खोरठा भाषा के लेखक परिचय, Khortha writer introduction in hindi

खोरठा भाषा के लेखक परिचय | Khortha writer introduction in hindi

खोरठा भाषा के लेखक परिचय के तहत प्रसिद्ध लेखकों के नाम तथा उनकी प्रसिद्ध रचनाएं देखने जा रहे हैं। खोरठा भाषा झारखंड के बड़े क्षेत्र में क्षेत्रीय भाषा रूप में बोली जाने वाली भाषा है। कुछ लोग खोरठा को देहाती भाषा के रूप में जानते हैं। पर ये सच नहीं है। इस भाषा का अपना साहित्य और व्याकरण है। इन क्षेत्रों में खोरठा भाषा ही मातृभाषा के रूप में जानी जाती है। झारखण्ड में JPSC, JSSC, JTET, CGL इत्यादि प्रतियोगी परीक्षाओं के अतिरिक्त स्कूल एवं काॅलेजों में खोरठा को विषय के रूप में भी अध्ययन – अध्यापन किया जाता है। अतः यह पोस्ट खोरठा भाषा के अध्ययनार्थियों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है

खोरठा भाषा के लेखक परिचय (Khortha writer introduction)

☆ राजा दलेल सिंह
☆ तितकी राय
भुनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’
श्रीनिवास पानुरी
☆ डॉ एके झा
☆ शिवनाथ प्रमाणिक
☆ विश्वनाथ दसौंधी ‘राज’
☆ सुकुमार
☆ संतोष कुमार महतो
☆ चितरंजन महतो ‘चित्रा’
☆ डॉ गजाधर महतो प्रभाकर
☆ डॉ बीएन ओहदार
☆ डॉ विनोद कुमार
☆ श्याम सुंदर महतो ‘श्याम’
☆ श्याम सुंदर केवट ‘रवि’
☆ जनार्दन गोस्वामी ‘व्यथित’
☆ विश्वनाथ प्रसाद ‘नागर’
☆ मो• सिराजुद्दीन अंसारी ‘सिराज’
☆ परितोष कुमार प्रजापति
दिनेश कुमार ‘दिनमणि’
☆ बंशीलाल बंशी
महेंद्र प्रबुद्ध
☆ गिरधारी गोस्वामी
विनय तिवारी
☆ डॉ आनंद किशोर दांगी

खोरठा भाषा के लेखक परिचय (Khortha writer introduction)

☆ राजा दलेल सिंह :-

जन्म:-……..
मृत्यु:-……..

खोरठा के प्राचीन और प्रारंभिक कवि के रूप में रामगढ़ राजा दलेल सिंह “दलशाह” को जाना जा सकता है। क्योंकि इससे पूर्व का खोरठा साहित्य के बारे में पता नहीं चल पाता है। हो सकता है इससे पूर्व खोरठा साहित्य की रचना की गई हो पर इसके बारे में वर्तमान में कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। हालांकि खोरठा के विद्वानों का मानना है कि खोरठा भाषा की उत्पत्ति हिंदी से पूर्व हुई है।

प्रसिद्ध रचना

• शिव सागर (महाकाव्य)
• राम रसार्नव (काव्य)
• राज रहस्य (काव्य)
• गोविंद लीलामृत (काव्य)

• कुछ प्रसिद्ध पंक्ति

गोविंद लीलामृत से-
“सुमरहुं श्री जगन्नाथ, भजिलैहूं बैजनाथ, जमको का करे।
लेत नाम लेगिहें हरिहरि सरिख, नाहक नर चिंता का करे।

शिव सागर से-
“मूल पेय ताम्बुल फल, भज जहां कै आय।
शिव समपिं भोजन करे, कहै नृपति दलशाह।।

राजा दलेल सिंह के पुत्र रूद्र सिंह भी कवि थे। उन्होने “ज्ञान सुधाकर” की रचना की। वहीं दलेल सिंह के दरबारी कवि पदमदास द्वारा रचित ‘काव्य मंजरी‘ काव्य का पता चलता है।
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☆ तितकी राय :-

जन्म:-……..
मृत्यु:-……..

तितकी राय गीत या कविता रचने में समय नहीं लेते थे। वे घटना विशेष के आधार पर तुरंत ही कविता/दोहा रच कर सुना दिया करते थे। “खोरठाक खूंटा तितकी राय” पुस्तक में मो• सिराजुद्दीन अंसारी ‘सिराज’ ने तितकी राय के बारे में वर्णन किया है। ग्राम तांतरी में एक जमींदार बुटुलायक की मां की मृत्यु हो गयी थी। मां के भोज-भंडारा के दिन तितकी राय को भी बुलाया गया था। परन्तु तितकी राय को मान सम्मान नहीं दिया। तितकी राय ने गुस्से से एक कविता की रचना कर भोज में उपस्थित लोगों को सुनाने लगे-

“माइके काहे लेगला कांसी, बांध पेंदाह हलो पीपर गाछ,
टाइंग के काहे नाम देलहाक फांसी।
माइके काहे ……..

मोटर उपर तीन दिन भेलो, बसाय लागल बेसी,
छाटो जाइत पोडाइ देलो, खाली डोम घांसी।
माइके काहे ………

घरे हलो रोटी मिठाइ, सब रहलो बासी,
आस-पड़ोसियाक नेता दयके, करले हें लोक हांसी।
माइके काहे …….

तितकी राय के इस कविता के सुनकर जमींदार नाराज हो गया और तितकी राय को घर में बंद कर दिया, और जमींदार बोला जब तक मां के नाम से अच्छा कविता नहीं सुना लेते हैं तबतक बंद रहोगे। तितकी राय ने तुरंत ही घर के अंदर से खोरठा में कविता बोला –
” लायक जी! खोइल दे अब किवारी
हमर कविता भइ गेलो तयारी”

इस बात को सुनकर दरवाजा खोल दिया गया, और तितकी राय ने कविता जमींदार साहब को सुनाने लगे। जिसका कुछ अंश यहां प्रस्तुत किया जा रहा है-

“तांतरी के उगन लाइक पुन्यमान हला,
उनखर बेटा इगो जनमल हला,
बुटु आर गोरीलाल नाम जाहरी भेला,
आस-पास सोभी जान हला,
सावन महीनांय भाइ गंगा पाइ गेल,
दुइयो भाएक एके बुढ़ी गंगा पाइ गेला,
बजना बजाय एके मति भेला,
बजना बजाय बुढ़ीक खाटी जे उठइला,
बुढ़ी मायेक पुइन लडी गेला,
उनइस आदमी मिइल दामोदर पार भेला……

इसी तरह तितकी राय ने अनेक कविताओं की रचना की पर दुर्भाग्य से लिखित रूप में उनकी रचनाएं उपलब्ध नहीं है। मौखिक रूप में समाज में कहीं-कहीं बुजुर्ग और गवैया के पास अभी भी है, जिसे खोरठा समाज को पुस्तक के रूप में संकलन करने की आवश्यकता है। हालांकि मो• सिराजुद्दीन सिराज ने “खोरठाक खूंटा तितकी राय” पुस्तक में उनकी कुछ कविताओं को संकलन करने की कोशिश की है।
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भुनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’

जन्म:- 17 मार्च, 1908 ई•
मृत्यु:- 17 सितंबर, 1984 ई•
उपनाम:- ब्याकुल
पिता:- बलदेव प्रसाद उपाध्याय
माता:- शांति देवी
पत्नी:- सरस्वती शारदा देवी
आजा (दादा) :- पं. अयोध्या प्रसाद उपाध्याय
जन्म स्थान:- ग्राम – महथाडीह, जिला – गिरिडीह
निवास स्थल:- बिशनुगढ़, हजारीबाग

खोरठा भाषा साहित्य के प्रारंभिक दौर में महान खोरठा कवि रूप में भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल जी को जाना जाता है। हालांकि शुरूआती दौर में वे उपनाम में ‘गिरिडीहवी‘ लिखा करते थे। ये केवल रचनाकार ही नहीं बल्कि एक मंचकार, गायक और वादक भी थे। इनके समय में खोरठा भाषा का साहित्य रूप नहीं के बराबर था। लेकिन खोरठा भाषा में गीत-नाद, खेमटा-झुमटा, झुमर, डोहा, लोकगीत, लोककथा, बुझवल, कहावत का प्रचलन था। इन सबों को भी उन्होंने साहित्य रूप में लिखने का प्रयास किया है।

पारिवारिक जीवन

भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘ब्याकुल’ जी का जन्म गिरिडीह जिला के महथाडीह में 1908 में हुआ था। परन्तु उनका परिवार हजारीबाग के विष्णुगढ़ में रहने लगा। इनके पिता का नाम पं. बलदेव प्रसाद उपाध्याय है। ब्याकुल जी के जन्म के 6 महीने बाद ही उनके पिता की मृत्यु हो गयी। इसके बाद उनका लालन-पालन उनके आजा पं. अयोध्या प्रसाद उपाध्याय ने किया था। अपने आजा से ही उन्हे प्रारंभिक शिक्षा मिली। ब्याकुल जी का मन घर में नहीं लगता था। इस लिए वे 11 वर्ष की अवस्था में ही घर से भाग कर कांसी (वनारस) चले गये थे। हालांकि कुछ दिन बाद वे वापस भी आ गये थे। भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘ब्याकुल’ ने दुसरे जाति के ‘सरस्वती देवी’ से विवाह किया था।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

1925 में ब्याकुल जी गांधीजी के संपर्क में आये और स्वतंत्र आंदोलन में कूद पड़े। वे कई बार जेल भी गये। 1930 में जेल में ही उनकी मुलाकात हिन्दी के प्रसिद्ध रचनाकार ‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ से हुआ। जिनके प्रभाव से उन्होंने जेल में ही ‘कैदी‘ नाम से रचना की। वे देश को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारी गीत खोरठा और अन्य भाषा में लिखने लगे। लोगों में देश प्रेम की भावना भरने लगे। ऐसा माना जाता है कि उनकी रचनाओं को अंग्रेज अधिकारियों द्वारा जला दिया गया था, क्योंकि उनकी रचना क्रांतिकारी थी।

देश भक्ति से ओतप्रोत

“नौ जवां! या तो गुलामी को मिटाकर दम ले,
वर्ना अच्छा है कि बस सर को कटाकर दम ले।”

उपलब्धि

भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘ब्याकुल‘ ने खोरठा भाषा में रचनाएं तब की जब खोरठा बोलना और लिखना लाज या अपमान समझते थे। तब उन्होंने खोरठा भाषा में लिखना शुरू किया।  इस लिए उन्हे खोरठा के शुरूआती रचनाकार (साहित्यकार) के रूप में भी जाना जा सकता है। हजारीबाग के पहले सांसद स्वतंत्रता सेनानी राम नारायण सिंह ने ब्याकुल जी को राष्ट्रीय कवि कहा करते थे। रामगढ़ में 1940 में हुए कांग्रेस के अधिवेशन को सफल बनाने में ब्याकुल जी बड़ा योगदान रहा है।

इनकी लिखी कविता प्रताप, वर्तमान, कर्मबीर, लोकमान्य, विश्वामित्र, हिन्दू, पंच, हिन्दुस्तान, बालक, जनता और जागृति जैसे पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। ब्याकुल जी की जीवनी “परितोष कुमार प्रजापति” ने खोरठा भाषा में लिखी है। जो नवम् कक्षा के खोरठा पाठ्यपुस्तक में शामिल की गयी है। 1989 में खोरठा साहित्य – संस्कृति परिषद, बोकारो द्वारा उन्हें “श्रीनिवास पानुरी स्मृति सम्मान- 1989” प्रदान किया गया।

प्रसिद्ध रचना

उनकी रचनाएं समय-समय पर बिसुनगढ़ स्थित “सुखद खोरठा साहित्य कुटीर” से प्रकाशित होता रहा है। ब्याकुल जी केवल खोरठा में ही रचनाएं नहीं की है बल्कि हिन्दी और उर्दू में भी इनकी रचनाएं है। इनकी रचनाएं समाज में जागरूकता लाती है। इनकी रचनाओं में यहां के मिट्टी और मनुष्य के प्रति प्रेम, दर्द, बच्चे को दुलार का बखान मिलता है। इनकी गीत और कविता शिक्षा, सामाजिक कुरीति, सामाज में जोश भरने वाला है। व्याकुल जी कि रचनाएँ निम्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रही।

• प्रताप
• वर्तमान
• कर्मबीर
• लोकमान्य
• विश्वमित्र
• पंच
• हिन्दु
• हिन्दुस्तान
• बालक
• जनता आर जागृति

बच्चे को दुलारता कवि की कुछ पंक्ति

“हामर बाबू, हामर सोना, हामर सुगा पढे गेल,
सुन गे अकली, सुन गे खगिआ, उंच करेजा आइझ भेल।”

“डंडवें धोती, हंथवे पोथी, देहिएं अंगा,
मथवे तेल, ठुमकी ठुमकी डहरें चललइ, देखी अंखिया तिरपित भेल।”

“पाटी चिरी सिथा चमकइल, देलइ काजर दुइओ अंखिऐ,
इसकुलवा में बाबु भगनी, के दउसइन संगे खेले खेल।
सुन गे अकली, सुन गे खगिआ, उंच करेजा आइझ भेल।”
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भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहां क्लिक करें

भुवनेश्वर दत्त शर्मा व्याकुल जी की विडियो में संपूर्ण परिचय

भुवनेश्वर दत्त शर्मा व्याकुल जी mcqs coming soon

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स्रोत:-
• खोरठाक घरडिंडा – तारकेश्वर महतो ‘गरीब’
• दू डाहर परास फूल
• खोरठा गइद पइद संगरह

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☆ श्रीनिवास पानुरी

पुकारू नाम:- चिनिवास, कवि जी
बचपन का नाम:- श्रीनिबास पानुरी
साहित्यिक नाम:- श्रीनिवास पानुरी
जन्म:- 25 दिसंबर 1920
मृत्यु:- 07 अक्टूबर 1986
पिता:- शालीग्राम पानुरी
माता:- दुखनी देवी
पत्नी:- मूर्ति देवी
जन्म स्थान:- ग्राम- बाड़ाजमुआ, पोस्ट- कल्याणपुर, थाना- बरवाअड्डा, जिला- धनबाद, राज्य- झारखंड
विचारधारा:- मानवतावादी/जनवादी
पानुरी जी के जन्म दिवस 25 दिसंबर को “खोरठा दिवस” के रूप में मनाया जाता है।

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श्रीनिवास पानुरी

खोरठा भाषा के सबसे बड़ा रचनाकारों में से एक श्रीनिवास पानुरी जी को जाना जाता है। खोरठा के एक महान रचनाकार विश्वनाथ दसौंधी ‘राज’ ने श्रीनिवास पानुरी जी को खोरठा भाषा के “भीष्म पितामह” की संज्ञा दी है। अपनी लेखनी के बलबूते खोरठा जगत में ध्रुव तारा की भांति चमक रहे हैं। उनकी रचनाएं देश और समाज को दिशाएं प्रदान कर रही है। हिंदी साहित्य में जो स्थान भारतेंदु हरिश्चंद्र का है वही स्थान खोरठा में श्रीनिवास पानुरी जी का है। उनका जन्म 25 दिसंबर 1920 को “बरवा अड्डा” धनबाद में हुआ था।

पारिवारिक जीवन

25 दिसंबर 1920 को झारखंड के कोयला नगरी धनबाद जिला के बरवाअड्डा थाना, कल्याणपुर बाड़ाजमुआ गांवमें कोयले के माटी के बीच एक अनमोल हीरे ने जन्म लिया, जिसका नाम था श्रीनिबास पानुरी! ऐसा माना जाता है कि पानुरी जी के पुर्वज बिहार के नावादा जिले के बेलदारी गांव से आकर कोयला नगरी धनबाद के बरवाअड्डा के कल्याणपुर में बस गये। पानुरी जी की माता का नाम दुखनी देवी तथा पिता का नाम शालीग्राम पानुरी है। इनका बचपन का नाम श्रीनिबास पानुरी था जो बाद में साहित्य लेखन के दौरान इनका नाम श्रीनिवास पानुरी हो गया। इनके पांच पुत्र और तीन पुत्रियां हैं।

1939 में जब पानुरी जी 19 वर्ष के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गयी, तत्पश्चात 1944 में मां की भी मृत्यु हो गयी। इस कारण परिवार का सारा बोझ उनपर आ गया। परिवार के रोजी – रोटी के लिए उन्होंने धनबाद के पुरानी बाजार में एक पान की दुकान (गुमटी) खोल ली। और इसी पान गुमटी में पान बेचने के साथ – साथ खोरठा भाषा में साहित्य की रचना करते गये।

खोरठा पत्रिका का संपादन


खोरठा भाषा के विकास के लिए उन्होंने 1957 में “मातृभाषा” और 1970 में “खोरठा” पत्रिका का संपादन किया। तितकी खोरठा पत्रिका में मार्गदर्शन की भूमिका निभाई।

प्रकाशित रचना

वर्ष 1954 में पानुरी जी की पहली खोरठा रचना प्रकाशित हुई जिसका नाम था “बाल किरण” (कविता संग्रह)। तत्पश्चात श्रीनिवास पानुरी ने विविध विधाओं में खोरठा भाषा में रचनाएं की है।

• बाल किरिण (कविता संग्रह)
• तितकी (कविता संग्रह)
• दिव्य ज्योति (कविता संग्रह)
• मेघदूत (कालीदास द्वारा रचितरचित मेघदूत का खोरठा अनुवाद), प्रकाशन -1968 ई. में
• रामकथामृत (खण्डकाव्य)
• मालाक फूल (संयुक्त कविता संग्रह)
• आंखिक गीत (72 कविताओं का संग्रह), प्रकाशन – 1977 ई. में
• कुसुमी (कहानी)
• समाधान (हिंदी लघु कव्य)
• चाभी -काठी (नाटक), प्रकाशन- 2006 में
• सबले बीस (कविता संग्रह)
• उद्भासल कर्ण (नाटक), प्रकाशन- 2012 में
• अग्नि परीखा (खोरठा लघु काव्य)

अप्रकाशित रचना

• जुगेक गीता (कम्यूनिस्ट मैनिफेस्टो की खोरठा अनुवाद)
• रक्ते भिंजल पांखा (8 कहानी का संग्रह)
• मधुक देसें (कविता संग्रह)
• मोहभंग (काव्य)
• हामर गाँव
• भ्रमर गीत
• मोतिक चूर
• परिजात (कविता संग्रह)
• अजनास (नाटक) इत्यादि

खोरठा पइद साहित्य में योगदान

श्रीनिवास पानुरी जी की कविताएं मुख्यत: झारखण्ड की समस्याओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी और शोषण से मुक्ति पाने से संबंधित दिखाई पड़ती है। उन कविताओं की कुछ पंक्तियां यहां देखा जा सकता है। 1954 में पानुरी जी की पहली खोरठा रचना “बाल किरण” के रूप में प्रकाशित हुई जो एक कविता संग्रह था।

मानभूमेक माटी तरे, हीरा मोती मानिक फरे,
ताव हिआंक लोक पेटेक जलांञ मोरे।

खइट खइट दिन राइत, ककर नखइ पेट भात,
ककर नाइ देहिं लुगा, ककर कांपे जोड़े गात,
ककर मुंहले बहरांञ खन छोलल छोलल बात।

नाच बंदर नाच रे, मोर चाहे बांच रे ।
ओकर खातिर दूध भात, तोर खातिर छाछ रे।
ओकर खातिर उंछ दलान, तोर खातिर गाछ रे।

आइझ नाञ्  तो काइल, हमर बात माने हतो।
गोडेक कांटा, मुंहें धइर टाने हतो।

☆ खोरठा गइद साहित्य में योगदान

श्रीनिवास पानुरी जी का खोरठा गद्य साहित्य की शुरुआत नाटक से मानी जाती है। उन्होंने खोरठा में 1963 में ‘उद्भासल कर्ण’ नामक नाटक लिखी थी। जो महाभारत की कहानी पर आधारित था। इस नाटक को रंगमंच पर खेला गया था। पानुरी जी का दुसरा नाटक ‘चाभी – काठी’ है। जो महाजनी सूदखोरी प्रथा पर लिखी गयी है। इसके अलावा पानुरी जी ने गद्य विधा में कहानी के रूप में “रकते भींजल पांखा” में पांच कहानी का संग्रह लिखा है। इसमें मनबोध, जादू, बदला, कुसमी और रकते भींजल पांखा कहानियाँ शामिल है।

पानुरी जी को दिये गये उपनाम

खोरठा भाषा के क्षेत्र में दिये योगदान के कारण विभिन्न खोरठा विद्वानों ने श्रीनिवास पानुरी जी को विभिन्न उपनामों से अलंकृत किया है।

• पानुरी जी समकालीन और खोरठा पत्रिका तितकी के पहले संपादक विश्वनाथ दसौंधी ‘राज’ जी ने पानुरी जी को “खोरठा के भीष्म पितामह” के नाम से संबोधित किया है।
• खोरठा बेजोड़ विद्वान डॉ ए के झा ने पानुरी जी को “खोरठा का अक्षय बोर” कहा है।
प्रदीप कुमार ‘दीपक’ ने पानुरी जी को “खोरठा का ध्रुवतारा” कहा है।
पंडित रामदयाल पाण्डेय ने पानुरी जी को “खोरठा का बाल्मीकि” कहा है।
• खोरठा भाषा के रचनाकार श्याम सुंदर महतो ‘श्याम‘ ने एक आलेख में पानुरी जी को “खोरठा का टैगोर” से संबोधित किया है।
विकल शास्त्री ने श्रीनिवास पानुरी जी को “खोरठा का नागार्जुन” के नाम से संबोधित किया है।
• तितकी के संपादक शांति भारत ने पानुरी जी पर लिखे एक लेख में उन्हें “बरवाअड्डा अखइ बोर” से संबोधित किया है।
• उभरते हुए खोरठा भाषा के लेखक महेन्द्र प्रसाद दांगी ने पानुरी जी को “खोरठा के अनंत पुरूष” से संबोधित किया है।
• “खोरठा शिष्ट साहित्य के जनक“, “खोरठा के आदि कवि” और “खोरठा के भारतेन्दु” से भी पानुरी जी को संबोधित किया जाता है।

स्रोत:-
• खोरठाक घरडिंडा – तारकेश्वर महतो ‘गरीब”
• नावां खांटी खोरठा – दिनेश दिनमणि
• दू डाइर जिरहूल फूल – 10th. किताब
• विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग के बेबसाइट www.bvu.ac.in

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☆ डॉ• ए• के• झा (अजीत कुमार झा)

जन्म:- 20 जून 1939 ई•
मृत्यु:- 29 सितंबर 2013 ई•
उपनाम:- झारपात
पता:- ग्राम- चंडीपुर, थाना-कसमार, जिला- बोकारो (झारखण्ड)

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डाॅ ए के झा

खोरठा भाषा को भाषा के रूप में मान्यता और प्रसिद्धि दिलाने में जो स्थान पानुरी जी का है वही स्थान डाॅ• ए• के• झा का है। खोरठा भाषा को खोडर से निकाल कर जनमानस की भाषा तक पहुंचाने में डा. ए के झा का विशेष योगदान रहा है। इन्होंने रात दिन एक कर खोरठा को बुलंदियों तक पहुंचाया। इंडियन साइंस के कई सेमिनार में इन्होंने खोरठा आलेख पढ़ कर खोरठा भाषा को झारखंड के मुख्य क्षेत्रीय भाषा के रूप में पहचान दिलाने में योगदान दिया है।

पारिवारिक जीवन

इनका जन्म बोकारो जिला के चण्डीपुर गांव में 20 जून 1939 ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम लक्ष्मी नारायण झा और माता का नाम कुसुम बाला है। इनकी जीवन संगनी भानुमति हैं। डॉ ए के झा का पूरा नाम अजीत कुमार झा है। इनका उपनाम झारपात है। शुरूआत में वे हाई स्कूल शिक्षक के तौर पर विज्ञान शिक्षक के रूप में कार्य किया। बाद में वे पतरातु थर्मल पावर स्टेशन (PTPS) में स्टोर कीपर के पद पर कार्य करते हुए 30 जून 1999 ई. को रिटायर हुए।

शिक्षा

डा. झा ने मैट्रिक की परीक्षा पेटरवार उच्च विद्यालय से पास की। इंटर (विज्ञान) और स्नातक (विज्ञान) से उन्हों संत कोलम्बस महाविद्यालय, हजारीबाग से पास की।

उपलब्धि/सम्मान

डा. ए के झा भाषा वैज्ञानिक के साथ-साथ मौसम वैज्ञानिक के रूप में भी जाने जाते हैं। झा जी खोरठा को छोड़ हिन्दी, अंग्रेजी, बांग्ला, संथाली, मुण्डारी और सदानी परिवार के अन्य भाषा – नागपुरी, पंचपरगनिया, कुरमाली के भी जानकार थे। डा. ए के झा को मौसम की गहराई से समझ थी। उन्होंने मौसम से संबंधित “धरा-गगन सिद्धांत” का प्रतिपादन किया। 1997 में भारत सरकार के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने उन्हें डॉक्टरेट मानक उपाधि से सम्मानित किया। उन्होंने खोरठा ढाकी छेतर कमिटि, कोठार (रामगढ़) की स्थापना 13 अपैल 1982 ई. को की थी। वे खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद, बोकारो के निदेशक रूप में भी सक्रिय रहे। बोकारो खोरठा कमिटी ने उन्हें खोरठा रत्न, खोरठा सपूत, खोरठा आखरा रत्न, कवि व्यथित सम्मान से सम्मानित किया है।

डा. ए के झा के व्यक्तित्व पर निरंजन महतो ने PhD की है। खोरठा साहित्यकार महेंद्र नाथ गोस्वामी ने झा जी को “खोरठा घारेक मुंधी खूंटा” कहा है। खोरठा में झा जी के अमुल्य योगदान के कारण खोरठा साहित्यकारों ने 1975 से 2000 तक के काल को झा जी के काल कहा है।

प्रसिद्ध रचना

डॉ ए के झा ने खोरठा भाषा में गद्य और पद्य में अनेक रचनाएं की हैं, उनकी रचनाएं आज स्कूल, कॉलेज से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी सिद्ध हो रही है। इनके द्वारा लिखा गया “खोरठा सहित सदानिक व्याकरण” पुस्तक खोरठा भाषा का पहला व्याकरण है। जो खोरठा भाषा के लिए मील का पत्थर है। यहां उनके द्वारा खोरठा भाषा में लिखे गये किताबों को लिखा जा रहा है।

• खोरठाक काठें गइदेक खंडी- 1983 और 2014 में
• खोरठा काठें पइदेक खंडी – 1984 और 2012 में
• झारखंडी भाषा -संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर विचार- 1986
• खोरठा रस, छंद, अलंकार- 1987 और 2011 में
• खोरठा सहित सदानिक बेयाकरन – 1987 और 2010 में
• समाजेक सरजुइत निसइन (प्रबंध काव्य) – 1987 और 2010 में
• मेकामेकी न मेटमाट (नाटक) – 1991 और 2013 में
• कबिता पुरान (बाल कविता संग्रह) – 1995
• सइर सगरठ (उपन्यास)- 2011 और 2014 में
• खोरठा भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन- 2012 में

संपादित एवं सहयोगी के साथ रचनाएं

• एक टोकी फूल (तितकी) – 1984 और 2012 में
• खोरठा लोककथा – 1987 और 2014
• खोरठा गइद-पइद संगरह – 1989 और 2020 में
•‍ दू डाहर जिरहुल फूल (दशम् की पाठ्यपुस्तक)- 2010 और 2015
• खोरठा लोकसाहित- 2012
• दू डाहर परास फूल (नवम् की पाठ्य पुस्तक)- 2013

खोरठा पत्रिका “तितकी” का संपादन

डा. ए के झा ने खोरठा की पत्रिका “तितकी” का संपादन 1983 से 1987 तक किया है। 

कुछ प्रसिद्ध पंक्ति

धर्म व्यवस्था पर

जे भगवानेक केनो भगत, बइन जाहे धरमातमा तुरत।
छुवे नांइ तनियो दोस तकरां, वेस वा मंद कोक वखरा।।
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बुद्धि विवेक पर

मल्किन बुइध बंधाइल नांय
गली गुचाइल बाढ़ले जाइ
कते लोक मोरियो के
बुइध बिचार के बढ़उला
जगतेक निसइन गढ़उला।
(कविता- सवागत से)
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ज्ञान सिखने पर

मोरेक लुइर सीखा संगी
बांचेक आपने आइ जीतो
मोरेक लुइर ले बीच भेलें
इतिहास संचें बांचे देतो।
(कविता – मोरेक लुइर से)
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☆ शिवनाथ प्रमाणिक

जन्म:- 13 जनवरी 1950 ई•

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शिवनाथ प्रमाणित

शिवनाथ प्रमाणिक खोरठा साहित्य में एक बड़ा नाम है। इन्होंने खोरठा भाषा साहित्य का दूसरा महाकाव्य “मइछगंधा” की रचना की है। जो महाभारत के पात्र ‘मत्स्यगंधा‘ पर आधारित है लिखा है। हालांकि इसका प्रकाशन अभी नहीं हो पाया है। दामोदर कोरांञ शिवनाथ प्रमाणित द्वारा रचित एक खंडकाव्य है, जो छह भागों में विभक्त है। इनका जन्म 13 जनवरी 1950 को बैदमारा, बोकारो में हुआ था। इन्हें “मानिक” के उपनाम से भी लोग जानते हैं।

खोरठा साहित्य में बेहतरीन योगदान के लिए इन्हे कई सम्मान मिले। चतरा, जमशेदपुर, बोकारो इस्पात नगर से “काव्य विभूषण पुरस्कार” प्रदान किया गया। झारखंड हिंदी साहित्य संस्कृति मंच रांची के द्वारा भी सम्मानित किया गया।

प्रमुख रचना

• रूसल पुटुस (संपादन, प्रतिनिधि कविता संकलन)
• दामुदेक कोरांञ (मौलिक खण्ड काव्य)
• तातल और हेमाल (कविता संकलन)
• मइछगंधा (महाकाव्य)
• खोरठा लोक साहित्य
• गद्य-पद्य (कार्य. संपादन)
• खोरठा लोककथा (कार्य. संपादन)

कुछ पंक्ति

दामुदरेक कोरांञ (काव्य) से

मेला से-
धप-धप करे लागल, इंजोरियाक राइत
गह-गह करे लागल, दिनेश उनमाइत

राजबइद से-
झार -बोने मुसा आइल, काटे लागल गाछे जइर
खरइ-खरिहाने परइच गेल, जमा करे लइर-धइर।
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☆ विश्वनाथ दसौंधी ‘राज’

जन्म:- 15 अप्रैल, 1943 ई•

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विश्व नाथ दसौंधी ‘राज’

खोरठा भाषा साहित्य में विश्वनाथ दसौंधी ‘राज’ एक बड़ा नाम है। कॉलेज शिक्षण के दौरान उन्होंने हिन्दी और खोरठा में लिखना शुरू किया था। एक सौ से अधिक कहानी और कविता विभिन्न पत्र-पत्रकाओं में प्रकाशित हुआ है। ‘ढलती शाम का सूरज’ हिंदी उपन्यास और ‘वेदना के पंख’ हिंदी कविता संग्रह भी प्रकाशित हुआ है। उन्होंने हिंदी भाषा में 20 हिंदी नाटक लिख कर के मंचन भी किया है। उन्होने खोरठा भाषा के विकास हेतु 1977में  “तितकी पत्रिका” का संपादन शुरू किया। वे तितकी पत्रिका के प्रथम संपादक थे। हालांकि 13-14 अंक प्रकाशित होने के बाद तितकी पत्रिका बंद हो गई।

विश्वनाथ दसौंधी ‘राज’ का जन्म भटमुरना, कतरासगढ़ (बोकारो) में हुआ था। इनकी रचनाएं मुख्य तौर पर गद्य विधाओं में पाई जाती है। अजगर (नाटक) और भगजोगनी (उपन्यास)  उनकी प्रसिद्ध खोरठा रचनाएं है। खोरठा साहित्य सांस्कृतिक परिषद, बोकारो के द्वारा उन्हें खोरठा साहित्य में विशिष्ट सेवा के लिए 1992 में “श्रीनिवास पानुरी सम्मान” दिया गया। 29 जनवरी 2006 को उन्हें भारतीय भाषा साहित्य न्यास, रांची के तत्वावधान में  “श्रेष्ठ साहित्यकार” के रूप में महामहिम राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी द्वारा सम्मान दिया गया।

प्रसिद्ध रचना

• अजगर (नाटक)
• भगजोगनी (उपन्यास)
• माटीक पुथइल (कहानी संग्रह)
• घुइर मुंड़ली तर (लघुकथा संग्रह)
• तेतरी आर महुआ (उपन्यास) – अप्रकाशित
• पुटुस आर परास (कविता संग्रह)
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☆ सुकुमार

जन्म:- 02 नवंबर 1956

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सुकुमार

सुकुमार खोरठा भाषा साहित्य के महान गीतकार, कवि एवं नाटककार के रूप में जाने जाते हैं। इनका पुरा नाम सुरेश कुमार विश्वकर्मा है। इनका जन्म 2 नवंबर 1956 ई• को बोकारो जिला के भेण्डरा गांव में हुआ था। खोरठा भाषा के विकास में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जिस कारण उन्हें कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। बोकारो खोरठा कमेटी द्वारा सन् 1993 में ‘खोरठा रत्न‘ की उपाधि से सम्मानित किया गया। झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा द्वारा ‘अखड़ा सम्मान‘ से वर्ष 2006 में सम्मानित किया गया। वर्ष 2007 में शोषित मुक्त वाहिनी द्वारा “परमवीर अब्दुल हमीद सेवा सम्मान पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।

प्रमुख रचनाएं

• डाह (नाटक)
• पइनसोखा (खोरठा गीत संग्रह)
• सेंवाती
• झींगुर
• मदनभेरी
• बावां हाथेक रतन (खोरठा खण्ड काव्य)
• हरिश्चंद्र, तारामती, ज्वाला दहेज की, दो भाई, सिकंदर-ए-आजम (हिंदी नाटक)
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☆ संतोष कुमार महतो

जन्म:- 2 सितंबर 1930 ई•
मृत्यु:- 24 नवंबर 2013 ई•

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संतोष कुमार महतो

संतोष कुमार महतो का जन्म 2 सितंबर 1930 को गांगजोरी जिला बोकारो में हुआ था। इन्होंने भूगोल विषय से एम ए किया। ये उच्च विद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए सेवानिवृत्त हुए। शिक्षण सेवा में रहते हुए इन्होंने खोरठा भाषा के विकास हेतु लेखन कार्य करते रहे। उनकी दो प्रमुख कविता संग्रह है।

प्रमुख रचनाएं

• एक मउनी फूल (कविता संग्रह)
• एक पथिया डोंगल महुआ (कविता संग्रह)

कुछ पंक्ति

परारथना (एक मउनी फूल) से
“हे भगवान! दया निधान, सूखे राखिहा काया परान।
बड़ी जतने देलहा मानुस तन, जैसे करिये सभे परानीक जतन।

धधाइल मूसा (एक मउनी फूल) से
अरे धधाइल मूसा, काटी देलें लोवाक टूसा।
बड़ी जे आसायं रोपलों लोवा, तीयन तरकारी खइता सभे छोवा।

पपीताक खेती(एक मउनी फूल) से
करा भाय पपीताक खेती, चास बासें देहाक मती।
जमीयें देहाक गुलगुलाय चास, घरे होतो लछमीक बास।
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☆ चितरंजन महतो ‘चित्रा’

जन्म:- 6 जनवरी, 1946

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चितरंजन महतो ‘चित्रा’

चित्तरंजन महतो ‘चित्रा’ का जन्म 6 जनवरी 1946 को रामगढ़ में हुआ था। इनके माता का नाम धनिया देवी और पिता का नाम घने नाथ महतो है। चितरंजन महतो ‘चित्रा’ खोरठा भाषा के गद्य विधा के बेजोड़ रचनाकार हैं। इनके द्वारा “जिनगीक टोह” नामक   उपन्यास खोरठा भाषा का एक बेहतरीन उपन्यास है। खोरठा के उपन्यासों में सबसे पहला नाम “जिनगीक टोह” को लिया जाता है।

प्रमुख रचनाएं

• जिनगीक टोह (खोरठा उपन्यास)
• छांहइर (कहानी संग्रह)
• महराई (लोकगाथा)
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☆ डॉ• गजाधर महतो प्रभाकर

जन्म:- 11फरवरी, 1952 ई•

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डाॅ गजाधर महतो ‘प्रभाकर’

इनका जन्म 11 फरवरी 1952 को रांची जिला के सिल्ली गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। इनके मां का नाम लाखो देवी और पिता का नाम जगन्नाथ महतो है। 1968 ई• मे इन्होने मैट्रिक की परीक्षा पास की। 1990  में उन्होने ‘खोरठा लोककथा: विषय और विश्लेषण‘ शीर्षक पर शोध ग्रंथ लिखकर पीएचडी की डिग्री हासिल की। ऐसा माना जाता है कि वे खोरठा भाषा से पीएचडी की डिग्री हासिल करने वाले पहले व्यक्ति हैं। वे एक शिक्षक के तौर पर कार्य करते हुए खोरठा भाषा की उन्नति के लिए लेखन का कार्य जारी रखा। उनके कई लेख रेडियो पर भी प्रसारित हुआ। इन्हे खोरठा रत्न से भी सम्मानित किया गया।

प्रमुख रचनाएं

• पुटुस फूल (खोरठा कहानी संग्रह-1988)
• मरीचिका (हिन्दी लघुकथा संग्रह-1988)
• हिन्दी व्याकरण – 1995
• आब ना रहा पटाइल- खोरठा कविता संग्रह, 2009)
• खोरठा लोक कथाक नेवरा -2009
• खोरठा भाषा साहित्यकार परिचय-2011
• खोरठा व्याकरण (जेटेट विषयक, 2016)
• खोरठा भाषा व्याकरण 2017, 2021
• खोरठा लोककथा: विषय और विश्लेषण (शोध ग्रंथ)
• खोरठा: साहित्य एवं साहित्यकार
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☆ डॉ बीएन ओहदार

जन्म:- 2 सितंबर, 1952 ई•

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डाॅ भोगनाथ ओहदार

डॉ बीएन ओहदार खोरठा भाषा वैज्ञानिक एवं महान भाषाविद् के रूप में जाने जाते हैं। इनका जन्म 2 सितंबर 1952 को रामगढ़ जिला के चेटर गांव में हुआ था। इन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन खोरठा के विकास के लिए समर्पित कर दिया। स्नातकोत्तर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग रांची विश्वविद्यालय रांची में खोरठा विषय में कई वर्षों तक वे अध्यापन का कार्य करते रहें। उन्होंने कई किताबों की रचना की है। उनकी रचनाएं स्कूल, कॉलेज में पढाई एवं प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

इन्होने त्रैमासिक पत्रिका करील और तितकी का क्रमशः प्रधान एवं प्रबंध संपादक का कार्य किया है। वे झारखंड संदेश (हिन्दी साप्ताहिक) का मुख्य संपादक रहे हैं।

प्रमुख रचनाएं

• खोरठा निबंध – 1990
• अनुदितांजलि (दुष्यंत कुमार एवं बहादुरशाह जफर के गजलों का खोरठा अनुवाद) – 2006
• खोरठा भाषा एवं साहित्य (उद्भव एवं विकास) – 2007, 2012, 2017
• सम्पूर्ण खोरठा: भाषा एवं साहित्य- 2018, 2021
• भाषा संकृति पर तीन दर्जन से अधिक लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित

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☆ डॉ विनोद कुमार

जन्म:- 18 नवंबर 1961
माता:- स्व. सुगवंती देवी
पिता:- स्व. मथुरा प्रसाद
पता:- ग्राम+पोस्ट- दारू, जिला- हजारीबाग (झारखण्ड)

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खोरठा रचनाकार डा. बिनोद कुमार

पारिवारिक जीवन:-

डा. बिनोद कुमार का जन्म हजारीबाग जिला के दारू ग्राम में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मथुरा प्रसाद और माता का नाम सुगवन्ती देवी हैं। इनकी जीवन संगनी सुधा रानी वर्मा है। इनका एक पुत्र और एक पुत्री हैं।

शिक्षा:-

• मैट्रिक 1977 में  (सरस्वती उच्च विद्यालय,  दारू)
• इंटर 1979 में (संत कोलम्बस महाविद्यालय, हजारीबाग)
• स्नातक (B.A) 1981 (संत कोलम्बस महाविद्यालय, हजारीबाग- विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग)
• स्नातकोत्तर खोरठा (M.A khortha) से 1886 (जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची- रांची विश्वविद्यालय, रांची)
• स्नातकोत्तर हिंदी (M.A Hindi) से 1989 (रांची विश्वविद्यालय, रांची)
• यूजीसी नेट 1990
• पीएचडी (PH. D.) खोरठ से – 2006 (जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची- रांची विश्वविद्यालय, रांची) शोध का विषय- “खोरठा लोक गीतों का सांस्कृतिक अध्ययन

अध्यापन:-

• व्याख्याता, जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग,  रांची विश्वविद्यालय रांची में सितंबर 1986 से जुलाई  1987 तक
• सहायक प्राध्यापक (खोरठा भाषा) जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची महाविद्यालय, रांची में जुलाई 1987 से 2016 तक
• विभागाध्यक्ष, जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग रांची महाविद्यालय, रांची वर्ष 2016 से 2018 तक
• समन्वयक, जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाएं, डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची (रांची विश्वविद्यालय रांची) 2018 से 2020 तक।

खोरठा पुस्तकें:-

• सोंध माटी (खोरठा कहानी एवं कविता संग्रह)- 1990
• खोरठा लोक गीतों का सांस्कृतिक अध्ययन – 2019
• बंबरा (खोरठा निबंध संग्रह)
• बोन पतरा (खोरठा कहानी संग्रह)
• धोबइयाक धमक (खोरठा कहानी, निबंध एवं कविता संग्रह)

खोरठा में कार्य एवं  प्रकाशित अन्य रचनाएं:-

• खोरठा गइद पइद संग्रह में सहयोगी संपादक का कार्य किया है।
• खोरठा लोक कथा में संपादन सलाहकार का कार्य किया है।
• खोरठा सहित सदानिक बेयाकरन में सहयोगी संपादक का कार्य किया है।
• रांची एक्सप्रेस, प्रभात खबर, छोटानागपुर रश्मि प्रवेशांक समाचार पत्रों में खोरठा रचनाएं प्रकाशित हुई है।
• आदिवासी, तितकी, डहर, नागपुरी, कला संगम रांची की स्मारिका, चित्रगुप्त परिवार की स्मारिका पत्रिका में रचनाएं प्रकाशित हुई है।
• रूसल पुटूस, एक टोकी फूल, खोरठा गइद-पइद संग्रह नामक पुस्तकों में इनकी खोरठा रचनाएं शामिल हैं।
• आकाशवाणी एवं दूरदर्शन रांची से विविध विधाओं में रचनाएं प्रसारित हुई है।

कुछ प्रमुख कहानी एवं कविता

उबार, जिनगीक डोंआनी, माय के लोर, एक पइला जोंढ़रा, ओद दीदा, मलकी बहु, हुब प्रमुख कहानी है। आजादीक रइसका, जुवान, माटी, दहेज समाजेक करिखा, आस, आजादीक गीत, माटी आर संस्कीरति, नारी, खोढ़र, आंखिक कांदना, धरती माय, किसानेक जिनगी, गुलौंची फूल, नीम, पिआसल धरती, जुवान आर किसान जैसे प्रमुख कविता है।

पदाधिकारी के रूप में कार्य:-

• रांची विश्वविद्यालय रांची,  डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय रांची, विनोवा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग में सिलेबस बोर्ड के सदस्य के रूप में कार्य
• यूजीसी, नेट, जेआरएफ सिलेबस बोर्ड के सदस्य के रूप में कार्य
• इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, रांची के एकेडमिक काउंसिल के सदस्य के रूप में कार्य
• डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के सीनेट सदस्य (2020-21) के रूप में कार्य

सम्मान

1. खोरठा रत्न – 1993
2. खोरठा जज – नृत्य गीत प्रतियोगिता जैक (1995 में)
3. खोरठा कहानी लेखन प्रतियोगिता के लिए चयन समिति के सदस्य – 2006
4. डॉ. अंबेडकर फैलोशिप सम्मान – 2018
5. झारखंडी भाषा साहित्य विशेष सम्मान – 2019
6. विलुप्त भाषाओं के प्रल्लेखन के सहयोग के लिए विशेष सम्मान – 2021
••••••••••••••••••••••••••••••••••••

☆ श्याम सुंदर महतो ‘श्याम’

जन्म:- 03 सितंबर 1939 ई•
पता:- ग्राम- खेसमी, थाना- तोपचांची, जिला- धनबाद (झारखण्ड)

पारिवारिक जीवन

श्याम सुंदर महतो का जन्म 03 सितंबर 1939 को एक किसान परिवार में धनबाद जिला के खेसमी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम केदारनाथ महतो और माता का नाम गंगा मनी है। वर्ष 1959 में उन्होंने इन्दु बाला देवी से विवाह किया। इनके दो पुत्र और एक पुत्री है। पढ़ाई खत्म करने के बाद श्याम सुंदर महतो ने बोकारो स्टील कारखाना में नौकरी करने लगे। नौकरी के दौरान ही वे खोरठा भाषा के विकास हेतु खोरठा भाषा में रचना करते रहे। श्याम सुंदर महतो का उपनाम “श्याम” है।

पढ़ाई पुरी करने के बाद वे 1962 से 1972 तक राष्ट्रीय कोयला निगम सियालड़ीह भुरकुंडा में माइननर्स टाइम कीपर के रूप में काम किया। इसके बाद वे 1972 से 1997 तक बोकारो स्टील प्लांट (सेल) में कार्य किया। 30 सितंबर 1997 को वे इसी संस्थान से वरीय निरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने खोरठा और हिन्दी कई पुस्तकों की रचना की है।

शिक्षा

इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई। 1956 में आजाद उच्च विद्यालय गोमो से मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद वे संत कोलंबस महाविद्यालय हजारीबाग से 1958 में उन्होंने विज्ञान से इंटर की परीक्षा पास की। इसके बाद वे 1961 में संत जेवियर महाविद्यालय रांची से स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद वे 1972 में टाटा को-ऑपरेटिव महाविद्यालय जमशेदपुर से समाज कल्याण में डिग्री प्राप्त की। पढ़ाई के बाद वे नौकरी दौरान साहित्य साधना में लगे रहे जो सेवानिवृत्त के बाद भी जारी रहा।

उपलब्धि

श्याम सुन्दर महतो ‘श्याम’ द्वारा लिखा गया खोरठा भाषा में “बिनोद बिहारी महतो” की जीवनी दशम् कक्षा के खोरठा पाठ्यपुस्तक में शामिल की गयी है। उसी तरह उनकी एक कविता “हांकाइर” नवम् कक्षा के खोरठा पाठ्यपुस्तक में शामिल की गयी है।

• श्याम जी 1991 से 1997 तक बोकारो खोरठा कमिटि के निदेशक पद पर रहे।
• वर्ष 2004 से 2010 तक झारखण्डी भाषा साहित्य-संस्कृति अखड़ा, झारखण्ड के उपाध्यक्ष रहे।

सम्मान

• वर्ष 1991 में Joint committee on safety (Health and Environment in the steel industry- Bhilai) द्वारा श्याम जी को “इस्पात सुरक्षा पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।

• वर्ष 2004 में खोरठा साहित्य-संस्कृति परिषद बोकारो द्वारा मुक्तिक डहर काब्य के लिए “श्रीनिवास पानुरी स्मृति सम्मान” से नवाजा गया।

• वर्ष 2006 में अखिल झारखण्ड खोरठा परिषद, भेण्डरा द्वारा “सपूत सम्मान” दिया गया।

• वर्ष 2010 में झारखंडी भाषा साहित्य-संस्कृति अखड़ा झारखण्ड द्वारा भाषायी सांस्कृतिक के लिए “अखड़ा सम्मान”  दिया गया।

• वर्ष 2010 में ही खोरठा भाषा साहित्य-संस्कृति अकादमी रामगढ़ द्वारा खोरठा मानकीकरण कार्यशाला में भागीदारी के लिए “जाउ जिनगी खोरठा सेवा सम्मान” दिया गया।

• वर्ष 2016 में खोरठा भाषा साहित्य विकास मंच बरवाअड्डा, धनबाद द्वारा “श्रीनिवास पानुरी खोरठा प्रबुद्ध सम्मान” दिया गया।

प्रसिद्ध रचना

श्याम सुन्दर महतो ‘श्याम’ एक जनवादी रचनाकार हैं। उनकी रचनाएं जन आकांक्षाओं को प्रेरित करने वाली है। यहां उनकी प्रकाशित रचनाओं को देखा जा सकता है।

• मुक्तिक डहर (खोरठा खंड काव्य) यह रचना शहीद शक्तिनाथ महतो की जीवनी पर आधारित है।
• चेड़राक मुंडे बेल (कविता संग्रह)
• तोञ आर हाम (कविता संग्रह)
• बिनोद बिहारी महतो (जीवनी खोरठा भाषा में)
• खोरठा लोक गीत (खोरठा लोक गीत संग्रह)
• खोरठा वृहत प्रकीर्ण साहित्य
• टहलु दादाक हांक

हिन्दी में रचनाएं

• आदिवासी बनवासी क्यों (हिन्दी विचार लेख)
• दोस्ती की मिठास (हिन्दी कहानी)

अप्रकाशित रचनाएं

1. 70000 खोरठा हिन्दी शब्द कोष
2. 2000 बाल शब्द कोष
3. झारखण्ड के 40 शहीद की जीवन गाथा

कुछ प्रमुख कहानी

• पेंदला झगरा
• फूल सुंदरी
• घुसखोर
• झिंगा लतें कोंहड़ा
• अकली

कुछ प्रमुख कविता

• मुक्तिक डहर
• तोंय आर हाम
• हांकाइर
• तोंय ठकहर
• जातिक जहर
• धरम धांधा
• चला गिदर आम पारे
• बगदल नेता

प्रमुख जीवनी

• मुक्तिक डहर (शहीद शक्तिनाथ महतो की जीवनी)
• शहीद बिनोद बिहारी महतो

कुछ कविता की कुछ पंक्तियां

कविता – तोंय आर हाम

“हामर धन चोंइथ-चुइस, तोंय बांधलें चेठा
साग-मांड़ ढकइच हाम, ढुमका ढिढ़र-पेटा
कलें-कलें मांइड़ लेलें, तोंय हामर कोचा -कोना
आंइख मलके तोर काहे, देइख हामर टोना।”

कविता – भुंइस

“मोट-मोट कते भुंइस
गेला तो घारे घुइस
धान-चार, सोना-चांदी
देला आपन भूरें ठुंइस।”
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☆ श्याम सुंदर केवट ‘रवि’

जन्म:- 08 सितंबर 1969 ई•

श्यामसुंदर केवट ‘रवि’ का जन्म 8 सितंबर 1969 को बालीडीह जिला बोकारो में हुआ था। आर एस एस हाई स्कूल बालीडीह से इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। तत्पश्चात यह रण विजय मेमोरियल कॉलेज चास से बीकॉम की परीक्षा उत्तीर्ण की। पढ़ाई खत्म करने के बाद वे बोकारो इस्पात कारखाना में नौकरी करने लगे। नौकरी के दौरान ही उन्होंने खोरठा भाषा के विकास हेतु महत्वपूर्ण कार्य किया। इसी दौरान इन्होंने खोरठा भाषा में कई महत्वपूर्ण रचनाएं लिखी।

प्रसिद्ध रचनाएं

• भूई पाठ गियान
• करमइति (करमगीत)
• पिया भेलइ
••••••••••••••••

☆ जनार्दन गोस्वामी ‘व्यथित’

जन्म:- 2 जनवरी 1936 ई•

इनका जन्म 2 जनवरी 1936 ई. को बोकारो जिला में हुआ था। इनके पिता का नाम पुरन चन्द्र गोस्वामी मां का नाम गेंदा देवी है। मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद वे पंजाब नेशनल बैंक में नोकरी करने लगे।

रचनाएं

• माराफारी (खण्ड काव्य)
• सेवातिक बूंद (कविता संग्रह)
• हिलोर (गीत संग्रह)
• लोर (कविता संग्रह)
• चांदिक जूता (हास्य व्यंग्य)
• खटरस (कहानी संग्रह)
•‍ नचनी काकी (कहानी संग्रह)
••••••••••••••

☆  विश्वनाथ प्रसाद ‘नागर’

जन्म:- 7 जनवरी 1939 ई•

विश्वनाथ नागर का जन्म धनबाद जिला के मुदा गांव में हुआ था। इन्हें खोरठा साहित्य में खोरठा शिष्ट छायावाद प्रवृति के कवि के रूप में जाना जाता है। इनके पिता का नाम जादु रवानी और माता का नाम फूलमनी देवी है। इंटर तक की शिक्षा ग्रहण कर खेती-बारी में लग गये। एक कृषक के साथ साथ वे खोरठा रचनाएं रचते रहे।

रचनाएं

• सुलकसाय (खण्ड काव्य)
• रांगालाठी (कविता संग्रह)
• दिंडल पाता (कविता संग्रह)
• झींगाफूल (गीत संग्रह)
• खइयाम तोर मधुरगीत (खइयाम के गजल का खोरठा अनुवाद)
••••••••••••••••

☆ मो• सिराजुद्दीन अंसारी ‘सिराज’

जन्म:- 21 जनवरी 1947 ई•

इनका जन्म 21 जनवरी 1947 को एक चासा (किसान परिवार) में हुआ था। इनके पिता का नाम मो• उस्मान अंसारी है। ये तीन वर्षीय तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के बाद बोकारो इस्पात कारखाना में नौकरी करने लगे। साथ ही साथ खोरठा के विकास के लिए कार्य करते रहे। खोरठा पत्रिका “लुआठी” के संरक्षक मंडल के सदस्य के रूप में खोरठा भाषा आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वर्ष 2006 में इन्हें झारखण्ड सरकार की ओर से उपायुक्त बोकारो द्वारा “आदर्श सामाजिक कार्यकर्ता” के रूप में सम्मानित किया गया। खोरठा भाषा और साहित्य में विशेष योगदान के लिए झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा की ओर से “अखाड़ा सम्मान 2017”  से भी इन्हें सम्मानित किया गया

रचनाएं

• खोरठाक खूंटा तितकी राय (खोरठा जीवनी)
• रंगइनि फूल (खोरठा कविता संग्रह)
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☆ परितोष कुमार प्रजापति

जन्म:- 2 जनवरी 1954 ई•

इनका जन्म बोकारो जिला के गांगजोरी गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम गुचन महतो और मां का नाम मांदु देवी है। मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद वे बोकारो इस्पात कारखाना में नौकरी करने लगे। खोरठा भाषा के विकास में इन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन्होंने नवम्, दशम् कक्षा का किताब दु डाहर परास फूल और दु डाहर जिरहुल फूल छपवाने में महत्वपूर्ण भूमिका है।

रचनाएं

•‍ जिनगीक भेउ (कविता संग्रह)

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☆ दिनेश कुमार ‘दिनमणि’

जन्म:- 13 सितंबर 1969 ई•

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दिनेश कुमार दिनमणि

दिनेश कुमार का जन्म 13 सितंबर 1969 को बोकारो जिला के बाराडीह गांव में हुआ था। इनका उपनाम दिनमणि है। इस लिए इन्हे दिनेश दिनमणि अथवा दिनेश कुमार ‘दिनमणि’ के नाम से भी लोग जानते हैं। इनके पिता का नाम महेश्वर महतो और माता का नाम फुलु देवी है। दिनमणि जी ने 1999ई. में कमला से विवाह किया। 1992 ई. में इन्होंने हिंदी विषय से स्नातक की डिग्री हासिल की। हिन्दी में बीए करने के बाद उन्होंने जनजातीय भाषा विभाग रांची से खोरठा से एम ए की परीक्षा पास की। वे यूजीसी-नेट और हिन्दी में एम ए की भी परीक्षा पास की है। वर्तमान में दिनमणि जी खोरठा भाषा से पीएचडी की ड्रिग्री के लिए शोध कार्य में लगे हैं।

दिनेश कुमार दिनमणि शिक्षा ग्रहण उपरांत आर. टी. सी. महाविद्यालय, ओरमांझी में खोरठा व हिंदी विषयों का अध्यापन किया। वर्ष 2018 ई. से वे जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक (अनुबंध) के रूप में कार्य कर रहे हैं। साथ ही साथ खोरठा भाषा आंदोलन में सक्रिय रूप से 1986-87 से अबतक भाग लेते रहे है। खोरठा में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें खोरठा रत्न, श्रीनिवास पानुरी खोरठा प्रबुद्ध सम्मान और खोरठा श्री सम्मान से किया गया है।

दिनेश कुमार दिनमणि ने 1988 ई. में खोरठा लिपि का आविष्कार किया था। इस लिपि को दिनमणि जी ने ‘खोरठा भाषा साहित्य संस्कृति‘ पर वर्ष 1989 ई. में हुए खोरठा सम्मेलन भतुवा, बोकारो में प्रस्तुत किया था। जिसमें जाने माने भाषा विज्ञानी और जाने-माने विद्वान पहुंचे थे। जिसकी लोगों ने सराहना भी की थी। ये खोरठा भाषा के लिए गौरव की बात थी। लेकिन उस समय भाषा के विद्वानों ने खोरठा भाषा के लिए अलग से लिपि की आवश्यकता नहीं समझी।

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दिनेश दिनमणि द्वारा आविष्कार की गयी खोरठा लिपि

रचनाएं:-

नवम् से लेकर स्नातकोत्तर के खोरठा पाठ्यक्रमों में उनकी रचनाएं शामिल है। उन्होंने आंगनबाड़ी केंद्र तथा कक्षा 1 और 2 के लिए खोरठा पुस्तक निर्माण में भी मुख्य भूमिका निभाई। वे हिन्दी के साथ-साथ खोरठा में भी कहानी, कविता, गीत, नाटक, निबंध और नाटकों का मंचन एवं निर्देशन की है।

कविता:-

ए मानुस (ये कविता दशम् वर्ग के खोरठा पाठ्यपुस्तक में शामिल की गयी है।)
• सोंचो उपाय  (ये कविता बारहवीं वर्ग के खोरठा पाठ्यपुस्तक में शामिल की गयी है।)
• आइग आर धुंगा
• इंजोरियाक बांटा

कहानी:-

• फुल कोबिक झोर
• धरम करम
• पगली मोइर गेली
• जीत

इसके अलावा लगभग एक दर्जन कहानी अप्रकाशित है जो पांडुलिपि के रूप में है।

नाटक:-

• जिनगिक संगी
• गुरू बाबाक दाढ़ी
• सम्बूक वध

गीत:-दिनेश दिनमणि ने खोरठा गीत की भी रचना की है। उनकी कुछ गीत को यहां लिखा जा रहा है।

• छाती बिछे गेल हलो, कुसुम बेड़ाक बोन…
• संइया चाला, चाला ना हो बोने पााकोलइ संइया कोइर….
• एक मूठा सूरगुंजा….
• माथाञ लड़के माटी के……

● “सोहान लागे रे” गीत संग्रह भी प्रकाशित हुआ है जिसका दो बार संपादन दिनमणि जी ने किया है।

गीत एलबम:- दिनेश दिनमणि द्वारा रचित गीतों का “खोरठा गीत एलबम” भी निकला है। यहां कुछ एलबम की चर्चा की जा रही है।

• सोना रकम पिया :-
• छापा साड़ी :-
• सजनी :-

• प्रकाशित किताब:-उनकी कुछ पुस्तकें बाजार में प्रकाशित हो चुकी है। ये पुस्तकेंविद्यालय और महाविद्यालय तथा प्रतियोगी परीक्षा में लगे विद्यार्थियों के लिए अति महत्वपूर्ण है। इन पुस्तकों में खोरठाव्याकरण एवंसाहित्य के अलावा खोरठा की संपूर्ण जानकारी दी गयी है। जिसे विद्यार्थियों ने हाथों-हाथ लिया है। यहां प्रकाशित पुस्तकों का विवरण दिया जा रहा है।

1. खोरठा भाषा व्याकरण एवं साहित्य  (प्रथम संस्करण 2018 में)
2. आधुनिक खोरठा बेयाकरण आर रचना (प्रथम संस्करण 2020 में)
3. टोटल खोरठा – भाषा व्याकरण एवं साहित्य (प्रथम संस्करण 2020, द्वितीय संस्करण 2022)


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☆ बंशीलाल बंशी

जन्म:- 11 मार्च 1954 ई•

बंसी लाल बंशी का जन्म 1954 में बोकारो जिला के चौफान्द गांव में हुआ था। इनके माता का नाम बासनी देवी और पिता का नाम मोतीलाल साहू है। इन्होंने स्नातक के साथ-साथ पत्रकारिता में भी डिप्लोमा की डिग्री हासिल की है। इनके द्वारा रचित “डिंडाक डोआनी” प्रबंध काव्य खोरठा जगत के लिए बड़ी उपलब्धि है। इसमें ग्राम्य जीवन, औद्योगीकरण का प्रभाव, प्रकृति चित्रण को प्रदर्शित किया गया है। काव्य संस्था जमशेदपुर के द्वारा इन्हें “काव्य भूषण” की उपाधि से भी सम्मानित किया गया।

कुछ पंक्तियां

डहर-डहर आर गावें – गावें
विकासेक काम ठावें – ठावें
खुसिक संदेस आवे लागल
मनेक आंधार भगे लागल।

रचनाएं

• डींडाक डोआनी (प्रबंध काव्य)
• खोरठा दर्पण (भासा संस्कृति परिचय)
• रइसका (कहानी)
• दामुदर – पारसनाथ बंउड़ी डहर जातरा
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☆ महेंद्र प्रबुद्ध

जन्म:- 05 अगस्त 1956 ई•

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महेंद्र प्रबुद्ध खोरठा लेखक

महेंद्र प्रबुद्ध का जन्म 05 अगस्त 1956 ई• में गिरिडीह जिला के निमियाघाट के लोडेडीह गांव में हुआ था। इनके माता का नाम बुंदेली देवी तथा पिता का नाम सुदन राम है। वे स्नातक तक की पढ़ाई की है। इन्होंने रेलवे में मुख्य अधीक्षक के पद पर रहते हुए सेवा निवृत हुए। खोरठा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया। महेन्द्र प्रबुद्ध खोरठा की वार्षिक पत्रिका परास फूल का भी संपादन कर रहे हैं। यह पत्रिका झारखण्ड के धनबाद से निकलती है। कविता “लुआठी” नवम् कक्षा के खोरठा पाठ्यपुस्तक में शामिल की गयी है। जबकि एक नाटक “तीन काठ धान” स्नातक के सेमेस्टर  -5 में शामिल की गयी है। उनके इसी कार्य के लिए उन्हें श्री निवास पानुरी स्मृति सम्मान, खोरठा रत्न, सारस्वत सम्मान, खोरठा श्री सम्मान से सम्मानित किया गया है।

कुछ पंक्ति

बड़ी सुंदर बड़ी बेस, हमर झारखंड परदेस
हिया मिले करिया हिरा, अकर तरे चेरका सोना
नाना लोक नाना भेस, हमर झारखंड परदेस।

रचनाएं

शुरूआत में वे हिन्दी भाषा में लिखा करते थे। बाद के वर्षों में प्रबुद्ध जी की मुलाकात खोरठा के जाने-माने रचनाकार श्याम सुंदर महतो से हुई। उनसे प्रेरित होकर वर्ष 2004 ई. से वे खोरठा भाषा लेखन के तरफ उन्मुख हुए। जो आज तक लगातार समर्पित भाव से प्रयत्नशील है। उनकी प्रसिद्ध रचनाएं यहां प्रस्तुत की जा रही है।

खोरठा रचनाएं:- खोरठा भाषा की विभिन्न विधाओं में उनकी रचनाएं मिलती है। जिसे यहां देखा जा सकता है।

रचना — प्रकाशित खोरठा रचनाएं

1. परास के फूल (कविता संग्रह – 2006)
2. तीन काठ धान (सामाजिक नाटक – 2007)
3. चंदुलाल चोकिदार  (ग्रामीण नाटक – 2008)
4. लाल बुझक्कड़ (लोक कथा – 2008)
5. बुबु गाछ कहनी (संकलन – 2009)
6. मानुसेक कद (कविता संग्रह – 2010)
7. झुमरी तिलैयाक (चंपा उपन्यास – 2011)
8. सेमियां टेलीफिल्म्स (पटकथा – 2013)
9. बुधम सरनम गछामि (एतिहासिक नाटक – 2016)
10. बीर एकलव्य (महाभारत कालिन नाटक – 2017)
11. मकड़जाल (सामाजिक नाटक – 2018)
12. शकुंतला क सत (महाभारतकालिन नाटक – 2019)
13. जाग मोसाफिर बिहान भेल (सामाजिक नाटक – प्रेस में)
14. बिन पानी सब सून (नाटक – अप्रकाशित)

हिंदी में प्रकाशित रचनाएं:- खोरठा भाषा में लिखने से पूर्व वे हिंदी में लिखा करते थे।

• बादल तुमसे पुछूं एक सवाल (बाल कविता संग्रह) – 2001
• पेड़ बनता आदमी (सामायिक कविता संग्रह) – 2003
• अमूल्य भारत (देश भक्ति कविता संग्रह) – 2009
• समय-चक्र (सामयिक कविताएं) – 2012
• मत पी हाला (खंडकाव्य) – 2016
• प्रीत के बिंब (प्रेम मुलक कविताएं) – 2017
• डा० बाबा साहेब आंबेडकर (खंडकाव्य) – 2021
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☆ गिरधारी गोस्वामी

जन्म:- 04 अगस्त 1965 ई•

इनका जन्म 1965 में बोकारो में हुआ था। इनके मां का नाम छुमु देवी तथा पिता का नाम देबु लाल गोस्वामी है। इन्हें “आकाश खूंटीके नाम से जाना जाता है। इन्होनें खोरठा पत्रिका “लुआठी” की शुरूआत की। लुआठी पत्रिका के माध्यम से गिरधारी गोस्वामी ने खोरठा के विकास हेतु खोरठा का प्रचार प्रसार किया। बोकारो खोरठा कमिटी द्वारा खोरठा रत्न सम्मान दिया गया। भंडारा से “सपूत“, जगत सिंहपुर उड़ीसा से “बाबा जी संग्रहालय सम्मान“, 2008 में झारखण्ड साहित्य समाज से “झारखण्ड मोहर” , झारखण्ड भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा से “अखड़ा सम्मान 2010“, मिला है।

रचनाएं

• चेठा (खोरठा लघुकथा संग्रह)
• गीता की कसम (हिंदी लघुकथा संग्रह)
• आगु जनमे (खोरठा एकांकी संकलन)
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☆ विनय कुमार तिवारी

जन्म:- 05 अक्टूबर 1974 ई•

बहुमुखी प्रतिभा के धनी विनय कुमार तिवारी खोरठा भाषा के जानेमाने गीतकार, कवि, संवाद लेखक, तथा पटकथा लेखक, विडियो एलबमों के निर्देशक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने 1000 से अधिक खोरठा गीतों की रचना की है। खोरठा में उनके बेहतरीन योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी प्रदान किये गये हैं।

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विनय कुमार तिवारी

प्रारंभिक जीवन

इनका जन्म 1974 को धनबाद जिला के “रोआम” गांव में हुआ था। इनके माता का नाम बेला रानी और पिता का नाम हरि प्रसाद तिवारी है। इन्होंने मध्य विद्यालय बाघमारा, रोआम से मिडिल तक की पढ़ाई की है। वहीं श्री शंकर दयाल उच्च विद्यालय, रोआम से मैट्रिक तक की पढ़ाई की। तत्पश्चात वे आर एस मोर महाविद्यालय, गोविंदपुर से इंटर की परीक्षा पास की। वर्ष 1995 में उन्होंने विनोवा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की है। वे अपनी पढ़ाई के दौरान ही लिखना शुरू कर दिये थे।

उपलब्धि

खोरठा के साथ-साथ नागपुरी, हिंदी और भोजपुरी में भी इनकी रचनाएं बहुतायत में मिलती है। इन्होंने मातृभाषा खोरठा को राज्य स्तर पर सम्मान जनक स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनकी लेखनी से 1000 से अधिक खोरठा गीतों का सृजन हो चुका है। क्षेत्रीय फिल्मों में इनके गीतें अक्सर सुनाई पड़ती है। यहां इनके कुछ प्रमुख उपलब्धियों का उल्लेख किया जा रहा है।

• विनय तिवारी खोरठा, नागपुरी एवं भोजपुरी भाषाओं में 1000 से अधिक गीतों की रचना कर चुके हैं। उनकी गीतों का एलबम टी सीरीज सहित कई अन्य कंपनियों तथा इ•टी•वी के धुन कार्यक्रम के माध्यम से प्रसारित हो चुका है। यही कारण है कि इन्हें खोरठा गीतकार के उपनाम से भी संबोधित किया जाता है।

• खोरठा फिल्म हामर देहाती बाबु में पटकथा लेखन तथा झारखण्डेक माटी में गीत लेखन, देय देवो जान में गीत लेखन, नागपुरी फिल्म करमा में गीत लेखन, पिता का मान बिटिया का निर्देशन, पटकथा व गीत लेखन का कार्य किया है।

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कुमार सानू के साथ खोरठा गीतकार विनय तिवारी

सम्मान

• खोरठा गौरव अवार्ड- 2008 में
• खोरठा रत्न सम्मान- 2008 में
• खोरठा सम्मान- 2011 में
• सांस्कृतिक सम्मान- 2016 में
• श्री निवास पानुरी स्मृति और प्रबुद्ध सम्मान- 2016 में
• श्री निवास पानुरी मेमोरियल अवार्ड फाॅर खोरठा लिटरेचर सम्मान- 2018
• झारखण्ड कला रत्न अवार्ड- 2018 में
• बेस्ट गीतकार ऑफ खोरठा सम्मान- 2018 में
• खोरठा श्री सम्मान-2018 में
• झारखण्ड का बेस्ट स्क्रिप्ट राइटर सम्मान- 2019 में
• खोरठा कला संस्कृति रत्न सम्मान- 2020 में

रचनाएं

राष्ट्रप्रेम, प्रकृति प्रेम, नारी उत्पीड़न, सामाजिक कुव्यवस्था, शोषण, संघर्ष, भाईचारा, भक्ति और विभिन्न क्षेत्रों में इनकी रचनाएं मिलती है। उनकी कुछ प्रसिद्ध कवितायें यहां देख सकते हैं। उनकी खोरठा कविताएँ अखड़ा, परास फूल, आवाज 7 डेज और प्रभात खबर के माय माटी पृष्ठ पर छपते रही है.

चर्चित खोरठा कविताएं
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1 एइ भात रे
2 मायं माटी
3 कि रकम ओझराइ के राखल हें.
4 तोर हामर परेमक कहनी
5 मानुस आर बुझे नॉय रे  भाय
6 मानुसे मानुस के मारे लागल
7  मिटे नायं दिहा माटिक मान
8  हामर नुनियाइं सोब जाने
9  फरक
10  बेस दिन ककर
11 भूखला भुखले रइह गेल
12 एकक गो हिसाब हतय
13 हामेँ तब तक नायं मोरब
14 काट बइन के ख़रीस साँप
15 तोर अँगे अँगे बिस भोरल

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खोरठा कविता

आडियो विडियो गीत रूप में
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इसी क्रम में इनके कई ऑडियो, वीडियो एल्बम निकले हैं, जिसे दर्शकों ने हाथों हाथ लिया। यहां कुछ को प्रस्तुत किया जा रहा है।

• पागल बनाय देलें
• तोर हामर परेमेक कहानी
• टूटे नाय अब परेमेक डोर
• तोंञ हामर दिल लागे
• आव नाय रूकब रे
• कांवरिया झूम रे
• शेरावाली के दरबार में
• धुर्री उडाई के
• ओ मितवा
• तोर प्यार चाही
• दिल तोर दिवाना
• झुमकावाली
• लव यू मोनिका
• मोहब्बत जिंदाबाद
• भौजी के बहिन लाले लाल
• दिल तरसाय के
• दिल अब तोरे नाम

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☆ डॉ• आनंद किशोर दांगी

जन्म:- ××××××
माता:- यशोदा देवी
पिता:- स्व• गोविंद दांगी
पता:- ग्राम+पोस्ट- गिद्धौर, जिला- चतरा, झारखण्ड

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डाॅ आनंद किशोर दांगी

आनंद किशोर दांगी का जन्म चतरा जिला के गिद्धौर गांव में हुआ था। इनके माता का नाम यशोदा देवी और पिता का नाम स्व• गोविंद दांगी है। जब ये 2 वर्ष के थे तब उनके पिता का निधन हो गया था। इनका लालन-पालन इनके बड़े भाइयों ने किया। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही हुई। 1994 में इन्होंने गंगा स्मारक उच्च विद्यालय गिद्धौर से मैट्रिक की परीक्षा पास की। लगन और प्रतिभा के धनी डॉ• आनंद को बचपन से ही नाटक लिखने और मंचन करने का शौक था।

खोरठा भाषा के प्रति इनका विशेष लगाव रहा है। खोरठा से एम ए करने के बाद, उन्होंने वर्ष 2014 में रांची विश्वविद्यालय, रांची से खोरठा से पीएचडी की डिग्री हासिल की। इन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए खोरठा भाषा में कई किताबों की रचना की है। वर्तमान में ये नगर विकास विभाग में सिटी मिशन मैनेजर के पद पर कार्यरत है।

रचनाएं

• खोरठा भाषा एक परिचय-2012
• साठोत्तरी खोरठा पद्य साहित्य: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
• इंजोरिया (नाटक संग्रह)- 2015
• खोरठा व्याकरण एवं रचना- 2017
• माटीक गंध
• खोरठा भाषा: एक अध्ययन
• खोरठा कवियों का काव्यगत परिचय
• खोरठा व्याकरण और रचना

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डाॅ आनंद किशोर दांगी का खोरठा बुक
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डाॅ आनंद किशोर दांगी की कुछ खोरठा रचना

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