Khortha kahani | मानुसेक सेवा सबले बोड़़ धरम | खोरठा कहानी

Khortha kahani | मानुसेक सेवा सबले बोड़़ धरम | खोरठा कहानी


भोरे से डोमनाक घरें चहल – पहल हलई। किलेकी बोड़ मनोतीक (गछौती) पेछु आइझ डोमनाक घरें बेटा-छउआ भेल हलई। डोमना आर डोमनाक जनी ई खातिर कहां- कहां नाञ गेला। चारो धाम के अलावा कते ओझा – गुनी करलका, आखिरे गावें शिब जीक मंदिल बनाबे गछला (मनोती), तब आइझ डोमनाक घरें खुशहाली आइल हे।
छउआ भेल पेछु डोमना जहां-जहां मनोति गछलक हल हुआं-हुआं समझ सिरे गछौती (मनोती) पूरा कर दलका हल। अब एगो खाली बचल हे शिब मंदिल बनावेक जे आपनहीं गावें बनावेक हे। मंदिल बनावेक खातिर डोमनाक ढेर पैसा-कउडी दरकार हे। किलेकि शिब मंदिल बनावेक कोई खेल काम नाञ। ई सोइच के डोमना आर डोमेनाक (जनी) परिवार रोज-रोज कुछ कचा बचाके राखो लागल।


डोमनाक छउआ दस बछर के भेई गेल रहे। ई दस बछरें डोमना आर डोमनाक जनी मंदिल बनावेक खातिर जोगा-जोगा के एक लाख टका जमा कर लेलका | एक दिन समई बचाके पाण्डेय बाबाक बुलाके मंदिलो के नींव रख देलका। गावहुं ई चर्चा बिसई बन गेल हले कि ई बेचारा जे कहलकई से करके देखा देलकई। गोटे गावें मानुख डोमनाक सराहना करो हला।
डोमनाक गांव बिहड़ जंगल – झाड़ में रहे। आवागमनेक साधन कटि कम रहे। गावें मूल सुविधाक अभाव रहे। नाञ खाय के ठेकान नाञ पियेक ठेकान। पानीयो नदी – नाला से भरके पियो हलथ। दिन खा हला तो राइत खाइ खातिर सोंचो हला। ई गावेंक जुवान मरद शहर जाइ काम – धंधाइ करेक गुजर बसर करो हला। गावें खेती – बारी कटि कम हवो हले, जे हवो पारे से मानसून उपरें निरभर हले। जे बछर बरसा कम हवो हल से बछर गावें भुखमरी जेइसन हालत हो जा हले।


मंदिलेक नींव रखले कोई दुइगो महिना बित गेल हलई। मकिन मंदिल बनावेक जुगाड़ के बेवस्था एखन तक नाञ हवे पारल हल। से ले एखनो मंदिले काम रूकल हले। एहे समई एक दिन डोमनाक गावें हैजा महामारी आ गेलई। हैजा छुआछूत के एइसन बीमारी लागे जे देखते – देखते गोटे गांव पसर गेल। दुइ आदमियों सिराई गेला। गावें गरीबी ई रकम हले की लोगेक ठन खाइ खातिर कचा – कउड़ी नाञ तो इलाज की करेता। गावें ई एगो बिकट परिस्थिति आ गेल हला। डोमना एगो कटि पढ़ल – लिखन मानुख हले। से ले उ पानी उबाइल और खाना गरम खा हले। सेटा एखन तक हैजा से बचल रहे। मकिन गोटे गांव हैजाक परकोप पसर गेल हले। जेइसन बुझा हले कि गोटे गावें बचेक अब गुंजाइश नाञ।


डोमनाक घरेहुं उदासी छा गेल हलई। कि उपाय करल जाइ, कइसे ई हैजा से गावं उबरतइ, सोच -सोच के डोमना आर ओकर जनीक लोर बहे लागल। ए हे बेर डोमनाक मने एगो उपाय सूझलई, “जे कचा – कउड़ी शिब मंदिल बनवे खातिर जोगा के रखले हूं वहे कचा – कउड़ी से गावेंक मानुख के इलाजें खरचा करेक दरकार हे।” डोमना आर डोमनाक जनी विचार करो लागला कि अगर ई कचा गावेंक इलाज खरचा हो जेतई तो फिर मंदिल बनओ नाञ पारब। आर हमनिक गछौती (मनोती) पुरा नाञ हवो पारत। जेकर से शिब भगवान् रूसट हो सको हे, आर अनहोनियो हो सको हे। ई बात डोमना आर डोमनाक जनीक मनें खटक रहल हे।


डोमना आर डोमनाक जनी खुबे बिचार करलका। एक पला आपन छउआक रखला आर दोसर पला गावें मानुख के। आर विचार करो लगला कि अगर ई कचा मंदिल बनवे खातिर रखहुं तो गोटे गांव नाश भेइ जेतइ , आर ई कचा गावें मानुख ईलाज में लगायेब तो भगवान् अनहोनी कर सको हे। किलेकि छउआ गछौती (मनोती) से भेल रहे आर कचा खरचा कर देल से पेछु मंदिल नाञ बनो पारत। डोमना आर डोमनाक जनी बड़ी सोच – विचार करलका गोटे गावेंक मानुख सामने आपन छउआ की कीमत, गोटे गांव सुन भे जतई तो हमनि रहेक की करबा। जे होतइ से होतई! ई कचा से गावेंक इलाज करावेक चाही।


डोमना तुरंते साइकिल पकड़के 10 कोस दूर शहर गेल। शहर जाइके 10 गो एंबुलेंस ले के गावं एइला आर जे जे हैजा से बीमार हला ओकर शहरेक हास्पिटल भरती करेलका। डोमना आपन जीनगी में जे कमा – धमा के जमा पूंजी रखलका उ सब ईलाज करावे में झोंक देलक। डोमनाक त्याग आर बलिदानेक रंग आइल। करे – करे गावेंक मानुख ठीक हवो लागल। पंद्रह – बीस दिन में सबें ठीक भे गेला। आइझ डोमना आर डोमनाक जनीक सेवा भाव‌ से गावेंक मानुख तो बच गेल हला। मकिन अब डोमना गावें मंदिल नाञ बनओ पारत ई बात भी गावेंक मानुख समझो हला। डोमना आर डोमनाक जनियो ई बात के समझो हला कि जे हुलास ई त्याग आर बलिदान में मिल लई ऊ मंदिल में नाञ मिले पारतई।


ओहे घरि एक राइत डोमनाक सपनाञ भगवान् शिब अइला आर कहलका ” हे डोमना तोर त्याग आर बलिदान आर सेवा भाव एगो तीरथ हे। एतना बड़ काम कउनो भगवान् करे पारे हे, जे तू करला हे, हम ई तोर काम से कते हुलास हे कहे ना पारे। ई काम मंदिल से भी बोड़ काम हे, तु सभे परिवार खुश रहा।” भोरे जब डोमना आर डोमनाक जनी उठला तो घरे दुवारे गावेंक मानुखेक भीड़ देख डोमना आर डोमनाक जनी घबरा गेला, सोंचे लागल कहीं कोनो आर बिपति नाञ आ गेल। मकिन ई बात तो कउनो दोसर रहे। गावेंक मानुख एगो प्रस्ताव लेके अइला आर कहला कि “डोमना गावें मंदिल जरूर बनतई, ई तोर खाली जिम्मेवारी नाञ! अब हमनी सब मिलके गावें शिब मंदिल बनेबई यही प्रस्ताव हे।” गावेंक मानुखेक विचार सुन डोमना आर डोमनाक जनीक लोर हुलास से डबडबा गेल। सेटा कहलोहुं गेल हे-
“सच मन से सेव भगवानेक सेवा हे।”


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कुछ शब्दों के हिंदी अर्थ:-


खोरठा शब्द — हिंदी अर्थ
गछौती — मनोती
आइझ — आज
कचा – पैसा
मंदिल — मंदिर
पेछु — के बाद
भोरे – सुबह से
छउआ – बेटा
बछर – वर्ष
जनी – पत्नी
गोटे- सभी
मानुख – मनुष्य
कोस – दुरी का मात्रक
1 कोस – 3 किलोमीटर
किलेकी – क्यों कि
हुलास – खुशी
लोर – आंसू
बोड़ – बड़ा
करे – करे – धीरे – धीरे
रूसट – रूसना
सिराई गेल – मर जाना
पला — तराजू
समई सिरे — समय के साथ
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लेखक का संक्षिप्त परिचय


नाम:- महेन्द्र प्रसाद दांगी
माता का नाम:- स्वर्गीय सावित्री देवी
पिता का नाम:- श्री सीता राम दांगी
जन्मतिथि:- 10 मई 1978


पता (पैतृक गांव):-
ग्राम + पोस्ट + थाना + प्रखण्ड- गिद्धौर, जिला- चतरा (झारखंड)
शिक्षा प्रारंभिक मध्य उच्च सभी परीक्षाओं के वर्ष के साथ:-
• मैट्रिक परीक्षा:- 1993 में, गंगा स्मारक उच्च विद्यालय, गिद्धौर से।
• इंटर:- 1995 में, संत कोलम्बा महाविद्यालय, हजारीबाग से
• बी. ए. (भूगोल):- 1999 में, संत कोलम्बा महाविद्यालय, हजारीबाग से।
• बी. एड:- 2006 में, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा (बिहार)
• एम. ए. (भूगोल विषय):-2009 में, नालंदा खुला विश्वविद्यालय, पटना
• एम. ए. (खोरठा विषय): 2010 में, रांची विश्वविद्यालय, रांची
• पीजीडीआरडी:- 2009 में, इग्नू से

अगर हो तो कृर्ति भी:-
किताब अभी तक नहीं लिखी है। पर हिंदी के साथ – साथ खोरठा भाषा में विभिन्न विधाओं रचनाएँ की है। मेरी रचना खोरठा पत्रिका परासफूल और खोरठा टाइम्स में प्रकाशित हुई है। वर्तमान समय में बदलती तकनीकी दुनिया में इंटरनेट को लोगों तक पहुँचने का सरल माध्यम माना जाता है। बेबसाइट पर और यूट्यूब चैनल Gyantarang Knowledge पर भी मिलती है।


कुछ प्रमुख रचनाएं:-
श्रीनिवास पानुरी, भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’, दिनमणि, विनय तिवारी, महेन्द्र प्रबुद्ध की जीवनी लिखी है। इसके अलावे खोरठा लेखकों के उपनाम, खोरठा भाषा विकास में पत्र – पत्रिका का योगदान, खोरठा भाषा का मानक रूप इत्यादि पर आलेख लिखा है।


पुरस्कार/सम्मान:-
खोरठा भाषा और शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वर्ष 2016 में शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए गिरिडीह जिला प्रशासन की ओर से दिशा सम्मान से सम्मानित किया गया। वर्ष 2022 में खोरठा भाषा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए खोरठा भाषा साहित्य विकास मंच, बरवाअड्डा (धनबाद) द्वारा “श्रीनिवास पानुरी खोरठा प्रबुद्ध सम्मान” से सम्मानित किया गया।
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