sondh mati khortha book | सोंध माटी बुक | sondh mati mcqs

sondh mati khortha book | सोंध माटी बुक | sondh mati mcqs

सोंध माटी खोरठा की प्रसिद्ध कहानी और कविता संग्रह की पुस्तक है। इस पुस्तक के रचनाकार डाॅ. बिनोद कुमार हैं। इस पुस्तक में 10 कहानी और 31 कविता शामिल है। जो झारखंड के सामाजिक स्थिति के बारे में बताता है। सोंध माटी के कविताओं में एक ओर जहां नशा पान और दहेज प्रथा की बुराई के बारे में बताया गया है वहीं दूसरी ओर झारखंड के ऊर्जा खनिज कोयला की भी जानकारी “करिया हीरा” नाम से दी गई है। सोंध माटी पुस्तक की कहानी और कविता जेपीएससी, जेएसएससी, सीजीएल जैसे कई प्रतियोगी परीक्षा में शामिल है। इस दृष्टिकोण से इस पुस्तक का अध्ययन करना झारखंड के प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है।

      डाॅ. बिनोद कुमार का जीवन परिचय     

जन्म:- 18 नवंबर 1961
माता:- स्व. सुगवंती देवी
पिता:- स्व. मथुरा प्रसाद
पता:- ग्राम+पोस्ट- दारू, जिला- हजारीबाग (झारखण्ड)

शिक्षा:-

• स्नातक (B.A) 1981
• स्नातकोत्तर खोरठा (M.A khortha) से 1886
• स्नातकोत्तर हिंदी (M.A Hindi) से 1989
• यूजीसी नेट 1990
• पीएचडी- 2006

अध्यापन:-

• व्याख्याता, जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग,  रांची विश्वविद्यालय रांची में सितंबर 1986 से जुलाई  1987 तक
• सहायक प्राध्यापक (खोरठा भाषा) जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची महाविद्यालय, रांची में जुलाई 1987 से 2016 तक
• विभागाध्यक्ष, जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग रांची महाविद्यालय, रांची वर्ष 2016 से 2018 तक
• समन्वयक, जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाएं, डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची (रांची विश्वविद्यालय रांची) 2018 से 2020 तक।

खोरठा पुस्तकें:-

• सोंध माटी (खोरठा कहानी एवं कविता संग्रह)- 1990
• खोरठा लोक गीतों का सांस्कृतिक अध्ययन – 2019
• बंबरा (खोरठा निबंध संग्रह)
• बोन पतरा (खोरठा कहानी संग्रह)
• धोबइयाक धमक (खोरठा कहानी, निबंध एवं कविता संग्रह)

खोरठा में कार्य एवं  प्रकाशित अन्य रचनाएं:-

• खोरठा गइद पइद संग्रह में सहयोगी संपादक का कार्य किया है।
• खोरठा लोक कथा में संपादन सलाहकार का कार्य किया है।
• खोरठा सहित सदानिक बेयाकरन में सहयोगी संपादक का कार्य किया है।
• रांची एक्सप्रेस, प्रभात खबर, छोटानागपुर रश्मि प्रवेशांक समाचार पत्रों में खोरठा रचनाएं प्रकाशित हुई है।
• आदिवासी, तितकी, डहर, नागपुरी, कला संगम रांची की स्मारिका, चित्रगुप्त परिवार की स्मारिका पत्रिका में रचनाएं प्रकाशित हुई है।
• रूसल पुटूस, एक टोकी फूल, खोरठा गइद-पइद संग्रह नामक पुस्तकों में इनकी खोरठा रचनाएं शामिल हैं।
• आकाशवाणी एवं दूरदर्शन रांची से विविध विधाओं में रचनाएं प्रसारित हुई है।

पदाधिकारी के रूप में कार्य:-

• रांची विश्वविद्यालय रांची,  डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय रांची, विनोवा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग में सिलेबस बोर्ड के सदस्य के रूप में कार्य
• यूजीसी, नेट, जेआरएफ सिलेबस बोर्ड के सदस्य के रूप में कार्य
• इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, रांची के एकेडमिक काउंसिल के सदस्य के रूप में कार्य
• डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के सीनेट सदस्य (2020-21) के रूप में कार्य

सम्मान

1. खोरठा रत्न – 1993
2. खोरठा जज – नृत्य गीत प्रतियोगिता जैक
3. खोरठा कहानी लेखन प्रतियोगिता के लिए चयन समिति के सदस्य – 2006
4. डॉ. अंबेडकर फैलोशिप सम्मान – 2018
5. झारखंडी भाषा साहित्य विशेष सम्मान – 2019
6. विलुप्त भाषाओं के प्रल्लेखन के सहयोग के लिए विशेष सम्मान – 2021
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सोंध माटी (खोरठा कहानी एवं कविता संग्रह)

सोंध माटी का प्रथम संस्करण वर्ष 1990 में प्रकाशित हुआ था। इस पुस्तक का प्रकाशन जनजातीय भाषा अकादमी आदिवासी कल्याण आयुक्त रांची के द्वारा किया गया था। इस खोरठा पुस्तक में 10 कहानी और 31 कविताओं का संग्रह है। जिसका विवरण यहां दिया जा रहा है।

  कहानी 

1. उबार
2. जिनगीक डोंआनी
3. धुवा-धंधा
4. माय के लोर
5. अजवाइर भउजीक बेंडायल चेंगा
6. एक पइला जोंढ़रा
7. ओद दीदा
8. मलकी बहु
9. भीतर-बाहर
10. हुब

1. उबार

अर्थ:- तारना, कल्याण करना

पात्र:-
• झबरू
• बिहारी-  झबरू का बेटा 
• गणेश बाबू – गांव का दबंग
• महेश बाबू – गांव का दबंग
• बीरू – साहूकार का बेटा

कहानी का सार संक्षेप:- यह कहानी शिक्षा के महत्व को बताती है। झबरू का बेटा पढ़कर इंस्पेक्टर बनता है और अपने परिवार को उधार लेता है।

झबरू का जब बेटा बिहारी जन्म लेता है तब उसकी मां खुश होकर उसे पुलिस इंस्पेक्टर बनने का सपना देखती है। झबरू अपने दिवंगत मां की इच्छा पूरा करने के लिए बेटा बिहारी को खूब पढ़ाता है। हालांकि गांव के गणेश बाबू और महेश बाबू जैसे दुष्ट दबंगों से काफी मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है। बिहारी को पढाने के लिए झबरू फसल बेचता है, जमीन जायदात तक बेचनी पडती है। आखिरकार झबरू का बेटा बिहारी पुलिस इंस्पेक्टर बनकर अपनी दादी का सपना पूरा करता है। हालांकि इस बीच झबरू बीमारी से मर जाता है, पर बिहारी पुलिस इंस्पेक्टर बन अपने खानदान को उबार देता है। अर्थात तार देता है।

2. जिनगीक डोंआनी

अर्थ:-
• जिनगीक- जीवन
• डोंआनी- रोना/तलाश

जीवन का रोना/ जीवन की तलाश

पात्र:-
• जंगली नामक युवक
• जंगली की मां

कहानी का सार संक्षेप:- यह जंगली नामक गरीब बेरोजगार युवक के ईद-गिर्द की कहानी है। इस कहानी में गरीबी और बेरोजगारी की दशा को प्रदर्शित किया है। दिखाया गया है कि किस प्रकार गरीबी और बेरोजगारी अपमान का कारण बनता है।

बड़ी कठिनाइयों से जंगली को जंगली की मां ने पाला-पोसा था।  पिता के निधन से टूवर (अनाथ) जंगली को घर में भाइयों और भाभियों से ताना मिलता था। उम्र ढल रही थी बाल पकने लगे थे जिससे उसके सहपाठी बुढ़ा ददा कहकर बुलाते थे। बहुत समय बीतने के बाद भी जंगली को नौकरी नहीं मिली। बुढ़ापा के कारण मां का अंतिम समय आ गया था। अंत समय जानकर जंगली के मां ने उसे 100 रूपया दी और पान की गुमटी का बिजनेस का सुझाव देकर अंतिम सांस लेती है।

3. धुवा – धंधा

पात्र:-
• डाॅ. नारायण
• किसुन- कंपाउंडर
• भिखारी

कहानी का सार संक्षेप: यह कहानी मानवीय संवेदना और भिखारियों के दशाओं पर आधारित है।

इस कहानी में डाॅ. नारायण, कंपाउंडर किसुन और भिखारियों के बीच की सामाजिक ताना-बाना को दिखाया गया है। इसमें आर्थिक विषम परिस्थितियों में भिखारियों की दशा तथा समाज के रवैया को प्रदर्शित किया गया है। डॉ नारायण एक संवेदनशील डॉक्टर हैं। उनके दिल में गरीबों को प्रति काफी सहानुभूति रखती है। वे गरीबों की सेवा और सहयोग को अपना धर्म समझते हैं। जबकि उन्हीं का कंपाउंडर की किसुन बड़ा ही खड़ूस है। क्लीनिक में आए गरीब भिखारियों के साथ खराब व्यवहार करता है।

4. माय के लोर

अर्थ:-
• माय- मां
• लोर- आंसु

“मां के आंसु”

पात्र:-
• सुरजा
• नरेना- सुरजा का बेटा
• मंगरा- गांव का एक मजदूर
• गिरजा बाबू- गांव का जमींदार

कहानी का सार संक्षेप: मार्मिकता भरी यह कहानी एक गरीब परिवार की है। जिसे गांव में ठीक ढंग से काम नहीं मिलता और वह बाहर जाकर काम करने की सोचता है। यह कहानी विस्थापन पर आधारित है। एक मां के छलकती आंसु को दिखाया गया है।

युवा सुरजा की जिंदगी गरीबी में बीत रही थी। खजूर के छत वाली झोपड़ी में सुरज अपनी मां पत्नी और डेढ़-दो साल के बेटा नरेना के साथ रह रहा था। सुरजा के बाप जमींदार गीरजा बाबु के यहां खेत में काम करते-करते मर गया। गरीबी के कारण सुरजा की पढ़ाई भी नहीं हुइ है। वह अपनी दशा सुधारना चाहता है। गांव के ही मंगरा को शहर जाकर मजदूरी कर पैसा कमाते और तरक्की करते देखा है। सुरजा भी जमींदार गिरजा बाबु के खेतों में काम करने से मना कर देता है और शहर जाकर पैसा कमाना चाहता है। सुरजा की मां सुरजा को बाहर जाने से मना करती है। आखिरकार सुरजा अपनी पत्नी और बेटा नरेना के साथ मां से बिदा लेकर बाहर काम करने चल देता है। सुरजा की मां दहाड़ मार कर रोने लगती है।

5. अजवाइर भउजीक बेंडायल चेंगा

अर्थ:-
• अजवाइर- निकम्मा (फालतु बैठे रहने वाला)
• बेंडायल- बिगडल
• चेंगा- बच्चा

  “निक्कमें भाभी के बिगडेल बच्चा”

पात्र:-
• कहानीकार स्वयं
• कहानीकार का भाई
• कहानीकार की भाभी
• कहानीकार का भतीजा टुकना

कहानी का सार संक्षेप:यह कहानी लेखक ने स्वयं पर लिखी है। रिस्ते के निक्कमे भाभी अपने बच्चों को लावारिस स्थिति में थोड़ देती है। लेखक शिक्षा को बताता है।

कहानीकार के रिश्ते के भाई मैट्रिक पास करने के बाद कोर्ट में पेशकार की नौकरी करता है। उसकी पत्नी एक बिगड़ैल औरत है। जो 10 बच्चों की मां है। पर बच्चों को सही परवरिश नहीं दे पाती है। अपने शौक, मौज, मस्ती के कारण वह बच्चों को लावारिस रूप में छोड़ दी है। चिलचिलाती धूप में भी उनके बच्चे आम के बगीचे में आम चुनने के लिए जाते हैं। मछली मारने के लिए भटकते रहते हैं। बच्चों के द्वारा लाए आम और मछली खाकर कहानीकार की भाभी बड़ा खुश होती है। पर वह यह नहीं समझती है कि बच्चों को पढ़ाई कितनी जरूरी है। पढ़ाई कर कहानीकार जब शहर से गांव पहुंचता है। तो यह सब देखकर काफी नाराज होता है। वह भाभी को समझाता है कि देश और दुनिया में शिक्षा का क्या महत्व है। उनकी भाभी को गलतियों का एहसास होता है और वह रोने लगती है। अंततः कहानीकार से वह बच्चों को स्कूल में नाम लिखाने के लिए कहती है।

6. दू पइला जोंडरा

अर्थ:-
• दू- दो
• पइला- अनाज मापने का छोटा बर्तन
• जोंडरा- मकई (मोटा अनाज)

“दो पैला मकई”

पात्र:-
• किसना
• किसनाक माय
• किसनाक बपा
• नरेना
• कन्हैया बाबु

कहानी का सार संक्षेप:इस कहानी में कहानीकार ने गरीब परिवार की आर्थिक दशा का मार्मिक चित्रण किया है।

किसना का बाप बांस से बनने वाले सूप, दउरी, बढनी, टाटी आदि का कारीगर है। लंबी दूरी तय कर वह जंगलों से बांस लाता है और काफी मेहनत से बांस से बनने वाले समानों को बनाकर अपने छोटे से परिवार को मुश्किल से पाल रहा है। दिन रात मेहनत के बाद भी दो सांझ का भोजन जुगाड़ ठीक से नहीं हो रहा है। दुधमुंहा किसना कई दिनों से बुखार से पीड़ित है। पैसे के अभाव में वह किसना का इलाज भी नहीं करवा पा रहा है।

इसी बीच गांव के दबंग कन्हैया बाबु के द्वारा किसना के बाप को सुप-दउरी बनाने का हुकुम मिलता है। जिनका हुकुम टालना मुश्किल है। किसना की बीमारी के हालत में भी किसना का बाप सुबह तक सुप और दउरी बनाकर तैयार कर देता है। सुप और दउरी बनाने पर किसना के बाप को छ: रूपये मिलते है। किसना के बाप के पास अब दुविधा की स्थिति बनती है कि इस छ: रूपये से वह किसना का इलाज करवाए या घर का राशन पानी की व्यवस्था करे। अंततः विकट परिस्थितियों के काम में आने के लिए घर में जोगाकर रखे गये दो पइला जोंडरा (मकई) के दानों को बेचना पड़ता है। उस पैसे से किसना का होता है। डॉ विनय ने सहानुभूति पूर्वक इलाज किया। इलाज से किसना ठीक होता है। बचा कर रखे गए यही दो पहला जोंड़रा (मकई) के दाने आज दो लाख के बराबर साबित होता है।

7. ओद दीदा

अर्थ:-
• ओद- भींगा हुआ/ नम/ आर्द्र
• दीदा- आंख

नम आंखे

पात्र:-
चानोवली या रेसमी माय
• स्वयं कहानीकार
• रेसमी
• सुकर महतो
• सुगिया
• जीरवा
• कोलहा
• निरमल महतो

कहानी का सार संक्षेप:यह कहानी लेखक के जीवन में घटित घटना पर आधारित है। इस कहानी के आधार पर स्वार्थी समाज पर अंगुली उठाई गई है। जब लोगों को किसी से कुछ लेना होता है तो बेहिचक लेते हैं। पर जब देना पड़ता है तो साफ इंकार कर देते हैं। सामाजिक बुराई और मानवीय संवेदना पर लिखी गई यह एक मार्मिक कहानी है।

इस कहानी में रेसमी के माय की मानसिक व्यथा को दिखाया गया है। इनका जन्म चानो गांव में हुआ था। इस लिए लोग इन्हें चानोवली के नाम से जानते हैं। ये एक छोटी जाति की विधवा महिला है। चानोवली के पति महतो जमींदार के घर में काम करते-करते दुनिया से चल बसा है। उनकी पत्नी चानोवली उसी महतो घर के काम कर बेटा कोलहा और बेटी रेशमी का पालन पोषण करती है। चानोवली मानवीय गुणों की प्रतिमूर्ति है तथा दया, करुणा, ईमानदारी उसमें कूट-कूट कर भरा हुआ। सरलता निश्चलता और मिलनसार स्वभाव उसके व्यक्तित्व की पहचान है।

चानोवली अपने काम, व्यवहार और ईमानदार छवि से महतो घर की अभिन्न हिस्सा बन जाती है। उसके बीना महतो के घर में कोई काम पुरा नहीं होता। महतो घर के बच्चे चानोवली को चानोवली मामा (दादी) कहकर संबोधित करते हैं। बच्चों के अपने पन से चानोवली गदगद हो जाती है। लेकिन उसके सरल मन को अक्सर एक पीड़ा सताती रहती थी कि उसे महतो के घर के सभी बच्चे मामा (दादी) कह कर पुकारते तो जरूर है परन्तु पूरी तरह दादी का सम्मान क्यों नहीं देते। जब ससुराल से आई महतो घर की सवासीनें (विवाहित बेटियां) मैके आती है तो सभी बड़े बुजुर्गों का पैर छूकर प्रणाम करती हैं पर वहीं पर खड़ी चानोवली के पैर नहीं छूती और न हीं हाथ जोड़कर प्रणाम करती है। इससे चानोवली को दुख होता है।

कहानीकार भी उसी घर का लड़का है वह एक बार चानोवली मामा की इस मनोव्यथा को महसूस करता है। वह तय करता है कि अबकी बार जब भी वह बाहर से घर आएगा तो चानोवली के पैर छुएगा। परन्तु लेखक की मुरीद पूरी नहीं होती है। कुछ दिन बीमार होकर चानोवली असमय चल बसती है। यह खबर मिलते ही लेखक भागे-भागे आता है। तब तो शमशान में चानोवली की चिता जलने लगी थी। लेखक भारी मन से जीता में लकडी डालता है और चानोवली मामा से हाथ जोड़कर माफी मांगता है। गांव लौटने पर लेखक को चानोवली की एक और महानता का पता चलता है। निर्मल महतो की मां छाती पीट कर रोती हुई बोल रही थी कि अरे निर्मल तुम्हारी दूसरी मां चली गई रे उसी ने अपना दूध पिला कर तुम्हें बडा किया था। यह सुनकर लेखक के मन में यह सवाल उठता है कि यह समाज कितना पाखंडी है। दूध पिलाते समय चानोवली की जाति आड़े नहीं आई पर सम्मान देने पर वह अछूत क्यों हो जाती थी। चानोवली के गुणों को याद कर लेखक समेत सभी लोगों की आंखें नम (ओद दिदा) हो जाता हैं।

8. मलकी बहु

पात्र:-
• मलकी
• बिसुन- मलकी का पति
• दयाल बाबु- मलकी के पिता

कहानी का सार संक्षेप:यह कहानी सामाजिक बुराई दहेज प्रथा की त्रासदी पर आधारित एक मार्मिक कहानी है।

दयाल बाबू बोकारो में नौकरी करते हैं। वहीं पर एक दिन एक्सचेंज में नाम लिखवाने आए बिसुन नामक स्नातक पास युवक से होती है जो संजोग से स्वजातीय है और खाते पीते परिवार से संबंधित है। दयाल बाबू बिसुन के मृदु व्यवहार से खुश होकर अपनी इकलौती बेटी मलकी के लिए पसंद कर लेते हैं। उसके बाद धूम-धाम से मलकी की शादी बिसुन से होती है। बारातियों के आवभगत में दयाल बाबू ने कोई कमी नहीं की थी। उन्होंने पर्याप्त दान-दहेज भी दिया था। पर गछे हुए सामानों में एक फटफटिया गाड़ी (मोटरसाईकिल) थी जो बाकी रह गयी थी। मोटरसाईकिल को लेकर मलकी के ससुराल वाले रोज उसे ताना देते थे। बिसुन भी उसके बदले पैसे के लिए दबाव डालता डालने लगा था। उसका ससुराल से कई बार झगड़ा भी हो चुका था।

मलकी के पिता दयाल बाबू अभी बाकी दहेज (मोटरसाईकिल) देने के लिए समर्थ नहीं थे। वे पुराने ख्याल के हैं बेटी को हर हाल में ससुराल में रहने की हिदायत देते हैं। सुशील, गुणवती मलकी कुछ दिनों बाद ही बिसुन के परिवार के लिए आंख का कांटा बन गई थी। उसको हर तरह से प्रताड़ित किया जा रहा था। खाने-पीना की कमी और मारपीट के चलते उसका गर्भपात हो जाता है। अब तो उसके सास उसे बांझ भी बुलाने लगी थी। उसका जीवन नर्क जैसा हो गया था। इसी बीच चुपके से रोहतास में बिसुन का दूसरा विवाह कर दिया जाता है। बिसुन के दूसरे विवाह के बाद मलकी की स्थिति और भी बद से बदतर हो जाती है।

9. भीतर-बाहर

पात्र:-
• कहानीकार स्वयं
• सेरजुवा (सेराज)
• इबादत खां सेरजुवा के पिता

कहानी का सार संक्षेप:इस कहानी को कहानीकार ने अपने जीवन में घटी एक घटना के आधार पर लिखा है। जो सांप्रदायिक सौहार्द की मिशाल पर आधारित है।

इस कहानी में इबादत खां मानवीय मूल्यों से लवरेज निहायत ही एक नेक इंसान है। वे बिना किसी जाति धर्म भेदभाव के हर इंसान को मदद के लिए तैयार रहते हैं। अपनी मेहनत की बदौलत उन्होंने टैक्सी गाड़ी खरीदी है, जो गांव के किसी भी बीमार व्यक्ति को अस्पताल ले जाने के लिए उपलब्ध रहती है। इबादत खां और कहानीकार के पिता सहिया (दोस्त) हैं। इस कारण दोनों परिवारों के सदस्य एक दुसरे घर आते जाते रहते हैं। पर्व-त्यौहार में दोनों परिवार एक दुसरे को पाक-पकवान की लेन-देन करते रहते हैं। गावं में साम्प्रदायिक सौहार्द बना हुआ है। हिन्दू-मुस्लिम एक दुसरे के पर्व-त्यौहार में शामिल होते हैं। लोगों का भीतर-बाहर एक समान है।

सेरजुवा (सेराज) इबादत खां का एकलौता पुत्र है। सेराज भी पिता की तरह मिलनसार और मृदुभाषी है। वह भी हर कोई को मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है। एक बार गांव के लड़के फुटबॉल मैच खेलने पड़ोस के गांव अमृतनगर जाते हैं। उधर निकट के शहर में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ा हुआ है। इसके बावजूद मैच खेला जाता है खेल के दौरान रोहित नाम के खिलाड़ी को चोट लग जाती है और उसे अस्पताल ले जाना जरूरी होता है। उधर शहर का सांप्रदायिक माहौल ठीक नहीं होने के कारण कोई भी खिलाड़ी रोहित को अस्पताल ले जाने को तैयार नहीं होता। लेकिन सेराज रोहित को शहर के अस्पताल में इलाज के लिए ले जाने को तैयार होता है। रोहित को रिक्शे पर बैठाकर शहर की ओर जाता है। कुछ दूर जाने के बाद रिक्शावाला आगे जाने से इंकार कर देता है। ऐसे में सेराज रोहित को कंधे पर बैठाकर अस्पताल ले जाता और डॉक्टर को दिखाकर ही लगता है।

दुर्घटना बस सेराज की मृत्यु कुएं में डूबने से हो जाती है। सेराज कुआ पर नहाने गया पर पैर फिसलने से वह कुएं में गिरकर मर गया। इस घटना से पूरा गांव मर्माहत है। कई महिलाएं तो दहाड़ मार कर रोने लगती है।

10. हुब

अर्थ:-
सामर्थ्य / क्षमता

पात्र:-
• दामोदर- गांव का गरीब लड़का
• गुनेसर बाबु- गांव के जमींदार

कहानी का सार संक्षेप:हुब एक निर्धन छात्र दामोदर के दृढ़ इच्छा शक्ति और उत्साह के बल पर सफलता की कहानी है। और समाज में फैला कुरीति जाति-पात के मिटाने का संदेश है।

दामोदर एक गरीब मजदूर का बेटा है। दामोदर सात भाइयों में सबसे छोटा है। उसके सभी भाई काम करने के लिए शहर चले जाते हैं। उसके पिता गांव के जमींदार गुनेसर बाबु के यहां काम करते करते मर गया। दामोदर अपने पिता के मरने के बाद वह जमींदार गुनेसर बाबु के यहां दस रूपये रोजाना के अनुसार काम करता है। दामोदर को पढ़ने लिखने बड़ी इच्छा थी। वह काम के बाद पढ़ भी लेता था। इस तरह वह मैट्रिक की परीक्षा पास भी कर गया। इसके बाद वह कालेज में नाम लिखवाता हे। जहां उसे छात्रवृति मिलती है। जिससे वह आगे पढ़ाई जारी रखता है।

एक दिन दामोदर काॅलेज जाने के लिए तैयार हो रहा था कि जमींदार गुनेसर बाबु का बुलावा आता है। दामोदर के नहीं जाने पर गुनेसर बाबु खुद उसके घर पहुंचते हैं और उसे हल जोतने के लिए कहते हैं। परन्तु दामोदर पढ़ाई के लिए काॅलेज जाने की बात कहता है। इस बात को सुनकर गुनेसर बाबु आग बबुला हो जाते हैं। दामोदर को बड़ी खरी-खोटी सुनाते हैं। जाति सूचक गाली-गलौज करते हैं। जिससे दामोदर को गहरा अघात लगता है। अंततः दामोदर गुनेसर बाबु को मना करते हुए काॅलेज में पढ़ाई करने हजारीबाग चला जाता है। दामोदर हजारीबाग पहुंचकर पढ़ाई के साथ-साथ रिक्सा चलाता है। जिससे उसका खर्चा पानी का इंतजार हो जाता है। लग्न और कड़ी मेहनत से दामोदर बी. ए. आनर्स की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। बाद में वह प्रतियोगी परीक्षा पास कर दारोगा (पुलिस इंस्पेक्टर) बन जाता है। उसकी पोस्टिंग धनबाद शहर में होती है।

परिस्थितयां किस प्रकार बदलती है इस कहानी में पता चलता है। गांव के जमींदार गुनेसर बाबु अपने परिवार के संग गंगासागर तीर्थ यात्रा पर जाते हैं। गंगासागर से वापसी के दौरान धनबाद में उनकी मां बीमार हो जाती है। डाक्टर से दिखाने के बाद अस्पताल में भर्ती करना पड़ा चार दिन में ही चार हजार खर्च हो गया। डाक्टर ने बताया कि पेट का ऑपरेशन करना होगा नहीं तो जान बचाना मुश्किल है। इस ऑपरेशन में और पांच हजार खर्च की बात डाक्टर ने बतायी। ऐसे में तुरंत इतना पैसा कहां से व्यवस्था हो सकता था ये सोच कर गुनेसर बाबु के माथा चकरा रहा था कि ददा, ददा कहते कहते दामोदर पहुंच जाता है। दामोदर ने सारी बातें जानने के बाद रूपया व्यवस्था कराकर ऑपरेशन करवाया।

ऑपरेशन सफल रहा उनकी मां ठीक हो गयी। इसी बीच दामोदर गुनेसर बाबु के परिवार को अपने यहां ले जाता है और अच्छा से खातिरदारी करता है। दामोदर के ऐन मौके पर सहायता और खातिरदारी से गुनेसर बाबु एकदम बदल गये। गांव पहुंच कर गुनेसर बाबु अपनी मानसिकता पर बहुत अफसोस करते है। वे मन ही मन सोचते हैं। “जिसे छोटा जात समझ कर तिरस्कार किया था आज उसी ने हमारी इज्ज़त बचाया है। जात से कोई बड़ा या छोटा नहीं होता बल्कि कर्म या व्यवहार से बड़ा होता है। गांव में जितना लोग पढ़ेंगे उतना ही गांव की तरक्की होगी।”
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सोंध माटी बुक | sondh mati khortha book

    कविता खंधा   

1. आजादीक रइसका
2. जुवान
3. माटी
4. दहेज समाजेक करिखा
5. आस
6. आजादीक गीत
7. माटी आर संस्कीरति
8. नारी
9. खोढ़र
10. आंखिक कांदना
11. धरती माय
12. किसानेक जिनगी
13. गुलौंची फूल
14. नीम
15. पीआसल धरती
16. मम्मी-पापा
17. रे मन
18. जुवान आर किसान
19. बरिसा रितु
20. जिनगी एक मजुरा के
21. बोनेक डाक
22. जाड़ा रितु
23. रछा बंधन
24. बछरेक कांदना
25. करिया हीरा
26. अदमी निक जीव हे
27. भगजोगनी
28. नेता आर नियत
29. बिजलीक महिमा
30. नसा पान
31. पेपर बेचवा

1. आजादीक रइसका

इस कविता में आजादी के वीरों की बखान की गयी है। यह कविता शेख भीखारी, चांद, भैरव, सिदु, कानु, तिलका, गांधी, भगत, सुभाष के अमर बलिदान की गाथा कहती है।

2. जुवान

यह कविता भारत की सीमा पर डटे जवानों  को समर्पित है।

3. माटी

इस कविता में कवि ने उस माटी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है जिस मिट्टी में पल-बढ़ कर बड़ा होकर दुनिया देखता है।

4. दहेज समाजेक करिखा

दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराई पर आधारित है यह कविता। कवि कहता है कि दहेज एक पिशाच के समान है। जिससे परिवार उजड़ जाता है।

5. आस

आसा अर्थात उम्मीद जीवन में आवश्यक है। कवि कहता है कि एक मां अपने बेटा पर उम्मीद/आसा करता है कि जब वह बुढा हो जाएगा तब उसकी देखभाल करेगा। उसी तरह बाती की आस लौ पर है कि वह उजाला फैलाए।

6. आजादीक गीत

यह कविता आजाद भारत के शान, मान, बान और गौरव गान पर आधारित।

7. माटी आर संस्कीरति

कवि इस कविता के माध्यम से झारखंड की रत्नगर्भा धरती और संस्कृति के बारे वर्णन किया। यहां के उबड़-खाबड़ टोंगरी-पहाड़ के बीच बिरसा, तिलका, भीखू सिदु-कानु जैसे महान विभूतियों का वर्णन किया गया हूं।

8. नारी

इस कविता में कवि ने नारी/महिला की महिमा का बखान किया है। कवि कहता है कि ये नारी तुम कमजोर नहीं हो, तुम अबला नहीं हो, तुम सीता बनकर अन्याय मत सहो। तुम लक्ष्मीबाई बन कर मुकाबला करो।

9. खोढ़र

कवि ने इस कविता के माध्यम से समाज में व्याप्त आर्थिक बिषमता को दर्शाया है। कवि कहता है कि एक और कुछ लोगों को दो जून की रोटी भी प्राप्त नहीं होता वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग खा-खा कर अपना तोंद बढ़ा लिये हैं।

10. आंखिक कांदना

इस कविता में कवि ने विकास के नाम पर लगने वाले कल कारखानों से निकले धुंआ से पुरे क्षेत्र में प्रदूषण फैलने का वर्णन किया है। कवि कहता है इस प्रदुषण से प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। इस प्रदुषण से कई तरह के रोग फैल रहा है। वर्षा भी अनिश्चित हो गयी है जिससे खेती बारी करना मुश्किल हो रहा है। इन सब के कारण से लोगों के आंखों में आंसु आ रहा है।

11. धरती माय

कवि कहता है कि धरती हमारी मां है हम इसके आंचल की छांव में पले-बढ़े हैं। इसकी सुरक्षा का दायित्व भी हम पर है। इसी धरती ने तिलका, सिदु-कानू जैसे महान लोगों ने जन्म लिया है।

12. किसानेक जिनगी

कवि ने इस कविता के माध्यम से किसान के जीवन को दर्शाया है। कवि कहता है कि जब सारा दुनिया सोया रहता है तब किसान सुबह होने से पहले ही उठ जाता है और खेतों में काम करने लगता है। किसान न तो आंधी-पानी और न ठण्ढ-गर्मी से डरता है। वह इन सब की परवाह किये बिना खेता का काम निपटाता है। किसान सब का पेट भरता है और हर दुख सह कर अपने कामों में लगा रहता है।

13. गुलौंची फूल

इस कविता में कवि ने गुलौंची फूल के बारे में वर्णन किया है।

14. नीम

इस कविता के माध्यम से कवि ने नीम पेंड़ के औषधिय गुणों का वर्णन किया है। कवि कहता है नीम के प्रयोग से मतवाही, खोखरिया, दिनाइ, खसखस जैसे बीमारी से राहत मिलता है।

15. पीआसल धरती

कवि ने इस कविता के माध्यम से धरती पर विद्यमान वैमनस्य कलह और अशांति को प्रदर्शित किया है। कवि कहता है कि धरती मां शांति, अमन  और भाईचारा की प्यासी है। आओ हम सब मिलकर मां की प्यास बुझाएं।

16. मम्मी-पापा

कवि ने इस कविता के माध्यम से अंग्रेजी शिक्षा के कारण बच्चे अपने मां-पिता को मम्मी- पापा कहते हैं। जिस पर व्यंग किया है।

17. रे मन

इस कविता के माध्यम से कवि ने वर्तमान समय में वैज्ञानिक खोज के दुरुपयोग को इंगित किया है। कवि कहता है कि मन के अधिक बहकने से नुकसान होता है।

18. जुवान आर किसान

यह कविता जय जवान जय किसान के नारा पर आधारित है। इस कविता के माध्यम से कवि कहता है कि जिस प्रकार से सीमा पर जवान डटे हुए हैं उसी प्रकार खेतों में किसान। एक हमें सीमा से बाहरी दुश्मनों से बचाता है तो दूसरा अनाज उपजाकर भोजन उपलब्ध कराता है। इसलिए दोनों का महत्व सम्मान है।

19. बरिसा रितु

इस कविता के माध्यम से कवि ने प्रकृति का सुंदर चित्रण प्रस्तुत किया है। कवि कहता है कि वर्षा ऋतु आने से चारों तरफ हरियाली छा गई है। वर्षा ऋतु के कारण कई जीव जंतुओं के अरमान पूरे हो गए हैं। खेतों में धान की रोपनी होने लगी है। नदी, नाला, सोता पानी से भर गया है।

20. जिनगी एक मजुरा के

यह कविता एक दिहाड़ी मजदूर की दुर्दशा की कहानी पर आधारित है। जिसमें कवि कहता है कि सूरज के निकलने से पहले ही मजदूर उठकर काम की तलाश में शहर की ओर चल देता है। हाड़ तोड़ मजदूरी करने के बाद भी उसे पर्याप्त पैसा नहीं मिलता और जो मिलता है उसमें कुछ पैसे वह दारू (शराब) पीकर उड़ा देता है। जिससे उसके परिवार की स्थिति और भी बदतर हो रही है। अंततः पत्नी के समझाने के बाद दारू नहीं पीने का सपथ लेता है।

21. बोनेक डाक

यह कविता वन के महत्व को दर्शाती है। कवि ने वन के माध्यम से मनुष्य को संदेश दिया है कि वन के कारण ही पहाड़, पर्वत, नदी नालों की सोभा है। वन वर्षा कराने में सहायक है। अगर वन नहीं रहेगा तो अकाल की स्थित होगी और हवा प्रदुषित हो जायेगी। बाघ, भालु, सियार, बांदर जैसे सभी जंगली जीवों का आश्रय स्थल है वन। कई तरह के औषधिय पेड़ और पौधे वनों में पाया जाता है। जो रोग से बचाता है। लेकिन मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो गयी है। वह वनों को नुकसान पहुंचा रहा है। कवि अंत में कहता है जंगल प्रकृति का गहना है। हरा भरा उसका आंचर है, नदी,नाला, पहाड़, टोंगरी सभी आवरण है। इस लिए हम सबों को मिलकर इसे बचाना चाहिए।

22. जाड़ा रितु

यह कविता एक गांव के गरीब की ठण्डी ऋतु में अपने को किस प्रकार ठण्ड से बचाता है का मार्मिक वर्णन किया है। कवि कहता है कि एक बड़ा घर के लोग ठण्ड आते ही गर्म कपड़ा पहनते हैं। वहीं पैसे के अभाव में जीने वाले गरीब लोग झुरी-लकड़ी से बोरसी की आग और गर्म मांड पीकर तथा फाटल लेंदरा बिछाकर रात गुजारते हैं।  कवि कहता है कि ठण्ड से कई गरीब लोगों की जान चली जाती है। कई आदमी को खांसी और बच्चों को कुकुर खांसी भी हो जाता है

23. रछा बंधन

इस कविता में रक्षाबंधन के महत्व को बताया गया है। कवि ने भाई और बहन के बीच के प्रेम को दर्शाया है। रक्षाबंधन के बहाने कवि ने जाति, धर्म, ऊंच-नीच के बीच के भेद को मिटाने का प्रयास किया है। इस कविता में कवि ने कर्णावती और हुमायूं का उदाहरण रख विश्व में प्रेम की भावना को विकसित करने की बात कही है।

24. बछरेक कांदना

यह कवित समय के रूंदन पर आधारित है। कवि ने समय के महत्व को बताया है कि किस प्रकार देखते ही देखते समय नष्ट हो जाता है। मानव उन क्षणों का उपयोग मानव हित में ना करके मानवीय सभ्यता के अहित के लिए करता है। जिस कारण समय रोता है।

25. करिया हीरा

यह कविता काला हीरा अर्थात कोयला के महत्व पर आधारित है। इस कविता के माध्यम से कवि कहता है कि झारखंड में कोयला का भंडार है। यह कोयला शक्ति का प्रमुख साधन है। इसे बिजली बनती है। रेल इंजन चलता है। कोयला के कारण यहां कल कारखाने खुल गये हैं। जिस कारण बाहरी लोगों का भी यहां आना-जाना हो रहा है। इस कारण यहां लुट-खसोट बढ़ गया है। झारखंड में झारखंड के लोग लाभ से वंचित हो रहे हैं और बाहरी लोग इसका लाभ उठा रहे हैं।

26. अदमी निक जीव हे

कवि ने इस कविता के माध्यम से मनुष्य की बल बुद्धि की महिमा का बखान किया है। कवि ने आदमी को सब जीवों में श्रेष्ठ माना है और कहता है कि यह न हिंदु है न मुस्लिम और न सिख, यह केवल इंसान है। कवि कहता है कि शांति, सत्य और अहिंसा से आदमी दुनियां में प्रकाश फैलाता है।

27. भगजोगनी

इस कविता के माध्यम से कवि ने मनुष्य को भागजोगनी से सीख लेने की बात कही है। कवि कहता कि भगजोगनी छोटा है पर अपने सामर्थ्य से अंधेरे को दूर कर रोशनी से जगमग करने का प्रयास करता है।

28. नेता आर नियत

इस कविता के माध्यम से कवि ने नेता और उनकी नियत के बारे में बताया है। कवि कहता है कि नेता और नियत एक दुसरे के दुश्मन हैं। क्यों कि नेता का अर्थ गाल बजवा अर्थात केवल झूठ बोलने वाला होता है। नेता आज भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया है। कवि कहता है कि आज नौकरी के लिए घुस देना पड़ता है।

29. बिजलीक महिमा

कवि ने इस कविता के माध्यम से बिजली (विद्युत) की महिमा का बखान किया है। कवि कहता है कि बिजली के बीना सब कुछ सुन है। यह विकास का आधार है। कल कारखाना, सिनेमा घर, खेती-बारी सभी में बिजली की दरकार है। आज बिजली के चलते रात दिन के समान प्रतित होता है।

30. नसा पान

इस कविता के माध्यम से कवि ने नशा पान के बुराई को बताया है। कवि कहता है कि नशा करना आज फैशन बन गया है। बीना नशा पान के पार्टी का महत्व नहीं है। नशा पान करवाने वाले लोगों का मान ऊंचा समझा जाता है। कवि कहता है कि इस नशा पान से समाज, मकान, घर गिरहस्ती उजड़ रहा है। नशा पान को बढ़ावा देकर आदमी आज हेवान बन गया है। मनुष्य की आज बुद्धि गायब हो गयी है। वह समझ नहीं पाए रहा है कि मनुष्य का जीवन अनमोल है।

31. पेपर बेचवा

इस कविता के माध्यम से कवि ने पेपर बेचने वाले के जीवन को बताने का प्रयास किया है। कवि यह मानता है कि जब सब कोई सोया रहता है तब बहुत ही सुबह उठकर पेपर बेचने वाले घर घर पेपर पहुंचाते हैं। लोगों खबरों से रूबरू करवाता है, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है।
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