी के मध्य में बड़े- छोटे शहरों में स्कूल बने तो उदारवादी पिता और पति महिलाओं को पढ़ने के लिए भेजने लगे।
(iv) कई पत्रिकाओं ने लेखिकाओं को जगह दी और उन्होंने नारी शिक्षा की जरूरत पर जोर दिया।
(v) महिलाओं में जागरूकता आई कट्टर रुढिवादी परिवार की रशसुंदरी देवी ने रसोई में छिप कर पढ़ना सीखा और आमार जीवन नामक आत्मकथा लिखी जो 1876 में छपी।
(vi)1860 ई॰ के दशक में महिलाओं पर कैलाशबाशिनी देवी ने लिखा। 1880 के दशक में ताराबाई शिंदे और पंडिता रमाबाई ने उच्च जाति की महिला की दयनीय स्थिति पर लिखा।
(ख) गरीब जनता :-
उत्तर :- (i) गरीब लोगों ने अपने प्रवक्ताओं को अंबेडकर, पेरियार, फुले आदि विद्वानों और जागरूक समाजिक नेताओं में पाया।
(ii) 19वीं सदी के उपन्यास लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी का चित्रण प्रस्तुत करते थे।
(iii) सस्ती पुस्तकों के प्रकाशन से गरीब पाठकों की संख्या में वृद्धि हुई।
(iv) वुडब्लॉक बनना एक व्यवसाय बन गया था। इसने रोजगार के अवसरों को बढ़ा दिया था।
इस प्रकार भारत की मुद्राण संस्कृति के विकास से गरीब लोग लाभान्वित हुए।
(ग) सुधारक :-
उत्तर :- (i) समाज सुधारको ने सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया।
(ii) सुधारको ने पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा सती प्रथा, विधवा विवाह, बाल विवाह, मूर्ति पूजा, जाति प्रथा और ब्राह्मणवाद को समाप्त करने हेतु लेख लिखे।
(iii) सुधारक ज्योतिबा फुले ने गुलामगिरी (1871ई॰) में जाति प्रथा के अत्याचारों को छापा।
(iv) भीमराव अंबेडकर, ई.वी. रामास्वामी ने जाति पर जोरदार ढंग से लिखा! जिसे पूरे भारत में पढ़ा गया।
(v) महिलाओं की शिक्षा, विधवा विवाह, विधवा जीवन और राष्ट्रीय मुद्दों पर लेख लिखकर सुधारकों ने लोगों में जन चेतना को जगाया।
** चर्चा करें **
1. 18 वीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा? (Jac 2011)
उत्तर :- 18वीं सदी के मध्य तक यह आम विश्वास बन चुका था कि किताबों के द्वारा प्रगति और ज्ञानोदय होता है। कई सारे लोगों का मानना था कि किताबें दुनिया बदल सकती हैं। वे निरंकुशवाद और आतंकी राजसत्ता से समाज को मुक्ति दिलाकर ऐसा समय लाएगी, जब विवेक और बुद्धि का राज होगा। 18वीं सदी फ्रांस के एक उपन्यासकार लुई सेबेस्तिएँ मर्सिए ने घोषणा की “छापाखाना प्रगति का सबसे ताकतवर औजार है इससे बन रही जन्नत की आंधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा”। ज्ञानोदय को लाने और निरंकुशवाद को नष्ट करने में छापाखाना की भूमिका के बारे में मार्सिए ने कहा :- “हे निरंकुशवादी शासकों अब तुम्हारे कांपने का वक्त आ गया है, आभासी लेखक की कलम के जोर के आगे तुम हील रुठोगे।”
2. कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक- एक उदाहरण देकर समझाएं। (JAC 2012, 2015)
उत्तर :- प्रत्येक व्यक्ति मुद्रित किताब को लेकर खुश नहीं था। जिन्होंने इसका स्वागत भी किया उनके मन में इसको लेकर कई डर थे। कई लोगों को छपी किताब के व्यापक प्रसार और छपे शब्द की सुगमता को लेकर यह आशंका थी कि ना जाने इसका आम लोगों के जीवन पर क्या असर होगा। भय था कि अगर छपे हुए और पढ़े जा रहे किताबों पर, कोई नियंत्रण नहीं होगा तो लोगों में बागी और अधार्मिक विचार पनपने लगेंगे। अगर ऐसा हुआ तो मूल्यवान साहित्य की सत्ता ही नष्ट हो जाएगी।
उदाहरण :-
युरोप :- 1558 ई॰ में रोमन कैथोलिक चर्च ने प्रतिबंधित पुस्तकों की सूची रखनी शुरू कर दी।
भारत :- वर्नाक्यूलर या प्रेस एक्ट के द्वारा भारत में भाषाई प्रेस पर नियंत्रण स्थापित किया गया।
3. 19वीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ? (Jac 2013, 2016, 2018)
उत्तर:- 19वीं सदी में मद्रासी शहरों में काफी सस्ते किताबें चौक चौराहों पर बेची जा रही थी। जिसके चलते गरीब लोग भी बाजार से उन्हें खरीदने की स्थिति में आ गए थे।
4. मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की? (Jac 2009, 2020)
उत्तर :- मुद्रा संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के उदय और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया जो इस प्रकार हैं :-
(i) यह एक शक्तिशाली माध्यम बन गया जिससे राष्ट्रवादी भारतीय देशभक्ति की भावनाओं का प्रसार, आधुनिक आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों का प्रचार तथा जनसाधारण में जागृत का विकास हुआ।
(ii) प्रेस के माध्यम से राष्ट्रवादियों के लिए अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचाना आसान हो गया।
(iii) हिंदी में भारतेंदु हरिश्चंद्र और मैथिलीशरण गुप्त उर्दू में अल्ताफ हुसैन हाली बांग्ला में रविंद्र नाथ ठाकुर, बंकिम चंद्र चटर्जी, मराठी में विष्णु शास्त्री चिपलंकर, तमिल में सुब्रामण्य भारती और असमी में लक्ष्मीनाथ बेज बरुआ जैसे देशभक्त साहित्यकारों ने भारतवासियों को स्वतंत्रता का मूल्य समझाया।
(iv) मुद्रण ने जनसाधारण को स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व समर्पण करने की प्रेरणा दी। बंकिम चंद्र चटर्जी रचित गीत वंदे मातरम भारत के जन-जन के लिए स्वाधीनता का स्रोत बन गया।
अतः मुद्रण संस्कृति के विकास ने भारतीयों के आत्म गौरव और देश-प्रेम को जागृत करके उन्हें स्वाधीनता के मार्ग की ओर अग्रसर किया।
** महत्वपूर्ण प्रश्न ***
1. छपाई से विरोधी विचारों के प्रसार को किस तरह बल मिलता था? संक्षेप में लिखें।
उत्तर :- यूरोप में कुछ उच्च या अभिजात लोगों का मानना था कि छपी सामग्री राजशाही और धार्मिक व्यवस्था के वर्तमान तंत्र के विरुद्ध विद्रोह का संदेश फैला सकती है। इसने उन्हें छपी सामग्री से भयभीत बना दिया।
2. कुछ इतिहासकार ऐसा क्यों मानते हैं कि मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए जमीन तैयार की?
उत्तर :- (i) छपाई के चलते ज्ञानोदय से वॉल्तेयर और रूसों जैसे चिंतकों की विचार का प्रसार हुआ।
(ii) सामूहिक रूप से उन्होंने परंपरा, अंधविश्वासों, निरंकुशवाद की आलोचना पेश की। उन्होंने ‘तार्किकता’ का प्रचार- प्रसार किया। इसने लोगों को राजशाही के विरुद्ध विद्रोह हेतु प्रेरित किया।
(iii) मुद्रण ने सारे पुराने मूल्यों, संस्थाओं और कायदों पर आम जनता के बीच बहस- मुबाहीसे और धार्मिक तथा राजनीतिक मुद्दों पर विचार- विमर्श का मार्ग प्रशस्त किया।
(iv) कार्टून और कैरीकेचरों (व्यंग्य चित्रों) में यह भाव उभरता था कि जनता तो मुश्किल में फंसी है। जबकि राजशाही भोग- विलास में डूबी हुई है। इसने क्रांति की ज्वाला भी भड़काई।
** अतिरिक्त महत्वपूर्ण प्रश्न **
संक्षिप्त उत्तरीय प्रश्न
1. खुशीनवीसी :- किसी कार्य को करने में निपुण।
2. बेलम :– चर्म-पत्र या जानवरों के चमड़े से बनी लेखन की सतह।
3. कातिब :- हाथ से लिखाई करने वाले लोग।
4. प्लाटेन :- लेटरप्रेस छपाई में प्लाटेन बोर्ड होता है जिसे कागज के पीछे दबाकर टाइप की छाप ली जाती थी। पहले यह बोर्ड काठ का होता था बाद में इस्पात का बनने लगा।
5. चैपबुक :- पॉकेट बुक के आकार की किताबों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द।
6. उलेमा :- इस्लामी कानून और शरिया के विद्वान।
7. फतवा :- अनिश्चय या असमंजस की स्थिति में, इस्लामी कानून जानने वाले विद्वान, समान्यतः मुफ्ती के द्वारा की जाने वाली वैधानिक घोषणा।
8. सुलेखन:- सुंदर लेखन की कला को सुलेखन कहा जाता है।
9. पांडुलिपियां:- हाथ से लिखे गए लेख को पांडुलिपियां कहा जाता था।
10. राजद्रोह:- सरकार के विरुद्ध लेख और भाषण को राजद्रोह कहा जाता है।
11. गाथा-गीत:- लोकगीतों के ऐतिहासिक वर्णन को गाथा-गीत कहते हैं।
12. निरंकुशवाद:- एक व्यक्ति की इच्छा वाले शासन को निरंकुशवाद करते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
13. मुद्रण की सबसे पहली तकनीक कहां विकसित हुई? प्राचीन काल में पुस्तक छपाई कैसे होती थी?
उत्तर :- मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई। यह छपाई हाथ से होती थी। लगभग 594 ई॰ से चीन में स्याही लकड़ी के ब्लॉक या तख्ती पर कागज को रगड़कर किताबें छापे जाने लगी थी। चूँकि पतले छिद्रित कागज के दोनों तरफ छपाई संभव नहीं था। इसीलिए पारंपरिक चीनी किताबें एकाॅर्डियन शैली में किनारों को मोड़ने के बाद सिल कर बनाई जाती थी।
14. युरोप में पुस्तकों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए क्या कोशिश की गई?
उत्तर :- पुस्तकों की मांग बढ़ने के साथ-साथ युरोप भर के पुस्तक विक्रेता विभिन्न देशों में निर्यात करने लगे। अलग-अलग जगहों पर पुस्तक मेले लगने लगे। बढ़ती मांग की आपूर्ति के लिए हस्तलिखित पांडुलिपियों के उत्पादन के भी नए तरीके के बारे में विचार किया जाने लगा। अब सिर्फ अमीर लोगों के यहां सुलेखाक या कातिब नहीं पाए जाते थे बल्कि पुस्तक विक्रेता भी अब उन्हें रोजगार देने लगे। किताब की अबाध बढ़ती मांग हस्तलिखित पांडुलिपियों से पूर्ण नहीं होने पर वुडब्लाॅक प्रिंटिंग लोकप्रिय होता गया।
15. मुद्रण क्रांति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :- मुद्रण (छापाखाना) का आविष्कार केवल तकनीकी दृष्टि से नाटकीय बदलाव की शुरुआत ही नहीं था। पुस्तक उत्पादन के नए तरीकों ने लोगों की जिंदगी बदल दी। इसकी बदौलत सूचना और ज्ञान से, संस्था और सत्ता से उनका रिश्ता ही बदल गया। इससे लोकचेतना बदली और चीजों को देखने का दृष्टिकोण भी बदला।
16. मुद्रण की नई तकनीक के साथ पढ़ने की नई संस्कृति कैसे पैदा हुई?
उत्तर :- 17 वीं सदी तक आते-आते चीन में शहरी संस्कृति के फलने- फूलने से छपाई के इस्तेमाल में भी विविधता आई। अब मुद्रित सामग्री के उपभोक्ता सिर्फ विद्वान और अधिकारी नहीं रहे। व्यापारी अपने दैनिक कारोबार की जानकारी लेने के लिए मुद्रित सामग्री का इस्तेमाल करने लगे। पढ़ना एक शौक भी बन गया। नए पाठक वर्ग को काल्पनिक किस्से कविताएं, आत्मकथाएं, शास्त्रीय साहित्यिक कृतियों के संकलन और रूमानी नाटक पसंद थे। अमीर महिलाओं ने पढ़ना शुरू किया और कुछ ने स्वरचित काव्य और नाटक भी छापे।
पढने की यह नई संस्कृति एक नई तकनीक के साथ आई। 19वीं सदी के अंत में पश्चिमी शक्तियों द्वारा अपनी चौकियां स्थापित करने के साथ ही पश्चिमी मुद्रण तकनीक और मशीनी प्रेस का आयात भी हुआ। पश्चिमी शैली के स्कूलों की जरूरतों को पूरा करने वाला शंघाई प्रिंट-संस्कृति का नया केंद्र बन गया। हाथ की छपाई की जगह अब धीरे-धीरे मशीन या यांत्रिक छपाई ने ले ली।
17. मुद्रण तकनीक से पहले ज्ञान स्थानांतरण कैसे किया जाता था?
उत्तर :- मुद्रण तकनीक से पहले आमलोग मौखिक संसार में जीते थे। वे धार्मिक किताबों का वाचन सुनते थे, गाथा, गीत उनको पढ़कर सुनाए जाते थे और किस्से भी उनके लिए बोल कर पढ़े जाते थे। ज्ञान का मौखिक लेनदेन ही होता था। लोग बाग समूह में ही दास्तान सुनाते या कोई आयोजन देखते आए थे।
18. प्रकाशन के क्षेत्र में बटाला का क्या योगदान था?
उत्तर :- बंगाल में केंद्रीय कलकत्ता का एक पूरा क्षेत्र बटाला लोकप्रिय किताबों के प्रकाशन को समर्पित हो गया। यहां पर आप धार्मिक गुटकों और ग्रंथों के सस्ते संस्करण तो खरीद ही सकते थे, जो आमतौर पर अश्लील और सनसनी खेज समझा जाता था वह भी उपलब्ध था। 19वीं सदी के अंत तक ऐसी बहुत सारी किताबों पर काठ की तख्ती और लिथोग्राफी रंगों की मदद से प्रचुर मात्रा में तस्वीरें उकेरी जा रही थी। फेरीवाला बटाला के प्रकाशन लेकर घर-घर घूमते थे। जिससे महिलाओं को खाली समय मनपसंद किताबें पढ़ने में सुविधा हो गई।
19. 19वीं शताब्दी के पत्र-पत्रिकाओं में कैरिकैचर और कार्टूनों के माध्यम से क्या दर्शाया जाता था?
उत्तर:- 1870 के दशक तक पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक राजनीतिक विषयों पर टिप्पणी करते हुए कैरिकैचर और कार्टून छपने लगे थे। कुछ में शिक्षित भारतीयों के पश्चिमी परिधान और पश्चिमी अभिरुचि का मजाक उड़ाया जाता था। जबकि कुछ अन्य में सामाजिक परिवर्तन को लेकर एक शंका प्रकट की गई। समाजवादी व्यंग्यचित्रों में राष्ट्रवादियों का मजाक उड़ाया जाता था। तो राष्ट्रवादी भी समाजवादी सत्ता पर निशाना साधने में पीछे नहीं रहे।
20. 19वीं शताब्दी के भारतीय महिला लेखिकाओं पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिए।
उत्तर :- 19वीं सदी में अनेक परंपरावादी हिंदू मानते थे कि पढ़े-लिखे का कन्याएं विधवा हो जाती हैं। इसी तरह रूढ़िवादी मुसलमानों को लगता था कि उर्दू के रूमानी अफसाने पढ़कर औरतें बिगड़ जाएंगीं। इसलिए औरतों के पढ़ने पर प्रतिबंध होता था। कभी- कभार बागी औरतों ने इन प्रतिबंधों को अस्वीकार भी किया। उत्तर भारत के रूढ़िवादी मुसलमान परिवार की एक ऐसी लड़की जिसने गुपचुप ढंग से ना सिर्फ पढ़ना सिखा बल्कि लिखा भी। पूर्वी बंगाल में 19वीं सदी के प्रारंभ में कट्टरवादी परिवार में ब्याही कन्या रशसुंदरी देवी ने रसोई में छिप-छिप कर पढ़ना सिखा। बाद में चलकर उन्होंने “आमार जीवन” नामक आत्मकथा लिखी। जो 1876 ई॰ में प्रकाशित हुई। यह बंगाली भाषा में प्रकाशित पहली संपूर्ण आत्मकहानी थी।
कैलाशबासनी देवी जैसी महिलाओं ने 1860 के दशक में महिलाओं के अनुभवों पर लिखना शुरू किया- कैसे वे घरों में बंदी और अनपढ़ बनाकर रखी जाती हैं। कैसे वे घर भर के काम का बोझ उठाती हैं, और जिनकी वो सेवा करती हैं वहीं उन्हें कैसे फटकारते हैं। 1880 ई॰ के दशक में महाराष्ट्र के ताराबाई शिंदे और पंडिता रमाबाई ने उच्च जाति की नारियों की दयनीय हालात के बारे में जोश और रोष से लिखा।
21. भारत में प्रिंटिंग प्रेस के आगमन पर टिप्पणी लिखे।
उत्तर :- प्रिंटिंग प्रेस पहले पहल 16 वीं सदी में भारत के गोवा में पुर्तगाली धर्म प्रचारकों के साथ आया। जेसुईट पुजारियों ने कोंकणी सीखी और कई पुस्तकें छापी। 1674 ई॰ तक कोंकणी और कन्नड़ भाषा में लगभग 50 किताबें छप चुकी थी। कैथोलिक पुजारियों ने 1579 ई॰ में कोचिंन में पहली तमिल किताब छपी और 1713 ई॰ में पहली मलयालम किताब छापने वाले भी कैथोलिक थे। डच प्रोस्टेट धर्म- प्रचारकों ने 32 तमिल किताबें छापी जिनमें से कई पुरानी किताबों का अनुवाद था। जेम्स आगस्ट हिक्की ने 1780 में बंगाल गजट नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का संपादन शुरू किया। 18वीं सदी के अंत तक कई सारी पत्र पत्रिकाएं छपने लगी। कुछ हिंदुस्तानी भी अपने अखबार छापने लगे थे। ऐसे प्रयासों में पहला था राजा राममोहन राय के करीबी रहे गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा प्रकाशित बंगाल गजट।
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प्रस्तुतकर्ता
www.gyantarang.com
संकलन
महेंद्र प्रसाद दांगी
शिक्षक
Class 10 History मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया प्रश्नोत्तर in hindi