9 अगस्त: विश्व आदिवासी दिवस इतिहास और वर्तमान
विश्व में आदिवासियों की उपेक्षा, अशिक्षा, बेरोजगारी, बंधुआ मजदूरी आदि समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से ही प्रतिवर्ष “9 अगस्त” को “विश्व आदिवासी दिवस” मनाया जाता है। आदिवासी प्रकृति प्रेमी माने जाते हैं। ये मूर्ति पूजा के स्थान पर प्रकृति की पूजा अर्थात् पेड़ों, पहाड़ों की पूजा करते हैं। भारत आदिवासियों का बड़ा निवास स्थल है। यहां विभिन्न प्रकार के आदिवासी समुदाय पाए जाते हैं।
आदिवासी का अर्थ
“आदिवासी” का शाब्दिक अर्थ वैसे समुह से है जो रूढ़ीवादी परंपराओं के साथ और उत्पत्ति के समय से ही अपने आदिम स्वरूप में जीता रहा है। जिनके शारीरिक बनावट, रंग-रूप, भाषा इत्यादि में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है। उन्हें आदिवासी के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिश भारत में आदिवासियों को “अनुसूचित जनजाति” (ST) के रूप में भी जाना गया। पहली बार “ठक्कर बापा” द्वारा जनजातियों के लिए “आदिवासी” शब्द का प्रयोग किया गया था। भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए “अनुसूचित जनजाति” (‘Scheduled Tribe’) शब्द का प्रयोग किया गया है।
आदिवासी दिवस मनाने की शुरुआत
9 अगस्त 1982 ई• को “संयुक्त राष्ट्र संघ” (UNO) में आदिवासियों के लिए एक समारोह का आयोजन किया गया था। इसी कारण 1994 ई• में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 9 अगस्त को आदिवासी दिवस मनाने की घोषणा की गई। तब से प्रतिवर्ष विश्व भर में आदिवासियों के सम्मान हेतु “9 अगस्त” को “विश्व आदिवासी दिवस” के रूप में मनाया जाता है। झारखंड सहित भारत के कई राज्यों में भी यह दिवस बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है।
भारत में आदिवासी
भारत में “आदिवासी” एक महत्वपूर्ण जाति समूह है। शारीरिक बनावट, रंग-रूप, भाषा और संस्कृतिक क्रियाकलापों के कारण ये अलग से ही पहचाने जाते हैं। भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास में आदिवासियों का बड़ा योगदान रहा है। प्राचीन समय से ही आदिवासी अपनी पहचान बनाए रखने के लिए विदेशी समुदाय से जुझती रही है। यही कारण है कि आजादी के लिए अंग्रेजो के खिलाफ इन्होंने कई लड़ाइयां लड़ी। विश्व में सबसे अधिक आदिवासी आबादी भारत में निवास करती है।
भारत में आदिवासी जनसंख्या
भारत विश्व की सबसे अधिक आबादी वाला देश है। वर्ष 2011 ई• की जनगणना के अनुसार भारत में 10 करोड़ 42 लाख आदिवासी आबादी निवास करती है। जो भारत के कुल जनसंख्या का 8.6% है। भारत में आदिवासियों की कुल 705 उपजाति समुह पाई जाती है। आदिवासियों में लिंगानुपात 990 के करीब है। भारत में सबसे अधिक आदिवासी मध्य प्रदेश में तथा सबसे कम उत्तर प्रदेश में निवास करती है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार आदिवासियों में साक्षरता दर 59% है।
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भारत में प्रमुख आदिवासी जनजाति समूह
भारत की संस्कृति और सभ्यता में आदिवासियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यहां 705 प्रकार की आदिवासियों की उपजातियां पाई जाती है। इनमें से कुछ प्रमुख आदिवासी जातियों का विवरण निम्न प्रकार से है:-
भील
“भील” भारत की सबसे बड़ी आदिवासी जनजाति है। जो मुख्यतः राजस्थान, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, त्रिपुरा आदि राज्य में निवास करती है। भील का शाब्दिक अर्थ “धनुष” होता है। ‘भील’ जनजातियों की रीति-रिवाज राजपूतों की तरह होती है।
गोंड
यह भारत की दूसरी सबसे बड़ी आदिवासी जनजाति समूह है। जो भारत के छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश जैसे 13 राज्यों में निवास करती है।
संथाल
“संथाल” भारत की तीसरी और झारखंड की “सबसे बड़ी” आदिवासी जनजाति समूह है। यह “कुशल कृषक” एवं “उत्कृष्ट शिकारी” होते हैं। ये आदिवासी जनजातियां मुख्यत: झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश एवं असम राज्य में निवास करती है।
मुण्डा
“मुंडा” भारत की प्रमुख आदिवासी जनजाति है। यह मुख्यतः झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा राज्यों में निवास करती है।
बोड़ो
यह आदिवासी समूह मूल रूप से आश्रम क्षेत्रों में निवास करती है।
मीणा
“मीणा” आदिवासी जनजाति मुख्यत: राजस्थान में पाई जाती है। “मीणा” शब्द की उत्पत्ति ‘मीन’ अर्थात “मछली” से हुई है। इस कारण मीणा जनजाति अपनी उत्पत्ति विष्णु के अवतार से मानते हैं। इस जनजाति समूह में साक्षरता दर सबसे अधिक है।
टोडा
“टोडा” आदिवासी समुदाय दक्षिण भारत के “नीलगिरी” की पहाड़ियों पर निवास करती है।
नागा
नागालैंड राज्य में “नागा आदिवासी जनजातियों” का समूह निवास करता है।
भोटिया/भूटिया
भोटिया आदिवासी अधिकांशत हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करती है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड तथा सिक्किम में भोटिया/ भुटिया आदिवासी जनजाति पाई जाती है।
थारू
थारु आदिवासी जनजातियां उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती नेपाल क्षेत्र में तथा उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में निवास करती है।
उरांव
झारखंड बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में उरांव आदिवासी जनजाति समूह निवास करती हैं।
बिरहोर
बिरहोर की पहचान आदिम आदिवासी जनजाति के रूप में की गई है। इनकी जनसंख्या वृद्धि दर बहुत ही काम है। जिससे इनके अस्तित्व पर संकट गहरा गया है। ये आदिम जनजातियां झारखंड और बिहार मैं मुख्य रूप से निवास करती है।
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विश्व की प्रमुख आदिवासी समुदाय
“आदिवासी” अर्थात “जनजाति” मुख्यतः विकसित समाज से दूर अपनी परंपरागत जीवन-पद्धति, संस्कार, विशिष्ट रीति-रिवाज, प्राथमिक व्यवसाय और अपनी सामाजिक विरासत को बनाए रखने में कामयाब रहे हैं। ये जनजातीय समूह अंटार्कटिका को छोड़कर शेष सभी महाद्वीपों में विद्यमान हैं। आइए देखते हैं विश्व के कुछ प्रमुख आदिवासी जनजातियां:-
एक्सिमो (Eskimo):-
ये जनजातियां अमेरिका के उत्तर-पूर्व में स्थित ध्रुव से सटे “ग्रीनलैंड” तथा “अलास्का एवं टुंड्रा क्षेत्रों” में निवास करते हैं। इनका रंग भूरा एवं पीला, चेहरा सपाट और आंखे गहरी होती है। इस आदिवासी समुदाय का मुख्य व्यवसाय शिकार है ये बर्फ से बने इग्नू (Igloo) में रखते हैं।
बुशमैन (Bushman):-
अफ्रीका महादेश के कालाहारी मरुस्थल में ये निवास करते है। इनकी आंखें चौड़ी, त्वचा काली होती है। ये लोग प्रायः नग्न रहते हैं। बुशमैन का मुख्य व्यवसाय आखेट एवं जंगली वनस्पतियों को एकत्रित करना है। बुशमैन बड़े परिश्रमी, उत्साही, देखने तीव्र दृष्टि और स्मृतिवान व्यक्ति होते हैं।
खिरगीज (Khirghiz):-
मध्य एशिया के किर्गिज़स्तान में पामीर के पठार तथा थ्यानशान पर्वत के क्षेत्र में खिरगीज आदिवासी निवास करते हैं। इनके शरीर का रंग पीला एवं बाल काले होते हैं। ये कद में छोटे एवं सुगठित शरीर वाले होते हैं। इनकी आंखें छोटी एवं तिरछी होती है। ये आदिवासी जनजातियां ऊन एवं खाल के वस्त्र पहनते हैं। खिरगिज का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन है।
पिग्मी (Pygmy):-
कांगो बेसिन के बेल्जियम, कांगो, गैबोन, युगांडा आदि प्रदेशों के सघन वनों में पिग्मी जाति के लोग निवास करते हैं। कुछ पिग्मी दक्षिण-पूर्व एशिया के फिलीपींस के वन क्षेत्र तथा न्यूगिनी के वनों में भी पाए जाते हैं।इनका प्रमुख व्यवसाय आखेट और शिकार करना है। इस जनजाति को केला बहुत पसंद है। पिग्मी काले-नाटे कद के निग्रो प्रजाति से संबंधित हैं। नाक चपटी और मोटे तथा बाहर की ओर उभरे हुए होते हैं। जबकि सिर पर छल्लेदार गुच्छों के समान बाल होते हैं। पुरुष जानवरों की खाल और स्त्रियां पत्तों के गुच्छों को पहनती है।
बद्दू (Bedouins):-
ये अरब के उत्तरी भाग के मरुस्थलीय एवं निर्जल क्षेत्रों में कबीले के रूप में निवास करते है। ये आदिवासी जनजातियां नीग्रोटों प्रजाति से संबंधित हैं। इनका कद मध्यम, रंग हल्का कत्थई और गेहुआ, बाल घुंघराले और काले होते हैं। स्त्रियां लंबे चोगे एवं पाजामे पहनती हैं। ये सिर पर बुर्का भी लगाती है। ये जनजातियां मकान न बनाकर तंबू में निवास करते हैं। सवारी एवं सामान ढोने के लिए ये ऊंट का प्रयोग करते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय पशुपालन है।
मसाई (Masai):–
अफ्रीकी देश टांगानिका केन्या एवं पूर्वी युगांडा के पठारी क्षेत्रों में मसाई आदिवासी जनजातियां पाई जाती हैं। ये लंबे छरहरे बदन के होते हैं। इनकी त्वचा का रंग गहरा भूरा और गहरा कत्थई होता है। ये झोपड़ियों में रहते हैं जिसका आकार अंडाकार होता है। चमड़े के बने हल्के वस्त्र पहनते हैं। ये आदिवासी कुत्तों को पशुओं की रखवाली के लिए पालते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय पशु चारण है।
सेमांग (Semang):-
ये भी मलेशिया के पर्वतीय भागों में पाई जाती है। इनके ओठ चपटे और मोटे तथा बाल घुंघराले व काले होते हैं। यह लोग विभिन्न प्रकार के पेड़ों की छाल से निकले रेशे से तैयार वस्त्र पहनते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय आखेट एवं वन उत्पाद संग्रह करना है। यह जनजातियां पेड़ों पर झोपड़ियां बनाकर रहते हैं।
सकाई (Sakai):-
मलेशिया के आसपास के जंगलों में निवास करने वाली आदिम जनजातियों हैं।
एटा (Aeta):-
फिलीपींस के पर्वतों पर रहने वाले नीग्रोटो समुदाय के लोग को “एटा” के नाम से जाना जाता है।
बर्बर (Berber):-
ये जनजातियां उत्तरी अफ्रीका में त्रिपोली के पश्चिम में निवास करते हैं।
बोरो (Boro):-
दक्षिण पूर्व कोलंबिया तथा ब्राजील के समीपवर्ती क्षेत्रों में निवास करते हैं।
बंटू (Bantu):-
नीग्रो जनजातियों से संबंधित परिवार अफ्रीका के भूमध्यरेखीय भागों में रहते हैं।
आइनू (Ainu):-
जापान में निवास करने वाली प्रमुख जनजाति है।
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