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Class 10 manufacturing industries question answer in hindi

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Mineral and energy resources class 10 explaintion in hindi

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सामाजिक विज्ञान का नया शाॅट सिलेबस 10th क्लास जैक बोर्ड- 2021

शाॅट सिलेबस 10th क्लास जैक बोर्ड- 2021

वैश्विक महामारी Covid-19 के कारण मार्च- 2019 से हीं स्कूल कॉलेज बंद है। इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन पढ़ाई किया जा रहा है। स्कूल ना जाने का प्रभाव बच्चों पर अवश्य रूप से पड़ेगा। इस कारण जैक बोर्ड ने बच्चों को राहत देते हुए 2021 बोर्ड एग्जाम के लिए सिलेबस को 40% तक छोटा किया है। इस पोस्ट के माध्यम से क्लास 10th सामाजिक विज्ञान के सभी चारों विषयों (इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र और अर्थशास्त्र) का सिलेबस देखेंगे। क्या पढ़ना है और क्या नहीं पढ़ना है, ये जानेंगे। कहां से प्रश्न पूछे जाएंगे और कहां से नहीं पुछे जाएंगे ये भी जानने को मिलेगा। इस पोस्ट में सामाजिक विज्ञान का नया शाॅट सिलेबस 10th क्लास जैक बोर्ड- 2021 देेेेेेखेंंगे. सबसे अंत में सिलेबस के आधार पर प्रश्नों का उत्तर दिया गया है.

सामाजिक विज्ञान:- 80+20= 100 अंक

80 अंक विषय से 20 अंक प्रैक्टिकल से

विषय-              अंक
इतिहास-             20
भूगोल-               20
नागरिक शास्त्र-    20
अर्थशास्त्र –         20
Practical –       20
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Total              100 Mark’s

History (इतिहास)

विषय- सूची
1. यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
2. भारत में राष्ट्रवाद
3. भूमंडलीकृत विश्व का बनना
4. औद्योगीकरण का युग
5. मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

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1. यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

Syllabus में शामिल

I. फ्रांसीसी क्रांति और राष्ट्र का विचार
ii. यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण
iii. क्रांतियों का युग
iv. जर्मनी और इटली का निर्माण
v. राष्ट्र की दृश्य कल्पना

Syllabus से बाहर

vi. राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद

2. भारत में राष्ट्रवाद

• संपूर्ण पाठ Syllabus में शामिल है

3. भूमंडलीकृत विश्व का बनना

• संपूर्ण पाठ Syllabus में शामिल है

4. औद्योगीकरण का युग

Syllabus में शामिल

i. औद्योगिक क्रांति से पहले
ii. हाथ का श्रम और वाष्प शक्ति
iii. उपनिवेशों में औद्योगिकरण
v. औद्योगिक विकास का अनूठापन

Syllabus से बाहर

iv. फैक्टरियों का आना
v. वस्तुओं के लिए बाजार

5. मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

संपूर्ण पाठ Syllabus से बाहर है

XXXXX

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Geography (भूगोल)

विषय सूची
1. संसाधन एवं विकास
2. वन एवं वन्य जीव संसाधन
3. जल संसाधन
4. कृषि
5. खनिज तथा ऊर्जा संसाधन
6. विनिर्माण उद्योग
7. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएं

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1. संसाधन एवं विकास

● Syllabus में शामिल

• संसाधन की परिभाषा
• संसाधनों के प्रकार में:- समाप्यता के आधार पर संसाधन और विकास के स्तर के आधार पर संसाधन
• मृदा का वर्गीकरण में:- जलोढ़ मृदा तथा लाल और पीली मृदा

● Syllabus से बाहर

• संसाधनों के प्रकार में:- उत्पत्ति के आधार पर संसाधन और स्वामित्व के आधार पर संसाधन
• संसाधनों का विकास
• संसाधनों का नियोजन
• भू संसाधन
• भू उपयोग
• भू निम्नीकरण और संरक्षण के उपाय
• मृदा संसाधन
• मृदा का वर्गीकरण में :- काली मिट्टी, लेटराइट मिट्टी, मरुस्थलीय मिट्टी तथा वन मिट्टी
• मृदा अपरदन और संरक्षण

2. वन एवं वन्य जीव संसाधन

Syllabus में शामिल

• भारत में वनस्पति जात और प्राणी जात
• भारत में वन एवं वन्य जीव का संरक्षण
• समुदाय और वन संरक्षण

Syllabus से बाहर

• IUCN के अनुसार वन प्राणियों की विभिन्न जातियां जैसे सामान्य जातियां, संकटग्रस्त जातियां, सुभेद्य जातियां, दुर्लभ जातियां, स्थानिक जातियां और लुप्त जातियां
• वन और वन्य संसाधनों के प्रकार एवं वितरण

3. जल संसाधन

Syllabus में शामिल

• जल दुर्लभता और जल संरक्षण एवं प्रबंधन की आवश्यकता
• वर्षा जल संग्रहण

Syllabus से बाहर

• बहुउदेशीय नदी घाटी परियोजनाएं और संबंधित जल संसाधन प्रबंधन

4. कृषि

Syllabus में शामिल

• शस्य प्रारूप
• प्रमुख फसलें जैसे-
चावल,गेहूं, चाय, रबर और कपास

Syllabus से बाहर

• कृषि के प्रकार
• प्रमुख फसलें जैसे:- मोटे अनाज (बाजरा, मक्का) दालें, गन्ना, तिलहन, कॉफी और जूट
• प्रौद्योगिकी और संस्थागत सुधार
• कृषि की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था
• रोजगार और उत्पादन में योगदान
• वैश्वीकरण का कृषि पर प्रभाव

5. खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

Syllabus में शामिल

• खनिज क्या है
• लौह अयस्क
• बॉक्साइट
• अभ्रक
• कोयला
• सौर ऊर्जा
• ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण

Syllabus से बाहर

• खनिज कहां पाए जाते हैं
• मैग्नीज
• तांबा
• चुना पत्थर
• खनिज का संरक्षण
• पेट्रोलियम
• प्राकृतिक गैस
• विद्युत
• परमाणु तथा आण्विक ऊर्जा
• पवन ऊर्जा
• बायोगैस
• ज्वारीय ऊर्जा
• भूतापीय ऊर्जा

6. विनिर्माण उद्योग

Syllabus में शामिल

• राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों का योगदान
• कृषि आधारित उद्योग- सूती वस्त्र उद्योग
• खनिज आधारित उद्योग- लोहा तथा इस्पात उद्योग
• सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलेक्ट्रॉनिक उद्योग
• वायु प्रदूषण
• पर्यावरण निम्नीकरण की रोकथाम

Syllabus से बाहर

• विनिर्माण का महत्व
• औद्योगिक अवस्थिति
• उद्योगों का वर्गीकरण
• कृषि आधारित उद्योग:- पटसन और चीनी
• खनिज आधारित उद्योग:-
एल्मुनियम उद्योग,
रसायन उद्योग,
उर्वरक उद्योग,
सीमेंट उद्योग और मोटर गाड़ी उद्योग
• जल प्रदूषण
• भूमि प्रदूषण
• ध्वनि प्रदूषण

7. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएं

Syllabus में शामिल

• स्थल परिवहन
• स्वर्णिम चतुर्भुज महा राजमार्ग
• राष्ट्रीय राजमार्ग
• राज्य राजमार्ग
• जिला मार्ग तथा अन्य मार्ग
• सीमांत सड़कें
• अंतरराष्ट्रीय व्यापार
• पर्यटन एक व्यापार के रूप में

Syllabus से बाहर

• रेल परिवहन
• पाइपलाइन
• जल परिवहन
• वायु परिवहन
• संचार सेवाएं

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Civics (नागरिक शास्त्र)

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वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था क्लास 10 से इंपोर्टेंट क्वेश्चन आंसर

वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था क्लास 10 से इंपोर्टेंट क्वेश्चन आंसर Class:-10th Subject:- Economics Chapter:- 04. Globalization and Indian Economics वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था Topic:- अभ्यास के प्रश्नों का उत्तर अभ्यास 1. वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए? उत्तर:- वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा संपूर्ण विश्व एकल बाजार के रूप …

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Class 10 History मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया प्रश्नोत्तर in hindi

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Class 10 history औद्योगीकरण का युग question answer in hindi

Class 10 history औद्योगीकरण का युग question answer in hindi

Class:-10th.
Subject:- History
Chapter:- 04
Industrialization era
औद्योगीकरण का युग
Topic:- Class 10 history औद्योगीकरण का युग question answer in hindi

1. निम्नलिखित की व्याख्या करें :-

(क) ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले किए।

उत्तर :- स्पिनिंग जेनी नामक मशीन के आगमन से ऊन कताई की प्रक्रिया में तेजी आई और इससे मजदूर की मांग घटा दी गई। बेरोजगारी की आशंका के कारण मजदूर नई प्रौद्योगिकी से नाराज थे। उन उद्योग में स्पिनिंग जेनी का इस्तेमाल शुरू किया गया तो हाथ से ऊन कातने वाली औरतों ने इन मशीनों पर हमला करना शुरू कर दिया। जेनी के प्रयोग पर यह टकराव लंबे समय तक चलता रहा।

(ख) 17 वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गांवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे।

उत्तर:- 17वीं और 18वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के व्यापारी गांव में जाने लगे थे। वे किसानों और कारीगरों को पैसा देते थे और उनसे अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन करवाते थे। उस समय विश्व व्यापार के विस्तार और दुनिया की विभिन्न भागों में उपनिवेशों की स्थापना के कारण चीजों की मांग बढ़ने लगी थी। इस मांग को पूरा करने के लिए केवल शहरों में रहते हुए उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता था। कारण यह था कि शहर में शहरी दस्तकारी और व्यापारिक गिल्ड्स काफी ताकतवर थे। ये गिल्ड्स से जुड़े उत्पादकों के संगठन होते थे। गिल्ड्स से जुड़े उत्पादक कारीगरों को प्रशिक्षण देते थे। उत्पादकों पर नियंत्रण रखते थे। प्रतिस्पर्धा और मूल्य तय करते थे तथा व्यवसाय में नए लोगों को आने से रोकते थे। शासकों ने भी खास उत्पादों के उत्पादन और व्यापार में गिल्ड्स को एकाधिकार दिया हुआ था। फलस्वरूप नए व्यापारी शहरों में कारोबार नहीं कर सकते थे। इसीलिए वे गांवों की तरफ जाने लगे।

(ग) सूरत बंदरगाह 18 वीं सदी के अंत तक हाशिए पर पहुंच गया था।

उत्तर :- गुजरात के तट पर स्थित सूरत बंदरगाह के द्वारा भारत खाड़ी और लाल सागर के बंदरगाहों से जुड़ा हुआ था और खूब व्यापार होता था। निर्यात व्यापार के इस नेटवर्क में बहुत सारे भारतीय व्यापारी एवं बैंकर सक्रिय थे। 1750 के दशक तक भारतीय सौदागरों के नियंत्रण वाला यह नेटवर्क टूटने लगा। यूरोपीय कंपनियों की ताकत बढ़ती जा रही थी। पहले उन्होंने स्थानीय दरबारों में कई तरह की छूट प्राप्त की थी। और उसके बाद उन्होंने व्यापार पर इजारेदारी अधिकार प्राप्त कर लिए। इससे सूरत व हुगली दोनों पुराने बंदरगाह कमजोर पड़ गए और होने वाले निर्यात में कमी आई। 17वीं सदी के आखिरी सालों में सूरत बंदरगाह से होने वाले व्यापार का कुल मूल्य 1.6 करोड़ रुपए था। 1740 के दशक तक गिरकर केवल 30 लाख रह गया था।

(घ) ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में बुनकरों पर निगरानी रखने के लिए गुमाश्तों को नियुक्त किया था।

उत्तर :- यूरोप में बारीक भारतीय कपड़ों की भारी मांग थी। इसीलिए ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से होने वाले कपड़े के निर्यात को फैलाना चाहती थी। परंतु निर्यात के लिए लगातार सप्लाई आसानी से नहीं मिल पाता था। उन्हें बुने हुए कपड़े प्राप्त करने के लिए फ्रांसीसी, डच और पुर्तगाली के साथ-साथ स्थानीय व्यापारी के बीच ऊंची बोली लगाकर कपड़ा खरीदती थी।
ईस्ट इंडिया कंपनी की राजनीतिक सत्ता स्थापित होने के बाद कपड़ा व्यापार में प्रतिस्पर्धा समाप्त करने, लागतो पर अंकुश रखने, कपास व रेशम से बनी चीजों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों और दलालों को खत्म करने तथा बुनकरों पर ज्यादा प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने, बुनकरों पर नजर रखने, माल इकट्ठा करने और कपड़ों की गुणवत्ता जांचने के लिए वेतन भोगी कर्मचारी तैनात कर दिया जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था। गुमाश्तों बुनकरों को पेशगी देने लगे। ताकि बुनकर कच्चा माल खरीद सके, परंतु जो बुनकर पेशगी स्वीकार करते थे। उन्हें अपना निर्मित माल गुमाश्तों को ही बेचना पड़ता था। उसे वह किसी और व्यापारी को नहीं बेच सकते थे।

2. प्रत्येक वक्तव्य के आगे ‘सही’ या ‘गलत’ लिखें :-

(क) 19वीं सदी के आखिर में यूरोप की कुल श्रम शक्ति का 80% तकनीकी रूप से विकसित औद्योगिक क्षेत्र में काम कर रहा था।

उत्तर :- सही

(ख) 18 वीं सदी तक महीन कपड़े के अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर भारत का दबदबा था।

उत्तर :- सही

(ग) अमेरिका गृहयुद्ध के फलस्वरूप भारत के कपास निर्यात में कमी आई।

उत्तर :- गलत

(घ) फ्लाई शटल के आने से हथकरघा कामगारों की उत्पादकता में सुधार हुआ।

उत्तर :- सही

3. पूर्व- औद्योगिककरण का मतलब बताएं।

उत्तर :- इंग्लैंड और यूरोप में फैक्ट्रियों के स्थापना से पहले ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगा था। यह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था । बहुत सारे इतिहासकार औद्योगिकरण के इस चरण को पूर्व औद्योगीकरण का नाम देते हैं।

    ** चर्चा करें **

1. 19वीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों की वजह हाथों से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता क्यों देते थे?

उत्तर :- उद्योगपति मशीनों के बजाय हाथों से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते थे। इसके निम्नलिखित कारण थे :-
(क) नई तकनीक मांगी थी।
(ख) मशीनें अक्सर खराब हो जाती थी और उनकी मरम्मत पर काफी खर्च आता था।
(ग) मशीनें उतनी अच्छी नहीं थी, जितना उनके अविष्कारों और निर्माताओं का दावा था।
(घ) विक्टोरियाई ब्रिटेन में मानव श्रम की कोई कमी नहीं थी।
(ङ) उद्योगपतियों को श्रमिक की कमी या वेतन के मद में भारी लागत जैसी परेशानी नहीं थी।
(च) बहुत सारे उद्योग में श्रमिकों की मांग मौसम के आधार पर घटती बढ़ती रहती थी।
(छ) बहुत सारे उत्पाद केवल हाथ से तैयार किए जा सकते थे।
(ज) बाजार में अक्सर छोटे डिजाइन और खास आकारों वाली चीजों की काफी मांग रहती थी, जो मशीनों से नहीं बनाए जा सकते थे।
(झ) ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग कुलीन और पूंजीपति वर्ग हाथों से बनी चीजों को महत्व देते थे। हाथ से बनी चीजों को परिष्कार और सुरुचि का प्रतीक माना जाता था। उनकी फिनिश अच्छी होती थी। उनका डिजाइन अच्छा होता था।

2. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी कपड़े की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया।

उत्तर :- ईस्ट इंडिया कंपनी ने सूती व रेशम से बनी चीजों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रबंधन और नियंत्रण की एक नई व्यवस्था लागू की जो इस प्रकार है :-
(i) कंपनी ने कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों को और दलालों को खत्म करने तथा बुनकरों पर ज्यादा प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की। कंपनी ने बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने और कपड़ों की गुणवत्ता जांचने के लिए वेतन भोगी कर्मचारी तैनात कर दिए जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था।
(ii) कंपनी को माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य खरीदारों के साथ कारोबार करने पर पाबंदी लगा दी गई। इसके लिए उन्हें की पेशगी रकम दी जाती थी। एक बार काम का ऑर्डर मिलने पर बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए ऋण दे दिया जाता था। जो कर्जा लेते थे उन्हें अपना बनाया हुआ कपड़ा भी देना पड़ता था। उसे वे किसी और व्यापारी को नहीं दे सकते थे।

3. कल्पना कीजिए कि आपको ब्रिटेन तथा कपास के इतिहास के बारे में विश्वकोश के लिए लेख लिखने को कहा गया है। इस अध्याय में दी गई जानकारियों के आधार पर अपना लेख लिखिए।

उत्तर:- (i)ब्रिटेन ने सफलतापूर्वक कपड़े सूती वस्त्र मोटा या महीन प्रकार के कपड़े पर अपना पूर्ण नियंत्रण और वर्चस्व बना लिया था।
(ii) इसने मैनचेस्टर निर्मित सूती कपड़े को बेचने के लिए अपने सभी उपनिवेशों में बाजार बना लिए थे। जो हाथ से बने कपड़ों से सस्ता था।
(iii) कपड़े के व्यापार से ब्रिटेन ने बड़ा लाभ कमाने का तरीका ढूंढ लिया था।
(iv) ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीय बुनकरों को ऋण देती थी। और गुमाश्तों से उनकी निगरानी करवाती थी। इससे ब्रिटेन को मोटे और महीन कपड़ों की नियमित आपूर्ति मिलती रहती थी।
(v) ब्रिटेन में अनेक स्थानों पर पर सूती कपड़ा मिलों की स्थापना से यहां से यहां औद्योगिक विकास में मदद मिली थी।

अतः इस प्रकार कपास के व्यापार पर नियंत्रण के कारण ब्रिटेन की वैश्विक अर्थव्यवस्था मेंअच्छी स्थिति बनी रही।

4. पहले विश्व युद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा?

उत्तर :- भारत का औद्योगिक विकास पहले विश्वयुद्ध सबसे धीमा रहा। प्रथम विश्वयुद्ध में बिल्कुल एक नई स्थिति पैदा कर दी थी। ब्रिटिश कारखाने सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए युद्ध संबंधी उत्पादन में व्यस्त थे, इसीलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया। भारतीय बाजारों को रातों-रात एक बहुत बड़ा स्थानीय बाजार मिल गया। युद्ध लंबा चला तो भारतीय कारखानों में भी फौज के लिए जूट की बोरियाँ, फौजियों के लिए वर्दी के कपड़े, टेंट और चमड़े के जूते, घोड़े व खच्चर की जीन तथा बहुत सारे अन्य सामान बनने लगे। नए कारखाने लगाए गए। पुराने कारखाने कई पारियों में चलने लगे। बहुत सारे नए मजदूरों को काम पर रखा गया। युद्ध के दौरान औद्योगिक उत्पादन तेजी से बढ़ा।

        ** कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न **

1. प्राच्य :- भूमध्य सागर के पूर्व में स्थित देश। आमतौर पर यह शब्द एशिया के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पश्चिमी नजरिए में प्राच्य के पूर्व आधुनिक पारंपरिक और रहस्यम थे।

2. स्पिनिंग जेनी :- जेम्स हरग्रिब्ज द्वारा 1764 ई॰ में बनाई गई इस मशीनें कताई की प्रक्रिया तेज कर दी और मजदूरों की मांग घटा दी। एक ही पहिया घुमाने वाला एक मजदूर बहुत सारी तिकलियों को घुमा देता था और एक साथ बहुत सारे धागे बनते थे।

3. 19वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत के कपड़ा निर्यात में गिरावट आने लगी क्यों?

उत्तर :- जब इंग्लैंड में कपास उद्योग विकसित हुआ तो वहां के उद्योगपति दूसरे देशों में आने वाले आयात को लेकर परेशान दिखाई देने लगे। उन्होंने सरकार पर दबाव डाला कि वह आयतित कपड़े पर आयात शुल्क वसूल करें। जिससे मैनचेस्टर में बने कपड़े बाहरी प्रतिस्पर्धा के बिना इंग्लैंड में आराम से बिक सके। दूसरी तरफ उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी पर दबाव डाला कि वह ब्रिटिश कपड़ों को भारतीय बाजारों में भी बेचे। 19वीं सदी के आरंभ में ब्रिटेन के वस्त्र उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई और भारत के कपड़ा निर्यात में गिरावट आने लगी जो लंबे समय तक जारी रहा।

4. 18 वीं शताब्दी में इंग्लैंड में सूती कपड़ा उद्योग में वृद्धि किस कारणों से हुई?

उत्तर :- इंग्लैंड में सबसे पहले 1730 के दशक में कारखाने खुले, लेकिन उनकी संख्या में तेजी से वृद्धि 18 वीं शताब्दी के आखिर में हुई। 18वीं शताब्दी के अंत में कपास के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। ब्रिटेन 1760 ई॰ में 25 लाख पौंड कच्चे कपास का आयात करता था। जो 1787 ई॰ में 220 लाख पौंड तक पहुंचा। 18वीं शताब्दी में कई ऐसे अविष्कार हुए जिन्होंने उत्पादन प्रक्रिया ऐठना व कताई और लपेटने के हर चरण में कुशलता बढ़ा दी। प्रति मजदुर उत्पादन बढ़ गया। इसके बाद रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा सामने रखी। अभी तक कपड़ा उत्पादन पूरे ग्रामीण इलाके में फैला हुआ था। कारखाने लगने से सारी प्रक्रियाएं एक छत के नीचे और एक मालिक के हाथों में आ गई थी। इसके कारण उत्पादन प्रक्रिया पर निगरानी, गुणवत्ता का ध्यान रखना और मजदूरों पर नजर रखना संभव हो गया था।

5. उत्पादों की विक्रय प्रक्रिया में विज्ञापनों के योगदान का वर्णन कीजिए।

उत्तर :- विज्ञापन नए उत्पादों के बारे में उपभोक्ताओं के विचार बदलकर उनकी ओर आकर्षित कर देते हैं। नए उपभोक्ता पैदा करने का तरीका विज्ञापन है। आज हम एक ऐसी दुनिया में है जहां चारों तरफ विज्ञापन छाए हुए हैं। औद्योगिकरण की शुरुआत से ही विज्ञापनों ने विभिन्न उत्पादों को बाजार में फैलाने में और एक नए उपभोक्ता संस्कृति रचने में अहम भूमिका निभाई है।
जब मैनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में कपड़ा बेचना शुरू किया तो वह कपड़े के बंडलों पर लेबल लगाते थे। जिससे खरीदारों को कंपनी का नाम व उत्पादन की जगह पता चल जाती थी। लेबल ही चीजों की गुणवत्ता का प्रतीक भी था। लेबलों पर सिर्फ शब्द और अक्षर ही नहीं तस्वीरें भी बनी होती थी। जो सुंदर होती थी ये लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते थे। लेबलों में भारतीय देवी देवताओं की तस्वीरें प्रायः होती थी। तस्वीरों का लाभ यह होता था कि विदेशों में बनी चीज भी भारतीयों को जानी पहचानी सी लगती थी।
19वीं शताब्दी के अंत में निर्माता अपने उत्पादों को बेचने के लिए कैलेंडर छपवाने लगे थे। कैलेंडर उनकी भी समझ में आता था जो पढ़े-लिखे नहीं होते थे। एक कैलेंडर से वर्षभर उत्पाद का विज्ञापन होता रहता था। देवताओं की तस्वीरों की तरह महत्वपूर्ण व्यक्तियों, सम्राटों और नवाबों की तस्वीरें भी विज्ञापन में खूब इस्तेमाल होती थी। जिनका संदेश होता था अगर आप विज्ञापन में छपी तस्वीरों को सम्मान करते हैं तो इस उत्पाद का भी सम्मान कीजिए। इस प्रकार उनकी गुणवत्ता के बारे में साधारण व्यक्ति को किसी तरह का डर नहीं रहता था।


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औद्योगीकरण का युग

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