Bhuvneshwar Dutt Sharma vyakul । भुनेश्वर दत्त शर्मा व्याकुल की जीवनी

Bhuvneshwar Dutt Sharma vyakul । भुनेश्वर दत्त शर्मा व्याकुल की जीवनी

जन्म:- 17 मार्च, 1908 ई•
मृत्यु:- 17 सितंबर, 1984 ई•
उपनाम:- ब्याकुल
पिता:- बलदेव प्रसाद उपाध्याय
माता:- शांति देवी
पत्नी:- सरस्वती सुशीला देवी
आजा (दादा) :- पं. अयोध्या प्रसाद उपाध्याय
जन्म स्थान:- ग्राम – महथाडीह, जिला – गिरिडीह
निवास स्थल:- बिशनुगढ़, हजारीबाग

भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ का जन्म 17 मार्च 1908 ई. में वर्तमान गिरिडीह जिला के महथाडीह गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उस समय गिरिडीह हजारीबाग जिला का एक भाग था। खोरठा भाषा साहित्य के प्रारंभिक दौर में महान खोरठा कवि के रूप में भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल‘ जी को जाना जाता है। हालांकि शुरूआती दौर में वे उपनाम में ‘गिरिडीहवी‘ लिखा करते थे। इन्होंने बाद में अपने नाम के साथ “व्याकुल” शब्द नाम जोड़ा। ये केवल रचनाकार ही नहीं बल्कि एक मंचकार, गायक और वादक भी थे। इनके समय में खोरठा भाषा का साहित्य रूप नहीं के बराबर था। लेकिन खोरठा भाषा में गीत-नाद, खेमटा-झुमटा, झुमर, डोहा, लोकगीत, लोककथा, बुझवल, कहावत का प्रचलन था। इन सबों को भी उन्होंने साहित्य रूप में लिखने का प्रयास किया है।

पारिवारिक जीवन

भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी का जन्म गिरिडीह जिला के महथाडीह में 1908 में हुआ था। परन्तु उनका परिवार हजारीबाग के विष्णुगढ़ में रहने लगा। इनके पिता का नाम पं. बलदेव प्रसाद उपाध्याय है। ब्याकुल जी के जन्म के 6 महीने बाद ही उनके पिता की मृत्यु हो गयी। इसके बाद उनका लालन-पालन उनके आजा पं. अयोध्या प्रसाद उपाध्याय ने किया था। अपने आजा (दादा) से ही उन्हे प्रारंभिक शिक्षा मिली।

ब्याकुल जी का मन घर में नहीं लगता था। इस लिए वे 11 वर्ष की अवस्था में ही घर से भाग कर कांसी (वनारस) चले गये थे। हालांकि कुछ दिन बाद वे वापस भी आ गये थे। 1925 में गांधीजी के संपर्क में आने के बाद आजादी की लड़ाई में कूद गये। गांधीजी के संगति पाकर वे हरिजन उत्थान में लग गये। कांग्रेसी कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते हुए वे सरस्वती सुशीला देवी के संपर्क में आये। समय के साथ उनके साथ कार्य करते हुए ‘व्याकुल’ जी प्रेम के बंधन में बंध गये। हालांकि सरस्वती देवी दुसरी जाति की एक विधवा महिला थी, फिर भी व्याकुल जी ने जाति – पाति के बंधन को तोड़कर एक विधवा ‘सरस्वती सुशीला देवी’ से विवाह किया। जिसके कारण उन्हें समाज में विरोध का भी सामना करना पड़ा था।

शिक्षा:-

11 वर्ष की उम्र में जब ‘व्याकुल’ जी पांचवी कक्षा में थे तब वे घर बार छोड कांसी (वाराणसी) चले गये। बाद वे घर वापस आये और स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वे B.A. Diploma in officer Procedure की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात उन्होंने बोकारो इस्पात कारखाना में आपरेटर के पद पर कार्य किया।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी की पहचान केवल लेखक के तौर पर नहीं है। वे एक स्वतंत्रता सेनानी भी रहे हैं। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 1925 में ब्याकुल जी गांधीजी के संपर्क में आये और स्वतंत्रा आंदोलन में कूद पड़े। कांग्रेस के कार्यकर्ता के रूप में वे घुम – घुमकर लोगों को आजादी के लिए जगाया। वे कई बार जेल भी गये।

‘व्याकुल जी’ देश को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारी गीत खोरठा और अन्य भाषाओं में लिखने लगे। लोगों में देश प्रेम की भावना भरने लगे। व्याकुल जी खोरठा और हिंदी भाषा में कविता गाकर लोगों को आजादी की लडाई के लिए प्रेरित किया करते थे। 1940 में झारखंड के रामगढ़ में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। व्याकुल जी एक क्रांतिकारी कवि थे। देश भक्ति से ओत – प्रोत उनकी रचना जनमानस के दिल में उतर जाया करती थी। उनका दौर तब था जब भारत आजादी के लिए भारत जुझ रहा था। अंग्रेज कई तरह के पावंदियां लगा रहे थे। प्रेस की स्वतंत्रता नहीं थी। ऐसे में देश प्रेम से अभिभूत व्याकुल जी की रचनाएँ अंग्रेजी सामाज्य को डिगा रही थी। इस कारण अंग्रेजी शासन ने इनके रचनाओं को जला दिया था। देश भक्ति से ओतप्रोत एक पंक्ति यहाँ देख सकते हैं।

“नौ जवां! या तो गुलामी को मिटाकर दम ले,
वर्ना अच्छा है कि बस सर को कटाकर दम ले।”

खोरठा साहित्य में योगदान

खोरठा भाषा साहित्य के मध्य युग में महान खोरठा कवि के रूप में भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी को जाना जाता है। खोरठा साहित्य में उन्होंने कई कालजई रचनाएं की। आजादी की लडाई के दौरान कई बार वे जेल गये। 1930 में जेल में ही उनकी मुलाकात हिन्दी के प्रसिद्ध रचनाकार ‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ से हुआ। जिनके प्रभाव से उन्होंने जेल में ही ‘कैदी‘ नाम से रचना लिखी। 1939 में उन्होंने ‘कलाम ए व्याकुल’ नाम से रचना की थी, जिसकी भूमिका कांग्रेस नेता राम नारायण सिंह ने लिखी थी।

व्याकुल जी केवल खोरठा में ही रचनाएं नहीं की है बल्कि हिन्दी, उर्दू और संथाली में भी इनकी रचनाएं है। इनकी लिखी हुई कविता प्रताप, वर्तमान, कर्मबीर, लोकमान्य, विश्वमित्र, पंच, हिन्दु, हिन्दुस्तान, बालक, जनता आर जागृति जैसे पत्र – पत्रिकाओं में छपी थी। साथ ही उनकी रचनाएं समय-समय पर बिसुनगढ़ स्थित “सुखद खोरठा साहित्य कुटीर” से प्रकाशित होती रही है।

• हिंदी में प्रसिद्ध कविता संग्रह:- कलाम ए व्याकुल, तरान ए व्याकुल, सफर का साथी, छोटानागपुर इत्यादि।
उर्दू में:- हुश्न – इश्क, फलक से
खोरठा में रचना:- किसानों का आर्न्तनाद (1943-44), मादल (1950-51), मादल ध्वनि मधुर ताल (1976-77) ये सभी गीत संग्रह

खोरठा भाषा में विविध विषयों पर उनकी कुछ कविता

खोरठा भाषा में लिखी गई ‘व्याकुल’ जी कि रचनाएं समाज में जागरूकता लाती है। इनकी रचनाओं में यहां के मिट्टी और मनुष्य के प्रति प्रेम, दर्द, बच्चे को दुलार का बखान और सामाजिक बदलाव जैसे चीजों पर मिलती है। इनके गीत और कविता शिक्षा, सामाजिक कुरीति, सामाज में जोश भरने वाला है। उनकी रचनाएँ देशभक्ति से ओतप्रोत थी। ऐसा माना जाता है कि उनकी रचनाओं को अंग्रेज अधिकारियों द्वारा जला दिया गया था। फिर भी व्याकुल जी की रचनाएँ विविध विधाओं में मिलती है।

वियोग गीत

“जकरा लागी हम घर दर तेयागलु, धरलुं जोगनिया के भेस!
जेकरा लागी मोर हाड़-मांस सुखी गेल, से हीरे विदेसा चलि गेल ? हाय रे विधि बड़ा दुख भेल। “

झारखंड की सुंदर प्रकृति चित्रण

“मनोहर बोन-झार, झरना नदी-पहाड़
कोईल पपीहा करे सोर गो
डाहक सुनावे गीति, नाचे मोर गो
एहे देखें लागे मन मोर गो। “

हिन्दू – मुस्लिम एकता पर

“नाहि कोई अलग न आन गो
एक सबे हिन्दु – मुसलमान राम-रहीम
एक- कृष्ण-करीम एक एक खोदा,
अल्ला भगवान गो”

किसान की व्यथा पर एक पंक्ति

“दुखदनवा कैलक हैरान रे, फिकिरिया मारलक जान!
करजा करि करि खेती कैलूँ, मरि गेल रे सब धान!
बैला बेची रजवा के देलुँ, सहुवा कहे बैमान! रे पिकिरिया मारलक जान।”

बच्चे को दुलारता कवि की कुछ पंक्ति

हामर बाबू, हामर सोना, हामर सुगा पढे गेल,
सुन गे अकली, सुन गे खगिआ, उंच करेजा आइझ भेल।

डंडवें धोती, हंथवे पोथी, देहिएं अंगा, मथवे तेल।
ठुमकी ठुमकी डहरें चललइ, देखी अंखिया तिरपित भेल।

पाटी चिरी सिथा चमकइल, देलइ काजर दुइओ अंखिऐ,
इसकुलवा में बाबु भगनी, के छउसइन संगे खेले खेल।
सुन गे अकली, सुन गे खगिआ, उंच करेजा आइझ भेलइ।

गिरहस्थ के बेटा हरजोतवा, बोने बोने चरावे गाय।
डंड़वे भगवा मथवें फेटा (पगरी), घाटा – लपसी मट्ठा खाय,
ओंठें खैनी पिच – पिच थुके, घार – बाहइर अंगना खरिहान!

उपलब्धि/सम्मान

भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी ने खोरठा भाषा में रचनाएं तब की जब खोरठा बोलना और लिखना लाज या अपमान समझा जाता था। तब उन्होंने खोरठा भाषा में लिखना शुरू किया। इस लिए उन्हे खोरठा के शुरूआती रचनाकार (साहित्यकार) के रूप में भी जाना जा सकता है। हजारीबाग के पहले सांसद स्वतंत्रता सेनानी राम नारायण सिंह ने व्याकुल जी को “राष्ट्रीय कवि” कहा करते थे। रामगढ़ में 1940 में हुए कांग्रेस के अधिवेशन को सफल बनाने में व्याकुल जी बड़ा योगदान रहा है। 1989 में खोरठा साहित्य – संस्कृति परिषद, बोकारो द्वारा उन्हें “श्रीनिवास पानुरी स्मृति सम्मान- 1989” प्रदान किया गया।

व्याकुल जी की जीवनी “परितोष कुमार प्रजापति” ने खोरठा भाषा में लिखी है। जो नवम् कक्षा के खोरठा पाठ्यपुस्तक में शामिल की गयी है। उनके साहित्य परिचय को खोरठा भाषा के प्रसिद्ध लेखक डाॅ. बी एन ओहदार ने खोरठा भाषा एवं साहित्य (उद्भव एवं विकास) में की है। खोरठाक घरडिंड़ा पुस्तक में तारकेश्वर महतो “गरीब” ने खोरठा भाषा में भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी का विवरण प्रस्तुत किया है। जानेमाने खोरठा लेखक और प्रोफेसर दिनेश दिनमणि ने ‘नावां खांटी खोरठा’ किताब में व्याकुल जीक जीवनी का बिंदुवार विवरण प्रस्तुत किया है। गजाधर महतो ‘प्रभाकर‘ ने भी अपनी कई पुस्तकों में व्याकुल जी की संक्षिप्त जीवनी लिखी है।

डाॅ. आनंद किशोर दांगी ने भी खोरठा कवियों का काव्यगत परिचय में व्याकुल जी का संक्षिप्त विवरण लिखा है। खोरठा विकास काल (वर्तमान समय) के उभरते हुए खोरठा लेखक महेंद्र प्रसाद दांगी ने भी गूगल पर बेबसाइट www.gyantarang.com पर भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी की विस्तृत जीवनी हिंदी भाषा में लिखकर पोस्ट किया है। विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग के बेबसाइट पर भी व्याकुल जी संक्षिप्त जीवनी का वर्णन मिलता है।

महत्वपूर्ण तथ्य:-

• भुनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी का जन्म 17 मार्च 1908 को महथाडीह, गिरिडीह में हुआ था।
• व्याकुल जी बिशनुगढ़ हजारीबाग में बस गये।
• भुनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी की मृत्यु 17 सितम्बर 1984 में हुई थी।
• जन्म के छ: महीना के बाद ही उनके पिता पं. बलदेव प्रसाद उपाध्याय की मृत्यु हो गयी थी।
• पिता जी की मृत्यु के बाद उनका लालन – पालन आजा (दादा) पं. अयोध्या प्रसाद उपाध्याय ने किया था।
• 11 वर्ष की उम्र में भागकर वे कांसी (वाराणसी) चले गये थे।
1925 में “व्याकुल” जी गांधी जी के संपर्क में आये इसके बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में कुद पड़े।
• “व्याकुल जी” 1930 में हजारीबाग जेल में हिन्दी के प्रसिद्ध रचनाकार ‘रामवृक्ष बेनीपुरी‘ से मिले। जहाँ उन्होंने “कैदी” नाम रचना लिखी।
• झारखण्ड के हजारीबाग से कांग्रेस के सांसद रामनारायण सिंह ने इन्हें “राष्ट्रीय कवि” कहा था।
• व्याकुल जी मध्यकाल 1900-1950 के लेखक माने जाते हैं। हालांकि इसमें खोरठा विद्वानों में मतभेद है।
• अधिकतर विद्वानों ने ‘व्याकुल’ जी को मध्यकाल के खोरठा कवि के रूप में वर्णन किया है। जबकि गजाधर महतो ‘प्रभाकर’ ने व्याकुल जी को आधुनिक काल के शुरुआती कवि के रूप में वर्णित किया है।
• भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी को 1989 में “श्रीनिवास पानुरी स्मृति साहित्य सम्मान” से सम्मानित किया गया है।
1940 के रामगढ़ में हुए कांग्रेस अधिवेशन में ‘व्याकुल’ जी की भुमिका महत्वपूर्ण थी।

खोरठा भाषा में भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण आब्जेक्टिव प्रश्न

1. भुवनेश्वर दत्त शर्मा जी कौन उपनामे जानल जा हे?
a. राष्ट्रीय कवि b. व्याकुल c. गिरिडीहवी d. झारपात
उत्तर:- b. व्याकुल
2. व्याकुल जीक जनम कहिया भेल हलइ?
a. 5 मार्च 1900 b. 17 अगस्त 1911 c. 17 मार्च 1908 d. 25 दिसंबर 1875
उत्तर:- c. 17 मार्च 1908
3. भुवनेश्वर दत्त शर्मा जीक जनम कोन ठांव (स्थान) भेल हलइ?
a. बालीडीह, धनबाद b. रोआम, कतरास c. महथाडीह, गिरिडीह d. चौफान्द, बोकारो
उत्तर:- c. महथाडीह, गिरिडीह
4. व्याकुल जीक ‘राष्ट्रीय कवि’ केइर कर के संबोधित करले हला?
a. रामनारायण सिंह b. डाॅ ए के झा c. शिबु सोरेन d. श्रीनिवास पानुरी
उत्तर:-a. रामनारायण सिंह
5. भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जीक बापेक नाम बतवा?
a. बालेश्वर प्र उपाध्याय b. बलदेव प्र उपाध्याय c. मोहन उपाध्याय d. ईश्वर प्र शर्मा
उत्तर:- b. बलदेव प्र उपाध्याय
6. “हामर सुगा पढ़े ले गेल, सुनगे अकली, सुन ये खगिया, ऊंच करेजा आइझ भेल” ई कबिताक पंक्ति केकर लिखल लागे?
a. भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ b. डाॅ ए के झा c. श्रीनिवास पानुरी d. डाॅ बिनोद कुमार
उत्तर:- a. भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’
7. “हामर सुगा पढ़े ले गेल, सुनगे अकली, सुन ये खगिया, ऊंच करेजा आइझ भेल” ई कबिताक से कबि कोन भाव फरीछ (स्पष्ट) हवो हे?
a. देश भक्ति b. छउवा दुलार c. सिंगार रस d. बीर रस
उत्तर:- b. छउवा दुलार
8. भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जीक कोन खोरठा साहितकार लिखल हथ?
a. b. गीता रानी c. मनपुरण गोस्वामी d. पारितोषिक कुमार प्रजापति
उत्तर:- d. पारितोषिक कुमार प्रजापति
9. भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जीक कोन बछर (वर्ष) सम्मानित करल गेल हल?
a. 1981 b. 1985 c. 1989 d. 1992
उत्तर:- c. 1989
10. अधिकतर खोरठाक विद्वान गुला भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जीक किस कालेक कवि मानो हथ?
a. आदि कालेक b. मइध कालेक c. आधुनिक कालेक d. विकास कालेक
उत्तर:- b. मइध कालेक
11. “कलाम ए व्याकुल” भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी उखरावल (लिखा गया) कबिता कोन बछर परकासित भेल हे?
a. 1920 b. 1926 c. 1930 d. 1939
उत्तर:- d. 1939
12. भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी कोन कांग्रेसी कार्यकर्ता विधवा जनी संग बिहा करल हला?
a. सरस्वती देवी b. कमला मसोमाइत c. सहोदवा देवी d. क्रांति देवी
उत्तर:- a. सरस्वती देवी
13. भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी कोन भासाञ (भाषा में) रचना लिखो हला?
a. हिंदी, खोरठा, अंग्रेजी b. हिंदी, खोरठा, अंग्रेजी, संथाली c. हिंदी, खोरठा, उर्दू, संथाली d. हिंदी, संस्कृत, बांग्ला
उत्तर:- c. हिंदी, खोरठा, उर्दू, संथाली
14. कते बछरे भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जी घर से भाइग के कांसी चइल गेल हला?
a. 5 बछर b. 8 बछर c. 9 बछर d. 11 बछर
उत्तर:- d. 11 बछर
15. कोन बछर व्याकुल जी गांधी जीक संपर्क में अइला आर आजादिक आंदोलन में भाग लेला?
a. 1920 b. 1925 c. 1930 d. 1942
उत्तर:- b. 1925
16. भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जीक भेंट 1930 ई में हजारीबाग जेलें किस हिंदी साहितकार से भेल हलई?
a. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ b. रामवृक्ष बेनीपुरी c. सुमित्रानंदन पंत d. माखनलाल चतुर्वेदी
उत्तर:- b. रामवृक्ष बेनीपुरी
17. हिंआ लिखल एकर में कोन खोरठा साहितकार कलाकार, गवइया और बजवइया भी हलथ?
a. डाॅ ए के झा b. दिनेश दिनमणि c. भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ d. विनय तिवारी
उत्तर:- c. भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’
18. कोन खोरठा साहितकारेक रचना “सुखद खोरठा साहित्य कुटीर विष्णुगढ़” से परकासित हवो हलइ
a. भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ b. विश्वनाथ दसौंधी ‘राज’ c. घनपत महतो ‘गणपति’ d. संतोष कुमार महतो
उत्तर:- a. भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’
19. “नौ जवां! या तो गुलामी को, मिटाकर दम ले, वर्ना अच्छा है कि बस सर को कटा कर दम ले” भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जीक ई कबिताक से कोन भाव फरीछ (स्पष्ट) हवो हे?
a. देश भक्ति b. छउवा दुलार c. सिंगार रस d. परेम रस
उत्तर:- a. देश भक्ति
20. भुवनेश्वर दत्त शर्मा जी कोन बछर सिराइ (मृत्यु) गेला।
a. 15 अगस्त 1995 b. 17 अक्टूबर 1980 c. 17 सितम्बर 1984 d. 10 मई 2005
उत्तर:- c. 17 सितम्बर 1984
21. शुरुआत में ‘गिरिडीहवी’ उपनाम कोन खोरठा साहितकार लिखे हला जे पेछु उपनाम व्याकुल लिखे लागला?
a. पारितोष कुमार प्रजापति b. महेन्द्र प्रबुद्ध c. शांति भारत d. भुवनेश्वर दत्त शर्मा
उत्तर:- d. भुवनेश्वर दत्त शर्मा
22. किसानों का आर्न्तनाद गीत संग्रह केकर लिखल लागे?
a. डा. बी एन ओहदार b. दिनेश दिनमणि c. भुवनेश्वर दत्त शर्मा d. महेन्द्र प्रबुद्ध
उतर:- c. भुवनेश्वर दत्त शर्मा
23. मादल गीत संग्रह केकर लिखल लागे?
a. भुवनेश्वर दत्त शर्मा b. विनय तिवारी c. गजाधर महतो ‘प्रभाकर’ d. विश्वनाथ नागर
उतर:- a. भुवनेश्वर दत्त शर्मा
24. “दुखदनवा कैलक हैरान रे, फिकिरिया मारलक जान!
करजा करि करि खेती कैलूँ, मरि गेल रे सब धान” इ कबिताक पंक्ति केकर लिखल लागे?
a. शिवनाथ प्रमाणिक b. श्रीनिवास पानुरी c. श्याम सुंदर महतो ‘श्याम’ d. भुवनेश्वर दत्त शर्मा
उतर:- d. भुवनेश्वर दत्त शर्मा
25. . “दुखदनवा कैलक हैरान रे, फिकिरिया मारलक जान!
करजा करि करि खेती कैलूँ, मरि गेल रे सब धान” भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ जीक लिखल इ कबिताक पंक्ति से कोन भाव फरीछ हवो हे?
a. किसानेक पीड़ा b. जेनी – मरद के बियोग c. बेटी – छउवा दुलार d. हिंदू – मुस्लिम एकता
उतर:- a. किसानेक पीड़ा
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स्रोत:-
• खोरठाक घरडिंडा – तारकेश्वर महतो ‘गरीब”
• नावां खांटी खोरठा – दिनेश दिनमणि
• दू डाइर परास फूल – 9th. किताब
• खोरठा गइद पइद संगरह
• खोरठा भाषा एवं साहित्य (उद्भव एवं विकास) – डाॅ. बी. एन. ओहदार
• विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग के बेबसाइट Www.Bvu.Ac.In

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Bhuvneshwar Dutt Sharma vyakul । भुनेश्वर दत्त शर्मा व्याकुल की जीवनी

प्रस्तुतीकरण
www.gyantarang.com
संकलन
महेंद्र प्रसाद दांगी, शिक्षक

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